दीपाली शुक्ला
टाटा ट्रस्ट द्वारा आयोजित लाइब्रेरी एडुकेटर्स कोर्स के एक सत्र के दौरान हर समूह को चित्रों और उनकी कहानी को समझने के लिए अलग-अलग किताबें दी गईं। मेरे समूह को मिली थी, सिर का सालन, पंछी प्यारा और नीले लोग। सिर का सालन और नीले लोग, इन दोनों किताबों को पढ़ने-देखने के बाद समूह के बाकी साथी कुछ असमंजस में थे। इन किताबों के चित्र अन्य किताबों के चित्रों से अलग थे और कहानियाँ भी काफी परतदार थीं। इस अभ्यास में किताबों को देखने-परखने का एक मौका तो था ही, साथ ही चर्चा में एक महत्वपूर्ण सवाल सामने आया कि कहानी का सन्दर्भ क्या है। इस सवाल ने फिर से मुझे जिस किताब के करीब पहुँचाया, वह है नीले लोग।
मूल रूप में यह ईरानियन चित्रकथा है जिसे हिन्दी में नीले लोग और अँग्रेज़ी में ब्लू पीपल के नाम से एकलव्य ने प्रकाशित किया है। कहानी बेहद परतदार है और पढ़ने वालों को इसमें काफी-कुछ नया मिलता है। यह ज़रूरी नहीं है कि इस किताब के साथ सभी पाठकों के अनुभव एक-से हों या सबने जिस तरह से कहानी के मर्म को समझा है, वह एक-सा हो पर कहानी पढ़ते समय लेखक के मन की बात को पढ़ने और समझने का मौका यह किताब ज़रूर देती है।
इस किताब को इस कोर्स के दौरान पढ़ना व समझना एक उद्देश्य के तहत था और पाठक के रूप में पढ़ना शायद अलग उद्देश्य के लिए होता है और इसलिए किताब के मेरे अपने अनुभव या किसी और के अनुभव एक समान नहीं हो सकते, लेकिन कहानी के अपने-अपने सन्दर्भों के बावजूद कुछ धागे सभी पाठकों की व्याख्या को एकरूपता देते हैं।
मेरी नज़र से
जब मैंने पहली बार इस किताब को पढ़ने के लिए उठाया तो सबसे पहले इसके कवर ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। एक नीली रंगत से भरा घर जिसका दरवाज़ा खुला है और अन्दर का एक दृश्य दिख रहा है। घर का खुला होना इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि घर में कोई है पर इस घर की नीली रंगत क्यों है?
कहानी पढ़ते हुए बार-बार सवालों से जूझती रही कि लोग कहाँ चले गए। क्या वह लड़की ज़िन्दा है? उस लड़की को लोग दिख रहे हैं पर कोई उसकी ओर नहीं देख रहा। वह देख रही है कि एक घर में खूब सारे लोग इकट्ठे हैं, वह देख रही है कि स्कूल में बच्चे पढ़ रहे हैं। वह एक सफर कर रही है और उसमें वह अकेली है।
कहानी में कुछ ऐसा था जो अभी भी मुझसे दूर था। सो एक बार फिर इस किताब को पढ़ने की कोशिश की। क्या वह लड़की मर चुकी है? यह कहानी शायद एक ऐसी लड़की की है जो मरने के बाद अपने आसपास के लोगों को देख रही है। इसके साथ ही जो नीलापन बार-बार कहानी में अनकहे आ रहा है, वह उस लड़की की उदासी है। वह बस देख रही है और बिसुर रही है। उसका यह अकेलापन इस किताब में कई चेहरों में बिखर रहा है।
इस किताब में चित्रांकन के लिए मार्क शगाल की पेंटिंग्स का इस्तेमाल किया गया है। कहानी में जितनी परतें हैं उतनी ही परतें चित्रों की भी हैं। पेंटिंग के साथ बहती यह कहानी और इसमें लेखक की मंशा को समझना काफी चुनौती भरा अवश्य रहा है। चलिए, कहानी के कुछ हिस्सों और चित्रों पर बात करते हुए इसको देखते हैं।
पहले पेज पर एक कमरे का दृश्य है और इस दृश्य में सिर्फ कुछ तस्वीरें हैं। इन्हीं तस्वीरों वाले कमरे में वह लड़की भी है जो अभी-अभी सोकर उठी है। वह अपनी अम्मी और अब्बा को ढूँढ़ रही है पर वे उसे मिल नहीं रहे हैं। क्या वे कहीं चले गए हैं? यह बात परेशान कर जाती है। उस जगह के हालात पर ध्यान चला जाता है। मैं खुद काफी समय तक सोचती रही कि आखिर ऐसा क्या है जिस वजह से वह लड़की अकेली है। पेज दर पेज कहानी और कुछ तस्वीरें साथ-साथ चलते हैं। नीलापन हर पेज पर अलग-अलग तरह से आता है। आसमान का नीला रंग, उदासी का नीला रंग, ठहराव का नीला रंग।
चित्रों में बसे नीले रंग के बीच एक हरे-भरे पेड़ में चिड़िया का घोंसला है और नन्हे परिन्दे हैं। पेड़ के तने पर चढ़ती गिलहरी का रुककर आपको देखना। यह एक उम्मीद देता है। सेब के पेड़ के पास से बहती नदी के पानी का रंग भी नीला है। इस नीले रंग के अन्दर ज़िन्दगी की बसाहट है। एक नीला रंग यादों का है। लौटना अपने बीते दिनों में और उसमें खुशी और रंज का नीला रंग देखना। लालटेन की सुनहरी रोशनी के बीच फूटती हल्की-सी नीली लौ। इस उजास में भी नीलापन है। स्कूल की कक्षा में बैठे बच्चों का नीला रंग। पहली बार कहानी पढ़ते हुए लगा कि यह उस लड़की के दुख का रंग है कि वह चाहकर भी अपने दोस्तों के साथ स्कूल नहीं जा पा रही है।
मेरे लिए यह कहानी एक लड़की के अकेले सफर की है जिस पर किसी का ध्यान नहीं। शायद वह ज़िन्दा नहीं है। उसकी उदासी ने मुझे भी दुखी कर दिया।
औरों की नज़र से
कहानी की मेरी इस समझ से बिलकुल अलग कवि और कहानीकार प्रभात का अनुभव है। उनके अनुसार, इस किताब में जो नीलापन है वह युद्ध की परिस्थितियों का एहसास कराता है। प्रभात की यह बात इस कहानी को देखने का एक और नज़रिया प्रदान करती है। मैंने इस तरह से नहीं सोचा था। कोई उस लड़की को नहीं मिल रहा है और न मिलने का कारण वह भयावह स्थिति हो सकती है जिसे युद्ध कहते हैं। युद्ध निर्दोष ज़िन्दगियों को खत्म करता है और ज़िन्दा बचे लोग जीवन भर उस त्रासदी को भीतर लिए जीते हैं।
इस व्याख्या में सहसा वयस्कों की भूमिका की ओर ध्यान चला गया। प्रभात और मेरे अनुभवों से कुछ जुदा अनुभव भी हैं जो इस कहानी को सकारात्मक रूप में देखते हैं। एकलव्य की एक अन्य पहल से जुड़ी मंजुषा और पूनम ने भोपाल में एक कार्यशाला के दौरान इस किताब को पढ़ा था। उनके खयाल ना-उम्मीदी के बीच उम्मीद की रोशनी की तरह थे। पूनम के अनुसार, कहानी वाली लड़की की इच्छा होगी कि उसके सुन्दर पंख हों और वो उनके सहारे किसी भी जगह जा सके। पंख मिलने से उसकी सारी बाधाएँ दूर हो गईं और उसका सपना पूरा हो गया। कहानी के अन्त में, पंख पाने की खुशी में वह खिलखिला उठी।
इसी तरह मंजुषा को लगा कि कहानी वाली लड़की देख नहीं पाती और एक दिन सुबह उठने के बाद उसे एहसास होता है कि वह इस दुनिया को थोड़ा-थोड़ा देख पा रही है। अब हल्के नीलेपन के साथ उसे अपने आसपास की दुनिया दिख रही है जिसमें लोग, पेड़-पौधे, नदी सब शामिल हैं। और अब वह वो सब कर सकती है जो पहले नहीं कर पाई।
मंजुषा और पूनम की यह बात कहानी के अन्त से जुड़ती है जो इस प्रकार है:
‘वह फिर से झुकी और उसने खुद को ध्यान से देखा। फिर दिल खोलकर हँसी। छोटी नदी में हाथ डालकर पानी को सहलाते हुए उसने फुसफुसाकर खुद से कहा, कितने सुन्दर पंख हैं।’
इन पंखों का आना यह इशारा भी है कि वह लड़की खुश है। लेकिन इसका एक दूसरा मायना यह भी है कि वह लड़की दुनिया छोड़ चुकी है।
एक कहानी अपने पाठकों को उन भावनाओं के करीब ले जाती है जो लेखक ने शब्दों में बाँधने की कोशिश की है। कहानी का सन्दर्भ जिसे कहते हैं, वह दरअसल कहानी किस बारे में है, यह बताता है। यदि कहानी की यह बात पढ़ने वाली या वाले को समझ नहीं आती तो समझिए कि बस शब्दों पर नज़रें घूमी हैं, कहानी में अभी गोता लगाया नहीं है। वास्तव में जब किसी कहानी को पढ़ रहे होते हैं तो एक तरह से हम अपनी दुनिया को ही पढ़ रहे होते हैं और अपने पूर्व-अनुभवों पर विचार करने का यह एक मौका होता है। इस प्रक्रिया में कितने सवाल और विचार शामिल होते हैं। पात्र और परिवेश को लेकर, पात्र की परिस्थितियों को लेकर, मुख्य पात्र के अन्य पात्रों के साथ संवाद को लेकर, भाषा शैली, शब्दों के चयन -- इन सब को लेकर कुछ-न-कुछ सोचते हैं। तब उस कहानी पर अपने विचार बन पाते हैं। सम्भव है कि अगली बार इस कहानी को पढ़ते हुए विचार बदलें या कहानी कुछ नया दे जाए -- और यह एक बढ़िया कहानी की खूबी भी है।
लेखक की नज़र से
इन विविध अनुभवों को पढ़ने-समझने के बाद यह बात ज़रूर दिमाग में आती है कि आखिर इस कहानी की लेखिका की क्या मंशा रही होगी। उन्होंने इतनी परतदार कहानी क्यों लिखी? क्या जो हम लोगों ने सोचा, वही लेखिका कहना चाहती थी या फिर कुछ और है जो पाठकों को जानना चाहिए? तो अब लेखिका फारिदेह खल्अतबरी का कथानक पढ़ते हैं। यहाँ मैं उसका हिन्दी तर्जुमा दर्ज कर रही हूँ:
“नीले लोग मेरी पसन्दीदा किताबों में से एक है और यही वजह है कि इस कहानी को चित्रित करने के लिए मैंने मार्क शगाल की बनाई पेंटिंग चुनीं। यह एक लड़की की कहानी है जो मरने वाली है या मौत के मुहाने पर खड़ी है।
नीला रंग मेरे लिए एक भावना- रहित रंग है। जैसे, आकाश नीला और समुन्दर भी नीला है। दोनों ही खूबसूरत दिखते हैं और आकर्षित करते हैं। हम पानी में तैरते हैं, मज़ा उठाते हैं पर अचानक पानी हमें खींचता है और हमें चुपचाप मार देता है। आसमान के साथ भी कुछ ऐसा ही है। आसमान की खूबसूरती हमारा ध्यान खींचती है लेकिन अचानक-से इस आसमान में तूफान और बवण्डर उठते हैं और हमें मार देते हैं। लोगों का हाल भी कमोबेश यही है। वे एक-दूसरे की परवाह नहीं करते और न ही दूसरों के बारे में सोचना चाहते हैं। वे बस खुद के बारे में सोचते हैं।
लड़की अकेले मर रही है। उसके आसपास कोई उसका अपना नहीं है, यहाँ तक कि उसके अपने अम्मी-अब्बा और रिश्तेदार अपने कामों में व्यस्त हैं। उसने अपने आसपास बहुत सारे लोगों को देखा पर वो सब-के-सब नीले हो चुके हैं। उसके साथ पढ़ने वाले बच्चे, अन्य बच्चे और टीचर -- सब बहुत व्यस्त हैं और कोई उसे याद नहीं करता या किसी को उसकी कमी नहीं खलती। सब जगह यही स्थिति है। अन्त में, उस लड़की को महसूस होता है कि वह मर चुकी है और पंखों वाली परी बन चुकी है।
मेरा सोचना है कि मार्क शगाल का आसपास के बे-दिल या हृदयहीन लोगों को लेकर ऐसा ही विचार था क्योंकि उनके चित्रों में इतने सारे नीले लोग हैं। उनकी यह सोच, कहानी व मेरे दिमाग में जो था, उसके साथ पूरी तरह से मेल खाती है। मैंने कहानी को चित्रित करने के लिए कई चित्रकारों से सम्पर्क किया लेकिन मैं उनके काम से सन्तुष्ट नहीं थी।
अन्त में, मैंने शगाल की पेंटिंग्स का इस्तेमाल किया। किताब के टाइटल के लिए मैंने जो पेंटिंग चुनी है, वह दर्शाती है कि इन्सान आधे सामान्य हैं और आधे नीले। आम तौर पर हम उनका सामान्य वाला हिस्सा ही देखते हैं और यह महसूस ही नहीं कर सकते कि वे कितने निर्दयी हो सकते हैं। मैंने लेखक को दर्शाने के लिए तोते को चुना है और शगाल को वैसे ही रखा है, एक वास्तविक इन्सान, जैसे वे हैं। हर पेज के लिए सही पेंटिंग का चुनाव करने में मुझे महीनों लगे हैं और अब जब भी मैं इस किताब को उठाती हूँ तो मज़ा आता है क्योंकि जो मैं महसूस करती हूँ, वह इसमें दिखता है।”
दीपाली शुक्ला: एकलव्य के रीडिंग कार्यक्रम से सम्बद्ध। कहानी लिखती हैं और फोटोग्राफी करती हैं।
सभी चित्र: नीले लोग किताब से साभार।
यह किताब पिटारा, एकलव्य में उपलब्ध है। किताब का मूल्य 80 रुपए है।/
सन्दर्भ सूची:
पढ़ने के कार्य का महत्व: पाउलो फ्रेरे और डोनल्डो मसीडो
पढ़ना, बचपन और साहित्य: कृष्ण कुमार