ज्यूल्स वर्न

अंतिम किश्त                                                                                                                                                                 विज्ञान कथा

पिछली किश्त में आपने पढ़ा कि फिलिस फॉग और उनके साथी हाथी पर सवार होकर विंध्याचल के घने जंगलों से गुजरते हुए इलाहाबाद की ओर बढ़ रहे थे। रास्ते में वे देखते हैं कि बुंदेलखंड के एक राजा की चिता पर उसकी पत्नी को जबरदस्ती सती बनाया जा रहा है। फिलिस फॉग और उनके साथी उस महिला को बचाने की ठान लेते हैं। वे मंदिर की दीवार में सेंध लगाकर उस महिला को बाहर निकालने की कोशिश करते हैं लेकिन कामयाब नहीं होते। फिर पासपार्टआउट की बहादुरी की वजह से महिला को जलती चिता पर से बचाकर इलाहाबाद की ओर भाग खड़े होते हैं। अब उनके आगे के सफर के बारे में पढ़िए।

साहसी अपहरण सफल रहा था।
एक घंटे बाद भी घटना को याद करके पासपार्टआउट मुस्कुरा रहा था। सर फ्रांसिस ने उससे जोरों से हाथ मिलाया था। उसके मालिक ने तो बस इतना भर कहा था, “बहुत बढ़िया।” परंतु इस तरह की शख्सियत का तो इतना कहना भी बहुत प्रशंसनीय था। जिस पर पासपोर्टआउट ने कहा था कि इसके पीछे असली श्रेय तो उसके मालिक को ही जाता है। उसे तो बस वो ‘विलक्षण' विचार भी गया था - उसका रोल तो इतना भर था। उसे तो यही सोच कर हंसी आ रही थी कि कुछ समय के लिए मृत्यु ने उसे इस मनोहारी औरत से जुदा कर दिया था, और फिर उसके यानी बूढ़े राजा के शव को सुरक्षित रखने के लिए लेपन कर दिया गया।
जहां तक उस महिला का सवाल था, उसे तो बिल्कुल भी सुध नहीं थी कि दरअसल हुआ क्या था। वो कंबलों में लिपटी, हाथी के ऊपर बंधे एक हौदे में अभी भी बेसुध पड़ी हुई थी।

इस बीच पारसी महावत की कुशलता की वजह से हाथी जंगल में से तेजी से आगे बढ़ता जा रहा था। पिल्लगी के मंदिर को पीछे छोड़े हुए एक घंटा गुजर चुका था, अभी भी अंधेरा पूरी तरह से हटा नहीं था; हाथी की रफ्तार बरकरार थी, सात बजे उन्होंने पड़ाव डाला। चूंकि वो औरत अभी भी चित्त पड़ी हुई थी, गाइड ने उसे थोड़ी ब्रांडी और पानी पिलाया परंतु वो अभी कुछ देर और बेसुध रहने वाली थी। सर फ्रांसिस उसकी ऐसी हालत से खास चिंतित नहीं थे क्योंकि वे जानते थे कि गांजे के सुट्टों से कैसी मदहोशी छा जाती है। उन्हें यकीन था कि कुछ समय बाद वो होश में आ जाएगी परंतु वे उसके भविष्य के बारे में कतई विश्वस्त नहीं थे। उन्होंने फिलिस फॉग को स्पष्टतः बता दिया था कि अगर औदा हिन्दुस्तान में रही, तो वो उन जल्लादों के हाथ फिर से लग जाएगी। ये धर्मान्ध पूरे प्रायद्वीप में फैले हुए हैं और अंग्रेज़ पुलिस के बावजूद वे अपने शिकार को फिर से दबोच लेंगे चाहे वह मद्रास में हो, बंबई में या कलकत्ता में। अपनी राय के समर्थन में उन्हीं दिनों घटा ऐसा ही एक किस्सा भी उन्होंने बयान किया। उनका मत था कि वो हिन्दुस्तान छोड़कर ही सुरक्षित हो सकती है।

फिलिस फॉग ने कहा कि वो इस बात का ख्याल रखेगा और देखेगा कि क्या हो सकता है। दस बजे तक गाइड ने उन्हें इलाहाबाद पहुंचा दिया जहां से रेल लाईन फिर से शुरू हो जाती थी, इलाहाबाद से कलकत्ता पहुंचने में ट्रेन को बमुश्किल चौबीस घंटे लगते थे। इसलिए फिलिस फॉग अभी भी अगले दिन यानी 25 अक्टूबर की दोपहर को हांगकांग के लिए रवाना होने वाला जहाज़ पकड़ने के लिए सही वक्त पर कलकत्ता पहुंच सकते थे।
उस औरत को स्टेशन के एक कमरे में ठहराया गया और पासपार्टआउट को जिम्मेदारी दी गई कि वो उसके लिए ज़रूरी सब सामान का बंदोबस्त करे जैसे पहनने के कपड़े, शॉल, और जो भी कुछ जरूरी हो। अपने काम को अंजाम देने के लिए पासपोर्टआउट तुरंत रवाना हो गया और ईश्वर के शहर' इलाहाबाद की गलियों में उसने तलाश शुरू कर दी। गंगा और यमुना के संगम पर स्थित होने की वजह से हिन्दुस्तान में यह शहर अत्यंत पवित्र और पूज्य माना जाता है और प्रायद्वीप के हर कोने से लोग यहां नहाने के लिए आते हैं। रामायण की कथा के अनुसार गंगा स्वर्ग से शुरू होती है और शिव की जटाओं के ज़रिए धरती पर उतरती है।

खरीददारी करते हुए पासपार्टआउट ने शहर के बहुत से हिस्से छान मारे। पहले शहर की सुरक्षा के लिए एक किला होता था जिसे अब जेल में तब्दील कर दिया गया था। इलाहाबाद जो कभी व्यापार और उद्योग का केन्द्र होता था अब दोनों से महरूम है। बहुत खोजने के बाद पासपार्टआउट को जो सब चाहिए था वह एक बुजुर्ग यहूदी की पुराने कपड़ों की दुकान में मिल गया। वहां से उसने स्कॉच की एक ड्रेस, एक बड़ा-सा गाऊन और ऊदबिलाव के चमड़े का एक खूबसूरत कोट खरीदा; और इन सबके लिए बेहिचक पचहत्तर पाऊंड दे दिए। अपनी इस खरीदी से खुश वो स्टेशन की ओर लौट चला।

पिल्लगी के मंदिर के पुजारियों द्वारा पिलाए गए नशीले पदार्थों का असर कम होने पर औदा को होश आने लगा था और उसकी खूबसूरत आंखें धीरे-धीरे अपनी हिन्दुस्तानी कोमलता अख्तियार कर रही थीं। बिना किसी काव्यमयी उपमाओं का इस्तेमाल करते हुए भी यह तो कहा ही जा सकता था कि बुंदेलखंड के राजा की यह विधवा बेहद खूबसूरत थी।
वो एकदम फर्राटेदार अंग्रेजी बोल लेती थी। पारसी महावत ने उसके बारे में जो बताया था कि उसके लालन-पालन से वो एकदम बदल गई थी, इस कथन में बिल्कुल भी अतिशयोक्ति नहीं थी।
गाड़ी अब इलाहाबाद से छूटने ही वाली थी। पारसी गाइड को उसका मेहनताना चुका दिया गया। मिस्टर फॉग ने उसको उतने ही पैसे दिए जितने तय किए गए थे। पासपोर्टआउट को यह देखकर हैरानी हुई क्योंकि इस महावत की वजह से ही तो उसका मालिक यहां तक पहुंच पाया था। यहां तक कि पिल्लगी कांड में तो उस पारसी ने अपनी जान ही दांव पर लगा दी थी; और अगर हिन्दुओं को बाद में भी इसका पता चल जाए तो उसकी जान को खतरा बन जाएगा।

अगला काम था किऔनी का निपटारा। ऐसे दाम पर खरीदे गए हाथी का क्या किया जाएगा? परंतु फिलिस फॉग ने तो इसका भी हल निकाल लिया था। उसने गाइड से कहा, "तुम बहुत काम आए हो और अत्यन्त निष्ठावान रहे हो। मैंने तुम्हारे काम के पैसे तो चुका दिए परंतु तुम्हारी कर्तव्यनिष्ठा के नहीं। क्या तुम हाथी को रखना चाहोगे? अगर चाहो, तो वह अब तुम्हारा है।''

गाइड की आंखें खुशी से चमक उठीं। ‘‘आपने तो मुझे खजाना थमा दिया है," वो बोल उठा।
"मेरी पेशकश को कुबूल करो।” मिस्टर फॉग ने आगे कहा, "मैं फिर भी तुम्हारा अहसानमंद रहूंगा।''
“बहुत खूब!" पासपोर्टआउट ने कहा, "दोस्त उसे ले जाओ! किऔनी बहुत ही बढ़िया और बहादुर जानवर है।” फिर उसने किऔनी की तरफ बढ़कर गुड़ के कुछ टुकड़े दिए। किऔनी ने पासपोर्टआउट की कमर अपनी सूंड में लपेटकर उसे एकदम ऊपर उठा लिया। पासपार्टआउट ने बिना घबराए हाथी को थपथपाया और हाथी ने उसे सुरक्षित नीचे उतार दिया।

चंद मिनटों बाद फिलिस फॉग, सर फ्रांसिस, पासपार्टआउट और सबसे बेहतरीन सीट पर बैठी औदा, सब बनारस की तरफ तीव्र गति से बढ़े जा रहे थे। इलाहाबाद से इस शहर की दूरी अस्सी मील थी और इसे तय करने में उन्हें दो घंटे लगे।
इस यात्रा के दौरान वो हिन्दुस्तानी महिला पूरी तरह होश में आ गई - भांग का असर खत्म हो चुका था। अपने आपको अजनबियों के संग, यूरोपियन कपड़ों में, एक रेल के डिब्बे में बैठा पाकर उसकी हैरानी की कोई सीमा ही नहीं थी।

उनकी पहली कोशिश यही थी कि वो पूरी तरह से संभल जाए व होश में आ जाए, इसलिए उन्होंने उसे कई बार मदिरा की कुछ बूंदें पिलाई। फिर ब्रिगेडियर ने उसे पूरा किस्सा सुनाया। उसने फिलिस फॉग की लगन के बारे में बताया जो उसकी जान बचाने के लिए अपने आपको दांव पर लगाने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाया; पासपार्टआउट की उस दिलेर चाल का वर्णन किया जिससे इस जोखिम-भरी घटना का खुशगवार अंत हो पाया।

इस बीच मिस्टर फॉग एक शब्द भी नहीं बोले जबकि शर्माते हुए पासपार्टआउट ने कई बार कहा, "इसका जिक्र जरूरी नहीं है। मैंने तो कुछ भी नहीं किया।''
औदा उसे मौत के चंगुल से बचाने वाले इन सबकी अत्यंत शुक्रगुज़ार थी, और शब्दों के बजाए बार-बार टपक रहे उसके आंसू और उसकी चमकती आंखें उसकी भावनाओं को कहीं बेहतर व्यक्त कर रहे थे। फिर जैसे ही उसे 'सती' के वे सब दृश्य याद आए और गाड़ी से बाहर उसने हिन्दुस्तान की धरती की तरफ देखा जहां अभी भी उसे वैसी ही मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता था; वो आतंकित होकर कांपने लगी।
उसके मन में उठ रहे विचारों को भांपते हुए फिलिस फॉग ने अपने भावना विहीन लहजे में कहा कि अगर वह चाहे तो वे उसे हांगकांग तक लेकर जा सकते हैं और इस आंधी के गुजर जाने तक वो वहां रह सकती है।
इस सुझाव को उसने तुरंत मान लिया। दरअसल औदा का एक पारसी रिश्तेदार हांगकांग में रहता था और शहर का एक समृद्ध व्यापारी था। हांगकांग चीन के तट के नजदीक होने के बावजूद एक अंग्रेज़ शहर की मानिंद ही है।

गाड़ी साढ़े बारह बजे बनारस पहुंची। ब्राह्मण किवदंतियां कहती हैं कि यह शहर वहीं बसा है जहां पहले कभी काशी हुआ करता था और माना जाता था कि मुहम्मद के मकबरे की तरह काशी भी नभ और पाताल के बीच अधर में लटका रहता था। परंतु पूर्व का एथेन्स माना जाने वाला बनारस अन्य सामान्य शहरों की तरह अब तो धरती पर ही टिका हुआ है। बनारस से गुजरते हुए गाड़ी में बैठे-बैठे पासपार्टआउट को ईंटों के बने घर और घास-फूस व बांस-खपच्चियों की झोपड़ियां दिखाई दीं। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि शहर का अपना कोई रंग है, वीरान वे सुनसान नज़र आ रहा था यह शहर।

सर फ्रांसिस बनारस से आगे नहीं जाने वाले थे क्योंकि सेना की जिस टुकड़ी तक उन्हें पहुंचना था वो बनारस से कुछ मील दूर उत्तर की ओर अपना केम्प लगाए हुए थी। इसलिए उन्होंने फिलिस फॉग को अलविदा कहा और इस यात्रा की सफलता के लिए ढेरों शुभकामनाएं दीं। उन्होंने फिलिस फॉग को सामान्य स्थितियों में फिर से हिन्दुस्तान आने का निमंत्रण भी दिया। बदले में मिस्टर फॉग ने उनकी अंगुलियों को हल्के से छुआ भर। औदा की सर फ्रांसिस से विदाई ज्यादा भावनापूर्ण थी और उसने कहा कि वो उनका अहसान जीवन भर याद रखेगी। जहां तक पासपार्टआउट का सवाल है सर फ्रांसिस ने उसके साथ इतने जोरों से हाथ मिलाया कि वो सोचने लगा कि ब्रिगेडियर के लिए अपनी जान दांव पर लगाने का मौका कब मिलेगा।
यह सब होने पर सर फ्रांसिस क्रोमेरटी चल दिए।

बनारस के बाद गाड़ी कुछ समय तक गंगा की घाटी में चलती है। चूंकि मौसम एकदम साफ था इसलिए यात्री अपने डिब्बे की खिड़कियों में से बिहार का विविधतापूर्ण परिदृश्य देख पा रहे थे। हरियाली से ढंके पहाड़; जौ, मक्का और गेहूं के खेत; मटमैले मगरमच्छों व घड़ियालों से भरे हुए तालाब और नदियां; सुंदर-सलौने गांव और अभी भी हरा-भरा जंगल। चंद हाथी और सांड़ उस पवित्र नदी में नहाने चले आए थे, और तेज ठंड व कम तापमान के बावजूद हिन्दुस्तानियों की टोलियां इस नदी में पूजा व स्नान करने में जुटी हुई थीं। ये उपासक जो बौध धर्म के शत्रु हैं, ब्राह्मण धर्म मानते हैं जिसके प्रमुख देवता होते हैं - सूर्य देवता, विष्णु, प्राकृतिक शक्तियों का देवता शिव और पुजारियों का सर्वोत्तम देवता ब्रह्मा। इस पवित्र गंगा में घर-घर-घर करती हुई सफर करती मोटर बोट को चलते देख ब्रह्मा, शिव और विष्णु को कैसा लगता होगा जब ये स्टीमर पक्षियों, कछुओं और नदीतट पर मौजूद भक्तों को परेशान करते हुए पानी को चीरते निकल जाते हैं!

ये सब पल भर में उनके सामने से गुज़र गया और कई बार तो धुंध व कोहरे की वजह से बहुत-सी चीजें ध्यान से देख ही नहीं पाए। बनारस से बीस मील दक्षिण-पूर्व में स्थित चुनार का किला उन्हें दिखाई भर दिया जो कभी बिहार के राजाओं का अभेद्य किला होता था। गाजीपुर और वहां के मशहूर गुलाब जल के कारखाने; गंगा के बाएं किनारे पर लॉर्ड कॉर्नवालिस का मकबरा; किलेनुमा शहर बक्सर; व्यवसाय/व्यापार और उत्पादन का प्रमुख केन्द्र पटना जो हिन्दुस्तान में अफीम के व्यापार के लिए मशहूर है; इंग्लैंड के मैनचेस्टर या बरमिंघम जैसा एकदम यूरोपीय दिखने वाला शहर मुंगेर जो ढलवां लोहे के उद्योग के लिए प्रसिद्ध है और जहां की ऊंची-ऊंची चिमनियों से निकल रहा धुआं ब्रह्मा के आकाश में कालिख घोल रहा था।

रात हो गई। गाड़ी ने गुर्रा रहे बाघों, चिलचिला रहे भेड़ियों व भालुओं के बीच से अपनी तेज़ रफ्तार यात्रा जारी रखी। ये सब धड़धड़ाते हुए ईंजन को देखते ही इधर-उधर भाग जाते थे। उसके बाद बंगाल के अन्य अचरज वे नहीं देख पाए - गौर के खंडहर, एक समय की राजधानी मुर्शिदाबाद, बर्दवान, हुगली, चंद्रनगर। चंद्रनगर यानी हिन्दुस्तान में फ्रांस का हिस्सा जहां अपने देश का झंडा फहराता देख पासपार्टआउट खुश हो जाता। रात ने इन सबको अपने आंचल में छुपा लिया था।

वे सुबह सात बजे कलकत्ता पहुंचे और वहां से हांगकांग के लिए रवाना होने वाला स्टीमर बारह बजे किनारा छोड़ने वाला था। फिलिस फॉग के पास पांच घंटे अतिरिक्त थे। उसकी अपनी शुरुआती योजना के अनुसार उसे लंदन से रवाना होने के तेईस दिन बाद यानी 25 अक्टूबर को हिन्दुस्तान की राजधानी पहुंचना था और वो उसी तयशुदा दिन वहां पहुंच गया। इसलिए वह न तो अपने टाइम-टेबिल से पिछड़ रहा था और न ही उससे आगे बढ़ पाया था। लंदन और बंबई के बीच उसने जो दो दिन बचाए थे, जैसा कि हमने देखा, हिन्दुस्तानी प्रायद्वीप से गुज़रते हुए बदकिस्मती से वे उसने फिर से गंवा दिए थे। पर हम यह मान सकते हैं कि इसका फिलिस फॉग को कोई गम नहीं था।

जब गाड़ी रुकी तो सबसे पहले पासपार्टआउट उतरा, फिर अपने खूबसूरत साथी को सहारा देते हुए मिस्टर फॉग। फिलिस फॉग का इरादा था कि वे सीधे ही हांगकांग रवाना होने वाले स्टीमर पर जाएंगे ताकि औदा की यात्रा का आरामदेह इंतजाम हो सके। वे चिंतित थे इसलिए चाहते थे कि जब तक खतरों से भरे इस देश को वह छोड़ न दे तब तक वे उसके साथ ही रहें।
जैसे ही वे स्टेशन से निकलने वाले थे, एक पुलिस वाले ने उनके पास आकर कहा, “मिस्टर फिलिस फॉग?"
"मेरा ही नाम है।”
“क्या यह व्यक्ति आपका नौकर है।"
"हां।''
"आप दोनों मेरे साथ आएं।”
मिस्टर फॉग बिल्कुल भी हैरान नहीं हुए। यह व्यक्ति कानून का प्रतिनिधि था और सभी अंग्रेजों के लिए कानून अत्यन्त सम्मानीय होता है।
फ्रांसिसी होने के नाते पासपार्टआउट ने तर्क करने की कोशिश की, परंतु पुलिसवाले ने छड़ी से उसे थपथपाया; और फिलिस फॉग ने उसे आदेश मानने का इशारा किया।
"क्या यह महिला भी हमारे साथ आ सकती है?" मिस्टर फॉग ने पूछा।
“बेशक।" पुलिस वाले ने जवाब दिया।

मिस्टर फॉग, औदा और पासपार्टआउट को एक पालकी-गाड़ी में ले जाया गया। पालकी-गाड़ी चार लोगों के लिए चार पहियों वाली बग्घी होती है, जो दो घोड़ों द्वारा खींची जाती है। पालकी-गाड़ी में वे तकरीबन बीस मिनट बैठे रहे और इस दौरान कोई कुछ नहीं बोला। पहले वे भीड़ भरी तंग गलियों में से गुज़रे; और फिर ईंटों से बने पक्के घरों, नारियल के पेड़ों व मस्तूलों से भरे यूरोपीय शहर में से। इतनी सुबह के वक्त भी कई नौजवान सजी-धजी पोशाक पहने घुड़सवारी करते हुए इधर-उधर जाते दिखाई दे रहे थे।

पालकी-गाड़ी एक ऐसी इमारत के सामने रुकी जो स्पष्टतः किसी का घर नहीं था। पुलिस वाले ने अपने बंदियों से नीचे उतरने को कहा - बंदी इसलिए क्योंकि उन्हें एक सलाखें लगे कमरे में ले जाया गया और कहा गया, “आपको जज औबेदैय्या के सामने साढ़े आठ बजे पेश किया जाएगा।' यह कहते हुए पुलिस वाले ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।
“अब तो हम फंस गए हैं। एक कुर्सी पर बैठते हुए पासपार्टआउट ने कहा।
औदा ने अपनी भावनाओं को छुपाने की कोशिश करते हुए मिस्टर फॉग से कहा, “आप मुझे अपनी किस्मत पर छोड़ दें। मेरी वजह से आपको कटघरे में खड़ा किया जा रहा है, क्योंकि आपने मुझे बचाने की कोशिश की।''

फिलिस फॉग ने इतना ही कहा कि यह संभव नहीं है, और यह कि ऐसा मुमकिन नहीं है कि उस पर सती वाले मामले की वजह से मुकदमा चलाया जाएगा क्योंकि अभियोगी सामने आने की हिम्मत ही नहीं कर सकते। कहीं कुछ गलती हुई है। और वैसे भी, वे उसे किसी भी हालत में छोड़कर नहीं जाएंगे बल्कि साथ में हांगकांग लेकर ही जाएंगे।
“परंतु स्टीमर तो बारह बजे निकल जाएगा।” पासपार्टआउट ने कहा।
“बारह से पहले हम स्टीमर पर होंगे।'' उसके शांतचित्त मालिक ने जवाब दिया।

उस जवाब में इतना विश्वास था कि पासपार्टआउट ने भी अपने आप से कहा, “सही तो है, बारह बजे तक तो हम स्टीमर में होंगे।" परंतु इसके बावजूद वह बिल्कुल निश्चित नहीं हुआ।
साढ़े आठ बजे दरवाजा खुला और पुलिसवाला बंदियों को साथ वाले कमरे में ले गया। यही कचहरी थी और जनता के लिए आरक्षित जगह पर बहुत-से यूरोपीय और हिन्दुस्तानी बैठे हुए थे।
मिस्टर फॉग, औदा और पासपार्टआउट मैजिस्ट्रेट व क्लर्क के सामने रखी बैंच पर बैठ गए। तुरंत ही जज औबेदैय्या व उनके पीछे क्लर्क कोर्ट में घुसे। जज काफी हृष्टपुष्ट व गोल-मटोल थे। उन्होंने कील से विग उतारी और उसे जल्दी से पहन लिया।

“पहला केस'' उसने कहा और फिर अपने सिर को हाथ से छूते ही उसने आश्चर्य से कहा, "यह मेरी विग नहीं है।” “नहीं, माई लॉर्ड, यह मेरी है।' क्लर्क ने जवाब दिया।
“मिस्टर आयस्टरपफ, ज़रा मुझे बताओ कि कोई जज एक मामूली क्लर्क की विग में कोई भी न्यायपूर्ण निर्णय कैसे कर सकता है!" ।
फिर उन्होंने विग की अदला-बदली कर ली। इस सबको देखते हुए पासपार्टआउट का धैर्य जवाब दे रहा था क्योंकि दीवार पर टंगी घड़ी के कांटे उसे अत्यंत तेज़ रफ्तार से आगे बढ़ते दिखाई दे रहे थे।
"पहला केस" जज औबेदैय्या ने कहा।
“फिलिस फॉग?" क्लर्क ने आवाज़ लगाई।
"यहां हूं।” मिस्टर फॉग ने जवाब दिया।
"पासपार्टआउट।"
"यहां।'' पासपार्टआउट चिल्लाया।

"ठीक है।” जज ने जारी रखा, बंदियों, पिछले दो दिन से पुलिस तुम्हें बंबई से आने वाली हर गाड़ी में ढूंढ रही है।
“हमारे खिलाफ क्या चार्ज लगाया जा रही है?'' अपना धैर्य खोते हुए पासपार्टआउट चिल्लाया।
"अब तुम लोगों को वो बताया जाएगा।'', जज ने कहा।
“मैं एक अंग्रेज़ हूं", मिस्टर फॉग ने कहा, "और मुझे हक है कि ...."
“क्या तुम्हारे साथ अभद्र बर्ताव हुआ है?" जज ने पूछा।

"बिल्कुल भी नहीं।"
"ठीक है,मुद्दई को प्रस्तुत किया जाए।''
जज के आदेश पर अदालत का एक दरवाज़ा खुला और तीन पुजारियों
को अंदर लाया गया।
वही हैं।'' पासपार्टआउट बुदबुदाया, “ये वही बदमाश हैं जो इस औरत को जलाने की कोशिश कर रहे थे।''
पुजारी जज के सामने खड़े रहे और क्लर्क ने बुलंद आवाज़ में फिलिस फॉग और पासपार्टआउट के खिलाफ लगाए गए ‘अपवित्र करने के इल्ज़ाम पढ़ने शुरू कर दिए। उनके खिलाफ इल्ज़ाम था कि उन्होंने बाह्मण धर्म (हिन्दू धर्म) की पवित्र जगह को अपवित्र किया।
"आप लोगों ने इल्ज़ाम सुना?" जज ने पूछा।

“हां, सुन लिया" मिस्टर फॉग ने घड़ी देखकर जारी रखा, "और हम जुर्म इकबाल करते हैं।'
"ओह! इकबाल करते हो?"
“हां, और अब मैं सुनना चाहता हूं कि पिल्लगी के मंदिर में ये पुजारी क्या करने वाले थे।"
पुजारी एक दूसरे की तरफ देखने लगे, उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार यह प्रतिवादी कह क्या रहा है। |
"बिल्कुल।'' पासपोर्टआउट गुस्से में चिल्लाया, “पिल्लगी के मंदिर में, जिसके सामने उस महिला को जलाने वाले थे!"
पुजारी फिर से हैरान थे और जज ने आश्चर्य से पूछा, “कौन महिला? किसे जलाना? बम्बई में?"
“बम्बई?'' पासपार्ट आउट ने आश्चर्य से कहा।

“हां, बम्बई। पिल्लगी के मंदिर के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा रहा। यह घटना तो मालाबार हिल के मंदिर की है।" ।
“सबूत के तौर पर", क्लर्क ने जोड़ा, "ये हैं उस मंदिर को अपवित्र करने वाले के जूते।''
“मेरे जूते!'' पासपार्टआउट चिल्ला दिया। वो इतना आश्चर्यचकित था कि अपने आप को रोक नहीं पाया।

मालिक और चाकर को जो भ्रम हो गया वो स्वाभाविक ही था। वे बम्बई के मंदिर की इस घटना को बिल्कुल भूल चुके थे जिसके लिए अब उन्हें कलकत्ता के मेजिस्ट्रेट के सम्मुख अपराधी के रूप में प्रस्तुत होना पड़ा था।
बम्बई के मंदिर की घटना से बहुत फायदा हो सकता है यह समझकर जासूस फिक्स ने अपनी यात्री बारह घंटे के लिए मुल्तवी कर दी थी; और उस दौरान उसने मालाबार के मंदिर के पुजारियों को बताया कि उन्हें भारी हर्जाना मिल सकता है चूंकि अंग्रेज़ सरकार इस तरह के अपराध के प्रति अत्यंत सख्ती से पेश आती है। अगला कदम उसने यह उठाया कि मुलजिमों का पीछा करने के लिए पुजारियों को अगली गाड़ी से रवाना कर दिया। परंतु क्योंकि उस विधवा को बचाने में जो समय लगा उसके कारण फिक्स और पुजारी, फिलिस फॉग और उसके नौकर से पहले कलकत्ता पहुंच गए। मजिस्ट्रेट ने आदेश दिया था कि उन्हें गाड़ी से उतरते ही हिरासत में ले लिया जाए।

यह जानकर फिक्स को बहुत निराशा हुई थी कि फिलिस फॉग अब तक कलकत्ता यानी राजधानी नहीं पहुंचा था। स्वाभाविक रूप से उसने मान लिया कि जिस चोर का वो पीछा कर रहा था वो इंडियन पेनिंसुलर रेल्वे के किसी स्टेशन पर उतर गया होगा और उसने किसी उत्तरी प्रांत में शरण ले ली होगी। चौबीस घंटे तक फिक्स स्टेशन पर अत्यन्त व्यग्रता से उसकी तलाश करता रहा।
उस दिन सुबह जब फिक्स ने उन्हें स्टेशन पर उतरते देखा तो उसके उल्लास की सीमा न थी; परंतु उनके साथ उतरी महिला की मौजूदगी उसे बिल्कुल भी समझ में नहीं आई। उसने तुरंत एक पुलिसवाले को उन्हें हिरासत में लेने के लिए कहा। और इस तरह मिस्टर फॉग, पासपार्टआउट व बुंदेलखंड के राजा की विधवा को जज औबेदैय्या के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
 
अगर पासपार्टआउट का ध्यान इस केस में बुरी तरह उलझा न होता तो उसने कोर्ट के एक कोने में बैठकर ध्यान से देख रहे जासूस को पहचान लिया होता। फिक्स कोर्ट की कार्यवाही को बहुत ही ध्यान पूर्वक देख रहा था क्योंकि कलकत्ता में उसकी स्थिति वैसी ही थी जैसी बम्बई और सुएज़ में थी। उसके पास अभी भी वारंट नहीं था। जज औबेदैय्या ने पासपार्टआउट द्वारा जुर्म के इकबाल पर गौर किया। पासपार्टआउट अत्यंत हताश था और सोच रहा था कि काश उसने जल्दबाज़ी में वह सब न कहा होता।
“सब जानकारी आ गई है?" जज ने पूछा।
“सही है।'' मिस्टर फॉग ने जवाब दिया।

जिस पर जज ने जारी रखा, “चूंकि अंग्रेज़ों को कानून समस्त धर्मों को मानने वाले हिन्दुस्तान के बाशिंदों को बराबर का हक देता है और उनकी सुरक्षा का वायदा करता है, और चूंकि पासपार्टआउट ने जुर्म का इकबाल कर लिया है कि 20 अक्टूबर को उसने बम्बई के मालाबार हिल स्थित मंदिर के फर्श को पैरों में जूते पहनकर अपवित्र कर दिया; मैं पासपार्टआउट को पंद्रह दिन की कैद और तीन सौ पाऊंड की सज़ा देता हूं।"
तीन सौ पाऊंड!'' पासपार्टआउट चिल्ला दिया जिसे सबसे ज्यादा चिंता जुर्माने की थी।
"चुप।'' दरबान ने कहा और जज ने जोड़ा, "जहां तक यह साबित नहीं हो जाता कि नौकर और मालिक के बीच में सांठ-गांठ नहीं थी - और वैसे भी मालिक अपने नौकर की हरकतों के लिए जिम्मेदार है; इसलिए मैं फिलिस फॉग को आठ दिन की कैद और एक सौ पचास पाऊंड जुर्माने की सज़ा देता हूं। अब अगला केस पेश किया जाए।"

पासपार्टआउट इस सज़ा से दंग रह गया क्योंकि इससे उसके मालिक की बर्बादी निश्चित थी। इसका अर्थ था कि वो बीस हजार पाऊंड की शर्त हार जाएगा और वह भी केवल इसलिए क्योंकि वो मूर्खतापूर्वक उस अभिशप्त मंदिर में घुस गया था।
फिलिस फॉग के माथे पर शिकन तक नहीं आई थी, मानो इस फैसले से उसका कोई ताल्लुक ही न हो। परंतु जैसे ही क्लर्क दूसरे केस की आवाज़ लगाने वाला था, उसने खड़े होकर कहा, "मैं ज़मानत देने के लिए तैयार हूं।''
वो तुम्हारा अधिकार है।'' जज ने जवाब दिया।
यह सब देख-सुनकर फिक्स एकदम सिहर उठा परंतु तभी उसने जज को यह कहते सुना, “फिलिस फॉग और उसका नौकर अजनबी है इसलिए उन्हें एक-एक हजार पाऊंड की विशाल ज़मानत देनी होगी।'' यह सुनकर फिक्स थोड़ा-सा शांत हुआ। अगर मिस्टर फॉग कैद पूरी नहीं करता तो उसे दो हजार पाऊंड भरने पड़ेंगे।”

“यह रही ज़मानत'' फिलिस फॉग ने पासपार्टआउट से थैला लेकर उसमें से नोटों की गड्डियां निकालीं और उन्हें क्लर्क की मेज पर रख दिया।
"यह पैसा जेल से लौटने पर तुम्हें लौटा दिया जाएगा" जज ने कहा, इस बीच तुम्हें ज़मानत पर रिहा किया जाता है।"
“चलो चलें।'' फिलिस फॉग ने अपने नौकर से कहा।
“कम-से-कम उन्हें जूता तो लौटी देना चाहिए!" पासपार्टआउट गुस्से में चिल्लाया। जिस पर उसे जूता लौटा दिया गया।
“काफी महंगे पड़े हैं ये जूते", वो बुदबुदाया।
 
एक-एक हजार पाऊंड का! और ऊपर से ये आरामदेह भी नहीं हैं!"
पासपार्टआउट इस वारदात से काफी परेशान होकर मिस्टर फॉग के पीछे चल दिया जिन्होंने औदा को सहारा दिया हुआ था।
फिक्स को अभी भी आशा थी कि यह चोर दो हजार पाऊंड की राशि इस तरह छोड़कर नहीं जा सकता, और वो आठ दिन की कैद भुगतने को तैयार हो जाएगा। इसलिए वो फॉग के पीछे चल दिया।
मिस्टर फॉग ने अपने व अपने दोनों साथियों के लिए बग्घी ली और चल दिए। फिक्स को उस बग्घी के पीछे-पीछे दौड़ना पड़ा जो एक घाट पर जाकर रुक गई।

आधा मील दूर रंगून वाला जहाज़ खड़ा था। घड़ी में ग्यारह बज रहे थे, मिस्टर फॉग एक घंटा पहले पहुंच गए थे।
फिक्स ने देखा कि वो बग्घी में से उतरा और औदा व नौकर के साथ एक किश्ती में बैठ गया। जासूस फिक्स गुस्से में पैर पटक रहा था। “लुटेरा एक बार फिर भाग गया। दो हज़ार पाऊंड भी चले गए! एकदम चोर जैसे पैसा बर्बाद कर रहा है! अगर जरूरी हुआ तो मैं दुनिया के छोर तक इसका पीछा करूंगा, परंतु इस रफ्तार से वो खर्च करता रहा तो चुराए हुए पैसे में से कुछ भी नहीं बचेगा।''

जासूस की बात में दम तो था क्योंकि यात्रा खर्च, रिश्वत, हाथी खरीदना, ज़मानत और जुर्माने आदि पर फिलिस फॉग ने कुल मिलाकर लंदन छोड़ने से अब तक पांच हजार पाऊंड खर्च कर दिए थे। और इस वजह से जासूस फिक्स को अपना इनाम लगातार कम होता नज़र आ रहा था, क्योंकि वापस मिले पैसे के अनुपात में ही इनाम मिलने वाला था!
यहां फिलिस फॉग का भारतीय प्रायद्वीप का सफर खत्म हो गया।


ज्यूल्स वर्न (1828-1905) की मशहूर कहानी 'अराउंड द वर्ल्ड इन एटी डेज' से।
अनुवादः राजेश खिंदरी। संदर्भ पत्रिका से संबद्ध।