स्निग्धा मित्रा
मुर्गी के अंडा डाल पाने का मामला प्रकाश से जुड़ा हुआ है। पोल्ट्री फार्म में इसी जानकारी का उपयोग कर प्रक्रिया का और अधिक प्रेरित किया जाता है।
जब शिक्षकों की एक जिज्ञासा की वजह से पूछताछ करने पर यह पता चला कि एक सामान्य पालतू मुर्गी (जिसे अक्सर देसी मुर्गी भी कहा जाता है) सालभर में तकरीबन 40-50 अंडे देती है, परन्तु पोल्ट्री फार्म में गुर्गियां एक साल में दो सौ से भी ज़्यादा अंडे देती हैं तो कुतूहल पैदा होना स्वाभाविक था कि इन दोनों ‘फसलों’ में इतना अंतर कैसे।
यह तो मालूम ही था कि आजकल कॉस-ब्रीडिंग करवा क फसलों और पालतू जानवरों की संकर नस्ले तैयार की जाती हैं; जिनमें नर और मादा का चुनाव इस तरह से किया जाता है कि जो गुण हमें महत्वपूर्ण लग रहे हों उन्हें उभारा जा सके – जैसे फसलों में उत्पादन, रोग से जूझ पाने की क्षमता आदि; और गाय-भैंस में दूध का उत्पादन जैसे गुण। ऐसे ही मुर्गियों की ऐसी संकर प्रजातियां तैयार हो सकती हैं जो ज़्यादा अंडे देती हो।
पर मन में सवाल था कि क्या मुर्गी फार्म में कवल इतना ही होता है अंडे देती हो व उन्हें सही वातावरण और खूब़ सारा आहाहर उपलब्ध करवा दिया। या फिर कोई और पेंच भी है इसमें। इसी सवाल की खोजबीन करते हुए एक मज़ेदार बात पता चली कि अगर मुर्गी का रोज़ खूब ज़्यादा देर तक प्रकाश में रखा जाए तो वह रोज़ एक अंडा देने लगती है। और इसीलिए मुर्गी फार्म पर अक्सर रात को भी खूब सारे बल्ब जलते नज़र आते हैं।
रोशनी से अंडा
एक सामान्य मुर्गी साल भर में 40-60 अंडे देती है परन्तु मुर्गी फार्म की मुर्गियां एक साल में 200 से 240 तक अंडे देती हैं और इस अंतर का प्रमुखतम कारण है मुर्गी का मिलने वाली रोशनी की अवधि। मुर्गी जब लगभग बीस सप्ताह (17-32 सप्ताह) की उम्र की होती है तब से वह अंडे डालने लगती है। उसके बाद अगर मुर्गी को रोज़ सोलह घंटे प्रकाश में रखा जाए तो वह रोज़ एक अंडा देती है।
मुर्गी का सोलह घंटे से अधिक रोशनी में रखना एक दिलचस्प प्रक्रिया शुरू करता है। वयस्क मुर्गी के आंख के रेटिना पर गिरने वाला प्रकाश उसकी पीयूष ग्रन्थि (पिट्यूटरी ग्लेंड) को प्रेरित करता है – एक विशेष हार्मोन (जिसे ल्यूटिनाइजि़ंग हार्मोन कहा जाता है) स्रावित करने के लिए।
मुर्गी के अंडाशय में खूब सारे अपरिपक्व व परिपक्व अंडाणु मौजूद होते हैं। हर अंडाणु पर एक कोशिका की मोटाई के लगभग एक झिल्ली होती है; और इस पूरे आकार को पुटक (फोलिकल) कहा जाता है। पीयूष ग्रन्थि से स्रावित हार्मोन जब अडाशय में पहुंचता है तब यह परिपक्व पुटक को प्रेरित करता है और डिमबोत्सर्जन यानी कि अंडाशय से अंडाणु के के अंडवाहिनी में जाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। सामान्य: दिनभर के प्रकाश पर निर्भर करती है यह हार्मोन स्रावित होने की प्रक्रिया, जिसकी वजह से रात में लगभग बारह बजे से लेकर सुबह आठ बजे तक हार्मोन स्रावित हो जाता है। उसके कुछ घंटे बाद दिन में ही अंडे के उत्सर्जन की प्रक्रिया होती हे। मगर अंडाशय से छूटने के बाद लगभग चौबीस घन्टे लगते हैं अंडाणु का प्रजनन छिद्र तक का अपना सफर तय करने में, और इसलिए आमतौर पर मुर्गी दिन मे ही अंडा देती है।
अंडों की संख्या और अन्य कारक
यहां तक पहुंचकर वापस लौट चलते हैं मुर्गी फार्म। यह तो हमने जान लिया कि अगर मुर्गी को रोज़ सोलह घंटे से ज़्यादा प्रकाश में रखा जाए तो वह रोज़ एक अंडा देती है। मगर उसके साथ-साथ कई अन्य बातों का ख्याल रखना भी ज़रूरी है- अगर हम चाहते हैं कि मुर्गी सालभर में दो सौ से भी ज़्यादा अंडे दे। आइए उन बातों पर भी नज़र डाल लें।
- मुर्गी की नस्ल: ऐसी नस्ल का चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण है जो ज़्यादा अंडे दे, अंडा देने के बाद उसे सेने के लिए बेचैन न हो, लम्बे समय तक अंडे देती रहे, आदि, आदि।
- आहार: अगर मुर्गी से लगभग रोज़ एक अंडे की अपेक्षा है तो उसे भरपूर भोजन देना ज़रूरी हो जाता है; और उसमें भी खासतौर पर व स हिस्से जो अंडे के लिए आवश्यक हैं अर्थात वसा और प्रोटीन के अलावा कैल्शियम, फॉस्फोरस आदि भी। इसी वजह से फार्म की मुर्गी को दाने के साथ मछली या हड्डियों से बना खाद्य पदार्थ व चूना आदि खिलाए जाते हैं।
- उम्र: जैसे कि पहले जि़क्र किया गया है मुर्गी में अंडा देने की प्रक्रिया 17-22 सप्ताह की उम्र से ही शुरू हो जाती है। पहले साल वह सबसे ज़्यादा अंडे देती है और दूसरे व तीसरे वर्ष यह दर लगातार घटती जाती है। इसीलिए मुर्गी फार्म में दूसरे व तीसरे साल की मुर्गियों को अलग रखा जाता है और उन्हें 17-18 घंटे से भी ज़्यादा रोशनी दी जाती है। उसके बावजूद भी अगर कोई मुर्गी कम अंडे दे रही हो तो उसे बाज़ार में बेच दिया जाता है।
- अंडा सेने की प्रक्रिया: फार्म पर मुर्गी के अंडा देने के तुरन्त बाद अंडे को हटा दिया जाता है क्योंकि अगर मुर्गी अंडा सेने बैठ जाए तो उस वजह से मुर्गी के सीने पर पड़ने वाले अंडे के दबाव के कारण पीयूष ग्रंथी से एक अन्य हार्मोन स्रावित होने लगता है (प्रोलेक्टिन) जिसका असर अंडे देने की दर परी पड़ता है।
- पंख गिरना: मुर्गियों व अन्य पक्षियों में यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जिस समय मुर्गी के पंख गिर रहे हों उस दौरान वह अंडा देना बद कर देती है और उसके शरीर पर नए पर उगते है और उसके शरीर पर नए पर उगते हैं। इस प्रक्रिया को रोकने का कोई तरीका अभी तक ढूंढा नहीं जा सका है इसलिए सामान्यत: हर मुर्गी साल में एक बार कुछ समय के लिए अंडे देना बंद कर देती है।
- वातावरण का प्रभाव: अगर वातावरण में तीव्र परिवर्तन आए तो उसका असर मुर्गी के भोजन पर पड़ता है।
ऐसे मौके पर मुर्गी कम भोजन लेती है और उस वजह से उसके अंडे देने की दर कम हो जाती है इसलिए तेज़ गर्मी के मौसम अक्सर सुनने में आता है कि मुर्गी ‘कुड़क’ हो गई।
*किसी भी तरंग-लंबाई वाला एक फुट कैण्डल की तीव्रता का दृश्य प्रकाश मुर्गी की पीयूष ग्रंथी को प्रेरित करता है।
**पक्षियों व कुछ अन्य प्राणियों मे प्रजनन नली का द्वार, मल द्वार व मूत्र द्वार एक ही होता है। इसे अवस्कर या क्लोका कहा कहा जाता है।
वज़न से दस गुना . . .
एक साल में 250 अंडे यानी 14-15 किलोग्राम वज़न के अंडे, जबकि वयस्क मुर्गी का खुद का वज़न लगभग सवा डेढ़ किलोग्राम ही होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि अंडों के ज़रिए मुर्गी साल भर में लगभग 1.8 किलोग्राम प्रोटीन, 1.6 किलोग्राम वसा, 1.6 किलोग्राम खनिज लवण व 9 किलोग्राम पानी बाहर निकालती है।
‘शाकाहारी अंडा’ – आखिर है क्या?
बाज़ार में आमतौर पर बिकने वाले अंडों को अक्सर ‘शाकाहारी अंडा’ कहा जाता है। ‘इन अंडों से चूजे नहीं बनते’ इस सवाल को लेकर कुछ शिक्षकों के साथ एक बार बहस छिड़ गई। कई लोगों ने कहा कि यह अंडा निषेचित नहीं है (यानी कि इसमें अंडाणु और शुक्राणु का मेल नहीं हुआ) इसलिए इसमें से चूज़ा नहीं बनता। लेकिन कई शिक्षकों ने इसपरी सवाल उठाया कि बिना निषेचन क मुर्गी भला अंडा कैसे दे सकती है। उनका कहना था कि पोल्ट्री फार्म में दाने के साथ कुछ मिलाया जाता है या शायद कोई इन्जेक्शन दिया जाता है जिससे वह अंडा डालने लगती है। एक मान्यता यह भी है कि इंजेक्शन से पशुओं की तरह मुर्गियों के साथ भी कृत्रिम गर्भादान की प्रक्रिया की जाती है।
सबसे पहले तो यही समझना ज़रूरी है कि एक अंतराल विशेष पर अंडाशय से अंडाणु का फूटकर बाहर आना, व फिर अंडवाहिनी से प्रजनन छिद्र तक का सफर – अधिकतर प्राणियों मं सामान्यत: होने वाली एक घटना है। चाहे मनुष्य की बात हो या मुर्गी की, दोनों में एक निश्चित अंतराल मे अंडाणु अंडाशय से प्रजनन छिद्र तक का अपना सफर पूरा करेगा; इतना ज़रूर है कि यह अवधि विभिन्न प्राणियों के लिए अलग-अलग होती है।
अगर इस सफर के दौरन अंडाणु का शुक्राणु से मेल हो जाता है और वह निषेचित हो जाता है, तब हम उसे भ्रूण कहते हें; यानी कि एक नए जीव के निर्माण की शुरूआत हो चुकी है।
इसका अर्थ यह हुआ कि मुर्गी अंडा दे इसके लिए न तो मुर्गे से मेल की ज़रूरत है न ही किसी दवाई की। फर्क केवल इतना है कि अगर अंडा अनिषेचित है ता उसमें से चूज़ा पैदा नहीं होगा
अंडाणु का सफर
अंडे के बीच का पूरा पीला भाग एक अंडाणु होता है यानी कि अंडाशय से निकलते वक्त यह पीला हिस्सा पूरी तरह से बन चुका होता है। यह अंडाणु जब अंडवाहिनी में से गुज़रता है तब उस पीले हिस्से पर रंगहीन एलब्यूमेन (अंडे को उबालने पर जो हिस्सा सफेद हो जाता है) क परत जमती जाती है। अंडे को तोड़ने पर तो यह रंगहीन हिस्सा एक सा दिखता है परन्तु दरअसल अंडवाहिनी में से गुज़रते हुए अंडाणु पर एलब्युमेन की चार परतें चढ़ती हें। और फिर अंत में केल्शियम का आवरण बनता है। फिर यह अंडा प्रजनन छिद्र के ज़रिए मुर्गी के शरीर से बाहर निकल जाता है।
नया जीव बनने की यानी निषेचन की प्रक्रिया तभी सफल होती है जब अंडाणु अंडाशय से बाहर निकलते ही तुरन्त शुक्राणु से मिल जाए ऐसी स्थिति मे भ्रूण का निर्माण होता है। अगर निषेचन न भी हो तो भी अंडाणु अपना सफर पूरा करता है व अनिषेचित अंडे के रूप में मुर्गी क शरीर से बाहर आता है। स्वाभाविक है कि ऐसे अनिषेचित अंडे से चूजा नही बनता।
इस सफर के विभिन्न हिस्सों मे क्या हो रहा है इस समझने के लिए आपको आगे दिए गए विवरण के साथ-साथ सामने दिए गए चित्र पर भी गौर करना होगा। अंडवाहिनी मे प्रवेश करने के बाद अंडाणु/भ्रूण को मैगनम तक पहु्ंचने में तीन घंटे लगते हैं और इस दौरान उस पर एलब्यूमेन की परत चढ़ जाती है। तत्पश्चात अंडाणु/भ्रूण लगभग सवा घंटा इस्थेमस में गुज़रता है जहां उस पर दो झिल्लियां बनती हैं, जो बाद मं हवा को भ्रूण तक पहुंचाने में मददगार साबित होती हैं। सफर का एक लम्बा पड़ाव गर्भाशय में होता है जहां 20-21 घंटे गुज़ारे जाते हैं। यहीं अंडे पर बाहरी आवरण चढुता है और साथ ही अंदर भी अन्य कई परिवर्तन होते हैं।
यहां से पूर्ण रूप में तैयार होकर अंडा प्रजनन छिद्र यानी अवस्कर से बाहर निकलता है। पूरे सफर के दौरान अंडे का नुकीला सिरा नीचे की तरफ रहता है और अवस्कर में से यही पहले बाहर निकलता है।
स्निग्धा मित्रा: एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम में कार्यरत।