शेषागिरी केएम राव
पुस्तक अंश भाग - 1
मैं हमेशा सेक्शन-बी में रहा - कक्षा 1 से लेकर कक्षा 16 तक, जब मैंने इंजीनियरिंग में स्नातक उपाधि प्राप्त की। यदि मैं सेक्शन-ए में होता तो मैं चन्नाकेशव का छात्र न होता। यह किताब कभी न लिखी जाती। सुखद संयोगों की बात करें... यह उनमें से सबसे सुखद था। यदि कोई कहानी लिखी जानी है, तो समूची कायनात उसे लिखे जाने की साज़िश करेगी।
“संख्याएँ सुन्दर क्यों हैं? यह सवाल वैसा ही है जैसे कोई पूछे कि बीथोविन की नौंवीं सिम्फनी सुन्दर क्यों है। यदि आपको समझ नहीं आता कि क्यों, तो कोई नहीं बता सकता। मुझे पता है, संख्याएँ सुन्दर होती हैं। यदि संख्याएँ सुन्दर नहीं हैं, तो कुछ भी सुन्दर नहीं है।” - पौल एर्डोस
मेरे वो अद्भुत शिक्षक
मैं 1982 में आठवीं कक्षा में पहुँचा था। मॉनसून शु डिग्री ही हुआ था। सेक्शन बी। उस समय तक हम लोग अपने नए घर में शिफ्ट हो चुके थे। नया घर कोरमंगल नाम की बस्ती में था। मैं चमचमाती नई लाल हीरो सायकिल पर स्कूल जाने लगा था। उस साल जून में चन्नाकेशव की यह पहली क्लास थी और हमारे पाठ्यक्रम या पाठ्य पुस्तक से इसका ज़्यादा सम्बन्ध नहीं था। वे चाहते तो पाठ्य पुस्तक के पहले अध्याय से शुरू करते और हम सामान्य ढंग से घिसट सकते थे। या चाहते तो वे हमें रीविज़न के लिए कुछ सवाल दे सकते थे और बैठकर देख सकते थे कि हम कैसे जूझते हैं। वह कहीं ज़्यादा आसान होता।
लेकिन उन्होंने कुछ एकदम अलग किया, जो पहले किसी शिक्षक ने मेरी किसी क्लास में कभी नहीं किया था। उन्होंने शुरुआत की हमें गणित में ‘सौन्दर्य’ दिखाने से। पीछे की बातें याद करके मैं आज यह कह सकता हूँ लेकिन उस समय तो यह बिलकुल भी स्पष्ट नहीं था। उस समय तक मैं अपने सबसे अजीबोगरीब सपने में भी गणित का सौन्दर्य न देख पाता। उस दिन के पीरियड में जो कुछ हुआ, वह मज़ेदार तो था ही, निहायत विस्मयकारी भी था।
मुझे इतना याद है कि चन्ना ने 23 वर्ष पुरानी पत्थर से बनी उस इमारत, जिसे हम लिंकन हॉल कहते थे, के ग्राउंड फ्लोर पर स्थित हमारी कक्षा में कदम रखे थे। वे गहरे रंग का सूट पहने थे। कक्षा में खामोशी छा गई। मुझे औपचारिकताएँ याद नहीं हैं। उन्होंने हमारे साथ सम्बन्ध शु डिग्री करने की दृष्टि से ज़रूर कुछ कहा होगा - शायद एक रूखा-सा अभिवादन और साथ में नपी-तुली-सी मुस्कान। कुछ ही पलों बाद चन्ना ने ब्लैकबोर्ड पर यह सवाल लिखकर शुरुआत की थी:
142857 x 1 =
आप देख ही सकते हैं कि यह काफी आसान था। अगला सवाल यह था:
142857 x 2 क्या होगा?
जब इसे हल करते-करते हम सोच रहे थे कि वे गुणा करने के हमारे हुनर को क्यों परख रहे हैं और अगला सवाल क्या होगा, तब तक उन्होंने चुपचाप इसका उत्तर बोर्ड पर लिख दिया: 285714.
इसके बाद उन्होंने एक बार फिर पूछा:
और 142857 x 3 क्या होगा?
उत्तर है 428571, इधर हम गुणा करने में भिड़े थे और इसे उन्होंने बोर्ड पर लिख दिया था गोया उन्हें शुरू से ही मालूम था।
मेरे पीछे से किसी ने पूछा, “सर, आप बगैर गुणा किए उत्तर कैसे लिख सकते हैं?” वह भी मेरी ही तरह हैरान था। मगर चन्ना तनिक भी विचलित नहीं हुए, न ही उन्होंने कुछ कहा। शान्तिपूर्वक आगे उन्होंने यह दर्शाया कि 142857 को 4, 5, और 6 से गुणा करने पर क्या होता है। कुछ दिलचस्प चीज़ उभरने लगी थी:
142857 x 1 = 142857
142857 x 2 = 285714
142857 x 3 = 428571
142857 x 4 = 571428
142857 x 5 = 714285
142857 x 6 = 875142
जब हमने मूल संख्या को 2 से लेकर 6 तक से गुणा किया तो हमारी कॉपी के पन्नों पर एक ‘चक्रीय क्रमपरिवर्तन’ झाँकने लगा था। यह ताड़ना मुश्किल था कि अंक किस क्रम में स्थान बदल रहे हैं - कभी कोई एक अंक स्थान बदलता था, तो कभी-कभी 2 या 3 अंक सरक जाते थे। लेकिन हर मामले में स्थान परिवर्तन करने वाले अंक सटे हुए क्रमिक अंक होते थे। चौंकाने वाली बात यह थी कि संख्या 142857 के अंक ही पुनर्चक्रित हो रहे थे, ताश के पत्तों की तरह फेंटे जा रहे थे। अरे! ऐसा कैसे हो सकता है?
चन्ना ने हमें बताया, ऐसी संख्याओं को ‘चक्रीय संख्याएँ’ (cyclic numbers) कहते हैं। उन्होंने इस कथन के जज़्ब होने का इन्तज़ार किया। फिर जोड़ा, “गणित ऐसी विचित्रताओं से भरा है, जिनका अध्ययन कमोबेश कोई भी कर सकता है।” उदाहरण के लिए हम पूछ सकते हैं कि ऐसी चक्रीय संख्याएँ कितनी हैं? क्या उन सबको खोजना सम्भव है? क्या ऐसा कोई सूत्र है जिसकी मदद से हम ऐसी सारी संख्याओं को खोज सकें? गणित सीखते समय हमें कई बार ऐसे सवाल पूछना चाहिए। इनसे हमें सत्य और अपने आसपास की दुनिया की घटनाओं में निहित पैटर्न को खोजने का रास्ता मिलता है। चक्रीय संख्याओं के समान ऐसी कई और संख्याएँ होती हैं जिनमें और भी मनमोहक गुणधर्म होते हैं।
हमने 142857 की पड़ताल आगे बढ़ाई। चन्ना ने पूछा, “हम 142857 को 7 से गुणा करेंगे तो क्या होगा?”
हम सोचने लगे कि क्या मूल संख्या किसी अन्य तरीके से पुनर्चक्रित होगी। लेकिन नहीं। हमें जो मिला वह था:
142857 x 7 = 999999
“यह वाकई चकराने वाला था। क्या आप इसे भाँप सकते हैं? दरअसल, यदि आप 1/7 (जिसे 7 का व्युत्क्रम या विलोम भी कहते हैं) को दशमलव के रूप में लिखें, तो आपको दोहराने वाला पैटर्न मिलेगा 0.142857। और जब 0.142857 को 7 से गुणा करते हैं तो 0.999999 मिलता है। इसलिए 142857 को 7 से गुणा करने पर 999999 मिलता है।
गणित का सौन्दर्य
खैर, मैं इस तर्क का ओर-छोर नहीं समझ पाया। उस समय तो यह तिलिस्मी और जादुई ही लगा था। मुझे लगता है, कभी-कभी तिलिस्म का यह भाव बरकरार रहना चाहिए। यह हमें बाँधे रखता है। सीखने के लिए समझ ज़रूरी होती है और वह इस तिलिस्म को तोड़ देती है। लेकिन वह नए सवाल उभार देती है। लिहाज़ा, जब हम और ज़्यादा समझने लगते हैं, तब भी अज्ञात और तिलिस्म का भाव बना रहता है। दरअसल, यह एक अन्तहीन यात्रा है।
जब हम इस सबको जज़्ब कर रहे थे, तब चन्ना तो बस चारों ओर देखते रहे और मुस्कराते रहे। मैंने सोचा कि यदि गणित की हर कक्षा ऐसी होगी तो बहुत मज़ा आएगा! हमारे साथ चन्ना का पहला सत्र काफी हटकर था। पहले की कक्षाओं में तो हम अधिक-से-अधिक अभ्यास करने के आदी थे। हमें ये चीज़ें पहले क्यों नहीं बताई गई थीं?
और इस तरह से जून 1982 में मेरा परिचय गणित के सौन्दर्य से हुआ था। मैं ‘सौन्दर्य’ शब्द का उपयोग जानबूझकर कर रहा हूँ क्योंकि यह आपको उसी तरह चकित करता है जैसे सुन्दर सूर्यास्त करता है। हर चीज़ सही जगह पर नज़र आती है और उस क्षण से बेहतर नहीं हो सकती। आप अवाक रह जाते हैं, शायद विचारशून्य भी। यदि आप सूर्यास्त का पूरा आनन्द लेना चाहते हैं और खुद को उसमें डुबो लेना चाहते हैं, तो यह ज़रूरी है।
“तो आज स्कूल कैसा रहा?” अम्मा यह सवाल लगभग हर रोज़ पूछती थीं।
“हमारे नए क्लास टीचर आए हैं जो गणित पढ़ाते हैं। वे सचमुच बढ़िया हैं...”
उस दिन शाम को मैंने अम्मा को वह सब बताया जो मैं अपने नए शिक्षक चन्ना के बारे में समझ पाया था। वे बस मुस्करा दीं। लेकिन बाद में बीच-बीच में वे पूछती रहती थीं, “तुम्हारे चन्ना कैसे हैं?” और आजी मज़े में कभी-कभी चन्ना शब्द के साथ तुक भिड़ा-भिड़ाकर अपना ही गीत बनाया करती थीं।
मैं नहीं जानता कि चन्ना जो कुछ कहते या करते थे, उस पर मेरे दोस्तों की क्या प्रतिक्रिया होती थी। मुझे लगता है कि वे भी उतने ही उलझन में होंगे, लेकिन मैं यह भी कहूँगा कि यह बताना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल ज़रूर है कि किसी बच्चे को गणित की कक्षा में क्या चीज़ आकर्षक लगेगी। जो चीज़ मुझे रोमांचित करती है, ज़रूरी नहीं कि उसका मेरे दोस्तों पर भी वही असर हो। अलबत्ता, शिक्षक का काम यह होता है कि छात्रों को सदैव खोजबीन में भिड़ाए रखे। कौन जाने, चिंगारी कब भड़क जाएगी। मेरे लिए वह चिंगारी 35 साल पहले लिंकन हॉल में भड़की थी।
मैं इस चर्चा को आगे ले जाना चाहूँगा क्योंकि चन्ना ने हमें जिन चीज़ों से रूबरू कराया था, उसमें हमारे लिए विचार करने को महत्वपूर्ण सबक हैं। गणित में सौन्दर्य लगातार उजागर होते पैटर्न्स में है। ज़रूरी नहीं कि यह संख्याओं तक सीमित रहे। ज्यामितीय पैटर्न भी उतने ही दिलकश होते हैं। गणित के छात्र इस सौन्दर्य तक पहुँच सकते हैं और इसकी खोजबीन कर सकते हैं, इससे चमत्कृत होकर यह सवाल पूछ सकते हैं कि ये पैटर्न क्यों उभरते हैं। इसे सम्भव बनाने के लिए स्वयं शिक्षक को अपने छात्रों के साथ इस यात्रा का हमसफर बनना होगा। मैं खुशकिस्मत था कि चन्ना मेरे शिक्षक थे।
मेरा मत है कि यह हरेक गणित शिक्षक का कर्तव्य है कि वह हर छात्र को गणितीय सौन्दर्य की इस दुनिया को देखने में मदद करे। इसके लिए हमें शिक्षण को मात्र एक रस्म या परीक्षा में अंक प्राप्त करने के लिए की जाने वाली कवायद के रूप में देखने की धारणा से आगे जाना होगा। बदकिस्मती से, स्कूल में हम जो कुछ सीखते हैं, उसमें से अधिकांश परीक्षा उत्तीर्ण करने और अच्छी नौकरियाँ प्राप्त करने के उद्देश्य से होता है। क्या शिक्षा की भूमिका मात्र यही होना चाहिए? मेरा मानना है कि हमें इस संकीर्ण, उपयोगितावादी नज़रिए से आगे जाना चाहिए। गणित सीखने-सिखाने में छात्र को सौन्दर्य व आनन्द की दुनिया से परिचित कराया जाना चाहिए।
यदि आप एक शिक्षक हैं जो ‘कोर्स पूरा करने’ की जद्दोजहद में समय की कमी से जूझ रहे हैं, तो शायद आप व्यग्र होकर पूछेंगे, “मेरे पास अध्यापन के लिए उपलब्ध समय का क्या होगा?” मेरा जवाब बस यह होगा कि आपका अध्यापन का समय ज़्यादा कारगर होगा क्योंकि आप छात्रों को गणित सीखने में ज़्यादा ग्रहणशील बनाएँगे।
चलिए, चक्रीय संख्याओं के उदाहरण पर लौटते हैं। 142857 को 8 से गुणा करने पर क्या होता है?
यह ऐसा दिखता है:
142857 x 8 = 1142856
क्या दाईं ओर की संख्या में आपको कोई चीज़ रोचक लगती है?
142857 जैसे चक्रीय संख्याएँ और भी हैं जो लगभग इसी तरह व्यवहार करती हैं। ऐसी एक संख्या है 0588235294117647 (अपने केल्कुलेटर पर 1/17 का मान पता कीजिए) और दूसरी है 052631578947368421 (केल्कुलेटर पर 1/19 कर लीजिए)। ये कहाँ से आ रही हैं? ऐसी कितनी और संख्याएँ हैं? क्या हम पता कर सकते हैं?
आप शायद सोचने लगे होंगे कि इस चक्रीय पैटर्न का सम्बन्ध शायद अभाज्य संख्याओं के व्युत्क्रम से है (आप देख ही सकते हैं कि 7, 17, 19 अभाज्य संख्याएँ हैं)। लेकिन जब आप 1/13 (13 भी एक अभाज्य संख्या है) का मान पता करते हैं तो आता है 0.076923। यह चक्रीय संख्या नहीं है। संख्याओं की दुनिया में अन्तर्सम्बन्ध और पैटर्न इसी तरह खोजे जाते हैं। मूलत: चन्ना गणित की अपनी पहली कक्षा में हमसे यही करवाना चाहते थे। वे हमें गणित सीखने को एक अलग ढंग से देखने को ठेल रहे थे। वे हमसे अन्तर्निहित पैटर्न तलाशने को कह रहे थे।
चन्ना के साथ, अध्यापन स्पष्ट और तार्किक था। गणित सीखना सहज और आसान था क्योंकि हम चीज़ों को ज़्यादा स्पष्टता से देखने लगे थे। ऊपर से, किस्से-कहानियाँ होती थीं।
कॉर्ल फ्रेडरिक गॉस का किस्सा
चन्द महीनों बाद चन्ना ने अपनी एक आश्चर्यजनक कथा सुनाई। “एक महान जर्मन गणितज्ञ थे कार्ल फ्रेडरिक गॉस। तुम्हें पता है स्कूल में उन्होंने क्या किया था?” हम हिलना-डुलना बन्द करके सुनने लगे। “किस्सा यह है कि 1780 के दशक में जब 10 वर्षीय गॉस स्कूल में थे, शिक्षक ने क्लास को एक सवाल दिया था:
“1 + 2 + 3 + 4 +...+ 100 का योग निकालो।”
मुझे लगता है कि गॉस के शिक्षक उस दिन थोड़ा सुस्ताना चाहते थे। कभी-कभी यह लालच होता है कि छात्रों को कोई काम दे दो और सुस्ताओ।
जब शेष छात्र इसे हल करने के लिए पसीना बहा रहे थे, एक-एक संख्या को जोड़ने की मेहनत कर रहे थे, तब तक गॉस ने उत्तर निकाल भी लिया था। चन्ना ने कहा, जैसा कि उस समय का रिवाज़ था, गॉस ने अपनी स्लेट शिक्षक की मेज़ पर रख दी। बाकी स्लेटें आने में समय लगा। गॉस ने जो किया, वह यह था: उन्होंने संख्याओं को नए तरीके से इस तरह जमाया कि उन्हें संख्याओं की 50 जोड़ियाँ मिल गईं, जिनमें से प्रत्येक का योग 101 था। अब सवाल 101 x 50 = 5050 जितना आसान हो गया। वाह! यह ज़बरदस्त चतुराई है, नहीं? वह भी एक दस साल के बच्चे के लिए?
जब चन्ना ने समझाया कि गॉस ने उस समय क्या किया था, मैं भौंचक्का था। उनका जवाब कुछ इस तरह दिखता है:
1 2 3 4 5 6... 47 48 49 50 100 99 98 97 96 95... 54 53 52 51
तो हमें मिलता है 100 + 1 + 101; 50 + 51 + 101; 95 + 6 + 101 वगैरह। ऐसी पचास जोड़ियाँ हैं।
इसलिए 50 + 101 + 5050.
सुन्दर है, नहीं? पता नहीं गॉस के शिक्षक की क्या प्रतिक्रिया रही। मेरे लिए तो यह एक ऐसा उदाहरण था जिसने गणित सीखने की मेरी धारणा को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया था। इसनेे मेरे विचारों को सिर के बल खड़ा कर दिया था। मैं इस सपाट/उबाऊ विषय के बारे में नए सिरे से सोचने को विवश हो गया। इसका सम्बन्ध सही उत्तर हासिल कर लेने से नहीं है। इसका सम्बन्ध तो इस बात से है कि हम चीज़ों को किस तरह से देखते हैं। इसका सम्बन्ध गणित की गहरी रचनाओं और अर्थों को देखने से है। हम यह काम अपने शिक्षक के साथ कर सके, और आनन्दरूपी कई और पारितोषिक थे जो हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे।
संख्याओं की सुन्दरता को लेकर कई और उदाहरण साझा करने की इच्छा हो रही है। मैं ये उदाहरण सिर्फ इसलिए शामिल कर रहा हूँ कि इनसे पता चलता है कि यदि हम अन्तर्निहित पैटर्न देखने लगें तो क्या कुछ सम्भव है।
1 = 1 = 13
3 + 5 = 8 = 23
7 + 9 + 11 =?
13 + 15 + 17 + 19 =?
21 + 23 + 25 + 27 + 29 =?
क्या आप यह पैटर्न देख पा रहे हैं? इसका क्या अर्थ हो सकता है? क्या यह सम संख्याओं के साथ भी होगा? इस ाृंखला में आगे क्या होगा, इसे लेकर हम कई सवाल पूछ सकते हैं।
यह वैसे ही एक रैंडम उदाहरण है। ऐसे कई हो सकते हैं। मैं कहना यह चाहता हूँ कि पहली नज़र में जितना नज़र आता है, हमारी संख्या प्रणाली में उससे कहीं ज़्यादा ओझल है। इसमें कई सारे असाधारण और अक्सर चौंकाने वाले गुणधर्म हैं। इनमें से कुछ तो महज़ संयोग हैं जबकि कई के अन्दर गहरे अर्थ छिपे हैं। इन सुन्दर गुणधर्मों को खोजना अत्यन्त सन्तोषदायक अनुभव हो सकता है। गणितज्ञ अक्सर इन्हें खोजने में अपना समूचा जीवन व्यतीत कर देते हैं। विषय का विकास इसी तरह होता है।
मैंने देखा है कि बच्चों को थोड़ा फुसलाना पड़ता है। लेकिन एक बार शु डिग्री हो गए तो यात्रा मज़ेदार ही होती है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किसी ऐसे स्कूल में पढ़ा रहे हों जो पूरी तरह सिर्फ परीक्षा परिणामों पर ही ध्यान देता है। एक मर्तबा शुरुआत हो गई तो पीछे मुड़कर नहीं देखते। यही तो चन्ना हमें विश्वास दिलाना चाहते थे - कि हम सबमें गणितीय क्षमताओं के बीज हैं, और हम इनका उपयोग ठीक उसी तरह कर सकते हैं, जैसे गॉस ने किया था।
ऑइलर का गणितीय सौन्दर्य
यदि मैं गणितीय सौन्दर्य के सबसे मशहूर उदाहरण, जैसा कि स्वयं गणितज्ञ मानते हैं, का ज़िक्र न करूँ तो इस चर्चा के साथ नाइन्साफी होगी। उदाहरण है ऑइलर (Euler, उच्चारण ऑइलर होता है) समीकरण का जिसका नामकरण महान स्विस गणितज्ञ लियोनहार्ड ऑइलर के नाम पर किया गया है। समीकरण ऐसा दिखता है:
eiπ + 1 = 0
ज़रा रुकिए! घबराने की कोई बात नहीं है। ‘e’, ‘i’, ‘π’ और 0 में से प्रत्येक संख्या अनोखी है और गणित में बार-बार आती है। मैंने इस मनमोहक समीकरण की बात ज़्यादा विस्तार में पुस्तक के अन्त में अतिरिक्त टीपों में की है। भौतिक शास्त्री और नोबेल विजेता रिचर्ड फिलिप्स फाइनमैन ने एक बार इसका ज़िक्र “... गणित का सबसे असाधारण और विस्मयजनक सूत्र” कहकर किया था। मेरे ख्याल में उन्होंने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि इनमें से कुछ संख्याएँ अन्तहीन (नॉन-टर्मिनेटिंग) और अनावर्ती (नॉन-रेकरिंग) दशमलव अंकों के साथ इस सूत्र में कुछ ऐसे विचित्र ढंग से जुड़ती हैं कि शून्य प्राप्त होता है। (‘e’ व ‘π’ में दशमलव के बाद के अंक खत्म ही नहीं होते।) यही बात मुझे क्लीन बोल्ड कर देती है। ऐसा कैसे होता है?
चन्ना ने जो चक्रीय संख्याएँ हमारे साथ साझा की थीं और जो दो उदाहरण मैंने ऊपर प्रस्तुत किए हैं, उन्हें देखकर मुझे किमियागरी की भी याद हो आई। यह काफी हद तक वैसा ही था जैसा मैंने अपने स्कूल की रसायन प्रयोगशाला में बैठे-बैठे देखा था। सख्त नज़र आने वाले हमारे रसायन शिक्षक विल्सन से हम डरते थे। लेकिन कई लोग मानते थे कि वे एक ‘सॉलिड’ शिक्षक हैं। तो विल्सन यह प्रदर्शन कर रहे थे कि विभिन्न द्रव आपस में कैसे अभिक्रिया करते हैं। एक रंगीन द्रव था जिसे किसी दूसरे रंगीन द्रव में मिलाया गया, और यह क्या! मिश्रण रंगहीन हो गया। कमरे में एक सामूहिक निश्वास सुनाई दी। चूँकि इन द्रवों को उड़ेलने के लिए काफी बड़े-बड़े पात्रों का उपयोग किया था, पूरी कवायद बहुत प्रभावशाली रही। इस बार सख्त विल्सन मुस्कराए। ज़ाहिर है, हमें भौतिक या रसायन शास्त्र का इतना ज्ञान नहीं था कि हम बता सकते कि रंग परिवर्तन क्यों हुआ था।
गणित में सौन्दर्य की धारणा वाकई महत्वपूर्ण होगी। 2014 में गणित का फील्ड्स मेडल (नोबेल पुरस्कार के समकक्ष) भारतीय मूल के कैनेडियन-अमेरिकन मंजुल भार्गव को दिया गया था। उनके काम के बारे में सूचना पत्र में अन्तर्राष्ट्रीय गणित संघ ने मंजुल के बारे में कहा था,
“असाधारण सृजनात्मकता के धनी गणितज्ञ, उन्हें कालजयी सौन्दर्य के सरल सवालों का चस्का है, जिन्हें उन्होंने ऐसी सुरुचिपूर्ण व शक्तिशाली नई विधियाँ विकसित करके हल किया है जो गहरी सूझबूझ प्रस्तुत करती हैं।”
अपने काम की बात करते हुए भार्गव ने कहा है,
“बौद्धिक उत्साह, सुन्दर संरचना, अनुप्रयोग - दीर्घवृत्ताकार वक्रों में यह सब है।”
“दीर्घवृत्ताकार वक्र” एक प्रकार के वक्र होते हैं जिनसे सम्पर्क गणित में होता है लेकिन ये वे दीर्घवृत्ताकार कक्षाएँ नहीं हैं जो सूर्य के आसपास पृथ्वी के परिक्रमा मार्ग का विवरण देती हैं। खैर, फिलहाल दीर्घवृत्ताकार वक्रों की चिन्ता न करें। उसकी बजाय हमें खुद से यह सवाल पूछना चाहिए: ऐसा क्यों है कि हम बच्चों को गणित में इस सौन्दर्य को देखने और उसकी खोजबीन करने में मदद नहीं कर पा रहे हैं? मेरा मानना है कि यह काम छोेटी उम्र में किया जा सकता है और हर उम्र के बच्चों के साथ किया जा सकता है। ऐसा तब होगा जब वे यह देखने लगेंगे कि गणित मात्र गणनाओं का नाम नहीं है। वैसे भी यह विषय गणनाओं का पर्याय नहीं है, ठीक उसी तरह जैसे साहित्य टायपिंग का पर्याय नहीं है।
चूँकि हम स्कूलों और शिक्षा की बात करेंगे और चूँकि स्कूलों के उद्देश्य अलग-अलग होते हैं, इसलिए हम बच्चों की शिक्षा में गणितीय ज्ञान (जिसमें संख्याओं का ज्ञान शामिल है) की भूमिका की पड़ताल करेंगे। संख्याओं के पैटर्न और सौन्दर्य की ये सारी चर्चाएँ मुझे इस सवाल पर ले आती हैं: संख्याओं की परवाह क्यों करें? और यह सवाल इस सवाल की ओर ले जाता है: गणित की परवाह ही क्यों करें?
तो मुझे इस चर्चा को आगे ले जाने की, गणितीय सौन्दर्य के दायरे से आगे ले जाने की इजाज़त दीजिए। एक छात्र या शिक्षक के नाते या इस विषय में रुचि रखने वाले किसी व्यक्ति के नाते संख्याओं के अध्ययन (और तदनुसार गणित के अध्ययन) को देखने का एक तरीका यह है कि इसे एक बौद्धिक पासटाइम माना जाए जिसका वास्तविक दुनिया से कदापि कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन जैसा कि हमने बार-बार देखा है, वास्तव में ऐसा नहीं है। अन्यथा अमूर्त नज़र आने वाले पैटर्न अन्तत: किसी-न-किसी ढंग से वास्तव में हमें काफी कुछ बताते हैं कि जिस दुनिया में हम जीते हैं, वह किस तरह डिज़ाइन हुई है या व्यवस्था में बँधी है।
अमूर्त से व्यावहारिक जीवन की ओर
मैं सिर्फ यह बात नहीं कर रहा हूँ कि दैनिक जीवन में गणित का उपयोग कैसे होता है, जैसे जब आप किराने की दुकान पर जाते हैं या जब आप किसी हवाई जहाज़ की डिज़ाइन बनाते हैं। नि:सन्देह इन मामलों में गणित की भूमिका होती है लेकिन इससे कहीं आगे जाकर कह रहा हूँ कि जो गणितीय पैटर्न और अन्तर्सम्बन्ध हम अपने दिमाग में खोजते हैं, वे सितारों, ग्रहों, परमाणुओं, कोशिकाओं की संरचना और उनके व्यवहार से अन्तरंग रूप से जुड़े हैं। ये पैटर्न और अन्तर्सम्बन्ध इस बात की व्याख्या करते हैं कि भौतिक विश्व किस ढंग से बना है।
यह खोजबीन के योग्य एक दिलकश विचार है। भौतिकी की अपनी खोजबीन के दौरान मैंने इस बात को बार-बार देखा है। मेरे ख्याल में, ऐसा लगता है कि हमारी चेतना (जो हमें गणित जैसी चीज़ें करने में समर्थ बनाती है) और प्राकृतिक विश्व की संरचना और व्यवहार के बीच एक गहरा रिश्ता है। भौतिक शास्त्री और नोबेल विजेता यूजीन विगनर इस सम्बन्ध को ‘प्राकृतिक विज्ञान में गणित की अकारण (असंगत) प्रभाविता’ की संज्ञा देते हैं। वे बताते हैं कि क्यों वे इसे अकारण कहते हैं:
“भौतिकी के नियमों को सूत्रबद्ध करने में गणित की भाषा की उपयुक्तता का चमत्कार एक अद्भुत तोहफा है जिसे हम न तो समझते हैं, न इसके योग्य अधिकारी (पात्र) हैं। हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए... कि यह, चाहे भले के लिए या बुरे के लिए, आगे बढ़ेगा हमारे आनन्द हेतु हालाँकि शायद हमें चकराने के लिए भी।”
विगनर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि जो गणित हमारे दिमाग में होता है, वह वास्तव में हमें यह समझने में मदद कर सकता है कि ग्रह कैसे गति करते हैं। साथ ही, यह हमें अपने आसपास की कई प्राकृतिक परिघटनाओं को समझने और उनकी भविष्यवाणी करने में भी समर्थ बनाता है। यदि हम इस विचार ाृंखला को आगे बढ़ाएँ तो यह विश्वास दिलाना ज़्यादा मुश्किल नहीं होगा कि गणित में कुछ तो उपयोगी है।
अलबत्ता, मनुष्यों की एक किस्म है जो तथाकथित ‘शुद्ध’ या ‘असल’ गणित करती है। उनका कहना है कि इसका अनुशीलन अमूर्त है और इसका यथार्थ दुनिया से कुछ लेना-देना नहीं है। मशहूर गणितज्ञ जी.एच. हार्डी गणित और यथार्थ दुनिया के बीच के सम्बन्ध को घोर तिरस्कार के भाव से देखते थे। प्रसंगवश हार्डी वही हैं जिन्होंने लगभग सौ साल पहले स्वाध्यायी जीनियस श्रीनिवास रामानुजन को कैम्ब्रिज आकर अपने साथ काम करने को आमंत्रित किया था। हार्डी का तो यहाँ तक कहना था कि गणित की खातिर गणित करने की तुलना में ऐसे प्रयास तुच्छ हैं:
“ऐसी चीज़ें गणितज्ञों को सुकून तो दे सकती हैं, लेकिन एक असली गणितज्ञ के लिए इससे सन्तोष करना बहुत मुश्किल है। किसी भी असल गणितज्ञ को महसूस करना ही चाहिए कि गणित का वास्तविक दारोमदार इन अधकचरी उपलब्धियों पर नहीं टिका है, और, कि गणित की प्रचलित प्रतिष्ठा काफी हद तक अज्ञान और गफलत पर टिकी है।”
लेकिन अमूर्त यथार्थ से जुड़ता ज़रूर है। गणित के अमूर्त संख्या पैटर्न हमें बताते हैं कि हमारे मस्तिष्क कैसे काम करते हैं और इस दुनिया की रचना कैसी है। ये पैटर्न हमें यह खुलासा करने में भी मदद कर सकते हैं कि समाज कैसे काम करता है। ये पैटर्न ऐसे सवालों पर रोशनी डाल सकते हैं: क्यों कुछ लोग अमीर हैं और बहुत सारे लोग गरीब हैं? कुछ लोग इतनी सारी सम्पत्ति कैसे जमा कर लेते हैं? अमीरों और गरीबों के भौतिक हालात में क्या अन्तर है? सरकार करदाताओं से प्राप्त धन का उपयोग कैसे करती है? कुछ लोग कैसे अपना पैसा टैक्स हेवन्स में पहुँचा देते हैं?
हो सकता है ये सवाल अलग-अलग लगें लेकिन गणित - विशिष्ट रूप से संख्याओं के ज्ञान - के उपयोग की मदद से सामाजिक न्याय के मुद्दों का अध्यापन किया जा सकता है, उनके महत्व को समझा जा सकता है। यदि हम गणित को दुनिया में अन्याय और शोषण को उजागर करने और उससे लड़ने में इस्तेमाल कर सकें तो गणित सीखने का उद्देश्य ज़्यादा व्यापक, शायद ज़्यादा तात्कालिक महत्व का भी हो जाता है। तब यह हार्डी की कल्पना से दूर जाने लगता है। बहरहाल, मैं इस बात को यहीं छोड़ता हूँ क्योंकि इसके लिए अलग से चर्चा की ज़रूरत होगी। मैं इस मुद्दे पर फिर लौटूँगा।
गणितीय यात्रा मतलब पैटर्न व अन्तर्सम्बन्ध की खोज
संख्याओं को सीखने को लेकर आपका झुकाव जिधर भी हो - मैंने ऊपर जो अलग-अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं, उनमें से आप अपनी पसन्द वाला ले सकते हैं - चन्ना ने 1982 की वर्षा ऋतु में चक्रीय संख्याओं के अपने उदाहरण और गॉस के संख्या जादू के ज़रिए हम सब पर जादू चला दिया था। इस एक मास्टर स्ट्रोक के माध्यम से उन्होंने हमें बता दिया था कि गणित सीखने का मतलब मात्र यह नहीं है कि पास होने के बाद पिछली कक्षा के सवालों का रीविज़न कर लिया जाए, या अपनी गणित की किताब में अध्यायों के अन्त में दिए गए सवालों को मशीनी ढंग से सुलझा लिया जाए। इसका मतलब मात्र अपने टेस्ट या परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने की तैयारी करना तो कदापि नहीं है। चन्ना का आशय यह था: “देखो, गणित सीखने का सम्बन्ध पैटर्न और अन्तर्सम्बन्ध खोजने से है। यह एक अनजानी दुनिया में कदम रखने का नाम है, जो अचम्भों और सुखद पारितोषिकों से भरी है।”
मैं मानता हूँ कि सौन्दर्य और पैटर्न की तलाश किसी भी गणितीय यात्रा के केन्द्र में है। लिहाज़ा, यह गणित शिक्षा के भी केन्द्र में है। हमें चन्ना से यही बात सीखनी चाहिए। यह पहली बात है जिसकी ओर मैं आपका ध्यान खींचना चाहूँगा।
यह कहा जा सकता है कि चक्रीय संख्या का उदाहरण शायद संख्या प्रणाली में एक सनकी संयोग है और गणितीय सौन्दर्य के विचार का उद्घाटन करने वाले कई अन्य उदाहरण हैं। मैं असहमति के लिए क्षमा चाहूँगा। यदि संख्या 142857 और गॉस का शॉर्टकट 35 साल बाद भी मुझे याद है तो उन अनुभवों में ज़रूर कोई ऐसी बात रही होगी जिन्होंने एक छात्र के रूप में मेरे ऊपर इतना टिकाऊ असर डाला। और यदि ऐसी कई अन्य संख्याएँ हैं तो मैं नहीं कह सकता कि ये मात्र संख्या प्रणाली के सनकी संयोग हैं। पक्की बात है कि इसमें कुछ तो है, कुछ गहरा।
यह बताना ज़रूरी है कि लोग संख्याओं को कई अलग-अलग ढंग से देखते हैं, जैसा कि मैंने इन वर्षों में पहचाना है। संख्याएँ काव्य में, स्वर्ग और नर्क से जुड़े मसलों में, ज्योतिष में, मानवता के कई धर्मों और संस्कृतियों में भूमिका निभाती हैं। यद्यपि हमारी बातचीत वहाँ तक नहीं गई।
उसके बाद संख्याओं की दुनिया में बहुत अधिक चहलकदमी नहीं हुई थी। जो स्कूल अपने परीक्षा परिणामों पर गर्व करता हो, तथा शिक्षकों को कल्पनाशीलता की ज़्यादा गुंजाइश न देता हो, वहाँ सामान्य कारोबार तो होना ही था। अलबत्ता, जिस तरह से हमें गणित पढ़ाया गया था, वह निश्चित रूप से अलग था। मेरे अन्दर कुछ बदल गया था। हमेशा के लिए।
आगे और बहुत कुछ आने वाला था।
...जारी
शेषागिरी केएम राव: यूनीसेफ, छत्तीसगढ़ में शिक्षा विशेषज्ञ हैं। प्रारम्भिक शिक्षा और बाल्यावस्था में विकास में विशेष रुचि। साथ ही, आधुनिक शैक्षिक मुद्दों पर लिखने में दिलचस्पी।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।
यह लेख एकलव्य द्वारा प्रकाशित पुस्तक द मैन हू टॉट इंफिनिटी से लिया गया एक अंश है।
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