सवाल:
मनुष्यों के बालों का रंग सफेद क्यों हो जाता है? बालों के विषय में कुछ जानकारी दीजिए।

---शिल्पा, कृतिका और योगेश, कक्षा सातवीं, होशंगाबाद

जवाबः अक्सर हम में से बहुत से लोग अपने बालों को सजाने संवारने या काटने में काफी वक्त गुजारते हैं। ज़रा सोचिए तो चेहरे पर चार चांद लगाने, धूल कण इत्यादि को रोकने के अलावा बाल आखिर करते क्या हैं? कुछ हजार साल पहले तक तो बाल हमारे पूर्वजों का शरीर ढांकने के भी काम आते थे।
इस बात से तो आप वाकिफ हैं कि शरीर के अलग-अलग हिस्सों में उगने वाले बालों का आकार-प्रकार अलग-अलग है। जैसे सिर के बाल और पलकों के बालों को छूकर देखिए। इसी तरह अलग-अलग लोगों के सिर के बालों को देखकर यह समझा जा सकता है कि लोगों के बालों में भी भिन्नता होती है। किसी के बाल धुंघराले होते हैं तो किसी-किसी के सीधे। किसी के बाल काले होते हैं तो किसी के भूरे, तो किसी के सुनहरे।
शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर उगने वाले बालों के वृद्धि दर में भी काफी अंतर होता है, जहां पलकों और भौंहों के बालों में वृद्धि नज़र ही नहीं आती, सिर के बालों और दाढ़ी को लगातार हजामत की दरकार होती है। सिर के बाल काफी तेज़ी से बढ़ते हैं - लगभग 12 सेंटीमीटर प्रति बर्ष। मगर हर जगह के बाल एक निश्चित औसतन लम्बाई तक ही बढ़ते हैं जिसके बाद वे झड़ जाते हैं और उनकी जगह नए बाल उग आते हैं।

किसी व्यक्ति के शरीर में बालों का फैलाव कैसा होगा, शरीर में कितने बाल होंगे, बाल धुंघराले होंगे या सीधे, रंग कैसा होगा - ये सब बच्चा जब मां के पेट में होता है तभी से ही तय हो जाता है। ये तमाम गुणधर्म अनुवांशिक हैं। वैसे उम्र बालों पर काफी गहरा असर डालती है। एक निश्चित उम्र के बाद हमारे बाल पतले एवं सफेद होते चले जाते हैं।
अब चलिए बाल की संरचना तथा उनके बनने की प्रक्रिया को समझें। चमड़ी पर पाए जाने वाले बाल को आप ज़मीन पर गड़े खूटे के रूप में देख सकते हैं। चमड़ी पर बने जिस छिद्रनुमा गड्ढे में बाल पाया जाता उसे पुटक (follicle) कहते हैं। इस पुटक के अंदर धंसी हुई बाल की जड़ तथा जड़ के आसपास की विशेष संरचनाएं मिलकर एक बाल को निश्चित आकार व प्रकार देती है।

बाल की सतह: आमतौर पर नंगी आंखों से देखने पर बाल की सतह चिकनी-सी महसूस होती है लेकिन माइक्रोस्कोप से देखने पर मामला कुछ और ही नज़र आता है। स्केनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से बाल की सतह देखने पर शन्कनुमा आकृतियां दिखाई देती हैं। इस चित्र में बाल की सतह को 2150 गुना बड़ा करके दिखाया गया है।
 
चमड़ी पर बने हुए गड्ढे में घंसा हुआ बालः चित्र में चमड़ी के बाहर निकले हुए इस बाल की आड़ी काट को देखें तो बीच में एक पतली सी नली और उसके बाहर दो और नलियां नज़र आती हैं। सबसे अंदर वाले हिस्से में रंजक भरी बहुभुज कोशिकाएं एवं खाली जगह यानी हवा होती है। अंदर की इस नली के बाहर वाला हिस्सा बाल में सबसे ज्यादा जगह घेरता है और उसमें लंबी कोशिकाएं पाई जाती हैं जिनमें काले बालों में मेलेनिन रंजक और सफेद बालों में अधिकतर हवा भरी होती है। बाल का सबसे बाहरी हिस्सा चपटी, पतली शल्कनुमा कोशिकाओं की एक तह के रूप में होता है जिनमें केरेटिन प्रोटीन भरी रहती है।
चमड़ी के जिस गड्ढे में बाल धंसा होता है उस गड्ढे की दीवार प्रमुखतः चमड़ी की एपिडरमिस का हिस्सा ही होता है। नीचे की ओर जहां बाल की जड़ मौजूद रहती है वहां बल्ब जैसा उभार बना होता है। इस एकदम नीचे वाले भाग में ही बे कोशिकाएं पाई जाती हैं जिनसे बाल की कोशिकाएं उत्पन्न होती हैं, और वे मेलेनोसाइट कोशिकाएं भी जो इन कोशिकाओं के बनते ही उनमें रंजक के कण भर देती हैं।
पुटक के ऊपरी हिस्से की और तेल ग्रंथियां भी उसमें खुलती हैं और तेल साबित करती रहती हैं जिससे बाहर की ओर बढ़ रहे बाल पर तेल का पोलिश भी चढ़ जाता है।

बाल की जड़ के पास वे कोशिकाएं होती हैं जो बाल की कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। बाल की ये नव निर्मित कोशिकाएं फिर ऊपर की ओर खिसकती जाती हैं। जैसे ही बाल की एक कोशिका बनती है उसी समय बाल की जड़ के आसपास बाल में रंग भरने वाली मेलेनोसाइट नामक कोशिकाएं उसमें रंजक के कण भर देती हैं। मेलेनोसाइट का प्रमुख काम है रंजक पदार्थ (मेलेनिन या मेलेनिन के अन्य प्रकार जिनमें कोई और रसायन जैसे गंधक या लोहा हो) बाल में एक विशेष मात्रा में डालना। अगर बाल का अनुवांशिक प्रकार काला हुआ तो रंजक पदार्थ सिर्फ मेलेनिन ही होगा। भूरा बाल हुआ तो मेलेनिन का वह प्रकार भरा जाएगा जिसमें गंधक या लौह-कण मिले होते हैं।
त्वचा की सतह के नीचे तो बाल लगभग जीवित रचना ही होती है, मगर अपनी नली में आगे बढ़ते-बढ़ते तथा सतह तक पहुंचते किन्हीं क्रियाओं के चलते यह मृत हो जाता है। यानी कि पुटक की नली में जैसे-जैसे बाल बढ़ता है उसकी हर कोशिका में (बाहरी घेरे से लेकर अंदर तक) केरेटिन नामक प्रोटीन शामिल होता जाता है। इस प्रोटीन की मात्रा से तय होता है कि बाल कितना कड़क होगा तथा बाल की कोशिकाएं कैसे मृत होती जाएंगी। यूं किसी भी बाल में बाहरी परत सबसे कड़क होती है। कबेलू की तरह एक के ऊपर एक, इस परत की कोशिकाएं जमी होती हैं जिनका खुला हिस्सा ऊपर यानी बाहर की ओर होता है।

बाल जब त्वचा की सतह से निकलते हैं तब पुटक की नली में ही खुलने वाली सेबेशियस (Sebaceous) ग्रंथि से स्रावित होने वाले तेलीय पदार्थ से बालों पर तेल की पॉलिश भी चढ़ जाती है। जहां ये बाल त्वचा की सतह से निकलता है वहां पर भी कई बार यह तेलीय पदार्थ स्रावित होने से, आपने यह महसूस किया होगा कि तेल न डालने पर भी बाल चिकने नज़र आते हैं।
बच्चा जब पेट के अंदर होता है। उस वक्त एवं नवजात शिशुओं के बाल पतले व मुलायम होते हैं। जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता जाता है उसके बाल मोटे व कड़क होते जाते हैं। बालों की मोटाई कोशिकाओं के घेरों की संख्या में वृद्धि होने से बढ़ती जाती है।

मां के पेट में पलते हुए बच्चे के शरीर पर बालों के पुटकों की संख्या तय हो जाती है। इन पुटकों से बाल निकलने का समय थोड़ा भिन्न ज़रूर हो सकता है। जैसे लड़कों में एक खास उम्र पर दाढ़ी-मूंछ आती है, व सीने पर भी लगभग उसी समय बाल उगने लगते हैं। इन जगहों पर बालों के पुटक तो पहले से ही थे लेकिन निष्क्रिय थे। एक उम्र विशेष पर जाकर वे सक्रिय हो गए।
वयस्क होने तक ये पुटक कहीं-कहीं तो बिल्कुल निष्क्रिय पड़े रहते हैं और कहीं बहुत धीमी दर से क्रियाशील होते हैं। वयस्क अवस्था में शरीर में कुछ रासायनिक परिबर्तनों (कुछ विशेष हार्मोन स्रावित होने से) के कारण ये पुटक क्रियाशील हो जाते हैं।
 
कुछ गलतफहमियां
बाल काटने से घने होते हैं - यह बात बिलकुल सच नहीं है। बाल जड़ से बढ़ते हैं और काटने पर हम जड़ या पुटक पर कोई प्रभाव नहीं डालते। मगर यदि हम जड़ से बाल को उखाड़ दें तो बाल के पुटक की क्रिया की गति तेज़ होने से बाल जल्दी तो निकल आते हैं मगर वे मोटे नहीं हो पाते।
बाल जड़ से उखड़ जाए तो वहां दोबारा बाल नहीं उगेगा - अगर आप गलती से बाल नोच डालें, तो बाल के सिरे पर गोलाकार सफेद-सा हिस्सा देखकर आपको लगा होगा कि बाल तो जड़ समेत निकल गया, अब वहां और बाल नहीं उगेगा। पर बाल की जड़ तो पुटक में धंसी हुई थी - जड़ समेत बाल निकल भी गया तो पुटक दोबारा बाल बना देगा।
बाल रातों-रात सफेद हो सकते हैं - बालों के पुटक के काम करने का एक निश्चित चक्र है - कुछ समय तक वे बाल बनाते हैं और फिर कुछ समय के लिए सुस्त पड़ जाते हैं। पुटक सुस्त पड़ने पर बाल झड़ जाते हैं तथा फिर क्रियाशील होने से नए बाल बनने लगते हैं।

साल भर में बाल ज्यादा से ज्यादा 12 से.मी. ही बढ़ सकते हैं। मेलेनोसाइट बाल की वृद्धि के दौरान अपना कार्य जारी रखते हैं। अगर किन्हीं कारणों से उनकी क्रिया बंद हो जाए - तो बाल में यह असर पहुंचने और दिखने में समय तो लगेगा। हां, जिनके सिरे के कुछ बाल पकने लगे हैं तो अधिकांश पुराने काले बाल पहले झड़ जाएंगे (झड़ने का असर तो पुराने बालों पर पहले होता है) और इसी वजह से सिर में नए सफेद बाल ही दिखने से आपको ऐसा प्रतीत होता है कि रातों-रात आपके बाल पक गए; मगर जनाब बाल झड़ने में समय लगता है और उपरोक्त प्रक्रिया भी कम-से-कम हफ्ते भर में ही संभव हो पाएगी।

उम्र बढ़ने पर इन्हीं पुटक की क्रिया की दर जब फिर से घटने लगती है तो बाल पतले होने एवं झड़ने लगते हैं। यह बात भी पूर्व निश्चित है कि बुढ़ापे की वजह से किस उम्र में किसके बाल पतले होने लगेंगे या झड़ने लगेंगे।
बालों की प्रकृति में अंतर तथा बालों के कुछ और गुणधर्मों की बात करने के पश्चात ही हम यह देखेंगे कि बाल पकते क्यों हैं एवं किन-किन परिस्थितियों में झड़ते हैं।
बाल अगर चपटे हुए तो वे चुंघराले होंगे एवं अगर बिल्कुल गोल हुए तो सीधे होंगे, यह तो आप किसी घुंघराले एवं किसी सीधे बाल को ध्यान से देखकर या हैंडलैंस की मदद से देखकर पता लगा सकते हैं।
दिखने में इतने पतले और जल्दी से टूटने वाले बाल असल में काफी मजबूत होते हैं। एक बाल पर लगभग 90 ग्राम तक वज़न लटकाया जाए तो वह टूटेगा नहीं। हां, ये काफी लचीले भी होते हैं - ज़रा अपने दो हाथों की उंगलियों के बीच बाल के दो सिरों को कसकर पकड़कर खींचिए और इस बात को खुद महसूस कीजिए।

एक बात जो कम उम्र में हमें काफी असहज प्रतीत होती है, वह है - बालों का पकना यानी सफेद हो जाना। उम्र बढ़ने पर मेलेनोसाइट नामक कोशिकाएं निष्क्रिय होती चली जाती हैं जिसकी वजह से बाल की कोशिका में रंजक पदार्थ नहीं भरा जाता। कई लोग वैसे यह भी शिकायत करते हैं कि कम उम्र में बाल पक रहे हैं, या हमने अमुक बीमारी का इलाज करवाया तो हमारे बाल पकने लगे, या अमुक बीमारी के कारण हमारे बाल पक गए।
बाल पकने की बात शुरू करें तो आपको यह भी बताना जरूरी होगा कि अलग-अलग नस्ल के लोगों में बाल पकने की उम्र अलग होगी। वैसे यह गुणधर्म भी अनुवांशिक है। आपके परिवार में जिस उम्र में आपके बाप-दादा के बाल पके होंगे लगभग उसी उम्र से आपके बाल भी पकने लगेंगे।

कुछ बीमारियों तथा शारीरिक बदलावों की वजह से भी बाल पक तथा झड़ सकते हैं - जैसे कुपोषण, हरपिस, टाइफोइड, मलेरिया, डायबीटीज़, प्रसव के बाद इत्यादि। कुपोषण से भी बाल पक सकते हैं या उनका रंग भुरा हो सकता है। मगर यह निश्चित नहीं है कि अलग-अलग लोगों में ये बीमारियां बालों पर कितना असर करेंगी। अक्सर बाल झड़ तो जाते हैं मगर उपरोक्त में से किसी-किसी बीमारी में ही, जैसे डायबीटीज़ में, बालों का रंग सफेद होने की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है।
केंसर के रोगी के इलाज के दौरान काफी बाल झड़ जाते हैं। इसकी वजह यही है कि बाल के पुटक रसायनों तथा विकिरण के असर से निक्रिय हो जाते हैं। मगर बाद में दोबारा इन्हें सक्रिय किया जा सकता है। इस बार सवालीराम का सवाल पृष्ठ 42 पर देखिए।