पिछले अंक में सवालीराम ने पूछा था कि गर्मी के दिनों में पसीना अधिक क्यों आता है। इस सवाल के दो जवाब पेश कर रहे हैं। पहला जवाब हमारे पाठक मोहम्मद ज़फर का है। दूसरा जवाब एकलव्य की प्रकाशन टीम के साथी रुद्राशीष ने तैयार किया है।

सवाल: गर्मी के दिनों में पसीना अधिक क्यों आता है?

जवाब 1: हमारा शरीर भी कितना रोचक है। इसमें एक-से-एक ऐसे चकित करने वाले तंत्र हैं जो किसी को भी सोचने पर मजबूर कर दें। अब शरीर में तापमान के नियंत्रण की व्यवस्था को ही लें। गर्मियों में पसीने द्वारा तापमान नियंत्रण होता है तो सर्दियों में कँपकँपी एवं रोम खड़े होना शरीर को गर्म रखने में मदद करता है। ज़रा सोचिए आखिर क्यों हमें गर्मियों में पसीना अधिक आता है जबकि सर्दियों में काफी मेहनत करने पर भी बहुत कम पसीना निकलता है। वहीं कई बार अचानक किसी गम्भीर बात या चिन्ता की वजह से भी पसीना आता है। दैनिक जीवन में ये सब इतना सहज लगता है कि कई बार इनके कारणों पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता।
पसीना दरअसल कई स्तनधारी जन्तुओं (जैसे कुत्ता, घोड़ा, ऊंट, चूहा आदि) की त्वचा की ग्रन्थियों (ग्लैंड) से बहने वाला द्रव है। हमारी त्वचा में ये ग्रन्थियाँ लाखों की संख्या में होती हैं। हम जब धूप में काम करके आते हैं या सर्दियों में जैकेट पहनकर मेहनत करते हैं, कोई खेल खेलते हैं या जब भी श्रम का काम करते हैं तो हमारी त्वचा से पसीना निकलता है। जब पसीना सूखता है यानी उसका वाष्पीकरण होता है, तो यह ठण्डा करने की एक प्रक्रिया है जिससे शरीर को तेज़ गर्मी से बचने में मदद मिलती है।

पसीना दो तरह की ग्रन्थियों से निकलता है। एक जो अधिक मात्रा में होती हैं जिन्हें एक्राइन कहा जाता है। दूसरी तरह की ग्रन्थियाँ एपोक्राइन कहलाती हैं जो कम मात्रा में और कुछ खास जगहों पर जैसे बालों वाली जगह पाई जाती हैं। इस तरह की ग्रन्थियाँ प्यूबर्टी यानी किशोरावस्था के बाद सक्रिय होती हैं।

पसीना आना यूँ तो एक सामान्य प्रक्रिया है। बाहरी उद्दीपन, मानसिक स्थिति या फिर नसों के मार्ग से और नसों के मुहाने एवं पसीने की ग्रन्थियों के बीच रासायनिक सन्देशों के कारण।  किसी व्यक्ति को पसीना कम आता है तो किसी को ज़्यादा। यूँ तो पसीने में लवण और पानी होता है पर इसके साथ ही एपोक्राइन ग्रन्थियों वाले पसीने में प्रोटीन, स्टेरॉइड्स व लिपिड जैसे कुछ अन्य रासायनिक पदार्थ होते हैं। इन्सानों में माथे, पीठ, छाती व अन्य स्थानों पर अधिक और हथेलियों व पैर के तलुओं पर बाकी जगह की तुलना में कम पसीना निकलता है।

गर्मी में अधिक पसीना आना
असल में होता यूँ है कि गर्मी के दिनों में बाहर का तापमान और इस कारण शरीर का आन्तरिक तापमान बढ़ने लगता है। ऐसे में मस्तिष्क के हाइपोथेलेमस से तापमान नियंत्रण के लिए ज़िम्मेदार हिस्से के निर्देश पर  त्वचा की खून की वाहिनियों की ओर (गर्म) खून का बहाव बढ़ता है व त्वचा से गर्मी निकलती है। इसके साथ ही त्वचा में मौजूद पसीने की ग्रन्थियाँ भी सक्रिय हो जाती हैं और ग्रन्थियों से पसीने का प्रवाह शुरु होने लगता है। ठण्ड में ग्रन्थियों से पसीना नहीं निकलता जब तक कुछ मेहनत का काम न किया जाए जिसमें मांसपेशियों की थोड़ी मशक्कत हो।


मोहम्मद ज़फर: अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन, उत्तरकाशी (उत्तराखण्ड) में कार्यरत हैं।


जवाब 2: मेरा जन्म और परवरिश कोलकाता में हुई और आजकल मैं काम करता हूँ भोपाल में। मैं यह कह सकता हूँ कि गर्मी और पसीने का मेरे जन्म स्थान से कहीं अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध है बनिस्बत भोपाल के। पसीना आने की कई खासियतों में से यह एक है। पर चलिए पहले इस पर बात करते हैं कि आखिर पसीना आता क्यों है।
वास्तव में, हमारा शारीरिक तापमान सामान्य यानी 37-38 सेंटीग्रेड बना रहे इसके लिए शरीर से पसीना निकलता है। यहाँ हम शरीर के कोर टेम्परेचर या तापमान की बात कर रहे हैं। शरीर के विभिन्न अंगों, ऊतकों और रक्त का तापमान। तुलनात्मक रूप से अगर देखें तो हमारी त्वचा और बाहरी कोशिकाओं का तापमान थोड़ा कम होता है और ज़्यादा बदलता भी रहता है। जैसे ही शरीर का मूल तापमान ऊपर जाता है, हमारा मस्तिष्क मांसपेशियों को धीमा पड़ जाने का सन्देश भेजने लगता है और हमें थकान महसूस होने लगती है।

तापमान अगर 41दृक् से अधिक हो जाए, जो तेज़ बुखार की स्थिति है, तो रासायनिक क्रियाएँ प्रभावित होने लगती हैं। कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त होने लगती हैं और आन्तरिक अंग काम करना भी बन्द कर सकते हैं। इस प्रकार जैसे ही हमारे शरीर का तापमान सामान्य स्तर से ऊपर जाता है, हमारे मस्तिष्क में मौजूद हाइपोथेलेमस ग्रन्थि अपना पसीने का ‘बटन’ चालू कर देती है। यह पसीने की ग्रन्थियों (स्वेद ग्रन्थियों) को पसीने का सन्देश भेज देती है और हमारा शरीर एक तरह का द्रव स्रावित करने लगता है जो वास्तव में पानी और नमक का घोल होता है। जब यह तरल पसीना त्वचा की ऊपरी परत से वाष्पोत्सर्जित होता है तो हमारी त्वचा की कुछ गर्मी यानी ताप को निकाल देता है जिससे त्वचा के आसपास की रक्त वाहिनियों के रक्त का तापमान भी कम हो जाता है। रुधिर वाहिकाओं का अपेक्षाकृत ठण्डा रक्त जब वापस शरीर में पहुँचता है तो वह बढ़ते कोर तापमान को भी नियंत्रित रखता है।

गर्मियों का पसीना
अब सवालीराम के मूल सवाल पर लौटते हैं। हमारी मांसपेशियों व कई सारी रासायनिक क्रियाओं के चलते   हमारा शरीर लगातार गर्मी पैदा करता है। यह खासकर ऑक्सीकरण की क्रिया में पैदा होती है। यह ताप हमारे शरीर का आन्तरिक तापमान भी बढ़ा देता है। और इस बढ़े हुए कोर तापमान को हमारा शरीर विभिन्न तरीकों से नियंत्रित रखता है। पसीना निकलना और उसका वाष्पीकरण उनमें से एक तरीका है।

वास्तव में, अक्सर हमें पसीना आता रहता है पर हम गौर ही नहीं करते। हमारा शरीर 21 डिग्री सेंटीग्रेड के परिवेशी तापमान पर कोर तापमान को नियंत्रित रखने के लिए दक्षतापूर्वक शरीर से गर्मी को दूर कर देता है जिससे हमें गर्मी का एहसास नहीं होता। जैसे ही बाहर का तापमान इसके ऊपर जाता है शरीर को कोर तापमान नियत बनाए रखने के लिए अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ता है। गर्मी के मौसम में जब बहुत अधिक तपिश होती है तो बिना मेहनत किए ही शरीर का तापमान बहुत जल्दी बढ़ जाता है जिसकी प्रतिक्रिया में हमारा शरीर गर्मी में ज़्यादा पसीना छोड़ता है। मरुस्थल और ऊष्ण-कटिबन्धीय इलाके में शरीर 2 से 3 लीटर प्रति घण्टे तक पसीना निकाल सकता है। यह शायद पसीने की अधिकतम मात्रा है।
पसीने के अन्य कारण
क्या  आपको  ऐसी  किन्हीं परिस्थितियों का सामना करना पड़ा जिसमें आपकी हथेलियों ने पसीना छोड़ दिया हो और ठण्डी पड़ गई हों? इंटरव्यू पैनल के सामने जाने से ठीक पहले, परीक्षा के समय, अपने माता-पिता या शिक्षक के सामने कठिन सवालों का सामना करते समय, दर्शकों की भीड़ के सामने स्टेज पर जाने के समय। ऐसी परिस्थितियों में आपकी हथेलियों, बगलों और माथे की स्वेद ग्रन्थियों में अतिरिक्त स्राव होता है।

पसीना और आर्द्रता
चेन्नई और कोलकाता जैसी जगहों में जोधपुर और भोपाल के मुकाबले आखिर गर्मी और पसीने के बीच क्यों इतनी अच्छी दोस्ती है? एक मुख्य कारक जो पसीने में उपस्थित पानी के वाष्पोत्सर्जन की दर को बढ़ाता है वह है उस जगह की हवा की आर्द्रता यानी ह्युमिडिटी। अगर हवा में आर्द्रता है तो इसका मतलब है कि हवा में पानी की वाष्प पहले से ही मौजूद है। जहाँ आर्द्रता संतृप्तता (सैचुरेशन) के जितने करीब (आपेक्षिक आर्द्रता 100 प्रतिशत की तुलना में), वहाँ शरीर की पसीने को सुखाने की क्षमता भी उतनी ही कम होगी। चेन्नई और कोलकाता में पिछले साल मई के महीने में औसत आर्द्रता 60-70% से ज़्यादा रही। उसी समय जोधपुर और भोपाल की आर्द्रता 50-40 प्रतिशत के लगभग या इससे कम  रही।  इसलिए  चेन्नई  और कोलकाता में पसीना इतनी जल्दी नहीं सूख पाता और हमारी त्वचा से टपकने लगता है। इसके चलते गर्म और आर्द्र जगहों में आप खुद को ज़्यादा गीला और पसीने से तर महसूस करते हैं। लेकिन पसीने का मतलब हमेशा गर्मी नहीं है। आप बिना गर्मी महसूस किए भी पसीने से भीग सकते हैं - इसे कोल्ड स्वैट कहते हैं। आइए देखें यह कैसे होता है।

दूसरे तरह का एक पसीना
हमारे शरीर में तकरीबन 25-40 लाख स्वेद ग्रन्थियाँ बिखरी होती हैं। होठों, निप्पल और बाह्य जननांगों को छोड़कर। ये ग्रन्थियाँ त्वचा की डर्मिस परत में पाई जाती हैं (चित्र-1)। त्वचा के इसी हिस्से में तंत्रिका कोशिका का आखिरी हिस्सा और हेअर फॉलिकल भी पाए जाते हैं। स्वेद ग्रन्थियाँ दो तरह की होती हैं जो दो अलग तरह का पसीना स्रावित करती हैं। ज़्यादा संख्या में पाई जाने वाली एक्राइन ग्रन्थी पूरे शरीर में फैली होती हैं, खास तौर से हाथों की हथेलियों, पैरों के तलुओं और माथे पर। इन ग्रन्थियों के छिद्र त्वचा की सतह पर खुलते हैं। ये ग्रन्थियाँ जन्म से ही सक्रिय रहती हैं। संख्या में कम लेकिन आकार में बड़ी एपोक्राइन ग्रन्थियाँ बाँहों के बगल (आर्मपिट) में और गुदा व जननांग क्षेत्र में अधिक होती हैं। ये छिद्र की जगह फॉलिकल के रूप में खतम होती हैं। ये प्रौढ़ावस्था आने पर ही सक्रिय होती हैं। इनसे भी एक्राइन ग्रन्थि की तरह ही पसीना निकलता है पर इसके साथ वसा अम्ल और प्रोटीन भी होता है जो इसे थोड़ा गाढ़ा और पीला बनाता है। यही कारण है कि बाँह के नीचे के पसीने के दाग थोड़ा पीलापन लिए होते हैं। पसीने में अपनी कोई गन्ध नहीं होती लेकिन जब त्वचा में उपस्थित बैक्टीरिया प्रोटीन और वसा अम्ल का चयापचय (मेटाबोलाइज़ेशन) करते हैं, एक तीव्र गन्ध आती है। यही कारण है कि अक्सर डिओडोरेंट और एंटी-पÐस्परेंट बाँह के नीचे प्रयोग किए जाते हैं, न कि पूरे शरीर पर।
जब हम भावुक हो जाते हैं या फिर डर, घबराहट या तनाव महसूस करते हैं तो कभी-कभी ऐसी स्थितियों में मस्तिष्क ऐपिनेफ्रिन हॉर्मोन को खून में स्रावित होने का निर्देश देता है। ऐसा होते ही हथेलियों, बगलों, पैरों के तले और माथे की स्वेद ग्रन्थियों से पसीना स्रावित होने लगता है।  
इस पूरी बातचीत ने मेरे भीतर गर्मी जगा दी...कोई और भी एक गिलास मठा पिएगा? ओके...आप कुछ महीने बाद पिएँगे।


रुद्राशीष चक्रवर्ती: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ कार्यरत हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: अम्बरीष सोनी: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।