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Sandarbh - Issue 107 (Nov-Dec 2016)
Sandarbh - Issue 107 (Nov-Dec 2016)
1. चीड़ और चिड़िया का एक अनोखा रिश्ता - किशोर पंवार [Hindi,PDF 225 KB]
जन्तुओं और पौधों के बीच अन्तर्सम्बन्ध बहुआयामी होते हैं। जहाँ तितलियों-पतंगों की इल्लियाँ पत्तों को कुतर-कुतरकर चट कर जाती हैं वहीं उनके वयस्क पौधों के फूलों का परागण कर इनके जीवन-चक्र को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसा ही एक रोमांचकारी रिश्ता है चीड़ की एक प्रजाति और नटक्रैकर चिड़िया के बीच।
2. विज्ञान की प्रकृति: भाग 1 - उमा सुधीर [Hindi,PDF 147 KB]
यह आलेख इस बात की एक मोटी-मोटी समझ बनाने का प्रयास है कि विज्ञान की प्रकृति क्या है और विज्ञान शिक्षा के लिए इसके निहितार्थ क्या हैं। इस भाग में वैज्ञानिक व्याख्या, विज्ञान किसे कह सकते हैं, वो क्या है जो वैज्ञानिक करते हैं, विज्ञान के कुछ गुणों, वैज्ञानिक फिलॉसफी और छद्म-विज्ञान की कुछ बातें।
3. मेरा अपना निजी शून्य - एलन लाइटमैन [Hindi,PDF 124 KB]
अलग-अलग सन्दर्भों में शून्य का अलग-अलग अर्थ होता है। जीवन के नज़रिए से देखें, तो शून्य का अर्थ मृत्यु हो सकता है। किसी भौतिक-शास्त्री के लिए इसका अर्थ पदार्थ और ऊर्जा की पूर्ण अनुपस्थिति हो सकता है, या समय व स्थान की अनुपस्थिति भी हो सकता है। शून्यता एक सापेक्षिक अवधारणा है। इस लेख में लेखक ने विविध आयामों की चर्चा की है।
4. विज्ञान पर अविश्वास - अतुल गवंडे [Hindi,PDF 203 KB]
आजकल आस्थाओं का बचाव करने के लिए कुछ समूह विज्ञान की सत्ता को खारिज करते हुए दैवीय सत्ता का हवाला नहीं देते बल्कि ज़्यादा सत्य वैज्ञानिक सत्ता की बात करते हैं जो कि छद्म-विज्ञान है। वैज्ञानिक सोच और छद्म-विज्ञान क्या हैं? दुनिया में वैज्ञानिक समुदाय के प्रति बढ़ते अविश्वास के समय एक वैज्ञानिक होने का क्या मतलब है?
5. बच्चों का सीखना एवं अध्यापक की भूमिका - केवलानन्द काण्डपाल [Hindi,PDF 188 KB]
बच्चे अपने ज्ञान की संरचना कैसे करते हैं? अपने आसपास की दुनिया को कैसे समझते हैं? इन सभी प्रक्रियाओं को समझने के लिए हमारे लिए यह जानना ज़रूरी है कि बच्चे ज्ञान निर्माण की इस प्रक्रिया में किस प्रकार शामिल होते हैं। प्रस्तुत आलेख कक्षा-कक्ष के अनुभवों को संरचनावाद के आलोक में समझने का प्रयास है।
6. भोलाजी - पियुष त्रिवेदी [Hindi,PDF 241 KB]
एक शिक्षक अपने विद्यार्थियों को पढ़ाने में कहानी का उपयोग करता है। कहानी रोज़मर्रा के जीवन की, संघर्ष की, प्रकृति की। इन कहानियों का बच्चों के मन पर जो असर पड़ा और उसकी जो परिणति हुई वह वास्तव में पठनीय है।
7. बच्चे और सवाल - श्रीदेवी वेंकट [Hindi,PDF 129 KB]
हमारी शिक्षा व्यवस्था की सफलता ही इसी बात में है कि बच्चे अपना बुरा-भला समझें और गलत के खिलाफ बोल सकें। पर क्या स्कूल बच्चों को सवाल पूछने के अवसर उपलब्ध कराते हैं? खास तौर पर लड़कियों की स्थिति तो और भी बदतर है। अगर ऐसे मौके हों तो क्या होगा?
8. पायल खो गई: समीक्षा - शेफाली जैन [Hindi,PDF 539 KB]
मटमैली धूप, काई-से रंग का आसमान और उसके नीचे काई रंग का ही तालाब, सीमेंट और धूल से रंगे चिथड़े, चिन्दियाँ और बच्चे! क्या यह रंग किसी कलर के डिब्बे में मिलेंगे? क्या यह रंग किसी ऐसी किताब में मिलेंगे जो खासकर बच्चों के लिए बनाई गई हो? ऐसी ही किताब है पायल खो गई जिसकी समीक्षा की है शेफाली जैन ने।
9. भाषाओं के बारे में कही गई कहानियाँ - रमाकान्त अग्निहोत्री [Hindi,PDF 153 KB]
भाषाओं के बारे में हम कई सारे मिथक या पूर्वाग्रह पालकर रखते हैं। हम यह मान लेते हैं कि जो भाषा मानकीकृत है वह बहुत विशाल इलाके में बोली जाती होगी और वह ‘शुद्ध’ होगी और इसलिए उसे बदलना नहीं चाहिए। सच यह है कि समय के साथ-साथ सभी भाषाएँ बदलती हैं। जो आज एक भाषा है वही कल दो भाषाओं में तब्दील हो सकती है या फिर बोली कहला सकती है।
10. एकवचन एवं बहुवचन - एस. आनंदलक्ष्मी[Hindi,PDF 142 KB]
मेज़ पर दस-दस किताबों के दो ढेर हैं। एक ढेर में एक ही किताब की दस प्रतियाँ हैं और दूसरे में दस अलग-अलग लेखकों की किताबें। किताबों के दूसरे ढेर के लिए किताबें कहना उस ढेर की विविधता को बयाँ नहीं करता। यही हाल एक कक्षा के भी हैं। कक्षा में तरह-तरह के बच्चे होते हैं पर कक्षा संचालन सभी को एक औसत उम्र को मानकर किया जाता है जबकि कक्षा में बहुवचन के कितने विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं।
11. इतिहास ऐसा नहीं होना चाहिए - वसंता सूर्या[Hindi,PDF 496 KB]
कई बार समय हमारे अन्तस में ऐसे निशान छोड़ जाता है जिन्हें मिटाना या भुलाना हमारे बस में नहीं होता। इतिहास को बदला नहीं जा सकता फिर चाहे वो अच्छा हो या बुरा। अगर इतिहास को बदलने की छूट हो तो न जाने ऐसे कितने वाकये होंगे जिन्हें आप हरगिज़ उस तरह नहीं रहने देना चाहेंगे जैसे वो आज हैं। बदल देना चाहेंगे अपने अनुरूप या समय के अनुसार।
12. कछुए और घोंघे चलने में इतने धीमे क्यों हैं? - सवालीराम[Hindi,PDF 209 KB]
यह सवाल आपके मन में कभी-न-कभी आया ही होगा कि आखिर कछुए और घोंघे इतने धीमे क्यों हैं। इसी सवाल के वैज्ञानिक कारणों को जानने का प्रयास है इस बार का सवालीराम।