सवाल:
चांद क्या है, और किसका बना है?
जवाब: आज से 150 साल पहले तक चांद के बारे में यह धारणा थी कि वो धरती से टूटकर बना है। उन दिनों यह माना जाता था कि आज जहां प्रशांत महासागर है वहां का हिस्सा ही बाहर निकलकर चांद बन गया होगा।
जब इंसान के कदम चांद पर पड़े तो वहां से बड़ी तादाद में मिट्टी, चट्टानों के टुकड़े आदि लाए गए। उनका परीक्षण किया गया तो समझ में आया कि चांद कुछ मामलों में धरती से अलग है। जब चट्टानों की उम्र पता की गई तो मालूम चला कि चांद भी लगभग उतना ही पुराना है। जितनी धरती, लेकिन यह धरती का टुकड़ा वगैरह नहीं है।
चांद की सतह पर बड़े-बड़े मैदान हैं, पहाड़ हैं, गहरे-गहरे गड्ढे हैं। सतह पर ढेर सारी रेतीली मिट्टी बिखरी हुई है जिसकी मोटाई कुछ जगह कुछ मीटर तक है। इसे रिगोलिथ कहा जाता है। धरती की ही तरह चांद पर भी अलग-अलग चट्टानी परतें हैं, लेकिन एक खास बात यह है कि वहां चूना-पत्थर या बालू-पत्थर जैसी अवसादी चट्टानें नहीं पाई जाती। सबसे ऊपरी परत है - क्रस्ट। जिसकी मोटाई 60 किलोमीटर से 120 किलोमीटर तक है। यह मुख्य रूप से बेसाल्ट, गैब्रो, एनासाइट जैसी आग्नेय चट्टानों से मिलकर बनी हुई है। इसके बाद चांद की अंदरुनी परत है जो ओलिवन (मैग्निशियम व लौह की मात्रा अधिक हो ऐसी चट्टानें) की अधिकता वाली चट्टानों से बनी है। चांद में लोहेनिकिल से बना कोर या केन्द्रीय भाग है या नहीं इसके बारे में कोई पक्की जानकारी नहीं है।
किसी समय चांद पर सक्रिय ज्वालामुखी होते थे और लावा से बने समतल मैदान अभी भी पाए जाते हैं। लेकिन अब वहां कोई भी ज्वालामुखी नहीं है।
कुल मिलाकर चांद धरती के चारों ओर घूमने वाला एक उपग्रह है और हमारे सौर्य मंडल को समझने में हमारी काफी मदद करता है।
 
सवाल: सेल में क्या है जिससे बल्ब जलता है?
जबाब: यहां हम यह मानकर चल रहे हैं कि सेल से आपका आशय टॉर्च वगैरह में इस्तेमाल होने वाले ड्राई सेल से ही है।
सेल या बैटरी एक ऐसा तरीका है। जिससे रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है। आमतौर पर सेल या बैटरी में धन और ऋण ध्रुव की प्लेट के अलावा कुछ रसायन भरे होते हैं जिनकी आपसी क्रिया की वजह से विद्युत बनती है और परिपथ से होकर बहती है। सेल में भरे गए रासायनिक पदार्थों को इलेक्ट्रोलाइट कहते हैं यानी वे यौगिक जिनको बनाने वाले अणुओं में इलेक्ट्रॉन का आदान-प्रदान होता है।

यदि सेल के बारे में और बारीकी से जानना हो तो अपने घर मौजूद कोई पुराना सेल (जो टॉर्च वगैरह में इस्तेमाल होता है) को खोलकर देखना होगा। सेल का खोल हटाने पर एक जिंक का बर्तन दिखने लगता है। इस बर्तन में कागज़ की जाली में इलेक्ट्रोलाइट का पेस्ट भरा होता है। जिसे अमोनियम क्लोराइड और जिंक क्लोराइड को पानी के साथ मिलाकर बनाया जाता है। इस पेस्ट के बीच में कार्बन की छड़ और मैंगनीज़ डाइ ऑक्साइड का पाउडर रखा होता है।

अब यह देखें कि सेल को परिपथ में जोड़ने पर इससे विद्युत धारा कैसे बनती है। सेल में जिंक का बर्तन (ऋण ध्रुव) अमोनियम क्लोराइड की गीली पेस्ट से क्रिया करके जिंक आयन बनाता है। इस क्रिया में इलेक्ट्रॉन मुक्त होते हैं जो सेल के बाहरी परिपथ से होते हुए कार्बन की छड़ (धन ध्रुव) तक पहुंचते हैं; यहां मैंगनीज़ डाइ ऑक्साइड इन इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करता है। जिससे यहां भी रासायनिक क्रिया होती है और OH आयन एक कागज़ की जाली पार कर अमोनियम क्लोराइड से क्रिया करके अमोनिया गैस बनाते हैं।

यह क्रिया बीच में रुक सकती है। अगर बाहरी परिपथ में किसी तरह की रुकावट आ जाए या परिपथ टूट गया हो; ऐसी स्थिति में इलेक्ट्रॉन आगे नहीं जा पाएंगे। इस स्थिति में जिंक के खोल पर इलेक्ट्रॉन इकट्ठे होने लगेंगे और जिंक की अमोनियम क्लोराइड से क्रिया रुक जाएगी। जैसे ही परिपथ दुबारा पूरा होता है विद्युत धारा फिर से बहने लगती है।

इन दोनों सवालों को सिपिका वर्मा, इटारसी और ब्रजेश साहू, पचमढ़ी ने पूछा था। शेष सवालों के जवाब आगामी अंक में दिए जाएंगे।