हंसिए और सीखिए
मूल लेखः एन्टोनियो लूसिआनो टोस्टाका
प्रस्तुतिः रश्मि पालीवाल
एन्टोनियो ब्राजील के एक विश्वविद्यालय में अंग्रेजी और अंग्रेजी भाषा शिक्षण पद्धतियां पढ़ाते हैं। यह लेख ‘इंग्लिश टीचिंग फोरम' नामक जर्नल के जनवरी 2001 के अंक में लिखा है। उन्होंने अपने सहकर्मी लिन मैलैट के साथ एक प्रश्नावली बनाई। वे लिखते हैं कि प्रश्नावली को बहुत गंभीरता से मत लीजिएगा - इसका निहित संदेश बस इतना ही है कि हंसिए और सीखिए। छात्रों के हर समूह के लिए क्या उपयुक्त है और क्या नहीं, इसमें ज़रूर विभेद कीजिए।
यदि आप एक भाषा शिक्षक हैं तो . . . . . .
1. क्या आप कक्षा में हास्यपूर्ण कहानियां सुनाएंगे?
अ. नहीं, कभी नहीं।
ब. अगर उचित लगे तो।
स. जब कभी मौका मिले तो ज़रूर।
2. किसी शब्द के अर्थ का खुलासा करने के लिए क्या आप मजाकिया हाव भाव और नाटकीय क्षणिकाओं का इस्तेमाल करेंगे?
अ. कतई नहीं। यह मेरे बस की बात नहीं।
ब. अगर मैं उस 'मुड' में हुई तो।।
स. जरूर छात्रों को आकर्षित करने के लिए कुछ भी किया जा सकता है।
3. क्या आप बच्चों की मातृभाषा में आने वाली पहेलियों और तुक-बन्दियों का इस्तेमाल करेंगे।
अ. नहीं, मैं तो इससे बचती हूं।
ब. अगर इससे उन्हें याद करने में मदद मिलती है तो जरूर करूंगी।
स. बच्चों को तो हमेशा ही ऊट-पटांग तुकबन्दियां अच्छी लगती हैं।
4. नाटकों के पात्रों के लिए हास्य भरे नाम रखेंगे?
अ. कभी सोचा नहीं।
ब. कभी-कभी करूंगी।
स. हां, ज्यादातर यही कोशिश रहेगी।
5. क्या आप लड़कों को लड़कियों की और लड़कियों को लड़कों की भूमिकाएं करने देंगे?
अ. सवाल ही नहीं उठता। यह तो बेहूदगी होगी।
ब. अगर मस्ती का माहौल बना हुआ है तो करूंगी।
स. जब भी संभव हुआ, करूंगी क्योंकि बच्चों को यह बहुत प्रिय है।
6. टेप रिकॉर्डर पर या रेडियो पर गीत बजाते हुए क्या आप ध्वनि इतनी कम कर देंगे कि बच्चे खुद भी गुन-गुना सकें?
अ. हमेशा तो नहीं।
ब. हां - अगर उन्हें गीत अच्छा लग रहा हो।
स. जरूर - हमेशा ही।
7. अगर बच्चों की टोलियां बनाई गई हैं और उनका नाम जानवरों के नाम पर रखा गया है, तो क्या किसी टोली के बच्चों का जिक्र करते हुए आप कहेंगे कि 'भई, गायों ने इस सवाल का क्या हल निकाला है?'
अ. नहीं, किसी को बुरा लगा सकता है।
ब. शायद ... अगर हल्के-फुल्के ढंग से बातें हो रही हों तो।
स. क्यों नहीं। बुरा लगने का तो कोई प्रश्न नहीं होना चाहिए।
8. क्या आप मजेदार चित्रों व रेखांकनों की सहायता से अर्थों की व्याख्या करेंगे?
अ. नहीं, मैं चित्र नहीं बना सकती।
ब. कोशिश तो करती हूं।
स. मैं तो सारे उदाहरणों को स्पष्ट करने के लिए चित्र बनाती हूं।
अपना मूल्यांकन स्वयं करें
हर 'अ' उत्तर के लिए 0 (शून्य) अंक दें।
हर 'ब' उत्तर के लिए 3 अंक दें।
हर 'स' उत्तर के लिए 6 अंक दें।
एन्टोनियो लुसिआनो टोस्टाका का यह प्रश्न पत्र हमें अपनी शिक्षकीय प्रवृत्तियों पर नज़र दौड़ाने का मौका देता है। जैसा कि इस तरह की प्रश्नावलियों में अक्सर होता है, हर प्रश्न के बाद तीन विकल्प हैं - पहला पूरी तरह नकारात्मक, दूसरा संतुलित व सकारात्मक ब तीसरा पूरी तरह प्रतिबद्ध और जोश भरा। यदि आठों प्रश्नों पर आप कुल 0 से 14 अंक हासिल करेंगे तो लेखकों के सुझाव के अनुसार आपको अपने अंदर का बालक बाहर लाने की ज़रूरत है।
यदि आपने 15 से 40 अंक हासिल कर लिए हैं तो आप "समझदारी के साथ उपयुक्त विधियों का कक्षा में इस्तेमाल करते हैं।'' और अगर आपने 41 से ज्यादा अंक हासिल कर लिए हैं तो आपको शायद सर्कस में होना चाहिए। आपके छात्रों को कक्षा में बेहद मज़ा आता होगा। पर आपको सावधान रहना है और सिखाने और करतब दिखाने के बीच अंतर करके रखने की जरूरत है।''
एन्टोनियो जोर देते हैं कि सीखने के माहौल को खुशनुमा और सार गर्भित बनाने का कोई मौका मत चूकिए पर बहुत सोची-समझी योजनाबद्ध गतिविधियां कीजिए।
वे अपने लेख में कई ऐसी गतिविधियों का उल्लेख करते हैं जो मजेदार हैं और किसी भी विदेशी भाषा को सीखने में मदद करती हैं, फिर भी उनके इस लेख का मुख्य मसौदा मज़ाकिया शिक्षक के इर्द-गिर्द पनपे मिथक को भेद डालना और उन तमाम आशंकाओं व अध-कहे शकों को रोशनी में लाकर रखना है, जो हर शिक्षक को संकुचित करते रहते हैं।
मज़ाक (हास्य) का इस्तेमाल क्यों? क्योंकि जब आप हंसते हैं तो बेहतर सीखते हैं। हास्य-विनोद के इस्तेमाल से कक्षा का माहौल सुहाना बन पड़ता है, छात्र व शिक्षक में निकटता बढ़ती है, सीखने की क्रिया ज्यादा आनंदभरी व सारभरी बन जाती है, छात्रों का ध्यान खींचने में मदद मिलती है, छात्रों की खुशी में, सीखने की चाहत व लगन में बढ़ोत्तरी होती है।
अरसे से शिक्षक इस बात को पहचानते हैं कि छात्रों में घबराहट कम करना और लगन बढ़ाना सिखाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। क्या वजह है कि फिर भी अधिकांश शिक्षक अपनी कक्षा में हास्य -विनोद व मज़ाक का बहुत कम इस्तेमाल करते हैं? इसके कई जवाब हैं। सबसे पहले तो बहुत से शिक्षक यह मानते हैं कि हास्य - विनोद के इस्तेमाल से कक्षा में किसी को ठेस पहुंच सकती है। फिर कुछ लोगों को लगता है कि हंसी-मज़ाक से कक्षा में अनुशासन बिगड़ सकता है और शिक्षक कक्षा पर अपना नियंत्रण खो सकता है। तर्क यह भी है कि हंसी-मज़ाक में समय ज्यादा चला जाता है, शिक्षक छात्र की तुलना में ज्यादा बोलता रहता है, और छात्र शायद शिक्षक पर ज्यादा ही निर्भर बन जाते हैं। कक्षा में हंसी-मज़ाक से सशंकित रहने की एक आम वजह यह भी है कि लोग वाकई हास्य की गंभीरता पर विश्वास नहीं करते। हममें से कई लोग सोचते हैं कि कक्षा में अदायगी करने वाले शिक्षक की छवि शिक्षकीय पेशे से ठीक मेल नहीं खाती है। ऐसे शंकावान लोग हमेशा पूछते रहते हैं। कि “क्या छात्र सचमुच कुछ सीख भी रहे हैं?"
ये सारे सवाल और शक बहुत वाजिब हैं और इन्हें हरगिज़ अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। पर, बहुधा पूर्वाग्रह भरे ख्याल शिक्षकों और छात्रों को इतना जकड़े रहते हैं, कि वे एक ऐसी शिक्षण प्रक्रिया से अपने आपको वंचित करते रहते हैं जो ज्यादा आनंददायी और अर्थवान है - ऐसी शिक्षण प्रक्रिया जिसकी खोज हम अपने दिन-प्रतिदिन के प्रयासों में करते ही रहते हैं।
'पूर्वाग्रह भरे ख्याल जो लोगों को जकड़े रहते हैं' - इस बात की जो पीड़ा लेखक व्यक्त करता है, वह कदाचित चिर-परिचित है। इस संबंध में आपके भी कुछ अनुभव होंगे। क्या आप संदर्भ के पाठकों के साथ इन्हें बांटेंगे? मुझे याद आने लगते हैं कई प्रसंग जहां हम 'हास्य की गंभीरता में विश्वास व अविश्वास के बीच झूल रहे थे। निरंकार देव सेवक की एक कविता है, जिसे हम कक्षा 4 या 5 की किताब में हिन्दी भाषा सिखाने के उद्देश्य से रख रहे थे - और जिस पर कई सवाल लोगों के मन में उठे। कविता यह थीः
कहीं एक बुढ़िया थी जिसका नाम नहीं था कुछ भी
वह दिन भर खाली रहती थी काम नहीं था कुछ भी
काम न होने पर भी आराम नहीं था कुछ भी
दोपहरी दिन रात सबेरे शाम नहीं था कुछ भी
कहीं एक बुढ़िया थी जिसका नाम नहीं था कुछ भी।
कुछ लोगों को यह कविता अपने निहित हास्य और संवेदना से रिझा रही थी तो कई लोगों को बिल्कुल बेमानी लग रही थी। लोग इसके हास्य को बहुत ही गंभीरता से ले रहे थे। शब्दशः गंभीरता से।
"ऐसे कैसे हो सकता है कि बुढ़िया का नाम नहीं था कुछ भी? कुछ तो नाम रहा ही होगा।"
'‘ऐसे कैसे हो सकता है कि उसके पास काम नहीं था कुछ भी? भई वो अपना नहाना-धोना, खाना-पीना तो करती ही होगी? यह काम नहीं हुआ क्या?"
यह बहस जिस स्तर के विचारों पर हो रही थी उससे भान मिलता था कि लोगों के अंदर का 'बालक' कहीं बहुत अंदर दब चुका था। शायद कोई मनोवैज्ञानिक हमें समझा सकता है कि कैसे जीवन-अनुभवों से हमारे अंदर का बालक मर जाता है। शिक्षा में हास्य, फूहड़पन व बेहूदगी न हो; उसमें उद्देश्य हो, आस्था हो, और सहज निर्भयता भी - ऐसे संतुलन के लिए प्रयास करने की ज़रूरत है। इस दृष्टि के विकास में हमें अभी और परिश्रम करना होगा - क्या हम अपने अंदर के बालक को जीवित रखने का प्रयत्न करेंगे? एन्टोनियो टोस्टाका की प्रश्नावली आपका क्या मूल्यांकन करती है?
एन्टोनियो लूसिनो टोस्टाकाः ब्राजील में विश्वविद्यालय स्तर पर अंग्रेजी और अंग्रेजी भाषा शिक्षण पद्धतियां पड़ाते हैं।
रश्मि पालीवालः एकलव्य के सामाजिक अध्ययन शिक्षण कार्यक्रम से जुड़ी हैं।