किशोर पंवार
फूलों की आयु या दीर्घायु को समय के अनुरूप परिभाषित किया जा सकता है। इस अन्तराल में फूल खुला और कार्यात्मक रहता है, और पौधों की प्रजनन सफलता के लिए यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है क्योंकि यह सीधे परागण प्रक्रिया के लिए उपलब्ध समय को निर्धारित करता है, और इस प्रकार, परागकण के वितरण में सहायक है।
अक्सर हम पेड़-पौधों की उम्र के बारे में चर्चा करते हैं जैसे एकवर्षी और बहुवर्षी पौधे। अधिकांश शाकीय पौधे एक या दो वर्ष में ही अपना जीवन-चक्र पूर्ण कर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। वहीं झाड़ियाँ और पेड़ कई साल तक ज़िन्दा रहते हैं। दस साल से लेकर सैकड़ों-हज़ारों साल पुराने पेड़ों के उदाहरण हमारे सामने हैं। गुलाब, गुड़हल, कनेर, मेहंदी जैसी झाड़ियाँ और ताड़, नीम, पीपल, बरगद जैसे शतायु पेड़। चीड़, देवदार, सिकोया के विशाल, सदाबहार पेड़ हज़ारों साल जीने वाले पेड़ों के उदाहरण हैं। पेड़ों की उम्र के साथ कभी-कभी पत्तियों की उम्र की भी चर्चा होती है जिसके आधार पर जंगलों को पतझड़ी एवं सदाबहार जंगलों में बाँटा जाता है। पत्तियों की उम्र कुछ दिन से लेकर सैकड़ों साल तक आँकी गई है। जैसे वेलविस्चिया मिरबेलिस के पौधे पर तो पूरे जीवन काल में दो ही पत्तियाँ आती हैं। परन्तु पेड़-पौधों के सबसे महत्वपूर्ण आकर्षक सुगन्धित व रसीले अंगों यानी फूलों की उम्र की चर्चा कम ही होती है।
फूलों की उम्र का निर्धारण
स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर की किसी भी पाठ्यपुस्तक में यह नहीं बताया जाता कि फूलों की उम्र कितनी होती है। पर हाल ही में फूलों की उम्र पर एक बहुत ही उम्दा शोधपत्र पढ़ने में आया: जर्नल ऑफ प्लांट इकॉलॉजी में प्रकाशित ‘इफेक्ट ऑफ फ्लोरल सेक्सुअल इन्वेस्टमेंट एंड डाईकोगैमी ऑन फ्लोरल लॉन्जेविटी’ (अर्थात फूलों में लैंगिक निवेश और अलग-अलग समय पर पकने वालें फूलों की उम्र पर असर)।
कुछ फूल होते हैं जो रात को खिलते हैं, सुबह मुरझा जाते हैं या झड़ जाते हैं। कुछ फूल एक बार खिलते हैं तो कई दिनों तक खिले रहते हैं। यह वैज्ञानिकों की जिज्ञासा का विषय रहा है कि फूल की उम्र का निर्धारण कैसे होता है। फूल की उम्र से तात्पर्य है कि कोई फूल कितने समय तक खिला रहता है और कामकाजी (यानी प्रजनन की दृष्टि से कामकाजी) रहता है।
फूलों की उम्र को लेकर आम तौर पर यह माना जाता है कि इस सन्दर्भ में कई कारक काम करते हैं। जैसे वह पौधा कितनी ऊँचाई वाले स्थानों पर पाया जाता है, उसका परागण किस तरीके से होता है, परागणकर्ता की उपलब्धता, और फूल का लिंग। कुछ फूल तो एकलिंगी होते हैं (अर्थात नर अथवा मादा) और उनके लिंग को लेकर कोई दुविधा नहीं होती लेकिन द्विलिंगी फूलों का लिंग भी पूरे समय एक नहीं रहता। कुछ समय तक वह परागकणों का स्रोत रहता है और कुछ समय तक वह परागकणों का ग्राही बन जाता है। इन दो अवधियों में उसका लिंग क्रमश: नर व मादा कहा जाता है।
फूलों की उम्र को लेकर समय-समय पर कई परिकल्पनाएँ प्रस्तुत हुई हैं। जैसे एक परिकल्पना का सम्बन्ध इस बात से है कि किसी पेड़ या पौधे में संसाधनों का बँटवारा कैसे होता है। परिकल्पना कहती है कि फूलों का मुख्य काम पौधे के लिए सन्तानोत्पत्ति करना है - फूलों में परागण, निषेचन की क्रिया के बाद फल और बीज बनते हैं। यही बीज तो पौधे के वंश को आगे बढ़ाते हैं। अब पौधे के सामने सवाल यह उठता है कि एक बार खिलने के बाद फूल लम्बे समय तक बना रहे या जल्दी-से झड़ जाए और नए फूल का निर्माण किया जाए। इसका फैसला इस आधार पर होता है कि एक ही फूल को बनाए रखने (फूल के रख-रखाव) में ज़्यादा ऊर्जा खर्च होती है या नए फूल को बनाने में। यदि किसी परिस्थिति में फूलों के परागण की दर तेज़ है तो एक ही फूल को देर तक खिलाए रखने में कोई तुक नहीं है क्योंकि वह अपनी भूमिका तो निभा ही चुका है। दूसरी ओर यदि परागण की गति धीमी है तो फूल को तब तक सम्भालना ज़रूरी होगा जब तक कि उसके परागकण बिखर न जाएँ या वह अन्य फूल से परागकण प्राप्त न कर ले। अर्थात बीज निर्माण करने वाली क्रिया होने तक फूल खिला रहेगा।
इसका मतलब है कि यदि फूलों के रख-रखाव की लागत कम है तो लम्बी अवधि के फूलों को तरजीह मिलेगी क्योंकि ऐसा होने पर उसके परागकणों को प्रसारित करने के तथा अन्य फूलों से परागकण प्राप्त करने के ज़्यादा अवसर होंगे। कई अध्ययनों में पता भी चला है कि फूलों की उम्र मूलत: नर व मादा अवस्था की फिटनेस (यानी सन्तानोत्पत्ति की सम्भावना) को बढ़ावा देने से सम्बन्धित होती है।
फूलों के निर्माण की अवधि
यदि संसाधनों के बँटवारे की बात सही है तो हमें नए फूलों के निर्माण की लागत को ध्यान में रखना होगा। यह सही है कि बड़े-बड़े फूलों में परागकणों की संख्या भी ज़्यादा होती है। लेकिन यदि किसी वजह से ये परागकण फूल में ही बने रहें तो ज़्यादा परागकण बनाकर कोई फायदा नहीं होगा। ऐसा तब हो सकता है जब परागणकर्ताओं का अभाव हो।
एक महत्वपूर्ण अवलोकन यह रहा है कि एक्विलेजिया बुर्जेरियाना में फूल क्रमिक रूप से खिलते हैं। देखा गया है कि पहले खिलने वाले फूल में परागकणों की संख्या बाद में खिलने वाले फूल की अपेक्षा काफी अधिक होती है और पहला फूल ज़्यादा समय तक खिला रहता है। इसका एक कारण यह बताया गया है कि यह पहले फूल की फिटनेस को बढ़ाने का तरीका हो सकता है।
वैसे भी पूर्व के अवलोकनों में देखा गया था कि फूलों की लम्बी उम्र का सम्बन्ध प्रति फूल परागकणों की संख्या से है। वहीं, 110 प्रजातियों का एक अन्य अवलोकन यह भी है कि फूलों की लम्बी उम्र का सम्बन्ध फूल की साइज़ और प्रति फूल अण्डाणुओं की संख्या से है। अर्थात इन अवलोकनों से यह स्षष्ट नहीं होता कि फूलों की लम्बी उम्र का सम्बन्ध फूलों में होने वाले लैंगिक निवेश से है या नहीं है। लैंगिक निवेश से तात्पर्य है कि किसी फूल में परागकण अथवा अण्डाणु यानी जन्युओं (गैमेट्स) पर कितना निवेश किया जाता है। ज़्यादा परागकण या ज़्यादा अण्डाणु मतलब अधिक लैंगिक निवेश।
एक परिकल्पना यह भी रही है कि जिन द्विलिंगी फूलों में नर और मादा जननांग अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं (यानी भिन्नकाल परिपक्वता की स्थिति), वे अन्य फूलों की अपेक्षा ज़्यादा समय तक खिले रहते हैं। लेकिन इस बात को वास्तविक अवलोकनों का सहारा नहीं मिल पाया था।
अब कुछ वैज्ञानिकों ने फूलों की उम्र के कारण समझने के लिए एक और अध्ययन किया है। इस अध्ययन में उन्होंने एक ही स्थान पर उग रही 37 प्रजातियों की आबादियों को चुना था। इनमें से 21 पौधे ऐसे थे जिनमें नर और मादा अलग-अलग समय पर परिपक्व (भिन्नकाल पक्वता या डायकोगैमस) होते हैं और इन सब-के-सब में नर जननांग पहले परिपक्व होते हैं (ऐसे फूलों को पुम्पूर्वी या प्रोटण्ड्रस कहते हैं)। अन्य 16 पौधे अभिन्नकाल परिपक्वता के धनी थे।
शोधकर्ताओं की परिकल्पना यह थी कि किसी फूल में दो तरह के अंग पाए जाते हैं – एक तो वे जो सीधे-सीधे जनन से जुड़े होते हैं यानी स्त्रीकेसर और पुंकेसर। दूसरे वे जो इन अंगों की क्रिया में सहायक होते हैं यानी अंखुड़ियाँ, पंखुड़ियाँ, मकरन्द ग्रन्थियाँ वगैरह। उनका ख्याल था कि फूलों में पहले किस्म के अंगों यानी लैंगिक अंगों पर निवेश से तय होता है कि फूल कितने समय तक खिला रहेगा।
जिन 37 प्रजातियों का अध्ययन किया गया, उनकी खिले रहने की अवधि में काफी विविधता थी – 1 से लेकर 15 दिन तक। उन्होंने यह भी देखा कि प्रति फूल परागकणों की संख्या में भी काफी विविधता थी (643 से लेकर 7,10,880) और अण्डाणुओं की संख्या में भी (1 से लेकर 426 तक)। फूलों की साइज़ भी बहुत अलग-अलग थी – जहाँ एक प्रजाति के फूलों की औसत साइज़ 6 वर्ग मि.मी. से कम थी (पिम्पीनेला डायवर्सीफोलिया), वहीं सबसे बड़े फूल 1400 वर्ग मि.मी. के थे (डेल्फिनियम युआनन)।
वैसे फूलों की साइज़, परागकणों व अण्डाणुओं की संख्या तथा फूल की उम्र और नर-मादा अवस्था की उम्र नापने की विधियाँ अपने आप में रोचक हैं किन्तु यहाँ हम मापन की विधियों में नहीं जाएँगे। उनका निष्कर्ष था कि फूलों की साइज़ बढ़ने पर परागकणों की संख्या भी बढ़ती है और अण्डाणुओं की संख्या भी। अलबत्ता, फूलों की उम्र का सम्बन्ध परागकणों की तादाद से तो दिखा लेकिन अण्डाणुओं की संख्या से नहीं। और इस बात की पुष्टि हुई कि पुम्पूर्वी प्रजातियों में फूल ज़्यादा समय तक खिले रहते हैं बनिस्बत उन प्रजातियों के जिनमें भिन्नकाल परिपक्वता नहीं पाई जाती। यानी भिन्नकाल परिपक्वता होने पर फूल लम्बी उम्र पाते हैं।
यहाँ एक और बात पर गौर करना ज़रूरी है। शोधकर्ताओं ने फूलों की उम्र को तीन तरह से देखा था – पूरे फूल की उम्र, नर अवस्था की उम्र तथा मादा अवस्था की उम्र। पूरे फूल की उम्र से तात्पर्य है कि फूल के खुलने से लेकर कुम्हलाने (जो फूल के वापिस बन्द होने, मुरझाने या झड़ जाने से पता चलता है) तक की अवधि। नर अवस्था की उम्र से तात्पर्य है किसी फूल के प्रथम परागकोष के फटने से लेकर समस्त परागकोषों के फटने या वर्तिकाग्र के लोब या वर्तिकाग्र के नज़र आने तक की अवधि। मादा अवस्था की उम्र का मतलब है वर्तिकाग्र या वर्तिकाग्र के लोब खुलने से लेकर फूल के झड़ने की अवधि।
फूलों के आकार का प्रभाव
शोधकर्ताओं ने 37 प्रजातियों के फूलों में परागकणों और अण्डाणुओं की संख्या का भी हिसाब रखा। इन सारे आँकड़ों के आधार पर उन्होंने पाया कि फूल बड़ा हो तो परागकणों की संख्या भी अधिक होती है और अण्डाणुओं की संख्या भी बढ़ती है। अर्थात बड़े फूलों के साथ ज़्यादा जन्यु (गैमेट्स) पाए जाते हैं। इसका मतलब है कि बड़े फूलों में लैंगिक रचनाओं में ज़्यादा निवेश किया जाता है।
उन्होंने पाया कि 21 अलग-अलग समय पर पकने वाले फूलों वाली प्रजातियों में फूल की साइज़, फूल की उम्र और नर अवस्था की अवधि में सह-सम्बन्ध है। लेकिन मादा अवस्था की अवधि का सम्बन्ध फूल की साइज़ और फूल की कुल उम्र से नहीं देखा गया। यह भी देखा गया कि भिन्नकाल परिपक्वता वाली प्रजातियों में नर अवस्था की अवधि, फूल की उम्र तथा परागकणों की संख्या में सकारात्मक सम्बन्ध है जबकि अण्डाणुओं के सन्दर्भ में ऐसा कोई सम्बन्ध नज़र नहीं आता। दरअसल, अण्डाणुओं की संख्या का सम्बन्ध न तो नर-मादा अवस्था की अवधि के साथ था और न ही फूल की उम्र के साथ।
इन परिणामों से संकेत मिलता है कि फूल की उम्र पर नर लैंगिक क्रिया पर किए गए निवेश का असर होता है, न कि मादा लैंगिक क्रिया पर किए गए निवेश का। हमने इस परिकल्पना की चर्चा की थी कि भिन्नकाल परिपक्वता वाली प्रजाजियों के फूलों की उम्र ज़्यादा होनी चाहिए। उक्त शोधकर्ताओं ने पाया कि यह बात सही है कि उन प्रजातियों के फूल ज़्यादा लम्बे समय तक खिले रहते हैं जिनमें पुंकेसर पहले परिपक्व होते हैं (पुम्पूर्वी फूलों के खिले रहने की अवधि औसत 6.75 दिन, अभिन्नकाल परिपक्वता वाले फूलों में 3.6 दिन)। और, पुम्पूर्वी फूलों में नर अवस्था (औसतन 2.7 दिन) की तुलना में मादा अवस्था (4.00 दिन) कहीं ज़्यादा लम्बी होती है।
उपरोक्त अध्ययन का एक निष्कर्ष यह है कि फूलों की साइज़ का सम्बन्ध फूलों के लैंगिक निवेश से है क्योंकि ज़्यादा बड़े फूलों में ज़्यादा परागकण और ज़्यादा अण्डाणु बनते हैं। और फूल की उम्र का सम्बन्ध परागकणों की संख्या से देखा गया। 110 प्रजातियों के एक अन्य अध्ययन में यह भी देखा गया है कि कोस्टा रिका के वर्षावनों में फूल ज़्यादा देर तक खिले रहते हैं (2.7 दिन) बनिस्बत निचले कटिबन्धीय इलाकों के (1 दिन)। इसके आधार पर यह भी कहा गया है कि ऐसा शायद दो इलाकों में परागणकर्ताओं की संख्या और सक्रियता के कारण होता है। एक शोधकर्ता ने 40 प्रजातियों के अध्ययन में उन्हें अण्डाणुओं की संख्या के आधार पर तीन समूहों में बाँटा – 1-5, 5-50 और 50 से अधिक। उन्होंने इन तीन अलग-अलग समूहों में फूलों की औसत उम्र की गणना की और पाया कि 50 से अधिक अण्डाणुओं वाली प्रजातियों में फूलों की उम्र सबसे अधिक होती है। इसके आधार पर निष्कर्ष यह निकला कि उन प्रजातियों के फूलों की उम्र का निर्धारण मादा प्रजनन को अधिकतम सफल बनाने के लिहाज़ से हुआ है।
कुछ अध्ययनों में यह भी निष्कर्ष निकला है कि कृत्रिम परागण की स्थिति में फूलों की उम्र बहुत कम हो जाती है। इसे परागण-प्रेरित झड़ना (सेनेसेंस) कहते हैं। इससे तो लगता है कि परागण वर्तिकाग्र तक पहुँच जाएँ, यही अन्तिम पड़ाव होता है। यानी फूल की उम्र वास्तव में मादा की प्रजनन सफलता को सुनिश्चित करने के लिए है। अलबत्ता, कुछ अध्ययनों से पता चला है कि अण्डाणुओं का पर्याप्त परागण हो जाने के बाद भी नर अवस्था की एक न्यूनतम उम्र बरकरार रहती है। उदाहरण के लिए, एरिथ्रेनियम जेपोनिकम में फूलों का झड़ना - वर्तिकाग्र पर पर्याप्त परागकण सुनिश्चित करने के बाद भी वे फूल 13 दिन तक टिके रहे। एक अन्य अध्ययन में पता चला कि ब्रासिका लेपस में परागकोषों से परागकण हटाकर फूलों का झड़ना तेज़ किया जा सकता है। यानी यहाँ वर्तिकाग्र पर परागकण जमा करके नहीं बल्कि परागकोष से परागकण हटाकर फूल की उम्र कम हुई। ऐसा लगता है कि फूलों की उम्र परागकणों को हटाने व जमा करने की दरों के बीच सन्तुलन पर निर्भर करती है।
चाहे अण्डाणुओं के उत्पादन का सवाल हो या परागकणों की संख्या का, बात यह लगती है कि फूलों की उम्र लैंगिक निवेश पर निर्भर करती है।
किशोर पंवार: शासकीय होल्कर विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर में बीज तकनीकी विभाग के विभागाध्यक्ष और वनस्पतिशास्त्र के प्राध्यापक रहने के बाद, शासकीय निर्भय सिंह पटेल विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर से सेवानिवृत्त। होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से लम्बा जुड़ाव रहा है जिसके तहत बाल वैज्ञानिक के अध्यायों का लेखन और प्रशिक्षण देने का कार्य किया है। एकलव्य द्वारा जीवों के क्रियाकलापों पर आपकी तीन किताबें प्रकाशित। शौकिया फोटोग्राफर, लोक भाषा में विज्ञान लेखन व विज्ञान शिक्षण में रुचि।
सम्पादन: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।
सन्दर्भ:
1. जर्नल ऑफ प्लांट इकॉलॉजी: इफेक्ट ऑफ फ्लोरल सेक्सुअल इन्वेस्टमेंट एंड डाईकोगैमी ऑन फ्लोरल लॉन्जेविटी