अमलान दास
जब से मानव ने बिजली बनाना शुरू किया तभी से यह सवाल महत्वपूर्ण रहा है कि आखिर इसका संग्रह कैसे किया जाए। आपको शायद मालूम ही होगा कि घरों में जो ए. सी. बिजली आती है, उसे किसी भी अर्थपूर्ण मात्रा में संग्रहित कर पाना आज भी संभव नहीं है। इसलिए यह संभव नहीं कि मॉनसून के समय जब खूब पानी होता है तो काफी सारी बिजली बनाकर रख लो, जो बाद में गर्मियों में काम आए। जब जितनी बिजली बनी उसे उसी वक्त इस्तेमाल करना पड़ता है।
परन्तु जब हम किसी सेल या बैटरी से बिजली प्राप्त करते हैं तो मामला थोड़ा फर्क होता है। इससे बिजली अपनी ज़रूरत के हिसाब से जब चाहे ले सकते हैं।
थोड़ा इतिहास
इतिहास की तह में जाएं तो पता चलता है कि यूरोप में वैज्ञानिकों ने विद्युत का अध्ययन आज से करीब चार सौ साल पहले शुरू कर दिया था। तब वैज्ञानिकों के सामने एक बहुत बड़ी बाधा थी जिसके कारण वे बिजली को गहराई से जानने-समझने में असहाय थे। वह यह कि उनके पास बिजली प्राप्त करने का स्थिर और स्थाई
पहली इलेक्ट्रिक बैटरीः सन् 1800 की 20 मार्च को बोल्टा ने रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन के अध्यक्ष को खत लिखकर अपनी बैटरी के बारे में जानकारी दी। यह खत रॉयल सोसायटी द्वारा प्रकाशित 'फिलॉसॉफिकल ट्रांजेक्शन्स' में छापा गया था (साथ ही ऊपर दिया गया चित्र भी)। इस चित्र के ऊपरी हिस्से में एक बैटरी बनी है। चांदी और जस्ते की पट्टियां लवण के घोल में डूबी हुई हैं और इस तरह के कई सारे सैल आपस में जुड़े हुए हैं। बोल्टा इसे 'चेन ऑफ कप्स' कहते थे।
नीचे के चित्रों में जस्ते-चांदी की बहुत-सी चकतियां एक के ऊपर एक करके रखी गई ६। जस्ते-चांदी की चकतियों की जोड़ियों के बीच में गीला किया गया गत्ता रखा गया है। वोल्टा ने इस पूरी संरचना को 'पाइल' कहा था। सबसे नीचे वाले चित्र में जस्ते-चांदी की चकतियों की मदद से कई पाइल जोड़कर एक बैटरी बनाई गई है।
वोल्टा की 'पाइल' से विद्युत बनाने का एक मशहूर प्रदर्शन 1801 में पेरिस में हुआ था। इस प्रदर्शन को देखने के लिए नेपोलियन भी हाजिर हुआ था।
स्रोत न था।
सन् 1780 में इटली के जीवशास्त्री गैल्विनी ने एक दिन संयोग से एक बात देखी। उसने देखा कि अगर तांबे के हुक पर लटकी कटे हुए मेंढक की टांगें किसी दूसरी धातु से छु जाती हैं तो वह ऐसे झटका मारती हैं। मानो उनमें फिर से जान आ गई हो। प्रयोग को कई बार दोहराकर गैल्विनी ने यह निष्कर्ष निकाला कि मेंढक की टांगें बिजली बहने के कारण झटका मारती हैं। उसने यह सिद्धांत पेश किया कि हर जीव में बिजली होती है और यही बिजली उनके जीवन का मूल स्रोत है।
कुछ और वैज्ञानिक अलग-अलग जानवरों के साथ ऐसे ही प्रयोग करने में जुटे थे। उनमें से एक वैज्ञानिक इटली के ही एलेसांद्रो वोल्टा भी थे। वोल्टा ने पाया कि जब मेंढक की टांगों को तांबे के बजाय लोहे के हुक पर टांग कर लोहे की छड़ से छुलाया जाता है तब मेंढक की टांग झटका नहीं मारती है।
वोल्टा इस नतीजे पर पहुंचे कि टांगों को दो अलग-अलग धातुओं से छुलाने पर मेंढक की टांगों में बिजली ज़रूर बहती है पर यह बिजली मेंढक के अपने शरीर की बिजली नहीं बल्कि किसी अन्य क्रिया से उत्पन्न बिजली होती है।
वोल्टा ने मेंढक की टांगों की जगह अलग-अलग तरल लेकर यह प्रयोग कई बार दोहराया तो समझ में आया कि बिजली पैदा करने के लिए किसी जानवर का शरीर जरूरी नहीं है। वह तो दो विभिन्न धातुओं को एक खास द्रव में रखने से भी पैदा हो जाती है।
बोल्टा ने इन प्रयोगों को करतेकरते बिजली का एक स्थिर स्रोत खोज निकाला था। उसने दुनिया का पहला सेल बनाया और सन् 1800 में उसे दुनिया के सामने पेश किया।
आज की दुनिया में बच्चों के खिलौनों, घड़ी, केमरे, मोबाइल फोन आदि सबमें सेल होते हैं जो इन उपकरणों को सुचारु रूप से चलाते हैं। यह सब देखकर सेल क्या है, उससे बिजली प्राप्त कैसे होती है? अलग-अलग धातुओं के इलेक्ट्रोड लेने से क्या फर्क दिखता है? ऐसे कई सारे सवाल उठने लगते हैं। इनमें से कुछ सवालों के जवाब तो हम अगले अंक में देंगे। इस बार कुछ मोटी-मोटी बातों के साथ आप अपने हाथों से एक सेल बनाकर देख सकते हैं और साथ ही सेल से एल. ई. डी. भी जलाकर देख सकते हैं।
आमतौर पर हर एक सेल की बनावट लगभग एक जैसी होती है। किसी भी सेल में दो इलेक्ट्रोड तथा एक विलयन (इलेक्ट्रोलाइट) होना आवश्यक है। इलेक्ट्रोड धातुओं से बने होते हैं जो कि बाहरी परिपथ के साथ विलयन का संपर्क बनाए रखते हैं।
नींबू के रस से सेल
चलिए सेल बनाने की शुरुआत करें। सेल बनाने के लिए हमें दो इंजेक्शन की शीशी, तांबे के मोटे तार को तीन से.मी. लंबा टुकड़ा, जस्ते की पट्टी, नींबू का रस, एक एल.ई.डी. तथा कुछ तार के टुकड़े चाहिए।
तांबे के दोनों सिरों को लगभग 1 से.मी. तक रेगमाल कागज़ द्वारा अच्छी तरह से घिस लेना जरूरी है। यह एक इलेक्ट्रोड हो गया। किसी खराब सेल को तोड़कर धातु की पट्टी (जो कि जस्ते की बनी होती है) निकाल लो। इस पट्टी का दो मि.ली. चौड़ा एवं ३ से.मी. लंबा टुकड़ा काट लो। यह दूसरा इलेक्ट्रोड होगा।
चित्र में दर्शाए गए तरीके के अनुसार तांबे के तार एवं जस्ते के टुकड़ों, दोनों को इंजेक्शन की शीशी के रबर के ढक्कन में फंसा दो। (ध्यान रहे तांबे का तार एवं जस्ते का टुकड़ा एक दूसरे से कहीं छू न जाएं)। अब इंजेक्शन की बॉटल में नींबू का रस डालो और उसके बाद ढक्कन बंद कर दो। यह हो गया सेल तैयार। अगर आप मल्टीमीटर से वोल्टेज नापें तो आपको लगभग 0.9 वोल्ट मिलेगा। यानी इस सेल की वोल्टेज बहुत कम है।
हम चाहते हैं सेल से बल्ब या कम से कम एल.ई.डी. जला पाएं। चूंकि एल.ई.डी. को कम वोल्टेज चाहिए इसलिए पहले एल.ई.डी. जलाने की कोशिश करेंगे। इसके लिए ऊपर बताई विधि से एक और ऐसा ही सेल बनाना होगा। फिर एक तार लेकर एक ढक्कन के तांबे के तार के साथ, दूसरे ढक्कन के जस्ते के टुकड़े को जोड़ दो - जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। दोनों सेल श्रेणी क्रम में जुड़ गए हैं।
अब एक एल.ई.डी. लो। इसमें दो तार लगे होंगे। उसके एक तार के सिरे को एक शीशी में लगे जस्ते से छुलाओ और साथ ही एल.ई.डी. में लगे दूसरे तार को दूसरी शीशी के तांबे के तार से छुलाओ। क्या एल.ई.डी. जल उठा?
अगर नहीं, तो एल.ई.डी. को उल्टा करके फिर से उसी तरह जोड़ो। अब तो एल.ई.डी, ज़रूर जल उठा होगा। अब इस सेल से बल्ब जलाने की कोशिश करें तो? इस सेल में वोल्टेज तो करीब दो वोल्ट के आस-पास है। जो कि अच्छा-खासा है, परन्तु बल्ब जलाने के लिए वोल्टेज से ही काम नहीं चलता, परिपथ में करंट भी अच्छा होना चाहिए। इस सेल में करंट बढ़ाने के लिए तांबे तथा जस्ते के लंबे-चौड़े इलेक्ट्रोड लेने पड़ेंगे। उससे करंट बढ़ेगा तथा बल्ब भी जल सकता है।
उपरोक्त तरीके से हम इमली के रस, टमाटर के रस आदि का इस्तेमाल करके भी सेल बनाकर एल.ई.डी. जलाकर देख सकते हैं। कई लोग तरह-तरह के फलों के रस के साथ अलग-अलग धातुओं के इलेक्ट्रोड चुनकर एल.ई.डी., बल्ब तथा केल्कुलेटर चलाकर देखते हैं। नींबू-केले से सेलः केले में आयरन और कॉपर के इलेक्ट्रोड लगाकर मल्टी मीटर से विद्युत धारा को नाप सकते हैं। वैसे आप दो-तीन नींबुओं में दो-दो इलेक्ट्रोड लगा, उनकी सीरिज़ बनाकर इसे केल्कुलेटर से जोड़कर केल्कुलेटर भी चला सकते हैं।
ऊपर वाला प्रयोग सीधे नींबू लेकर भी किया जा सकता है परन्तु प्रयोग करने के पहले नींबू को थोड़ा-सा रगड़ना पड़ेगा। अलग-अलग फलों के रसों से यह प्रयोग करके भी देखा जा सकता है। और हर बार अलग अलग धातु लेकर भी प्रयोग किया जा सकता है।
सेल संबंधी आपके कोई सवाल हों तो हमें ज़रूर बताएं। वैसे अगली कड़ी में सेल के बारे में कुछ और चर्चा होगी ही।
अम्लान दासः एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध। होशंगाबाद में रहते हैं।