ग्रेफाइट को पिघलाने की समस्या! [Hindi PDF, 146 kB]
कुछ दिनों पहले टोंककला, ज़िला देवास, म.प्र. के दसवीं कक्षा के कुछ विद्यार्थियों ने एक सवाल पूछा था - हमारी पाठ्य पुस्तक में लिखा है कि ग्रेफाइट का गलनांक सबसे ज़्यादा होता है इसलिए ग्रेफाइट की क्रुसिबल में अन्य पदार्थों को पिघलाया जाता है। हमारा सवाल है कि तो फिर ग्रेफाइट को किसमें पिघलाया जाता है?
इस जवाब को सुशील जोशी ने तैयार किया है।
जवाब: यह एक पेचीदा समस्या है क्योंकि ग्रेफाइट का गलनांक बहुत अधिक है - 4000 ख़् से अधिक। तो सवाल यह उठा है कि इसे किस चीज़ में रखकर पिघलाएंगे। मैंने जब इस समस्या के बारे में पढ़ना शु डिग्री किया तो बहुत मज़ा आया। मज़ा आने के दो कारण रहे। एक तो यह कि ग्रेफाइट को पिघलाने की समस्या सिर्फ वैज्ञानिकों का सिरदर्द नहीं है। बनावटी हीरे बनाने में इस प्रक्रिया की समझ का बहुत महत्व है। लगभग पिछले 40 सालों से लोग भिड़े हुए हैं। मज़े की दूसरी बात यह थी कि इस समस्या के समाधान काफी रचनात्मक हैं। मुझे भी कई नई बातें पता चलीं और सोचता हूं कि आपको भी काफी मज़ा आएगा।
सबसे पहले तो यह बताना ज़रूरी है कि ग्रेफाइट का गलनांक दो तरह से निकाला गया है। प्रयोगों के द्वारा और सैद्धांतिक रूप से। सवाल शायद प्रयोग द्वारा ग्रेफाइट की दाल गलाने का है, इसलिए सैद्धांतिक विधियों को फिलहाल छोड़ देते हैं। दूसरी बात यह बताना ज़रूरी है कि पिछले 40 सालों में ग्रेफाइट के जो गलनांक विभिन्न वैज्ञानिकों ने पता किए हैं, उनमें बहुत विविधता है। इसके कारण भी आगे आपको स्पष्ट हो जाएंगे।
ग्रेफाइट कार्बन का एक क्रिस्टली अपररूप है। कार्बन का दूसरा क्रिस्टली अपररूप हीरा है। कार्बन का एक अन्य रूप काजल है, जो गैर-क्रिस्टली है। हीरे व ग्रेफाइट दोनों में कार्बन परमाणुओं के बीच सहबंध यानी कोवेलेंट बंधन होते हैं। इनको पिघलाने से पहले ये बंधन तोड़ना ज़रूरी होता है, जिसमें काफी ऊर्जा लगती है और इसीलिए इनके गलनांक बहुत अधिक होते हैं। वैसे देखा जाए तो ग्रेफाइट हीरे से ज़्यादा स्थिर अपररूप है। मगर एक को दूसरे में बदलने के लिए इतनी अधिक ऊर्जा लगती है कि ये अपररूप (Allotrope) एक-दूसरे में साधारण परिस्थिति में नहीं बदलते। तरल अवस्था से होकर ही यह बदलाव संभव होता है। अत: क्रिस्टली कार्बन को पिघलाने का व्यावसायिक महत्व है।
अब आता हूं मूल सवाल पर। दरअसल ग्रेफाइट (या हीरे) को पिघलाने का सबसे सरल (!) तरीका यह है कि उसे ग्रेफाइट में ही पिघलाया जाए। यानी काफी मात्रा में ग्रेफाइट लें और उसमें से थोड़ा सा पिघला लें और उसका अध्ययन कर लें। जैसे कार्बन चाप (आर्क) के सिरे पर (अक्रिय वातावरण में) ग्रेफाइट को पिघलाकर उसका अध्ययन किया गया है। मगर ग्रेफाइट की प्रवृत्ति उर्ध्वपातन की होती है - ठोस से सीधे वाष्प में बदल जाता है यह। दबाव को बदलकर इसे पिघलाया जा सकता है। मगर कार्बन आर्क इतना उपयोगी साबित नहीं हो पाया। उसकी बजाय ग्रेफाइट की थोड़ी-सी मात्रा लेकर उसके एक छोटे-से हिस्से पर अत्यंत ऊच्च ऊर्जा का लेज़र, बहुत छोटी अवधि के लिए फोकस करके ग्रेफाइट को पिघलाने के प्रयोग ज़्यादा सफल रहे हैं। इसकी बारीकियों में न जाते हुए, इस प्रमुख बात पर ध्यान दें कि ग्रेफाइट पर ही ग्रेफाइट को पिघलाया जा रहा है।
दूसरा समाधान भी इतना ही सृजनात्मक है। क्या यह ज़रूरी है कि ग्रेफाइट को आप किसी ठोस बर्तन में ही पिघलाएं। आप किसी तरल में रखकर भी तो इसे पिघला सकते हैं, बशर्ते कि ग्रेफाइट उस तरल में घुलता न हो। जैसे एक प्रयोग में तरल सोडियम क्लोराइड में रखकर ग्रेफाइट को पिघलाया गया है। ग्रेफाइट इसमें घुलनशील नहीं है।
तीसरा समाधान शायद ज़्यादा साधारण है। आप ऐसा कोई पदार्थ ले सकते हैं, जिसका गलनांक ग्रेफाइट से ज़्यादा हो। जैसा कि मैंने एक प्रयोग के बारे में पढ़ा जिसमें नीलम की एक नली में रखकर ग्रेफाइट को पिघलाया गया। और भी ऐसे पदार्थ हो सकते हैं।
तो आपको सवाल का जवाब तो मिल ही गया। चूंकि तरल कार्बन की बात चली है, तो एक-दो बातें और हो जाएं। जैसे पिघलने पर ग्रेफाइट के आयतन में बहुत अधिक वृद्धि होती है - करीब 50-60 प्रतिशत। दूसरी मज़ेदार बात यह है कि तरल कार्बन में धात्विक या अर्ध-धात्विक गुण होते हैं।
यहां अभी इस बात में जाने की ज़रूरत नहीं है कि इतने ऊंचे तापमान नापे कैसे जाते हैं, इतनी कम मात्रा में पदार्थ हो तो पता कैसे चलता है कि वह पिघल गया कि नहीं, पिघले हुए पदार्थ के गुणधर्मों की जांच कैसे होती है वगैरह। इन सब दिक्कतों के चलते ही ग्रेफाइट का गलनांक 4000k से लेकर 5000k तक पता लगाया गया है।
सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा प्रकाशित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान लेखन और विज्ञान शिक्षण में रुचि