जे. बी. एस. हाल्डेन
शरीर की व्यवस्थाएं भाग-2
इस बार चर्चा हो रही है खून की। खून में कोशिकाओं के लिए, ऑक्सीजन है, भोजन है, हॉर्मोन्स हैं। इन सब की संतुलित मात्रा खून में होनी चाहिए। साथ ही शरीर के अवशिष्ट पदार्थ भी हैं जिन्हें शरीर से निकाल बाहर करना है। तमाम जटिलताओं के बावजूद खून रगों में लगातार दौड़ता रहता है।
शरीर के विभिन्न हिस्सों के २ वीच सबसे स्पष्ट व मजबूत संबंध तंत्रिकी तंत्र के माध्यम से बनता है। हम जब चाहें अपनी टांग हिला सकते हैं, या कभी-कभार किसी तपती चीज पर पैर पड़ जाए तो अनैच्छिक रूप से भी 'ट्रांग में हरकत हो जाती है। और यह भी सिद्ध हो चुका हैं कि पसीना आने और पाचन जैसी अचेतन क्रियाएँ भी तंत्रिका नियंत्रण में होती हैं।
रसायनों का आदान-प्रदान
किन्तु शरीर के विभिन्न अंगों के बीच रासायनिक संबंध भी बहुत महत्व रखते हैं। आप टांगे में जाने वाली तंत्रिका काट दीजिए, फिर भी टांग जिंदा रहेगी। हालांकि यदि उसे तंत्रिका की पुनः वृद्धि न हुई तो मांसपेशियां दुर्बल हो जाएंगी। परंतु यदि आप कुछ घण्टों के लिए टांग को खून की सप्लाई रोक दें तो टांग मर जाएगी और यदि इसे काट कर शरीर से अलग न, किया गया तो पूरा शरीर सड़ने लगेगा।
शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक रासायनिक पदार्थों का परिवहन ज्यादातर खून के माध्यम से होता है। परन्तु कुछ परिवहन एक पारदर्शी तरल लसिका (लिम्फ) द्वारा भी होता है। लसिका ऊतकों में से विशेष नलिकाओं के ज़रिए रक्त प्रवाह में पहुंचता है।
आपके शरीर में लगभग एक गैलन (लगभग साढ़े चार लीटर) खून होता है। खुन के कुल आयतन में से आधा आयतन तो लाल रक्त कोशिकाओं का होता है। ये लाल रक्त कोशिकाएं ऑक्सीजन को इधर-उधर लेकर जाती हैं। खून का शेष भाग प्लाज्मा कहलाता है जो हल्के पीले रंग का तरल होता है। खून में बहते अन्य पदार्थ प्लाज्मा में ही घुले या तैरते रहते हैं।
कितना खून, कितना पानी
खून में उपस्थित अन्य पदार्थों में प्रोटीन भी होते हैं। प्रोटीन के ये अणु इतने विशाल होते हैं कि वे अधिकांश रक्त वाहिनियों की झिल्ली के पार नहीं जा सकते। जो पदार्थ इस झिल्ली के पार आ-जा सकते हैं उनके बारे में गौरतलब बात यह है कि खून में उनकी मात्रा बहुत स्थिर बनी रहती है। मसलन विभिन्न व्यक्तियों की प्लाज्मा में या एक ही व्यक्ति के प्लाज्मा में अलग-अलग समय पर एक प्रतिशत से ज्यादा का अंतर नहीं आता।
इसका कारण ऐतिहासिक है। केकड़े, कटलफिश और अन्य कई समुद्री जीवों के रक्त प्लाज्मा का संघटन लगभग समुद्र के पानी जैसा होता है। उनके दिल को यदि समुद्री पानी में छोड़ दिया जाए तो वह कुछ समय तक धड़कता रहेगा। यदि आप एक खरगोश को मारकर उसका हृदय समुद्री पानी में अथवा मीठे पानी में रखेंगे तो वह नहीं धड़केगा। हां, यदि आप समुद्री पानी में ढाई गुना मीठा पानी मिलाकर उसमें इस हृदय को रखें तो वह धड़कता रहेगा। और यदि आप एक ऐसा घोल बना लें जो लगभग प्लाज्मा से मिलता-जुलता हो तो और भी बेहतर। हमारी कोशिकाएं कृत्रिम समुद्री पानी की मांग करती हैं क्योंकि हमारे सुदूर पूर्वज समुद्र में रहने के आदी थे। किन्तु हमारी कोशिकाओं को उतना गाढ़ा समुद्री पानी नहीं चाहिए क्योंकि जब लगभग 30 करोड़ वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने समुद्र छोड़ा था उस समय समुद्रों में आज की अपेक्षा कहीं कम नमक था।
प्लाज्मा में अधिकांश लवण नमक (सोडियम क्लोराइड) और सोडियम कार्बोनेट के रूप में होता है। इनके अलावा थोड़ी मात्रा में पोटेशियम, कैल्शियम व मैग्नीशियम के लवण, फॉस्फेट तथा अन्य घटक होते हैं; जस्ता व लोहा तक होते हैं। ये सभी अनिवार्य हैं। पौटेशियम न हो तो हृदय ऐंठ जाएगा। कैल्शियम के बगैर हृदय संकुचित नहीं होगा। बाइकार्बोनेट लवण रक्त की अम्लीयता का संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है। यदि बाइकार्बोनेट द्वारा संतुलन न बनाए रखा जाए तो विभिन्न अंगों में उत्पन्न कार्बन डाईऑक्साइड के कारण अम्लीयता बढ़ती जाएगी। खून में लवणों के अलावा ऑक्सीजन और भोज्य पदार्थ भी होते हैं जिन्हें विभिन्न अंगों तक पहुंचाया जाना है। इसके अलावा अवशिष्ट पदार्थ होते हैं जिन्हें शरीर से बाहर फेंका जाना है, और हॉर्मोन होते हैं जो एक अंग से दूसरे अंग तक जा रहे होते हैं। इन सबकी मात्राएं भी अत्यंत स्थिर रहती हैं।
हमारी कोशिकाएं विशेषीकृत होती हैं। ये अपने-अपने काम में बहुत माहिर होती हैं - यह काम यांत्रिक कार्य हो सकता है, कोई पदार्थ बनाने का। रासायनिक कार्य हो सकता है या सोचने का कार्य हो सकता है। बहरहाल, हमारी ये विशेषीकृत कोशिकाएं उन प्रोटोजोआ कोशिकाओं से ज्यादा कार्यक्षम होती हैं जिन्हें हरफनमौला ढंग से सारे कार्य करना होते हैं।
किन्तु हमारी इन विशेषीकृत कोशिकाओं को काम करने के लिए ऑक्सीजन, भोजन और हॉर्मोन्स की पर्याप्त मात्रा चाहिए और एक स्थिर तापमान एवं अपशिष्ट पदार्थों की निकासी भी आवश्यक है। एक कुशल मेकेनिक प्रतिदिन किसी अप्रशिक्षित व्यक्ति से कहीं ज्यादा उत्पादन करेगा किन्तु वह अप्रशिक्षित व्यक्ति की तरह मारे काम नहीं कर सकता। कुशल मेकेनिक के लिए ये सारे काम कई अन्य कुशल मेकेनिक करेंगे। हमारी कोशिकाएं इस एक मायने में विशेषीकृत हैं।
अंदरूनी वातावरण
महान फ्रांसिसी शरीर क्रिया वैज्ञानिक क्लॉड बर्नार्ड, जिन्होंने खून में शक्कर की उपस्थिति की खोज की थी, उन्होंने निम्नलिखित बात कही थीः "समस्त जीवन क्रियाओं का उद्देश्य एक ही है कि आंतरिक पर्यावरण में जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनी रहें।'' हो सकता है। कि यह अतिशयोक्ति हो मगर यह बात इतनी गलत भी नहीं है।
इसे यों देखिए। आप दिहाड़ी पर काम करते हैं। आपकी दिहाड़ी मुख्यतः भोजन, कपड़े और मकान किराए पर खर्च होती है। कपड़े और मकान आपको अपने शरीर का तापमान स्थिर बनाए रखने में मदद करते हैं। खून में पोषक पदार्थों की मात्रा स्थिर बनाए रखने के लिए भोजन की ज़रूरत होती है। यदि आप सड़ता दांत न निकलवाएं तो खून में तमाम किस्म के जहर पहुंचने लगेंगे। इसलिए यह आपका सौभाग्य है कि आपको चेतावनी देने के लिए दांत का दर्द है। यदि आप न नहाएं तो भी आपको कोई बीमारी हो सकती हैं। यदि आप फांसी लगा लें तो आपके दिमाग की कोशिकाओं को ऑक्सीजन नहीं मिलेगी। तब आपकी मृत्यु हो जाएगी। क्लॉड बर्नार्ड, माक्र्स के
किडनी का काम: मानव शरीर में दो किडनियां होती हैं। इनमें से हरेक किडनी में रीनल आर्टरी (Renal Artery) के द्वारा सून प्रवेश करता है। खून महीन पीसरीस से होता हुआ असंख्य छन्नों ( ग्लोमोरूल्स ) से उनता जाता है। छना हुआ खून रीनल वेन (Renal Vein) से होता हुआ किडनी से बाहर निकल जाता है। खून को छानकर अवशिष्ट पदार्थों को मूत्राशय की ओर भेज दिया जाता है जहां से अवशिष्ट पदार्थ बाहर निकल जाते हैं।
समकालीन थे। शरीर क्रिया विज्ञान के संदर्भ में बर्नार्ड का सामान्यीकरण उतना ही महत्व रखता है जैसा राजनीति के अध्ययन में इतिहास की आर्थिक व्याख्या का है। जब हम यह जान गए कि खून के विभिन्न घटकों की ज़रूरत क्यों है और उनका नियमन कैसे किया जाता है, तो मान लीजिए कि हम काफी हद तक अपने शरीर के कामकाज को समझ गए हैं।
पदार्थों का संतुलन बनाए रखना
गुर्दो का एक कार्य खून में लवणों की मात्रा का नियमन करना तथा दूसरा कार्य अवशिष्ट व अवांछित पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने का है। प्रत्येक गुर्दे में लगभग दस लाख सूक्ष्म छन्नियां होती हैं जिन्हें ग्लोमेरुल्स कहते हैं। इनमें से होकर खून बहता है। इन छन्नियों में रक्त कोशिकाएं और प्रोटीन तो रुक जाते हैं किन्तु लगभग एकचौथाई प्लाज्मा छनकर नीचे एक नली में पहुंच जाता है। इस नली की दीवारें जिंदा हैं और यहां प्लाज्मा को वापस सोख लिया जाता है। वहां से यह प्लाज्मा फिर से खून में पहुंचा दिया जाता है। दूसरी ओर लगभग सारे अवशिष्ट पदार्थ नली में ही आगे बढ़ जाते हैं और पेशाब के रूप में बाहर निकलते हैं।
यदि आप बहुत ज्यादा नमक खा लें तो आपके रक्त प्लाज्मा में सामान्य से ज्यादा लवण होगा। ऐसे में जो पदार्थ पीछे छूटता है और जो अंत में बाहर निकाला जाएगा, उसमें लवण ज्यादा होगा। दसरी ओर यदि आपको खूब पसीना आ रहा है और आप पानी पी रहे हैं तो आपके प्लाज्मा में लवण कम होगा। तब गुर्दो में अधिकतम लवण वापस सोख लिए जाते हैं और पेशाब में लगभग न के बराबर लवण होते हैं। इसी तरह से अन्य पदार्थों का भी नियमन किया जाता है।
हम उक्त नली की तुलना एक कन्वेयर बेल्ट से कर सकते हैं। मजदूर लोग इस बेल्ट पर से ज़रूरत की चीजें उठाते रहते हैं और अनचाही वस्तुएं व कचरा पड़ा रहता है। हमारे गुर्दे हर आधे घण्टे में पूरे प्लाज्मा के बराबर आयतन को छान देते हैं। हां, ग्लोमेरुल्स जरूर बीच-बीच में विश्राम भी करते हैं। किसी भी क्षण, गुर्दे के आधे ग्लोमेरुल्स आराम की स्थिति में होते हैं तो आधे काम कर रहे होते हैं।
शरीर की नियोजित व्यवस्था में सारे अंग इसी तरह काम करते हैं। इस व्यवस्था का परिणाम यह होता है कि जब तक हम तंदुरुस्त हैं तब तक प्रत्येक कोशिका की जरूरत पूरी होती रहती है।
जे. बी. एस. हाल्डेनः (1892-1964) प्रसिद्ध अनुवांशिकी विज्ञानी। विकास (Evolution) के सिद्धांत को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान। विख्यात विज्ञान लेखक। उनके निबंधों का एक महत्वपूर्ण एवं रुचिकर संकलन ‘ऑन बीइंग द राइट साइज़' शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत निबंध ‘वॉट इज लाइफ' नाम के संकलन से लिया गया है।
अनुवादः सुशील जोशीः एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से जुड़े हैं। स्वतंत्र रूप से विज्ञान लेखन एवं अनुवाद करते हैं।