अभी कुछ महीनों पहले खबर आई थी कि वैज्ञानिकों ने अब तक की सबसे बड़ी अभाज्य (प्राइम) संख्या ढूंढ ली है। यह संख्या है 28,25,89,933-1। इस संख्या में 2 करोड़ 48 लाख 62 हज़ार 48 अंक हैं। यदि इस संख्या को साधारण कॉपी पर लिखें तो तकरीबन 40 पन्ने भर जाएंगे। ऐसा नहीं है कि वैज्ञानिकों ने पहली बार बहुत बड़ी प्राइम संख्या पता की हो। इसके पहले उन्होंने जो संख्या पता की थी वह 27,72,32,917-1 थी। लेकिन क्यों वे बड़ी-से-बड़ी अभाज्य संख्याएं पता करना चाहते हैं।
इसे जानने से पहले हम थोड़ा अभाज्य संख्या के बारे में समझ लेते हैं। अभाज्य संख्या वह प्राकृत संख्या है जो सिर्फ 1 और स्वयं उसी संख्या द्वारा विभाजित होती है, इन संख्याओं में अन्य किसी संख्या से पूरा-पूरा भाग नहीं जाता। जैसे - 2, 3, 5, 7, 11, 17...। अभाज्य संख्याएं अनंत हैं। इन संख्याओं की कुछ खूबियां भी हैं। जिनके कारण इनकी उपयोगिता है।
वैसे जब हमें स्वास्थ्य, चिकित्सा, नई तकनीक आदि से जुड़ी खोज या आविष्कार की खबरें मिलती हैं तो हमारे मन में कभी यह सवाल नहीं उठता कि इनकी खोज की क्या ज़रूरत है। लेकिन जब यह सुनने में आता है कि वैज्ञानिकों ने अब और भी बड़ी अभाज्य संख्या पता की है तो मन में सवाल उठता है कि इतनी बड़ी संख्या पता करने की क्या ज़रूरत है जबकि हम अपनी आम ज़िंदगी में इतनी बड़ी संख्याओं के साथ काम भी नहीं करते और वे भी अभाज्य संख्या।
सच्चाई इसके विपरीत है। सीधे तौर पर ना सही, लेकिन वर्तमान में इन संख्याओं का हम अपनी ज़िंदगी में भरपूर उपयोग करते हैं। आज अधिकतर लोग टेलीफोन, इंटरनेट सेवाओं, स्टोरेज डिवाइस, क्रेडिट कार्ड, एटीम, स्मार्ट फोन, ऐप्स, गेम्स, व्हाट्सऐप जैसे मेसेंजर ऐप्स वगैरह कई तकनीकों का उपयोग करते हैं और इनका उपयोग दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। यदि हम इन तकनीकों का निश्चितता से और सुरक्षित ढंग से उपयोग कर पाते हैं, तो इसका श्रेय काफी हद तक अभाज्य संख्याओं को जाता है।
जितनी तेज़ी से इंटरनेट सुविधाओं, कंप्यूटर जैसी तकनीकों का उपयोग बढ़ रहा है, उतना अधिक हमारा महत्वपूर्ण डैटा डिजिटल रूप में स्टोर और ट्रांसफर हो रहा है। सूचना या डैटा महत्वपूर्ण है तो उसे सुरक्षित रखने की भी ज़रूरत है। इसलिए डैटा को सुरक्षित रखने के लिए विभिन्न कूटलेखन सूत्रविधियों (एल्गोरिदम) का सहारा लिया जाता है। (कूटलेखन किसी संदेश को कूट संदेश यानी सीक्रेट मैसेज में बदलने का तरीका है ताकि वांछित व्यक्ति ही उसे पढ़ सके।) और इन कूटलेखन सूत्रविधियों में अभाज्य संख्याओं की अहम भूमिका है।
सुरक्षित तरीके से संदेश भेजने में अक्सर आरएसए एल्गोरिद्म का उपयोग किया जाता है। आरएसए एल्गोरिदम का आविष्कार मूलत: तीन गणितज्ञों ने संयुक्त रूप से किया था: रॉन रिवेस्ट, अदी शमीर और लियोनार्ड एडलमैन। तब से इसमें कई सुधार हो चुके हैं।
इस एल्गोरिद्म में दो कुंजियों (key) का इस्तेमाल किया जाता है: सार्वजनिक या पब्लिक कुंजी और निजी या प्रायवेट कुंजी। जैसा कि नाम से ज़ाहिर है सार्वजनिक कुंजी सभी को उजागर होती है जबकि निजी कुंजी गुप्त रखी जाती है। जिसे संदेश भेजा जाना है उसकी सार्वजनिक कुंजी से संदेश को कूटबद्ध किया जाता है। और संदेश पाने वाला उसे अपनी निजी कुंजी की मदद से पढ़ लेता है। ये दोनों कुंजियां संदेश प्राप्त करने वाले द्वारा बनाई जाती हैं। वह सार्वजनिक कुंजी तो जगज़ाहिर कर देता है लेकिन निजी कुंजी गुप्त रखता है।
कुंजियां
सार्वजनिक कुंजी वास्तव में दो संख्याएं होती है। इसमें पहली संख्या किन्हीं भी दो प्राइम संख्याओं का गुणनफल होती है, और दूसरी संख्या इन दोनों प्राइम संख्याओं के आधार पर तय की जाती है। इसी तरह निजी कुंजी भी दो संख्याएं होती हैं।
यहां एक उदाहरण की मदद से इन कुंजियों के निर्माण की प्रक्रिया को समझने की कोशिश करते हैं। यहां हम सार्वजनिक कुंजी को N व e से और निजी कुंजी को d से प्रदर्शित करेंगे।
N का चुनाव
1. पहले कोई भी दो प्राइम संख्याएं चुनी जाती हैं। माना कि हमने यहां 11 और 17 चुनी।
2. फिर N की गणना के लिए इन दोनों प्राइम संख्याओं का आपस में गुणा किया जाता है (11 × 17)। और प्राप्त गुणनफल N होता है। यानि N = 187।
e का चुनाव
1. सबसे पहले चुनी गई दोनों प्राइम संख्याओं (11 और 17) में से एक-एक घटाते हैं।
2. इस तरह प्राप्त संख्याओं (10 और 16) का आपस में गुणा करते हैं (प्राप्त गुणनफल को हम Q कहेंगे)।
3. e के लिए एक ऐसी संख्या चुनी जाती है जो Q से छोटी हो और उसका Q में पूरा-पूरा भाग ना जाता हो। यहां Q = 160। तो e के लिए 160 से छोटी कोई भी संख्या चुनी जा सकती है जिसका 160 में पूरा-पूरा भाग ना जाता हो। चलिए e के लिए 7 चुन लेते हैं। तो सार्वजनिक कुंजी हुई (N =187, e = 7)
d का चुनाव
1. सबसे पहले Q में 1 जोड़ा जाता है, 160 अ 1 = 161।
2. अब इस प्राप्त संख्या में e से भाग दिया जाता है। प्राप्त भागफल d होता है। यहां, 161 में 7 का भाग देने पर प्राप्त भागफल 23 है। तो निजी कुंजी यानी d है 23।
कूटलेखन
संदेश भेजने की प्रक्रिया में सबसे पहले जो भी संदेश भेजा जाना है उसे किसी एल्गोरिद्म की मदद से संख्या में बदला जाता है। फिर सार्वजनिक कुंजी की सहायता से संदेश कूट किया जाता है। माना कि भेजा जाने वाला संदेश है 3। सार्वजनिक कुंजी 187 व 7 है।
1. संदेश कूट करने के लिए पहले (संदेश संख्या)e की गणना की जाती है। यहां e = 7 है। इस प्रकार 37 (3×3×3×3×3×3×3) हल करने पर मिला 2187।
2. अब प्राप्त संख्या में N से भाग दिया जाता है। फिर जो शेषफल बचता है वही संदेश के रूप में भेजा जाता है। यहां 2187 में 187 का भाग देने पर शेषफल बचा 130। तो भेजा जाने वाला कूट संदेश है 130।
3. निजी कुंजी (d) की मदद से संदेश पढ़ा जाता है। यहां हमारी निजी कुंजी है 23। तो संदेश पढ़ने के लिए सबसे पहले (प्राप्त संदेश)d हल किया जाता है, यहां (130)23। इसका मतलब है कि 130 में 130 का गुणा 23 बार किया जाएगा।
4. हल करने पर प्राप्त संख्या में N से भाग दिया जाता है। भाग देने पर जो शेषफल मिलता है वही संदेश होता है। यहां हल करने पर मिला 41753905 × 1041। इसे 187 से भाग देने पर जो शेषफल मिला वह 3 होगा। और यही हमारा वास्तविक संदेश था।
गौर करने वाली बात है कि हमने उदाहरण के लिए छोटी अभाज्य संख्याओं का चुनाव किया, वास्तव में ये संख्याएं काफी बड़ी होती हैं।
लेकिन बड़ी प्राइम संख्याएं ही क्यों? दरअसल एक से बड़ी किसी भी संख्या के गुणनखंड अभाज्य संख्याओं के रूप में प्राप्त किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए 70 को 2×5×7 के रूप में लिखा जा सकता है। इन्हें अभाज्य गुणनखंड कहते हैं। गणितज्ञों के अनुसार किन्हीं भी दो बड़ी अभाज्य संख्याओं का गुणनफल पता करना तो आसान है लेकिन अभाज्य गुणनखंड पता करना काफी मुश्किल है, यहां तक कि सुपर कंप्यूटर के लिए भी। ऐसा नहीं है कि बहुत बड़ी संख्याओं के अभाज्य गुणनखंड पता नहीं किए जा सकते। पता तो किए जा सकते हैं लेकिन बहुत अधिक समय लगता है, शायद कई वर्ष। इसलिए अभाज्य संख्याएं जितनी बड़ी होंगी डैटा उतना अधिक सुरक्षित रहेगा।
कूटलेखन का उपयोग इंटरनेट के ज़रिए पैसों के लेन-देन की सुरक्षा में, नियत समय में संदेश पहुंचाने में, सूचना भेजे जाने वाले व्यक्ति के प्रमाणीकरण या सत्यापन (डिजिटल सिग्नेचर) में, क्रेडिट कार्ड, एटीएम, ई-मेल, स्टोरेज डिवाइस की सुरक्षा वगैरह में होता है। इन सभी जगह प्राइम संख्या का उपयोग होता है।
इसके अलावा प्राइम संख्याएं रैंडम नंबर पैदा करने वाली एल्गोरिद्म में उपयोग होती हैं। यानी जहां भी संख्याओं में बेतरतीबी की ज़रूरत होती है वहां ये एल्गोरिद्म काम करती हैं। जैसे सुरक्षित लेन-देन के लिए ओटीपी नंबर (वन टाइम पासवर्ड) में, ऑनलाइन कैसिनो में पत्ते निकालने या पांसे पर आने वाली संख्या तय करने में। इंटरनेट पर बने किसी भी एकाउंट में लॉग-इन करते वक्त पासवर्ड का मिलान किया जाता है, चूंकि इस मिलान को कम-से-कम समय में अंजाम देना होता है इसलिए यहां हैश-टेबल की मदद ली जाती है। और हैश-टेबल में भी प्राइम संख्या का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा हैश टेबल सर्फिंग या सर्चिंग जैसे किसी शॉपिंग साइट में चीज़ों को जल्दी ढूंढ निकालने में भी मददगार होती है।
कई खेलों को बनाने में भी अभाज्य संख्याओं का उपयोग किया जाता है। जैसे कैंडी क्रश खेल में कई गणितीय अवधारणाओं का उपयोग किया गया है और इनमें अभाज्य संख्याओं का उपयोग किया गया है। तो जब भी हम इनमें से किन्हीं भी सुविधाओं का उपयोग कर रहे होते हैं तब अनजाने में अभाज्य संख्या का भी उपयोग करते हैं।
वैसे प्रकृति में भी अभाज्य संख्याएं दिखाई देती हैं। जैसे सिकाडा कीट लंबे समय तक ज़मीन के अंदर रहते हैं और 13 या 17 साल बाद ज़मीन से बाहर निकलते हैं और प्रजनन करते हैं ताकि वे अपने शिकारियों से सुरक्षित रहें। आप स्वयं सोचिए कि इससे सुरक्षा कैसे मिलती है। (स्रोत फीचर्स)