लेखक : ब्रेड डेकन व टिम मर्फी
अनुवाद- शिवानी बजाज [Hindi PDF, 269kB]
आज भी मुझे आपकी कहानियां याद हैं। शायद आप मुझे फिर कभी न पढ़ाएं, लेकिन अपने शिक्षक की बात किसी को भी काफी लम्बे समय तक, शायद ताउम्र प्रभावित करती है।
— अक्की, एक शिष्या, के रोज़नामचे से
हम कई वजहों से अपनी कक्षाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना चाहते हैं। कहानियों में बच्चे भाषा को टुकड़ों में सुनने की जगह, एक संदर्भ में सुन पाते हैं। कहानियों में बच्चों को नई शब्दावली और भाषा का परिचय मिलता है, वो भी संबंध के जाल में बुना हुआ। इनके अतिरिक्त कहानियों का उनके ज्ञान व व्यक्तित्व के निर्माण पर भी गहरा प्रभाव होता है।
कहानियां, ऐसे वृतांत होते हैं, जो हमें दुनिया को समझने में मदद करते हैं। शैक्षणिक शोध में भी आज इन्हें एक ऊंचा दर्जा दिया जाने लगा है। जैसा कि ऊपर लिखे हुए अक्की के शब्द हमें याद दिलाते हैं, कहानियों में हमारे अंदर के उन हिस्सों तक पहुंचने की शक्ति है जहां शायद सामान्य शिक्षा नहीं पहुंच पाती। इससे यह पता चलता है कि भाषा की कक्षा में भाषा सिखाने के अलावा और भी कई बातें सीखने को मिलती हैं। हमारे छात्र हमें बताते हैं और दिखाते भी हैं कि उनका विश्वास, व्यवहार और नज़रिया हमारी कहानियां सुनने के बाद किस तरह बदल जाता है। विचारों और व्यवहार पर पड़ने वाला यही प्रभाव भाषा सीखने को एक सम्पन्न अनुभव बना देता है जिसे छात्र बहुत ही अमूल्य पाते हैं।
इस लेख में हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि कहानी और चित्रों के माध्यम से किसी विषय को गहराई में ले जाना क्यों महत्वपूर्ण है। फिर हम कुछ ऐसे तरीकों की चर्चा करेंगे जिनसे शिक्षक कहानी कहने के प्रभाव को भाषा और सोचने की गतिविधियों द्वारा और गहरा कर सकें। इन गतिविधियों में कहानी मन में दोहराना, सारांश बनाना, दूसरों को कहानी सुनाना, रोज़नामचा लिखना और समाचार पत्रक बनाना शामिल हैं। ये सभी गतिविधियां पाठ्यक्रम की अन्य सामग्रियों पर भी लागू की जा सकती हैं। हम यहां इन्हें गतिविधियों के एक सिलसिले की तरह प्रस्तुत करेंगे क्योंकि शिक्षकों के लिए यह समझना ज़रूरी है कि गतिविधियों के एक समूह को एक शृंखला के रूप में किस प्रकार देखा जा सकता है। अंत में हम एक कहानी को भागों में बांटकर सुनाना चाहेंगे और उस पर छात्रों की प्रतिक्रिया बताकर अपनी बात को स्पष्ट करना चाहेंगे। कहानी का पहला हिस्सा नीचे दिया गया है। इसे पढ़ें।
भाग 1 : सर लैंसलॉट और वो ज़रूरी सवाल।
यह पर्चा गृहकार्य के लिए है। कहानी का एक हिस्सा कक्षा में सुनने के बाद और उसके बारे में कक्षा के अन्य छात्रों से बात करने के बाद, हर एक छात्र को उस भाग की प्रतिलिपि दी जाती है। उनका गृहकार्य होता है, कहानी के इस भाग को ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को सुनाना और फिर उनसे सवाल पूछना, "औरतें सबसे ज़्यादा क्या चाहती हैं?’ फिर इसके बारे में अपने अनुभव रोज़नामचे में लिखना।
कहानी:
........बहुत साल पहले इंग्लैंड में कैमलॉट नाम का एक ‘दुर्ग-नगर’ था। एक दिन सर लैंसलॉट अपने घोड़े पर सवार कैमलॉट से घूमने के लिए निकले। सर लैंसलॉट बहुत तेजस्वी नहीं थे इसलिए अपनी तलवार ले जाना भूल गए। अचानक एक संकरे से रास्ते पर काला सूरमा आकर खड़ा हो गया। वह सर लैंसलॉट का दुश्मन था।
उसने कहा, “तुम्हारे पास तो तलवार भी नहीं है। अब मैं तुम्हें आराम से मार सकता हूं। लेकिन मैं तो नटखट हूं, इसलिए मैं तुम्हें एक सवाल देता हूं। अगर तुम इस सवाल का जवाब दे दो तो मैं तुम्हें नहीं मारूंगा। लेकिन तुम्हें सवाल का जवाब देने के लिए यहां जल्दी लौटने का वादा करना होगा।” सर लैंसलॉट ने कहा, “ठीक है, मैं वादा करता हूं।” इस पर काले सूरमा ने पूछा, “स्त्रियों को सबसे ज़्यादा क्या पसंद है?”
सर लैंसलॉट को जवाब नहीं मालूम था। लेकिन कैमलॉट में उनके बहुत से दोस्त थे जो अक्सर औरतों की बातें किया करते थे। उन्होंने सोचा, उन्हें ज़रूर पता होगा। इसलिए वो मुड़कर महल की तरफ चल पड़े।
रास्ते में अचानक एक बदसूरत-सी बुढ़िया कूद आई और उसने उनका रास्ता रोक लिया। उसने कहा, “मैंने काले सूरमा के साथ तुम्हारी बातचीत सुन ली है। मुझे उस सवाल का जवाब मालूम है। यदि तुम मेरे लिए एक जीवन साथी ढूंढ दो तो मैं तुम्हे जवाब बता दूंगी।” सर लैंसलॉट को उसकी बात सच्ची लगी लेकिन ‘मैं चलता हूं’ कहकर वे महल की तरफ बढ़ गए।
महल पहुंचकर उन्होंने अपने साथियों से पूछा, “औरतें सबसे ज़्यादा क्या चाहती हैं?” सबने अलग-अलग जवाब दिए। किसी ने कहा चॉकलेट, किसी ने पैसे, किसी ने हीरे, किसी ने कहा ‘मुझे चाहती हैं।’ सर लैंसलॉट बहुत होशियार नहीं थे, लेकिन उनकी सहजबुद्धि तेज़ थी। उन्हें लगा ये सभी जवाब ठीक नहीं हैं। उन्हें यह भी लगा कि जिस बुढ़िया से वे रास्ते में मिले थे, सही जवाब उसी के पास है।
लैंसलॉट ने सभी साथियों से कहा, “एक बुढ़िया है जिसे सही जवाब मालूम है। लेकिन वो तब तक मुझे जवाब नहीं बताएगी जब तक मैं उसके लिए एक जीवन साथी न ढूंढ दूं। क्या तुम में से कोई उससे शादी करेगा?” यह सुनते ही सबके सिर ऐसे झुक गए मानो अध्यापक ने कोई मुश्किल सवाल पूछ लिया हो। लेकिन एक शूरवीर साथी सर गवेन, जो कि बहुत अच्छा इन्सान था, खड़ा होकर बोला, “अगर ऐसा करने से तुम्हारी जान बचती है, तो मैं किसी भी औरत से शादी कर लूंगा।” तो दोनों जंगल की ओर निकल पड़े। वहां वे उस औरत से मिले। उन्होंने उसे बताया कि सर गवेन उससे शादी करने को तैयार हैं। सर लैंसलॉट ने फिर पूछा, “ अब कृपया मुझे बता दीजिए, स्त्रियों को सबसे ज़्यादा क्या पसंद है?”
उस औरत ने जवाब दिया, “स्त्रियां चाहती हैं . . . . . . ।”
कहानी की गहराई तक जाना
एक विद्वान स्टेविक भाषा सीखने में ‘गहराई’ के पहलू पर चर्चा करते हैं। उनका कहना है कि पढ़ाने के कुछ तरीके कई बार छात्रों की भावनात्मक गहराइयों तक पहुंच जाते हैं। वे अक्सर अपने रोज़नामचे में लिखते हैं कि कोई कहानी उन्हें छू गई या किसी कहानी को पढ़कर उनकी मान्यताएं बदल गईं। उदाहरण के लिए, ऐसी कहानी सुनने के बाद जिसमें कोई पात्र ग़लती करता है, वे इस बात को समझ सकते हैं कि ग़लतियां वास्तव में सीखने का मौका होती हैं, न कि कोई बड़ी विपत्ति। “तुम्हारी कहानी इतनी मज़ेदार थी कि मैं हंसी रोक ना पाई। इससे मुझे सोचने की नई दिशा मिली। मैं ग़लतियां करने से और हंसी का पात्र बनने से डरती थी। पर अब मैंने सीखा, कैसे गलतियों से फायदा उठाया जा सकता है।” - यूका (एक छात्रा)।
कुछ अन्य कहानियां छात्रों को जोख़िम उठाने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। “मैंने आज की कहानी से यह सीखा कि खुद पर विश्वास करना महत्वपूर्ण है।”- हितोशी (एक अन्य छात्र)।
कहानियों से छात्रों को अपनी मान्यताओं के सीमित दायरे का अहसास हो सकता है और उन्हें सोचने और समझने के विकल्प भी मिल सकते हैं। ये बदलाव, कक्षा में, बाद के पाठों में काफी देखने को मिलता है क्योंकि छात्र उसमें सकारात्मक रूप से भाग लेते दिखते हैं।
इस तरह के गहन अध्ययन (डीप लर्निंग) के अहसास के लिए यह ज़रूरी है कि सीखने वाले कहानी को समझें और फिर उन्हें अपनी प्रतिक्रियाओं और नज़रिए को दूसरों के साथ बांटने का मौका मिले। इन्हीं कारणों से हमने गतिविधियों की एक शृंखला तैयार की है। ये है कहानी सुनते समय कहानी को मन में दोहराना (शैडोइंग), सारांश सुनाना (समराइज़िंग), दूसरे छात्रों को अपने शब्दों में कहानी सुनाना (स्टुडेंट रीटेलिंग), कहानी सुनने की प्रक्रिया के दौरान किए गए अभ्यासों का आकलन करते हुए रोज़नामचा लिखना (एक्शन लॉगिंग) और बुलेटिन या न्यूज़ लेटर तैयार करना।
मन में दोहराना
कहानी को दोहराने का तरीका है कि जब कोई कहानी सुना रहा हो उसी वक्त ज़ोर से या मन में भाषा को दोहराना। जब छात्र कहानी सुनते हुए मन में उसे दोहराते हैं, तो यह दो बार कहानी सुनने जैसा होता है - एक बार वक्ता से और एक बार अपने-आप से, अपनी आवाज़ में। इस प्रक्रिया से, बाद में उनके लिए कहानी को सुना पाना आसान हो जाता है। शुरू-शुरू में छात्र पूरी कहानी याद रखकर शब्दश: सुनाने की कोशिश करते हैं पर बाद में वे कुछ-कुछ चीज़ें छोड़कर कहानी सुनाते हैं। छात्रों के साथ एक-दो बार इस प्रक्रिया के प्रदर्शन से उन्हें मन में दोहराने की आदत पड़ जाती है।
छात्रों के दोहराना सीख जाने के बाद भी उन्हें यह याद कराने से मदद मिलती है कि कहानी सुनते समय वे कहानी को दोहराते रहें, इससे उन्हें आराम से सुनने और कहानी का मज़ा लेने में और मदद मिलेगी। छात्र भी हमें लगातार दोहराने के फायदों के बारे में बताते रहते हैं।
“दोहराना मेरे लिए सीखने का सबसे ज़रूरी हिस्सा था। इससे मुझे याद करने में मदद मिली।” - यूकी। शुरुआत में शिक्षक छात्रों को प्रोत्साहन देने के लिए अपनी आवाज़ को खुद ही फुसफुसा कर दोहरा सकते हैं और फिर वाक्यांशों के बीच में रुककर छात्रों को मन में दोहराव करने का समय दे सकते हैं।
सारांश सुनाना
कहानी सुनाने से पहले, हम छात्रों को बता देते हैं कि कहानी के अंत में उन्हें अपने सहपाठियों या जोड़ीदारों को अपने शब्दों में कहानी सुनानी पड़ेगी। इससे वे ज़्यादा ध्यान देते हैं और मन में ज़्यादा दोहराते हैं।
किसी कहानी को दो या दो से ज़्यादा हिस्सों में तोड़ने से छात्र उन छोटे हिस्सों को बेहतर ढंग से और पूरी तरह से समझ पाता है और उसके आधार पर यह कल्पना कर पाता है कि कहानी में आगे क्या होगा।
इस प्रक्रिया में छात्र एक-दूसरे को बता सकते हैं कि उन्हें क्या समझ में आया और कहां-कहां दिक्कतें आईं। जोड़ियों में या छोटे समूहों में काम करने से हर किसी को दूसरों की, उन जगहों पर मदद करने का मौका मिलता है जहां वह चूक रहे हों। यदि कोई जोड़ा ऐसा है जिसमें दोनों को ही कम समझ में आया हो तो वे दूसरों को कहानी दोहराते हुए सुनकर उनसे कुछ-कुछ चुरा भी सकते हैं। अक्की के अनुसार, “अपने जोड़ीदार को सिखाना खुद की भाषा सुधारने के लिए अच्छा है। जब मैं उसे सिखाती हूं तो मुझे अपनी समझ का अंदाज़ा लग जाता है और इस प्रकार वह मुझे सिखाता/सिखाती है।”
सारांश सुनाने से न सिर्फ अपनी समझ को जानने का मौका मिलता है, बल्कि अपने नज़रिए को विकसित करने का भी अवसर मिलता है। “पहले मुझे कहानी का अर्थ समझ में नहीं आया था, पर अपने जोड़ीदार से बात करने के बाद समझ आ गया और मैं उसके अलग-अलग अर्थ भी देख पा रही हूं।” - तोशी।
कक्षा के बाहर कहानियां दोहराना
गृहकार्य के तौर पर हम अक्सर छात्रों को कहते हैं कि वे कहानी को ‘टार्गेट’ भाषा (जो भाषा वो सीख रहे हैं) में कक्षा के बाहर अन्य लोगों को सुनाएं। अपनी भाषा में तभी अनुवाद करें जब बहुत ही ज़रूरी हो। इस गतिविधि के बाद वे हमें बताते हैं कि यह कितना महत्वपूर्ण अभ्यास है। एक ऑस्टे्रलियन छात्र ने हमारी एक कक्षा में जापानी भाषा में कहानियां दोहराने के अपने अनुभव के बारे में बताया।
“कहानी सुनाना, बातचीत और चर्चा शुरू करने का एक अच्छा तरीका है। अपनी टार्गेट भाषा में बात शुरू करने या बातचीत करने की एक दिक्कत यह है कि आप खुद को उतने अच्छे से अभिव्यक्त नहीं कर पाते जितनी आसानी से अपनी भाषा में, क्योंकि कभी तो उचित शब्द नहीं मिलते या कभी हम व्याकरण की वो संरचनाएं नहीं जानते जो कि हमारी भावनाओं और नज़रिए को व्यक्त कर सकें। इसलिए बात करने के मुद्दे सीमित हो जाते हैं। लेकिन ‘कहानी कहने’ में आपको पहले से पता रहता है कि आप क्या कहना चाहते हैं। शब्दावली और व्याकरण भी पहले से ही मालूम रहता है, इसलिए उस मुद्दे पर चर्चा करते रहना संभव होता है। इस तरह आप अपने साथी के साथ बातचीत का उच्च स्तर बनाए रख पाते हैं। सुनने वाले की अपनी बात में रुचि पैदा करने के लिए और कहानी में उसकी भागीदारी के लिए यह ज़रूरी है कि हम खास जगहों पर रुकें और उनसे पूछें कि आगे क्या हुआ होगा। यदि आपके पास सुनाने के लिए हमेशा कोई कहानी हो तो आपको बातचीत के मुद्दों की कभी कमी नहीं होगी और आप टार्गेट भाषा में बात करने के अमूल्य मौके भी नहीं गंवाएंगे।” (कैथरीन, एक ऑस्ट्रेलियाई छात्रा)।
रोज़नामचा लिखना
शिक्षक, आपस में बातचीत, सवाल-जवाब करते छात्रों का निरीक्षण करने में खुद को सीमित महसूस करते हैं। यह जानने के लिए कि वे क्या सोच रहे हैं और उनके लिए अभ्यास कितने उपयोगी रहे, हम उन्हें रोज़नामचा लिखने को कहते हैं। इस में छात्र अपने गृहकार्य और कक्षा में किए गए काम का एक कॉपी में आकलन करते हैं जैसे, इस दौरान उन्होंने कितने शब्द या मुहावरे सीखे, वे कठिन हैं या इस्तेमाल करने लायक हैं, आदि।
ये रोज़नामचे वे हमें दिखाते हैं जिससे कि हम अपने पढ़ाने के ढंग का आकलन कर सकें और कराई जा रही गतिविधियों को और सकारात्मक बना सकें। कई छात्र ऐसी कहानियों का अंत बताना चाहते हैं जो कि दो हिस्सों में सुनाई गई हों।
शिक्षक जब दुबारा उस कहानी को सुनाते हैं तो छात्रों के लिखे अन्त भी उसमें जोड़ सकते हैं। छात्र कई सवाल भी पूछते हैं और इस बात का प्रमाण भी देते हैं कि उनका व्यवहार, विचार और रवैया बदल रहा है, जिससे शिक्षकों को समझ में आता है कि कहानियों का क्या प्रभाव पड़ रहा है। छात्रों के अपनी प्रतिक्रियाओं को लिखने के दौरान जो विचार उभर कर आते हैं, वो छात्र और शिक्षक दोनों की ही समझ को एक अलग स्तर तक ले जाते हैं।
भाग 2 : सर लैंसलॉट और वो ज़रूरी सवाल
........तो सर लैंसलॉट और सर गवेन उस बुढ़िया के सामने जाकर खड़े हो गए और, “स्त्रियां क्या चाहती हैं?” सवाल के जवाब का इंतज़ार करने लगे। बुढ़िया ने कहा, “स्त्रियां चुनने की, चुनाव करने की आज़ादी चाहती हैं।” सर लैंसलॉट और सर गवेन, दोनों ही इस जवाब से कुछ चकरा गए, लेकिन उन्होंने जवाब स्वीकार कर लिया। सर गवेन और उस बुढ़िया ने कैमलॉट लौटकर शादी कर ली। सर लैंसलॉट काले सूरमा से मिलने गए। “जवाब क्या है?” उसने पूछा।
“च...च...चुनाव करने की आज़ादी?” सर लैंसलॉट ने हकलाते हुए कहा।
“ स्साला! सही है! तुम्हें कैसे पता लगा?”
“ओह, बस थोड़ा अकलमंद हूँ मैं” सर लैंसलॉट ने जवाब दिया। फिर वे वापस कैमलॉट लौट गए।
सर गवेन और उस बुढ़िया की शादी बस अभी हुई ही थी। शादी के बाद वे दोनों किले के ऊपर वाले सुहाग-कक्ष में चले गए। वह बूढ़ी औरत उचककर पलंग पर बैठ गई और सर गवेन ताज़ी हवा खाने खिड़की के पास खड़े हो गए। अचानक कमरे में एक मीठी हवा का झोंका-सा आया। गवेन ने मुड़कर देखा तो वो बुढ़िया एक सुन्दर महिला बन गई थी। उन्होंने सोचा, ‘यह क्या हो गया?’
उस महिला ने बताया कि किसी चुड़ैल ने उस पर जादू कर दिया था और उसे तोड़ने का यही तरीका था कि वह किसी शूरवीर से शादी कर ले। गवेन बहुत खुश हुए और उसकी ओर बढ़ने लगे थे कि वो बोली, “रुको, जादू पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। मैं सिर्फ आधा समय ही खूबसूरत रह सकती हूं। तुम क्या चाहते हो, मैं दिन में खूबसूरत दिखूं, या रात में? बाकी समय मैं वही बुढ़िया बनी रहूंगी।”
सर गवेन ने खूब सोचा। आखिर में वे बोले, “. . . . . ।”
नोट: छात्र यह कहानी बहुत से लोगों को सुनाने के बाद उनसे पूछते हैं कि सर गवेन ने क्या जवाब दिया होगा और उनकी जगह वे होते तो क्या चुनते।
बुलेटिन या न्यूज़लेटर बनाना
बुलेटिन या न्यूज़लेटर बनाने के लिए छात्रों के रोज़नामचे में से टिप्पणियां छांटी जाती हैं। फिर उन्हें किसी पर्चे द्वारा सबके साथ बांटा जाता है। (इसमें उनके नाम नहीं दिए जाते और जिनकी टिप्पणियां छपती हैं उनसे पहले से ही इजाज़त ले ली जाती है।) बुलेटिन या न्यूज़लेटर को फिर पूरी कक्षा को पढ़ने, सोचने और उस पर टिप्पणी करने के लिए दिया जाता है। न्यूज़लेटर के ज़रिए छात्रों का आपस में मेल-जोल व दोस्ती बढ़ते हैं और वे एक-दूसरे से सीखते भी हैं। न्यूज़लेटर मानसिक/दिमागी खेल का एक मैदान सिद्ध होता है जहां छात्रों की टिप्पणियां एक-दूसरे की सीखने की प्रक्रिया का आधार बनती हैं। ‘कहानी कहने’ पर, न्यूज़लेटर में जो टिप्पणियां होती हैं, उनसे छात्र यह देख पाते हैं कि दूसरे छात्र उस कहानी को कैसे समझते हैं और उन्हें प्रेरणा मिलती है नए तरीके से सोचने की।
सब इकट्ठा रखते हुए....
अब देखते हैं कि इन सब गतिविधियों को कैसे एक क्रम में रखा जाए जिससे कि वे एक पाठ बन पाएं और कहानी का प्रभाव और गहरा हो। नीचे शिक्षकों के लिए दस चरण सुझाए गए हैं।
कक्षा में जाने से पहले
1. कक्षा को सुनाने के लिए एक कहानी तैयार करें। कहानी को ऐसे मुकाम पर रोक दें कि सुनने वालों की जिज्ञासा बढ़े। कक्षा में सुनाने से पहले परिवार और दोस्तों को सुनाने का अभ्यास करें।
पहली कक्षा
2. यदि कुछ सामग्री आदि चाहिए तो पहले से तैयार करके लाएं। कठिन शब्दों को पहले से सिखाएं।
3. छात्रों को याद कराएं कि उन्हें मन में दोहराना है। बोर्ड पर ‘दोहराना’ शब्द लिखें।
4. कहानी को पहले मुकाम तक सुनाएं। खुद कहानी का हिस्सा बनने की कोशिश करें। दूसरों को भावनात्मक रूप से कहानी का हिस्सा बनाने के लिए सबसे ज़रूरी है कि खुद भी उसका हिस्सा बनें।
5. पहले मुकाम पर कहानी को रोककर, छात्रों को कहानी का सारांश सुनाने को कहें और उनसे पूछें कि आगे क्या हुआ होगा। बारी-बारी से सभी छात्रों से पूछें और उनके सवालों के जवाब भी दें।
6. फिर कहानी पूरी कर दें।
छात्रों का गृहकार्य
7. छात्रों को गृहकार्य के लिए कहें कि वे रोज़नामचे में कहानी पर टिप्पणी लिखें। यदि कहानी बहुत कठिन न हो तो उन्हें उसे औरों को सुनाने को भी कहें। उन्हें कहानी की एक ‘फोटो कॉपी’ भी दे दें।
शिक्षकों का गृहकार्य
8. छात्रों के ‘रोज़नामचे’ इकट्ठा करें और पढ़ें, जहां-जहां टिप्पणी देना सही लगता है, वहां दें।
9. रोज़नामचों से टिप्पणियां इकट्ठी करके बुलेटिन या न्यूज़लेटर बनाएं।
बुलेटिन/न्यूज़लेटर का उदाहरण .... मेरे परिवार को लगा कि यह कहानी अच्छी थी। मेरी बहन को कहानियां सुनना अच्छा लगा, इसलिए मुझे भी अच्छा लगा और कहानियां सुनाने में मज़ा भी आया। .... कहानी लम्बी थी। मैं कहानी का अंत जानना चाहता था। मैं दिन में सुन्दर दिखना पसंद करुंगा और रात में बदसूरत। पर मुझे मालूम नहीं, यह उस बूढ़ी औरत के शब्द, ‘चुनाव का अधिकार’ से कैसे संबंध रखता है। औरतों के लिए किस तरह का चुनाव महत्व रखता है, मुझे इसका बिल्कुल अंदाज़ा नहीं है। मैं जानना चाहता हूं। .... वैसे, तुम कहानी अच्छी सुनाती हो। मुझे तुम्हारे हाव-भाव और नकल की हुई आवाज़ें बहुत अच्छी लगती हैं। इससे कहानी और रोचक हो जाती है। जब मैंने तुम्हारी कहानी सुनी तो मुझे लगा जैसे मैं फिर बच्चा बन गया हूं। मैं इस कहानी के शेष भाग का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हूं! |
10. रोज़नामचे और बुलेटिन छात्रों को लौटा दें। छात्रों को बुलाकर उन्हें अपने जोड़ीदारों के साथ रोज़नामचों पर बातचीत करने के लिए कहें और बुलेटिन को कक्षा में इकट्ठा पढ़ने को या गृहकार्य के लिए पढ़ने को कहें।
दूसरी कक्षा
11. एक नई कहानी शुरू करके उसके साथ भी इसी प्रकार की गतिविधियां करें।
गौर करें कि ऊपर दिए गए चरणों का एक क्रम बनता है - कहानी सुनना, उसे मन में दोहराना, उसे संक्षेप में सुनाना, उसके बारे में लिखना और गृहकार्य के रूप में, उसे फिर दूसरों को सुनाना। जब छात्र एक-दूसरे का रोज़नामचा और कक्षा का न्यूज़लेटर पढ़ते हैं तो सामग्री का और भी अच्छे से इस्तेमाल होता है। गतिविधियों के इस बहाव से सामग्री का सार्थक रूप से इस्तेमाल होता है और अलग-अलग साथी के साथ सीखने की, समझने की प्रक्रिया और गहरी हो जाती है।
भाग 3 : सर लैंसलॉट और वो ज़रूरी सवाल
आगे की कहानी: ......सर गवेन को बहुत देर तक समझ न आया कि वे क्या कहें। दिन और रात के बीच चुनाव करना मुश्किल था। आखिर वे बोले, “मुझे नहीं मालूम, तुम फैसला करो।” और अचानक ज़ोर की बिजली कड़की और उस औरत ने सर गवेन से कहा, “बिल्कुल ठीक, तुमने कर दिखाया! तुमने एक औरत को वह दिया जो वो सबसे ज़्यादा चाहती है - चुनाव करने का हक। अब मुझ पर से पूरा श्राप उतर गया है। और अब जब तक मैं जीवित हूं, मैं दिन-रात, दोनों समय सुन्दर दिख सकती हूं।”
भाग 4 : सर लैंसलॉट और वो ज़रूरी सवाल
नोट: यह अंत वैकल्पिक है - यदि उच्च कक्षाओं या ज़्यादा सीखे हुए बच्चों के साथ कहानी जारी रखनी हो तो।
कुछ लोग कहते हैं कि यही इस कहानी का अंत है और सर गवेन और वह महिला खुशी-खुशी रहने लगे। लेकिन यह भी कहा जाता है कि सर गवेन को सोचने पर अहसास हुआ कि जब उस औरत ने उनसे शादी की तो उसके पास कोई विकल्प नहीं था। उनका भी यह मत बना कि फैसला करने का हक ज़रूरी है, औरतों के लिए भी और आदमियों के लिए भी। तो सर गवेन ने उससे तलाक लेने का फैसला किया और उसे खुद से मिलने की छूट दी, यदि वो ऐसा करना चाहे तो।
गतिविधियां, कहानी को मात्र समझने से लेकर, कहानी पर पकड़ जमाने और उसे दोहराने के लिए इस्तेमाल की गई शब्दावली पर स्वामित्व पाने तक बढ़ती हैं। कहानी सुनाने की प्रक्रिया के अंत तक आते-आते, छात्र उस पर काफी परिपक्वता से टिप्पणी दे पाते हैं। इस प्रक्रिया की सार्थक पुनरावृत्ति से हमारे छात्र लगातार हमारी कहानियों की प्रतीक्षा करते हैं और हमें कहानियों के प्रति उनकी प्रतिक्रियाओं को लेकर और भी जिज्ञासा बनी रहती है।
यह अंत सुनने के बाद एक छात्र ने उसके गहरे प्रभाव के बारे में अपने रोज़नामचे में लिखा:
“मैंने अपने माता-पिता को यह अंत सुनाया। वे समझ गए और उन्होंने कहा कि हमारे लिए अपनी ज़िंदगी खुद चुनना ज़रूरी है... तुम अपने जीने का तरीका खुद चुन सकते हो, इसलिए तुम्हें तय करना चाहिए तुम क्या करना चाहते हो। मुझे लगा यह कहानी बहुत बढ़िया है। मैं अपना रास्ता, अपनी पसंद, अपना रंग खुद ढूंढना चाहता हूं। मैं वो करना चाहता हूं जो सिर्फ मैं कर सकता हूं।”
निष्कर्ष
कहानी सुनाने से हमारा वर्णनात्मक दिमाग कक्षा में भाषा शिक्षण के कार्य में जुट जाता है। मन में दोहराने, सारांश बताने, कक्षा के बाहर कहानियां दोहराने, रोज़नामचा लिखने और ‘न्यूज़लेटरिंग’ जैसी गतिविधियों से छात्रों में भाषा की समझ, उनके अर्थ का अंदाज़ा लगा पाने की क्षमता के साथ-साथ एक समुदाय का हिस्सा होने की भावना भी बढ़ती है। ये गतिविधियां, सीखने वालों को ऐेसे कई मौके देती हैं जिनमें वे कहानियों पर गहराई से प्रतिक्रिया ज़ाहिर करते हैं और अपनी आस्थाओं और व्यवहार में भी अंतर महसूस करते हैं। इससे कक्षा के अंदर और बाहर दोनों ही जगह उनकी भागीदारी बढ़ती है।
शिक्षकों के लिए कहानियों के अनगिनत विकल्प हैं। उदाहरण के लिए, कहानियां व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित हो सकती हैं या फिर पारंपरिक परिकथाएं हो सकती हैं या फिर अन्य किताबों से ली जा सकती हैं। इन्टरनेट पर भी अच्छी कहानियां ढूंढी जा सकती हैं। हम अक्सर अपने सहकर्मियों की कहानियां इस्तेमाल कर लेते हैं और कुछ तो हमने खुद ही खास मकसद से बनाई हैं। कहानी का स्रोेत कोई भी हो, यह ज़रूरी हैं कि उसे सुनाने का अच्छा अभ्यास होना चाहिए और सुनाने वाले को उसे पूरे मन से सुनाना चाहिए।
ब्रेड डेकन एवं टिम मर्फी: जापान के नानज़ान विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं।
अनुवाद- शिवानी बजाज: भाषा विज्ञान की पढ़ाई करने के बाद एकलव्य के प्राथमिक शिक्षण कार्यक्रम में कई वर्ष काम किया। अब दिल्ली में रहते हुए शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर कार्य करती हैं।
यह लेख ‘इंग्लिश टीचिंग फोरम’ पत्रिका के अक्टूबर 2001 अंक से लिया गया है।