ब्रह्मांडीय धूल उसे कहते हैं जो सौर मंडल के निर्माण के समय अंतरिक्ष में रह गई थी और तब से लेकर आज तक धीरे-धीरे विभिन्न ग्रहों पर जमा होती रहती है। एक मायने में यह धूल जीवाश्म है। आम तौर पर वैज्ञानिक इस तरह की धूल की खोज अंटार्कटिका या समुद्र की गहराई जैसे धूल-रहित स्थानों पर करते हैं क्योंकि अन्य स्थानों पर तो यह धरती की शेष धूल में ओझल हो जाती है। अब पहली बार ऐसी धूल शहरों में घरों की छत पर खोजी गई है।
यह बात तो 1940 के दशक में ही स्पष्ट हो गई थी कि ब्रह्मांडीय धूल के कण लगातार पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते रहते हैं। शहरी धूल में ऐसे कणों की तलाश का विचार तो नॉर्वे के एक शौकिया वैज्ञानिक यॉन लार्सन का था किंतु इसे परवान चढ़ाया इम्पीरियल कॉलेज, लंदन के मैथ्यू गेंजे ने।
गेंजे के नेतृत्व में शोधकर्ता दल ने तीन शहरों - पेरिस, ओस्लो और बर्लिन के घरों की छत की नालियों में से चुंबक की मदद से 300 कि.ग्रा. धूल के कण खींचकर निकाले। इसमें चुंबकीय कण पाए जाते हैं। इस धूल में उन्होंने ब्रह्मांडीय धूल के 500 कण पहचाने हैं।
इस अध्ययन के परिणाम जियॉलॉजी नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। जो कण प्राप्त हुए हैं वे पहले प्राप्त कणों की तुलना में बड़े हैं। इनका व्यास लगभग 0.3 मि.मी. है जबकि पहले एकत्रित कणों का आकार 0.01 मि.मी. के आसपास पाया गया था। इन नए कणों की आकृति भी अलग है।
गेंजे ने बताया है कि कणों की साइज़ और आकृति का सम्बंध इस बात से हो सकता है कि ये कण किस रास्ते से और किस गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं। उनका अनुमान है कि ये कण कम से कम 12 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से पृथ्वी के वायुमंडल से टकराए होंगे और इसका असर इनकी आकृति पर पड़ा होगा।
इस नई खोज में जिस तरीके से ब्रह्मांडीय कण खोजे गए हैं, उससे उम्मीद है कि इन कणों को प्राप्त करना कहीं ज़्यादा आसान हो जाएगा और ज़्यादा कण होने पर सौर मंडल के इतिहास का अन्वेषण भी ज़्यादा तेज़ी से किया जा सकेगा। (स्रोत फीचर्स)