अम्लान दास

कुछ समय से दूध खबरों में छाया 1 रहा है। एक के बाद एक कई शहरों से खबरें आईं कि गाय भैंस के दूध की बजाए नकली दूध बनाकर बेचा जा रहा है, या फिर इस नकली दूध को असली दूध में मिलाकर इस बात से अनभिज्ञ लोगों को ठगा जा रहा है।

वैसे तो दूध में मिलावट की परम्परा का लंबा इतिहास है। सबसे सामान्य और व्यापक मिलावट तो गाय-भैंस के दूध में पानी मिलाकर उसकी मात्रा बढ़ाना है। इस मिलावट की खासियत यही है कि उपभोक्ता को लूटा ज़रूर जा रहा है परन्तु पानी मिले दूध का सेवन करने वाले के स्वास्थ्य को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। दूध को टिकाऊ बनाने के लिए भी उसमें तरह-तरह के रसायन मिलाए जाते हैं।

दूध में अगर पानी मिला हो तो बर्तन में उड़ेलते वक्त या गर्म करने पर मलाई की मात्रा आदि से पता चल जाता है। बारीकी से जांच करनी हो तो लेक्टोमीटर का इस्तेमाल करते हैं। दूध बिना खराब हुए ज्यादा समय तक टिका रहे इसलिए जब भी रसायन मिलाए जाते हैं तो इस बात का विशेष ख्याल रखा जाता है कि केवल ऐसे पदार्थ मिलाए जाएं जिनसे शरीर को नुकसान न पहुंचे।

परन्तु इस मायने में ‘सिंथेटिक यानी कृत्रिम दूध का मामला एकदम फर्क है। कृत्रिम दूध बनने का पता शायद सबसे पहले उत्तर भारत के कुरुक्षेत्र

कृत्रिम दूध का फॉर्मूला

कृत्रिम दूध का फॉर्मूला तथा इसे बनाने का तरीका कुछ साल पहले एक अखबार 'ट्रिब्यून' में छपा था।
बताई गई मात्रा में यूरिया, कॉस्टिक सोड़ा, लवण, शक्कर एवं ग्लूकोज़ पाउडर एक बर्तन में लेकर बहुत अच्छी तरह मिश्रण बनाने के बाद उसमें नल का पानी मिलाया जाता है। उसके बाद सोयाबीन तेल एवं दूध पाउडर डाला जाता है। इस तरह कृत्रिम दूध तैयार हो जाता है। गाय-भैंस के दूध के घटकों से तुलना करने पर आप पाएंगे कि इस कृत्रिम दूध में असली दूध में पाए जाने वाले पदार्थों में से एक भी पदार्थ नहीं है।

में लगा। इसके बाद कई अन्य स्थानों जैसे - हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश से भी ऐसी ही खबरें आने लगीं। आइए देखें कि दरअसल ये नकली दूध' है क्या और कैसे बनता है यह।

सिंथेटिक दूध
यूरिया, कॉस्टिक सोड़ा, तेल, शक्कर आदि को पानी में घोलने से दूध जैसा दूधिया तरल बनता है और फिर यह जल्दी न बिगड़े इसलिए इसमें कई रसायन मिलाए जाते हैं। असली दूध जैसा ही दिखता है यह, इसलिए इसे गाय-भैंस के दूध में मिलाकर बेचा जाता है। यह मिलावट दूध में पानी मिलाने से कहीं ज्यादा खतरनाक है क्योंकि इस किस्म के मिलावटी दूध के लगातार सेवन से शारीरिक विकास में बाधा, आंखों की रोशनी जाना, पेट में अल्सर, कैंसर और नपुंसकता जैसी कई व्याधियां हो सकती हैं।

वास्तव में देखा जाए तो कृत्रिम दूध नामकरण ही गलत है। इस से ऐसा लगता है कि असली दूध न सही परंतु लगभग असली दूध जैसा ही होगा (दूध पाउडर जैसा ही कुछ)यानी कि इसके भौतिक, रासायनिक व पौष्टिक गुण कुछ हद तक असली दूध के समान होंगे। लेकिन कृत्रिम दूध का पशुओं से मिलने वाले दूध से कोई संबंध नहीं है। इसलिए इसे ‘सिंथेटिक मिल्क' या नकली दूध कहना कहीं बेहतर होगा।

शुद्ध दूध में लगभग 3.5 प्रतिशत वसा होता है जिसमें घुलनशील विटामिन ए, डी एवं ई रहते हैं और 9.5 प्रतिशत एस. एन. एफ. (Solid Not Fat - वसा के अलावा अन्य ठोस पदार्थ) होते हैं। एस. एन. एफ. में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट (लेक्टोज़) एवं खनिज पदार्थ - जैसे कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम एवं जिंक उपस्थित होते हैं।

नकली दूध में डाला गया सोयाबीन या खनिज तेल असली दूध में पाए
*गाय के दूध में पानी का प्रतिशत 63 से 87 प्रतिशत के बीच होता है।

जाने वाले वसा की पूर्ति करता है। यूरिया, शक्कर, मण्ड, लवण आदि एस. एन. एफ. की मात्रा की पूर्ति करते हैं।

शुद्ध दूध को ज्यादा दिन रखने के लिए उसमें जान-बूझकर परीरक्षात्मक रसायन (प्रिजर्वेटिव) जैसे फॉर्मेल्डिहाइड, सेलिसिलिक अम्ल, हाइड्रोजन पेरॉक्साइड मिलाए जाते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। शुद्ध दूध को अगर हल्के से गर्म वातावरण में रखा जाए तो उसमें पाए जाने वाली लेक्टोज शर्करा लेक्ट्रिक अम्ल में परिवर्तित होने लगती है, जिसके कारण दूध और अम्लीय हो जाता है। इसलिए इसे उदासीन बनाने के लिए क्षारीय पदार्थ जैसे कॉस्टिक सोड़ा, चूने का पानी आदि डाले जाते हैं ताकि दूध काफी समय तक फटे नहीं।

सिंथेटिक दूध की पहचान
अगर किसी के सामने सौ फीसदी ‘सिंथेटिक मिल्क' यानी नकली दूध है तो गंध, रंग, स्वाद आदि के आधार पर कोई भी आसानी से समझ जाएगा कि मामला गड़बड़ है। परंतु जब नकली दूध असली दूध में मिला देते हैं। तब दूध के गंध, रंग, स्वाद एवं एकरूपता के आधार पर मिलावट का पता लगाना काफी मुश्किल हो जाता है

यहां दी गई तालिका में सिंथेटिक दूध के साथ असली दूध की तुलना की गई है। इससे यह तो साफतौर पर समझ आता है कि जहां तक घटकों का सवाल है दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। अब सवाल यह है कि इस अंतर का पता कैसे लगाया जाए।

हम बाज़ार से दूध खरीद कर पीना तो बंद नहीं कर सकते लेकिन कम से-कम इतना तो कर ही सकते हैं कि अपने घर आने वाले दूध की जांच कर इस बात की तसल्ली कर लें कि हम मिलावटी दूध का सेवन तो नहीं कर रहे हैं। जांच के कुछ तरीके यहां सुझाए गए हैं।

जांच के कुछ तरीके
जांच का पहला आसान तरीका यही है कि सिंथेटिक दूध और शुद्ध दूध की तुलनात्मक तालिका के अनुसार दूध में अंगुलियों को डुबोकर फिर आपस में रगड़कर देखना (साबुन जैसी चिकनाहट तो नहीं है), दूध को सूंघकर देखना (आम दूध की गंध से फर्क तो नहीं है) आदि जैसे काम किए जा सकते हैं।

अब अगले दौर में दूध की अम्लीयता क्षारीयता की जांच करनी है। तालिका में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है कि कृत्रिम दूध क्षारीय होता है एवं असली दूध हल्का अम्लीय या उदासीन होता है। आप लिटमस कागज़ से इसकी जांच कर सकते हैं। लिटमस पेपर न हो तो हल्दी कागज़ का उपयोग भी कर सकते हैं। (किसी फिल्टर पेपर को हल्दी के घोल में डुबोकर, बाहर निकालकर सुखा लीजिए, हल्दी कागज़ तैयार हो गया) दूध क्षारीय होने की स्थिति में हल्दी कागज़ का रंग लाल हो जाएगा। इसी तरह लाल लिटमस पेपर लेकर टेस्ट करने पर क्षारीय दूध होने पर लिटमस पेपर का रंग नीला हो जाता है।

क्षारीयता का पता लगाने के लिए फिनॉफ्थेलीन घोल का इस्तेमाले भी किया जा सकता है। यदि दूध क्षारीय हो तो घोल का रंग गुलाबी हो जाता है।

मान लीजिए असली दूध में कुछ कम मात्रा में ‘सिंथेटिक दूध' मिलाकर कोई व्यक्ति बेचता है तब क्या करेंगे। ऐसी स्थिति में ऊपर बताए गए तरीकों से हो सकता है कि यह जांच पाना मुश्किल होगा।

हमने देखा कि ‘सिंथेटिक मिल्क' बनाने में यूरिया एक प्रमुख रासायनिक पदार्थ है। (प्राकृतिक दूध में भी यूरिया पाया जाता है लेकिन बहुत ही कम मात्रा में)* इसलिए प्राकृतिक दूध में भले ही थोड़ा-सा ‘सिंथेटिक दूध' मिलाया गया हो, उस दूध में सामान्य से ज्यादा यूरिया होने की संभावना बढ़ जाती है। यूरिया की मौजूदगी की जांच करने का तरीका भी बहुत मुश्किल नहीं है परन्तु उसमें एक विशेष रसायन की जरूरत होती है जो हर जगह नहीं मिल पाता और महंगा भी होता है।

पेरा-डाइमिथाईल-एमिनो बेंजाल्डिहाइड (डि. एम. ए. बी.) यूरिया से क्रिया करने पर पीले रंग के पदार्थ में बदल जाता है। दूध के सेम्पल में पेरा-डाइमिथाईल-एमिनो बेंजाल्डिहाइड की एक-दो बूंद ** डालने


* प्राकृतिक दूध में 45-55 मिलीग्राम/1 (90 मिलीलीटर यूरिया पाया जाता है। यानी एक लीटर अमली दूध में लगभग आधा ग्राम यूरिया मौजूद होता है।
** डी, एम, ए, बी, का घोल बनाने के लिए 1.6 ग्राम डी. एम. ए. बी. को 90 मिलीलीटर इथाइल आल्कोहल और 10 मिलीलीटर सांद्र नमक के अम्ल में घोला जाता है।


दूध के नाम पर ज़हर
उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके जहरीले मिलावटी दूध के फलते-फूलते कारोबार की चपेट में पर दूध का रंग पीला पड़ जाए तो उस दूध में यकीनन यूरिया ज्यादा मात्रा में मौजूद है। एक बात ध्यान देने की है कि शुद्ध दूध के साथ यह घोल पीला रंग नहीं देता।

यही परीक्षण आप एक अन्य तरीके से भी कर सकते हैं। फिल्टर पेपर की एक पट्टी लीजिए। इस पट्टी को पेरा डाइमिथाईल-एमिनो-बेंजाल्डिहाइड के घोल में डुबोकर सुखा लीजिए। अब इस पट्टी को दूध के नमूने में डुबोइए। अगर पट्टी का रंग पीला हो जाए तो दूध में यूरिया मिलाकर बनाया गया नकली दूध मिला हुआ है।


अम्लान वासः एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध।