समीक्षा - तेजी ग्रोवर                                                                                                                            [Hindi PDF, 125 kB]

पक्की दोस्ती एक ऐसे पेड़ की कहानी है जो एक खेत में बिल्कुल अकेला खड़ा है। उसके मन में निरन्तर कहानियां उमड़ती रहती हैं। वह पेड़ मित्र या श्रोता के अभाव में उदासी और अकेलापन महसूस करता है। फिर कहीं से एक चिड़िया उड़कर आ जाती है और रात भर में पेड़ और चिड़िया के बीच कहानी कहने-सुनने का एक गहरा संबंध पैदा हो जाता है।
चिड़िया के चले जाने के बाद प्रतीक्षा, उदासी और फिर स्मृति के प्रसंग धीमे-धीमे उभरने लगते हैं। और कुछ ही शब्दों में लिखी गई यह कहानी बस इतनी-सी बात सांकेतिक रूप से कहकर, शेष पढ़ने वाले के लिए छोड़ देती है।

सबसे पहले इस किताब को हम उन सभी पुस्तकों से अलग कर लेते हैं जो बाल-साहित्य के नाम पर उत्पादित चमकीली, भड़कीली ढेरियों में हमें दिखाई देती हैं, और जिनकी भरमार देखकर अंग्रेज़ी लेखक जॉर्ज ऑरवेल का दिल बैठ जाया करता था। एक साहित्य प्रेमी वयस्क के लिए यह किताब लोक-कथाओं में अभी तक संचित सामूहिक स्मृति को एकदम स्पर्श कर लेती है। साथ ही उसे ऐसी कहानियों की स्मृति भी हो आती है जो आधुनिक साहित्य में लोक सम्पदा से उत्प्रेरित कृतियां हैं - जिनमें ऑस्कर वाइल्ड की कई रचनाएं शामिल हैं। इस कहानी से कुछ-कुछ मेल खाती ऑस्कर वाइल्ड की एक अद्भुत कहानी है - ‘द हैपी पिं्रस’। इस कहानी में एक सहृदय राजकुमार की मूर्ति और एक संवेदनशील चिड़िया के बीच गहरी मैत्री हो जाती है।
भारत के अलग-अलग प्रांतों में एक-दूसरे से मेल खाती हुई कहानियों में पेड़ के साथ किसी अन्य प्राणी का भावपूर्ण संबंध आपको कई जगह मिल जाएगा। इसके साथ-साथ एक ऐसा पात्र भी खूब जगह मिल जाएगा जिसका हृदय कहानियों से लबरेज़ है और जिसके लिए कहानी सुनाना या सुनना किसी गहरे संबंध का आधार होता है। यह प्राणी मनुष्य भी हो सकता है या मनुष्येत्तर कोई अन्य प्राणी जो मनुष्य के मन में कथा कहने और सुनने की उत्कट इच्छा को संबोधित करता है।

सामूहिक स्मृति केवल वयस्कों की ही बपौती नहीं है। बच्चों को कहानी सुनाने का जिन्हें बहुत गहरा अनुभव है, वे इस बात की पुष्टि ज़रूर कर पाएंगे। आखिर मनुष्य छुटपन से ही कहानी के लिए एक अदम्य और तीव्र इच्छा क्यों व्यक्त करता है? लय-तालबद्ध कविता बच्चे के मन को क्यों पकड़ लेती है? और जिन कहानियों में लोक-कथाओं के दोहराव की शैली के तत्व हैं, वे बच्चों को इतना आश्वस्त क्यों करती हैं। क्या ऐसा नहीं है कि इन कहानियों का मर्म बच्चों और बड़ों में साझा है? और क्या बाल-साहित्य का एक अलग विधा की तरह विकसित होना कुछ हद तक इस बात का सूचक नहीं है कि यह साझेदारी कुछ हद तक अब टूट-फूट गई है?

ऐसे में ‘पक्की दोस्ती’ जैसी कहानी बालक और वयस्क के बिखरते हुए भाव-जगत में स्मृति का एक ऐसा बीज बो देती है जो निपट अकेलेपन में भी दुख और सुख की सम्पूर्ण गरिमा को समोए रहता है। इस कहानी में एक पेड़ है जो अकेला रह गया है। और उसके मन में कहानियां उमड़ रही हैं। ये कहानियां एक निपट अकेले प्राणी के मन में भला कैसे आ जाती हैं? अकेला छूटा हुआ कोई बालक या वयस्क अपने एकान्त का क्या करता है? सान्निध्य का अर्थ क्या है, साथ का, प्रेम का? जब वह नहीं होता तो स्मृति और कला कैसे उस शून्य को भरते हैं। इस कहानी में मनुष्य के सुख-दुख की एक ऐसी छवि है जिससे बच्चों का साक्षात्कार बड़ी सुरुचि और संवेदन से कराने की कोशिश लेखक ने की है। इसमें कोई शक नहीं है कि स्वप्न व स्मृति और प्रेम व विरह बच्चों और बड़ों की साझी भाव-भूमि में रहते हैं, इसलिए यह किताब सबके पढ़ने लायक है। ऐसी बाल-पुस्तकें भी ज़रूर हो सकती हैं जो सिर्फ वयस्कों को अच्छी लगती हैं, जिन्हें पढ़कर वयस्क यह सोचते हैं कि वे बच्चों को अच्छी लगनी चाहिएं। इनमें से अधिकांश किताबें कोई ऐसा संदेश लिए रहती हैं जो वयस्क, बच्चों को देना चाहते हैं और ये संदेश आमतौर पर उन्हीं आशंकाओं से उपजते हैं जो वयस्कों को आधुनिक जीवन में घेरकर बैठी रहती हैं। सद्भावना, सदाशयता, सच इत्यादि जैसी धारणाओं से लदी इन कहानियों में बच्चों के लायक कुछ होता भी है या नहीं, यह देखने और समझने की बात है। बच्चे क्या इनका बोझ सह भी सकते हैं या नहीं, यह भी वयस्कों के लिए एक अहम सवाल है। अगर हम बाल-साहित्य की एक अन्य कृति ‘प्यासी मैना’ को देखें, जिसमें एक सहृदय बच्चा कहानी के अन्त में पक्षियों के लिए बगीचे में पानी रख देता है, तो यह एक सफल रचना इसलिए है क्योंकि मैना और अन्य पक्षियों की पानी की खोज सुन्दर चित्रों और कहानी की शैली से एक गहरा अनुभव पैदा करती है। और अगर इसमें ‘संदेश’ है भी, तो संदेश की तरह ही वह मीठा लगता है, कटु नहीं।

‘पक्की दोस्ती’ बाल साहित्य में जटिल और सरल, दोनों तरह के मनोभावों को रसपूर्ण ढंग से सम्बोधित करती है। यह शायद उन अनोखी और दुर्लभ पुस्तकों में से एक है जो आपके मन के एक प्रश्नाकूल और दार्शनिक कोने को स्पर्शित करती है। कुछ है जो अबूझ रह जाता है और इस तरह यह पुस्तक अच्छे साहित्य की तरह ‘उपभोग’ की वस्तु नहीं है। इसमें ऐसा बहुत कुछ है जो बच्चों और बड़ों को कई प्रसंगों में याद आएगा, भले ही वे पहली बार इस पुस्तक के मर्म तक न पहुंच पाएं।

और जहां तक चित्रों का सवाल है, तो यह कहना पड़ेगा कि वे कहानी का चित्रण भर नहीं करते। वे एक कलाकार के चित्र हैं जो रंगों में छिपे अर्थों को खूब अच्छे से समझता है, और शायद इसीलिए ये चित्र कहानी के छिपे हुए अर्थों को विस्तार देते हैं, उन्हें खोलकर नहीं रख देते। शैली यथार्थवादी नहीं है, बल्कि ऐसा लगता है जैसे कि एक स्वप्न को उसकी पूरी रहस्यात्मकता में चित्रित करने की कोशिश की जा रही हो। दरअसल बहुत कम शब्दों में लिखी गई यह कहानी इन चित्रों के साथ मिलकर ही एक समग्र कलाकृति के रूप में हमारे सामने आती है, अलग से नहीं।

इस किताब को पढ़कर यह लगता है कि कभी-कभी वयस्कों को भी सुन्दर और सचित्र किताबें पढ़ने को मिल जाना चाहिए, भले ही वे बच्चों के लिए लिखी गई हों।


तेजी ग्रोवर: हिन्दी कवि, कथाकार एवं अनुवादक। बाल-साहित्य एवं शिक्षा में गहरी रुचि। पिछले कुछ वर्षों से चित्रकला भी कर रही हैं।
सभी चित्र: पक्की दोस्ती किताब से साभार। चित्रकार: प्रोनावेश माइती।