युवा व्यक्तियों के खून का प्लाज़्मा बूढ़े चूहों को दिया जाए, तो उनकी जवानी लौट आती है। उनकी याददाश्त भी बेहतर हो जाती है और शारीरिक गतिविधियां भी। इस विधि का विकास करने वाले सकुरा मिनामी का कहना है कि इसकी मदद से लोगों के उपचार के प्रयास किए जा रहे हैं।
इसी संदर्भ में पहले किए गए प्रयोगों में पता चला था कि यदि बूढ़े चूहों और युवा चूहों के रक्त संचार को आपस में जोड़ दिया जाए, तो बूढ़े चूहों को तो फायदा होता है मगर युवा चूहों में बुढ़ाने के लक्षण दिखने लगते हैं। खून के इस असर का प्रमुख कारण संभवत: उसका एक घटक प्लाज़्मा है। कई अध्ययनों में पता चला था कि युवा चूहों का रक्त-प्लाज़्मा बूढ़े चूहों को दिया जाए तो मस्तिष्क की हालत बेहतर हो जाती है और लीवर, हृदय तथा कई अन्य अंगों के कामकाज पर भी सकारात्मक असर पड़ता है।
तो मिनामी ने सोचा कि युवा मनुष्यों का रक्त-प्लाज़्मा बूढ़े चूहों को देकर देखा जाए। उन्होंने 18 वर्षीय व्यक्तियों का रक्त प्लाज़्मा लेकर उसे 12 माह के चूहों के रक्त संचार में इंजेक्ट कर दिया। (गौरतलब है कि 12 माह का चूहा मनुष्य के हिसाब से 50 वर्ष उम्र के बराबर का होता है।)
तीन सप्ताह तक रक्त प्लाज़्मा दिए जाने के बाद इन चूहों की तुलना युवा चूहों से की गई और ऐसे बूढ़े चूहों से भी की गई जिन्हें रक्त प्लाज़्मा नहीं दिया गया था। पता चला कि मानव प्लाज़्मा में पुनर्जीवित करने की क्षमता तो है। उपचारित बूढ़े चूहे लगभग युवा चूहों के बराबर भाग-दौड़ कर पा रहे थे और उनकी याददाश्त अन्य बूढ़े चूहों (जिन्हें उपचार नहीं दिया गया था) से बेहतर थी। यानी रक्त-प्लाज़्मा संज्ञान क्षमता को बेहतर बनाता है। मतलब रक्त प्लाज़्मा में कोई चीज़ है जो दिमाग के कामकाज पर असर डालती है।
मिनामी के दल ने उपचारित व अनुपचारित चूहों के मस्तिष्क का विच्छेदन करके अध्ययन भी किया। देखा गया कि उपचारित चूहों में नई तंत्रिकाएं ज़्यादा बनी थीं। मतलब युवा रक्त-प्लाज़्मा तंत्रिका निर्माण को बढ़ावा देता है।
मिनामी कहती हैं कि उन्होंने रक्त-प्लाज़्मा में से कुछ ऐसी संभावित चीज़ें निकाली हैं मगर वे अभी उनकी पहचान उजागर नहीं कर रही हैं। इस बीच रक्त प्लाज़्मा के असर को अल्ज़ाइमर के मरीज़ों पर आज़माने के लिए परीक्षण चल रहे हैं। (स्रोत फीचर्स)