पार्किंसन रोग दुनिया भर में करीब 1 करोड़ लोगों को है। इस रोग में व्यक्ति का यांत्रिक नियंत्रण कमज़ोर पड़ जाता है, हाथ कंपकंपाते हैं और कई अन्य लक्षण सामने आते हैं। फिलहाल इसके लिए लीवोडोपा जैसी कुछ दवाइयां हैं जो लक्षणों से राहत प्रदान करती हैं। पार्किंसन रोग से पीड़ित व्यक्ति के मस्तिष्क में एक खास किस्म की तंत्रिकाओं (डोपामीन तंत्रिकाओं) की क्षति होने लगती है। ये तंत्रिकाएं यांत्रिक क्रियाओं के संचालन के लिए ज़रूरी होती है। किंतु धीरे-धीरे क्षति इतनी ज़्यादा हो जाती है कि दवाइयां नाकाम हो जाती हैं। मरीज़ शारीरिक संतुलन खो देता है और मांसपेशियां सख्त होने लगती हैं।
इलाज का एक तरीका यह है कि व्यक्ति के मस्तिष्क में डोपामीन तंत्रिकाओं को पुनर्जीवित किया जाए। कई वैज्ञानिक इसके लिए स्टेम कोशिका आधारित उपचार के प्रयास कर रहे हैं। मगर इस बीच स्टॉकहोम के केरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के अर्नेस्ट एरन्स और उनके साथियों ने एक सर्वथा नया तरीका खोज निकाला है। अपने प्रयोगों में उन्होंने देखा कि मस्तिष्क की एक अन्य किस्म की कोशिका (एस्ट्रोसाइट) को उपचारित करके उन्हें डोपामीन तंत्रिका जैसे काम करने को तैयार किया जा सकता है।
उनके तरीके मेंकिया यह जाता है कि एस्ट्रोसाइट्स को तीन जीन्स और एक आरएनए के मिश्रण से उपचारित करते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि इस मिश्रण के असर से एस्ट्रोसाइट्स डोपामीन तंत्रिका जैसे व्यवहार करने लगे। अभी ये प्रयोग संवर्धन माध्यम में किए गए हैं। किंतु उत्साहवर्धक बात यह रही कि इन नव-संयोजित डोपामीन कोशिकाओं में एक्सॉन नामक विस्तार तंतु भी बने जिनके माध्यम से तंत्रिकाएं एक-दूसरे से जुड़ती हैं। और तो और, इन नई-नवेली डोपामीन तंत्रिकाओं ने संदेश दागना और डोपामीन उत्पादन भी शुरु कर दिया।
चूहों पर प्रयोग भी काफी सफल रहे। सबसे पहले शोधकर्ताओं ने कुछ चूहों के मस्तिष्क के एक हिस्से में डोपामीन तंत्रिकाओं को नष्ट कर दिया। ये चूहे अब पार्किंसन के मॉडल बन गए। इसके बाद इनके मस्तिष्क में उपरोक्त मिश्रण इंजेक्ट किया गया। इन्हें ट्रेडमिल पर चलाया गया। पांच सप्ताह के अंदर इनकी चाल सीधी हो गई और शारीरिक संतुलन भी बेहतर हो गया।
उपरोक्त नतीजे नेचर बायोटेक्नॉलॉजी में प्रकाशित किए गए हैं। साथ ही शोधकर्ताओं ने चेताया है कि अभी कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगा क्योंकि मनुष्यों पर प्रयोग से पहले काफी कुछ और करके देखना होगा। मगर उम्मीद काफी अधिक है कि जल्दी ही यह एक उपचार के रूप में उभरेगा। कम से कम व्यक्ति के लिए दवा पर निर्भरता तो कम की ही जा सकेगी। किंतु यांत्रिक गति तो पार्किंसन का एक अंश मात्र है। शोधकर्ताओं को लगता है कि पार्किंसन के अन्य लक्षणों पर इस उपचार के असर को भी देखना होगा। इसके अलावा यह जांच भी करनी होगी कि इस तरह से एस्ट्रोसाइट को डोपामीन तंत्रिका में तबदील करने के लिए जिन जीन्स का उपयोग किया जा रहा है वे मस्तिष्क की अन्य कोशिकाओं को कैसे प्रभावित करते हैं। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - June 2017
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