श्रीदेवी वेंकट[Hindi,PDF 129 KB]

हमारी विद्यालयीन शिक्षा, बच्चों के अनुभवों और उनके दैनिक जीवन से जुड़ती हो। कक्षा में होने वाली बातचीत में वे अपने विरोधाभासों और द्वन्द्वों को शिक्षक से साझा करते हों और उनके कारणों को समझते हों।’ ये वाक्य सुनने में ऐसे लगते हैं जैसे कोई अनमोल वचन हों। उसी प्रकार जैसे ‘हमें जीवन में हमेशा सच बोलना चाहिए’ जो हम कई बार नहीं कर पाते। प्राथमिक शाला मन्दरौद नवीन, संकुल मन्दरौद, विकासखण्ड कुरुद में शिक्षिका श्रीमती सरस्वती सिन्हा कक्षा-5 में भाषा का अध्यापन कराती हैं। अक्सर उन्हें लगता था कि बच्चे पाठ्यपुस्तकों के पाठों को इसलिए पढ़ते हैं क्यूँकी इसे पढ़कर उन्हें परीक्षा देनी होती है। परीक्षाएँ तो जब होंगी तब होंगी पर कक्षा में अध्यापन के दौरान बच्चे उस पाठ में हो रही घटनाओं को समझें, उन पर अपने विचार व्यक्त करें, उसमें प्रस्तावित सही और गलत पर बहस करें -- इस दिशा में उनका प्रयास अक्सर प्रश्न और उत्तर के रूप में होता है।
कक्षा में शिक्षिका महाश्वेता देवी की कहानी ‘क्यूँ-क्यूँ छोरी’ पाठ का अध्यापन करा रही थीं। बच्चे भी कहानी  पढ़ चुके थे। अब सवाल और जवाब की बारी थी।

शिक्षिका: आप लोगों को यह पाठ कैसा लगा?
बच्चे: पाठ अच्छा लगा।
शिक्षिका: क्या अच्छा लगा?
बच्चे: मोईना का सवाल पूछना अच्छा लगा।
शिक्षिका: क्या हमें सवाल पूछना चाहिए?
कुछ बच्चों ने कहा, “हाँ, सवाल पूछना चाहिए।”
बच्चियों ने कहा, “हमें सवाल नहीं पूछना चाहिए।”
शिक्षिका पहले उन बच्चों से मुखातिब हुईं जिन बच्चों ने कहा था कि सवाल पूछना चाहिए। शिक्षिका ने उनसे पूछा, “हमें सवाल क्यूँ पूछना चाहिए? सवाल पूछने से क्या होता है?” बच्चों ने कहा, “हमें नई जानकारियाँ मिलती हैं।”
शिक्षिका: किस तरह की जानकारियाँ मिलती हैं?
बच्चे: जिसके बारे में सवाल कर रहे हैं वो क्यूँ करते हैं, उसको करने से क्या होता है, उसी काम को करने के और तरीके क्या हैं -- ये पता चलता है।
 इस बातचीत के बाद शिक्षिका ने उन बच्चों से बातचीत की जिन्होंने कहा था कि सवाल नहीं पूछना चाहिए। एक लड़की ने बताया कि “घर में मैं जब भी सवाल पूछती हूँ तो माँ कहती है कि लड़कियों को ज़्यादा सवाल नहीं पूछने चाहिए। जब पूछा क्यूँ तो माँ ने कहा, ‘यही तो कह रही हूँ कि बड़ों से सवाल मत पूछो’। ये भी कहा कि बड़ों का आदर करना चाहिए इसलिए सवाल नहीं पूछना चाहिए।”
शिक्षिका ने अब पूछा कि “हम सब ज़्यादा सवाल कहाँ पूछते हैं? स्कूल में या घर में?”
इस पर लगभग सभी बच्चों ने कहा, “हम घर में ज़्यादा सवाल पूछते हैं, स्कूल में नहीं।”
शिक्षिका ने पूछा, “क्यूँ?”
बच्चों ने कहा, “स्कूल में पूछने पर गुरुजी लोग मारते हैं।”
शिक्षिका ने बातचीत को थोड़ा पाठ की ओर मोड़ा और कहा, “मोईना के मन में कैसे सवाल आते थे?”
इस पर बच्चों ने कहा, “मोईना के सवाल काम को लेकर, उसके आसपास हो रही घटनाओं को लेकर होते थे। जैसे - नदी से पानी लेने उसे ही क्यूँ जाना पड़ता है?”

शिक्षिका: क्या आप लोगों के भी ऐसे सवाल होते हैं?
इस पर एक बच्ची ने कहा, “हाँ, गाँव में कुछ लोगों के पास क्यूँ बहुत पैसे होते हैं और कुछ लोगों के पास बिलकुल पैसे नहीं होते? मेरे पास भी पैसे होते तो मैं सेब फल और सन्तरे खाती।”
इस बातचीत के बाद शिक्षिका ने कहा, “इन प्रश्नों के जवाब हम सब मिलकर खोज सकते हैं।” और अपनी कक्षा में बच्चों से बातचीत खत्म की।
कक्षा के उपरान्त मुझसे बात करते हुए शिक्षिका कहती हैं कि “कुछ लोगों की सत्ता और स्वार्थ के कारण समाज में निर्मित होने वाली गैर-बराबरी के सवालों पर मैं बच्चों से कैसे बात करूँ? ये सवाल तो मेरे पास भी हैं।”
“भाषा की कक्षा में हम केवल किताब ही नहीं बल्कि अपने और अपने समाज की जीवनशैली को भी पढ़ते हैं। लड़कियों के सवाल न पूछने पर तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होता, क्यूँकि उनसे तो हर बात पर कहा जाता है कि ज़्यादा सवाल मत पूछो, जैसा कहा गया वैसा करो, कैसी मुँहफट लड़की है जाने क्या करेगी ससुराल जाकर। ऐसे में कुछ समय बाद लड़कियाँ बहुत चुप हो जाती हैं। वे न तो खुद के बारे में कुछ बोलती हैं न घर के बारे में। यहाँ तक कि पाठ की विषयवस्तु पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं करती हैं। इन स्थितियों को समझने के लिए क्या करें, बच्चों को कैसे तैयार करें।”


श्रीदेवी वेंकट: वर्तमान में लर्निंग लिंक फाउण्डेशन में अकादमिक सहयोगी के रूप में कार्य कर रही हैं। बच्चों और शिक्षकों के साथ नियमित बातचीत, लिखने और पढ़ने में विशेष रुचि।
सभी चित्र: कनक शशि: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ काम करती हैं।