सवाल: ठण्ड के दिनों में सुबह हमारे मुँह से भाप क्यों निकलती है?
- हिरण खेड़ा, सिवनी मालवा, ज़िला-होशंगाबाद, मध्य प्रदेश
जवाब: आपने शायद इस बात पर ध्यान दिया हो या हो सकता है कि आपने भी यह खेल अपने बचपन में खेला हो जिसमें सुबह-सुबह, विशेषकर सर्दी के दिनों में, बच्चे अपने मुँह से भाप निकालने का खेल खेलते हैं और अपने संगी-साथियों को उस भाप को धुआँ बताकर मस्ती करते हैं।
वास्तव में हमारे वातावरण में पानी की नमी भी गैस के रूप में उपस्थित होती है। हवा में कितनी नमी वाष्प (गैस) के रूप में रह पाएगी, यह तापमान और दबाव पर निर्भर होता है। पानी की भाप हमें दिखाई नहीं देती है, अर्थात अदृश्य होती है। जब वातावरण का तापमान गिरकर एक विशिष्ट स्तर पर आ जाता है तो वातावरण में गैसीय रूप में उपस्थित नमी, पानी की बहुत छोटी-छोटी बूंदों में परिवर्तित हो जाती है जो हमें दिखने लगती है। इस तापमान को औसत ओस बिन्दु (Average Dew Point) कहा जाता है और वाष्प के द्रव में बदलने की इस प्रक्रिया को संघनन (condensation) कहते हैं।
सर्दियों में वातावरण का तापमान शरीर के तापमान की तुलना में काफी कम होता है। कभी-कभी वातावरण का तापमान औसत ओस बिन्दु से कम हो जाता है। ओस बिन्दु मतलब वह तापमान जिस पर वातावरण में गैस के रूप में उपस्थित पानी ओस बनने लगता है।
आप यह बात आसानी-से जाँच सकते हैं कि हमारी साँस गर्म होती है और नमी से संतृप्त होती है। सर्दी के मौसम में मुँह और नाक से निकलने वाली गर्म साँस हवा के सम्पर्क में आकर ठण्डी हो जाती है। साथ ही, गैसीय नमी भी ठण्डी हो जाती है। यदि वह इतनी ठण्डी हो जाए कि उसमें उपस्थित गैसरूपी नमी संघनित होने लगे तो वह छोटी-छोटी बूंदों में परिवर्तित हो जाती है और एक छोटे-से बादल या धुएँ के गुबार के रूप में दिखने लगती है। नमी के इसी छोटे-से बादल को मुँह और नाक से निकलता धुआँ समझकर बच्चे और हम सभी खुश होते और हँसते हैं।
आपने यह भी देखा होगा कि सर्दियों के मौसम में किसी बन्द गर्म कमरे में या फिर ठण्ड कम होने के बाद खुले में भी मुँह से निकलने वाले ‘धुएँ’ की मात्रा या तो कम हो जाती है या फिर बिलकुल समाप्त ही हो जाती है। इसका सीधा-सीधा अर्थ है कि जैसे-जैसे बाहर के वातावरण का तापमान बढ़ता जाता है, हमारी साँस के साथ निकलने वाली भाप भी दिखना कम या खत्म हो जाती है।
आइए, अब सर्दियों में मुँह और नाक से भाप निकलने की प्रक्रिया के वैज्ञानिक तथ्य का विश्लेषण करते हैं। वातावरण में पानी तीन अवस्थाओं में पाया जाता है। ठोस अवस्था में इसे बर्फ, द्रव अवस्था में जल और गैसीय अवस्था को भाप कहा जाता है। पानी के अणु -- H2O ठोस अवस्था में एक-दूसरे से मज़बूती के साथ जुड़े रहते हैं, द्रव अवस्था में यह जुड़ाव थोड़ा कम मज़बूत और गैसीय अवस्था में बहुत कमज़ोर होता है। ठोस अवस्था में पानी के इन अणुओं की गतिज ऊर्जा न के बराबर और गैसीय अवस्था में सबसे अधिक होती है। सर्दियों में जो अदृश्य नमी वातावरण में होती है, उसके अणु वातावरण के कम तापमान के कारण अपनी ऊर्जा खोकर पास-पास आ जाते हैं और पानी की छोटी-छोटी बूंदों के रूप में संघनित होकर दिखने लगते हैं। आपने देखा होगा कि सर्दियों के मौसम में वातावरण में अक्सर घना कोहरा बन जाता है जिससे हमें दूर तक दिखना भी बन्द हो जाता है। यह कोहरा इसी संघनन की प्रक्रिया का परिणाम है अर्थात वातावरण में मौजूद अदृश्य गैसरूपी नमी संघनन की प्रक्रिया के कारण छोटी-छोटी बूंदों में परिवर्तित होकर धुएँ जैसे कोहरे का रूप ले लेती है। वातावरण में उपस्थित अदृश्य गैसीय नमी के संघनन की इसी प्रक्रिया का एक और सबसे अच्छा उदाहरण है फ्रिज से निकाली गई ठण्डे पानी की सूखी बोतल का बाहर निकाले जाने पर, कुछ ही देर बाद गीला हो जाना।
इसके साथ ही हम यह भी देखते हैं कि जब वातावरण का तापमान बहुत कम हो जाता है (ठण्डे इलाकों में या फिर बर्फीले स्थानों पर), तो वातावरण में मौजूद अदृश्य गैसरूपी नमी या फिर साँस के साथ निकलने वाली नमी, द्रव रूप में आने के बाद और ठण्डी होकर बर्फ के छोटे-छोटे कणों में परिवर्तित होकर चेहरे पर जम जाती है। आपने पर्वतारोहियों या फिर ऊँचे पहाड़ों पर डटे सैनिकों के चित्रों में उनके चेहरों और कपड़ों पर जमी बर्फ अवश्य देखी होगी। वहाँ के वातावरण की नमी में पानी के अणु अपनी गतिज ऊर्जा पूरी तरह खोकर ठोस अवस्था अर्थात बर्फ के रूप में जम जाते हैं।
तो बचपन का मुँह से धुआँ निकालने का खेल है तो मज़ेदार और इसके पीछे के तथ्य की समझ इसे और भी रोचक बनाती है।
कोकिल चौधरी: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।