पी. के. श्रीनिवासन [Hindi PDF, 204kB]
गणित जैसे ‘खौफनाक’ विषय को बच्चों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए विख्यात श्री पी. के. श्रीनिवासन का हाल ही में 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया। गणित को रुचिकर बनाने के लिए आपने तमिलनाडु में बेशुमार गणित क्लब्स की स्थापना की थी। 1956 में आपने भारतीय गणित शिक्षक संघ की स्थापना की और अध्यापन कार्य करते हुए गणित ओलंपियाड शुरू किया। आपने बच्चों के लिए गणित की कई पुस्तकें लिखी हैं। ऐसी ही एक पुस्तक में से यह लेख लिया गया है।
में कक्षा 7 में हूं। मुझे कहानियां पढ़ना और खेलना अच्छा लगता है। मेरे चाचा गणित के प्रोफेसर हैं। वे मुझे कहते रहते हैं, “तुम भी कुछ सरल-सरल खोजें कर सकते हो और गणित का मज़ा ले सकते हो। ज़रूरत बस इतनी है कि तुम्हें अलग-अलग तरह की प्राकृतिक संख्याएं पता हों और तुम उन्हें बेहिचक पहचान पाओ और उनके साथ खेल पाओ।’’
“तुम्हें तो बस इतना करना है कि जोड़, बाकी, गुणा और भाग के बुनियादी हुनर का उपयोग करो। ये सब तो तुमने बहुत छोटी कक्षा में ही सीख लिए होंगे।’’ पहले तो मैंने उनकी इन बातों पर ध्यान नहीं दिया।
एक दिन चाचा को मिडिल स्कूल गणित क्लब के सदस्यों से बातचीत करने को आमंत्रित किया गया था। इस गणित क्लब का नाम मशहूर गणितज्ञ ऑइलर के नाम पर था। मैं भी उनके साथ चला गया। मैं देखना चाहता था कि वे मेरे जैसे बच्चों से क्या बातें करते हैं और बच्चे उस पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं।
वहां उनकी चर्चा का विषय था - नन्हें गणितज्ञ बनने का मज़ा।
यह रहा उनका भाषण - आजकल बड़ी-बड़ी खोजें हो रही हैं। दुनिया भर में जीवन के हर क्षेत्र में खोजों की बहुत मांग है। तुम अचानक खोजी नहीं बन सकते। बचपन से ही खोज के लिए तैयारी करना चाहिए।
खोज करने का एक बढ़िया क्षेत्र संख्याएं हैं क्योंकि इसमें कोई बड़ा खर्चा नहीं होता और फल भी जल्दी मिलता है। तुम सोचोगे कि ऐसा कैसे हो सकता है। एक बार किसी ने जोड़, बाकी, गुणा, भाग के बुनियादी हुनर हासिल कर लिए, तो वह प्राकृतिक संख्याओं के व्यवहार में कई सुंदर-सुंदर चीज़ें खोज सकता है।
तुम सबको तो जोड़, बाकी, गुणा और भाग आता ही है। तो तुम ऐसी खोज के लिए पूरी तरह तैयार हो। खोजने की जितनी कोशिश करोगे, उतने ही खोजी बनते जाओगे।
पैटर्न खोजना तो तुम आसानी से कर सकते हो। संख्याओं के आश्चर्यलोक में खोज करने का यही सबसे प्रमुख तरीका है। तुम चाहो तो इसे संख्याओं का अजब सागर भी कह सकते हो। पैटर्न खोजते-खोजते तुम संख्याओं के आपसी संबंध देखने लगोगे और संख्याओं के आपसी संबंधों के रास्ते तुम इन संख्याओं की कुछ सुंदर खूबियां खोज सकोगे और उनके कुछ दिलचस्प गुण बता सकोगे।
खैर, मैं तुम्हारे लिए कुछ चार्ट लाया हूं। यह देखो।
तुम सोच रहे होगे कि इस चार्ट में प्राकृतिक संख्याओं के क्रम को दोहराया क्यों गया है। यह सिर्फ इसलिए किया गया है ताकि तुम तीन-तीन लगातार प्राकृतिक संख्याओं की तिकड़ियों को देख सको।
एक-एक तिकड़ी को देखते हैं। हरेक तिकड़ी में संख्याओं का जोड़ और गुणनफल निकालो। जो भी उत्तर आए उसका अध्ययन करो या उसकी तुलना अन्य तिकड़ियों के जोड़ और गुणनफल से करो और कोई पैटर्न खोजने की कोशिश करो। कभी-कभी पैटर्न ऊपर-ऊपर दिखेगा तो कभी-कभी गहरा होगा।
जो बात हर तिकड़ी पर लागू नहीं होती, वह एक अजूबा होगी। शुरुआत में ऐसे अजूबों पर अपना समय बरबाद मत करो। उन गुणों को देखो जो सारे मामलों में सही बैठता है।
उदाहरण के लिए, तीन-तीन लगातार संख्याओं की तिकड़ियां लेते हैं। जैसे 1, 2, और 3। 1 + 3 = 2 x 2 होता है। यह सही है। मगर 2 + 4 = 3 x 3 नहीं होता। इसलिए यह कहना ठीक नहीं होगा कि लगातार संख्याओं की सभी तिकड़ियों में दोनों सिरों की संख्याओं का जोड़ बीच की संख्या के वर्ग के बराबर होता है। यानी यह एक अजूबा है और लगातार संख्याओं की तिकड़ियों का सामान्य गुण नहीं है।
दूसरी ओर, यह उदाहरण देखो:
1 + 3 = 2 x 2
2 + 4 = 3 x 2
3 + 5 = 4 x 2 वगैरह।
तुम इसे आगे बढ़ाकर देख सकते हो कि लगातार प्राकृतिक संख्याओं की तिकड़ियों में सिरों वाली संख्याओं का योग बीच वाली संख्या के दुगने के बराबर होता है। तो यह सामान्य गुण का एक उदाहरण है।
मामला कुछ ऐसा है। मान लो तुम्हारे हेड मास्टर साहब तुम्हें यह प्रमाण पत्र दें कि तुम कभी-कभी बुद्धिमान होते हो, तो क्या तुम्हें अच्छा लगेगा? क्या तुम ऐसा प्रमाण पत्र नहीं चाहोगे जिसमें बस इतना लिखा हो कि तुम बुद्धिमान हो। इसका मतलब है कि तुम हमेशा बुद्धिमान हो।
इसलिए पहले उन गुणों की तलाश करो जो संख्याओं में छिपे हुए हैं। यदि कोई अजूबा दिखे तो लिखकर रख लो और अभी उसे भूल जाओ। इनको उसी तरह के अजूबे के रूप में देख सकते हो जैसे छ: उंगली वाले किसी व्यक्ति को देखते हो।
यदि कोई पैटर्न कई मामलों में नज़र आए तो इसको किसी गुण का सुराग मान सकते हो। पर याद रखना कि यह केवल अंदाज़ है। गणितज्ञों की भाषा में इसे अटकल कहते हैं। जब तक सिद्ध न हो जाए, हम इसे सही नहीं कह सकते। कोई गुण इस आधार पर सिद्ध नहीं होता कि कितने मामलों या उदाहरणों में वह सही बैठता है। सिद्ध करना कहीं ज़्यादा रोमांचकारी होता है। उसे बाद में कर सकते हो। शुरुआत तो हम अटकलों से करेंगे। हमें एक ही बात का ध्यान रखना होगा कि हम जो भी अटकल लगाएं वह संभव होनी चाहिए और कई उदाहरणों में सही बात पर आधारित होनी चाहिए।
चलो, अब देखते हैं कि तुममें से कितनों में नन्हें गणितज्ञ बनने की संभावना है। अपने सामने रखे चार्ट का उपयोग करना है। तुम यह तो देख ही चुके हो कि लगातार प्राकृतिक संख्याओं की तिकड़ियों में सिरों की संख्याओं का योग बीच वाली संख्या के दुगने के बराबर होता है। ऐसी और चीज़ों की तलाश करो।
श्रोतागण लिखने व फुसफुसाने लगे। कुछ हाथ ऊपर उठे। मैंने भी हरेक तिकड़ी की संख्याओं का योग निकालकर एक पैटर्न खोज लिया था।
1 + 2 + 3 = 6
2 + 3 + 4 = 9
3 + 4 + 5 = 12
4 + 5 + 6 = 15 वगैरह।
मैंने यह पैटर्न एक कागज़ पर लिख दिया और साथ में यह लिखा कि तीन लगातार संख्याओं का योग तीन का गुणज होता है। चाचा ने इसे देखा और स्वीकृति में मुस्कराए। मुझे गर्व हुआ।
जिन बच्चों ने हाथ उठाए थे, उनमें से कुछ को उन्होंने बुलाया और अपनी खोज प्रस्तुत करने को कहा। मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि कुछ और बच्चों ने भी मुझ जैसी खोज की थी। कुछ अन्य ने तीन लगातार संख्याओं का गुणनफल निकाला था और यह लिखा था:
1 x 2 x 3 = 6
2 x 3 x 4 = 24
3 x 4 x 5 = 60
4 x 5 x 6 = 120 वगैरह।
खोजियों को कहा गया कि वे खोजे गए गुणों को शब्दों में बताएं। उन्होंने इस तरह के जवाब दिए।
तीन लगातार संख्याओं का गुणनफल छह का गुणज होता है। तीन लगातार प्राकृतिक संख्याओं के गुणनफल का एक गुणनखंड छह होता है। तीन लगातार संख्याओं का गुणा करके गुणनफल में छह का भाग दें तो पूरा-पूरा भाग चला जाता है, वगैरह। इन सबका मतलब लगभग एक ही है।
बच्चों की जोशीली प्रतिक्रिया को देखकर मेरे चाचा बहुत खुश थे। जब वे बच्चों की खोज की तारीफ कर रहे थे और उन्हें बधाइयां दे रहे थे तब बाईं ओर से तीन हाथ और उठे हुए नज़र आए। जब उन्होंने उस ओर देखा तो तीन छात्रों ने खड़े होकर कहा कि उन्होंने एक और गुण खोजा है जो ज़्यादा दिलचस्प है। उन्हें सामने आकर ब्लैक बोर्ड पर एक साथ अपनी-अपनी खोज लिखने को कहा गया। उन्होंने जो लिखा वह इस प्रकार था:
1 x 3 = 2 x 2 - 1
2 x 4 = 3 x 3 - 1
3 x 5 = 4 x 4 - 1
4 x 6 = 5 x 5 - 1 वगैरह
1 x 3 + 1 = 2 x 2
2 x 4 + 1 = 3 x 3
3 x 5 + 1 = 4 x 4
4 x 6 + 1 = 5 x 5 वगैरह।
1 x 3 एक कम है 2 x 2 से
2 x 4 एक कम है 3 x 3 से
3 x 5 एक कम है 4 x 4 से
4 x 6 एक कम है 5 x 5 से।
उनमें से एक से कहा गया कि इस गुण को शब्दों में बताए। उसने कहा:
“जब आप तीन लगातार संख्याओं में से पहली और आखिरी का गुणा करते हैं, तो आपका उत्तर बीच वाली संख्या के वर्ग से एक कम होता है।”
मुझे उनसे थोड़ी जलन हो रही थी क्योंकि मैं वह गुण नहीं खोज पाया था।
चाचा ने उन बच्चों की पीठ थपथपाई और श्रोताओं से पूछा, “जो दो गुण खोजे गए हैं, उनमें से कौन-सा गहरा गुण है?’’ लगभग सभी बोल उठे, “दूसरा वाला, दूसरा वाला।” चाचा ने इस पर कहा, “खोजा गया गुण जितना गहरा होगा, उसे खोजने का आनंद उतना ही ज़्यादा होगा।” इस तरह से उन्होंने खोज का माहौल तैयार कर दिया।
फिर चाचा ने कहा कि और ज़्यादा खोजें करने के लिए ज़रूरी है कि वे अलग-अलग किस्म की प्राकृतिक संख्याएं जानते हों और उन्हें पहचान पाएं। उन्होंने छात्रों से सम और विषम संख्याओं, गुणनखंडों और गुणजों, रूढ़ और मिश्र संख्याओं, वर्ग और घन संख्याओं के उदाहरण देने को कहा। उन्होंने इनकी परिभाषा समझाई और पता करने का तरीका बताया। उन्होंने पूर्ववर्ती, उत्तरवर्ती (परिवर्ती), संगत जैसे शब्द समझाए ताकि बातचीत में आसानी रहे। उन्होंने छात्रों से यह भी कहा कि उन्हें हर प्रकार की 100 तक की और घन के मामले में 1000 तक की संख्याएं बता पाना चाहिए।
जब वे इन चीज़ों की बात कर रहे थे तभी एक हाथ उठ गया। चाचा ने अपनी बात बीच में रोककर उस बच्चे से पूछा कि क्या उसने कोई और गहरा गुण खोजा है। इस पर छात्र ने कहा कि उसने एक अजूबा खोजा है।
1 + 2 + 3 = 1 x 2 x 3
मगर 2 + 3 + 4 ≠ 2 x 3 x 4
उसे बधाई देने के बाद चाचा ने बताया कि कोई अजूबा यह खोज करने का आधार बन सकता है कि संख्याओं के किन अन्य समूहों में वह अजूबा गुण पाया जाता है। बच्चे ने कहा कि ऐसा कोई और समूह नहीं होगा। चाचा ने उससे कहा कि वह यह शर्त हटा दे कि समूह में तीन ही संख्याएं होना चाहिए, या वे लगातार संख्याएं ही होनी चाहिए और देखे कि क्या फिर उसे ऐसी संख्याएं मिलती हैं जिनमें यह अजूबा गुण है कि उनके उचित (proper) गुणनखंडों का जोड़ उस संख्या के बराबर होता है। बच्चे ने कहा कि यह पता करने में तो बहुत समय लगेगा, इसलिए उसकी इच्छा है कि व्याख्याता ही बता दें। चाचा ने उससे 1, 2, 4, 7 और 14 पर विचार करने को कहा। बच्चे ने हिसाब-किताब करके बताया कि इस संख्या में भी वह अजूबा गुण है। उसने कहा कि वह खुद और ऐसी संख्याएं ढूंढेगा।
चाचा ने उसके रवैये की प्रशंसा की और अपनी बात को आगे बढ़ाया। “यदि तुम ऐसी और संख्याएं खोज लेते हो, तो यह अजूबा उन संख्याओं का गुण हो जाएगा।” वाह, क्या बात है। बाकी लोगों की तरह मुझे भी उनकी यह बात बहुत भा गई। एक बच्चे ने पूछा, “ऐसी और संख्याएं कौन-सी हैं?” चाचा ने समझाया:
“1 + 2 + 3 = 6,
1 + 2 + 4 + 7 + 14 = 28
ध्यान दो कि 1, 2, 3 वास्तव में 6 के गुणनखंड, सही कहें तो, उचित गुणनखंड हैं। इसी प्रकार से 1, 2, 4, 7, 14 भी 28 के उचित गुणनखंड हैं। 6 और 28 जैसी संख्याओं का यह गुण है कि उनके उचित गुणनखंडों का योग स्वयं उस संख्या के बराबर होता है।” एक बच्चे ने पूछा कि
क्या ऐसी संख्याओं का कोई नाम है।
“ज़रूर है। इन्हें उत्कृष्ट/आदर्श (पर्फेक्ट) संख्याएं कहते हैं”, चाचाजी ने समझाते हुए बताया।
उन्होंने अपनी चर्चा का समापन करते हुए उन सबको बधाई दी जिन्होंने वहां बैठे-बैठे खोजें की थीं। साथ ही उन्होंने सबको इस बात के लिए बधाई दी कि उन्होंने इतनी रुचि और उत्साह दिखाया। उन्होंने कहा, “थोड़ा-सा धैर्य हो और रुचि बनी रहे, तो तुम सब नन्हें गणितज्ञ बन सकते हो।” उन्होंने क्लब को चार्ट का एक सेट भी भेंट किया।
बैठक तो पूरी हुई। घर के रास्ते में मैंने चाचा से कहा कि मुझे उन लोगों से ईर्ष्या हो रही है जिन्होंने गहरे परिणाम प्राप्त किए थे। मैंने उनसे कहा कि मैं हर हफ्ते उनके पास आऊंगा और उनके सामने बैठकर खोज करूंगा। यह सुनकर चाचा बहुत खुश हुए और कहने लगे, “स्वागत है तुम्हारा। मैं थोड़ा समय तुम्हारे साथ बिताने के लिए ज़रूर रखूंगा।”
इस तरह शुरू हुई थी संख्याओं के देश में मेरी यात्रा। चाचा के साथ हुई बातचीत को मैं अक्सर शब्दश: लिखूंगा ताकि तुम मेरे साथ चल सको। क्या तुम मेरे हमसफर बनोगे?
हिन्दी अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा प्रकाशित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि है।
सभी चित्र: उदय खरे: भोपाल में रहते हैं, शौकिया चित्रकार हैं।
यह लेख पी. के. श्रीनिवासन की अलारस्री प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक, रोम्पिंग इन नंबरलैंड (1988), से लिया गया है।
पी. के. श्रीनिवासन: (1924-2005) रामानुजन संग्रहालय में संग्रहालयाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए गणित शिक्षण केन्द्र का संचालन किया। 1956 में एसोसिएशन ऑफ मेथेमेटिक्स टीचर्स ऑफ इंडिया की स्थापना की। उन्हें 1991 में नेशनल साइंस अवार्ड दिया गया। उन्होंने 1983 से ‘मेथेमेटिक्स टीचर’ पत्रिका का लगातार संपादन भी किया।