लगभग 10 करोड़ साल पहले आधुनिक समय के मोरक्को में विशालकाय उड़ने वाले सरीसृप, टेरोसौर, रहा करते थे। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि बड़े जबड़े और जिराफ जैसी सुराहीदार गर्दन वाले टेरोसौर का भोजन मछली, छोटे स्तनधारी और शिशु डायनासौर होते थे। लेकिन यह एक पहेली थी कि उनकी गर्दन अपने भारी-भरकम शिकार का वज़न उठाते चटकती क्यों नहीं थी। अब, एक नए अध्ययन में पता चला है कि उनकी हड्डियों के अंदर स्पोकनुमा जटिल संरचना होती थी जो गर्दन को मज़बूती और स्थिरता प्रदान करती थी।
मोरक्को और अल्जीरिया की सीमा के पास जीवाश्मों से समृद्ध स्थल केम केम क्यारियों में लगभग 10 करोड़ वर्ष पुराना टेरोसौर का एक जीवाश्म मिला था, जो काफी अच्छी तरह संरक्षित था। इसे अज़दारचिड टेरोसौर नाम दिया गया। ये टेरोसौर पृथ्वी पर रहे विशालकाय उड़ने वाले जीवों में से थे। इनके पंख 8 मीटर लंबे और गर्दन 1.5 मीटर लंबी थी। वैज्ञानिकों के बीच हमेशा यह सवाल रहा कि इतनी असामान्य शरीरिक रचना के साथ टेरोसौर किस तरह शिकार करते होंगे, चलते और उड़ते होंगे?
युनिवर्सिटी ऑफ पोर्ट्समाउथ के जीवाश्म विज्ञानी निज़ार इब्रााहिम और उनके साथियों ने अज़दारचिड टेरोसौर की रीढ़ की हड्डी की आंतरिक संरचना का अध्ययन किया। एक्स-रे कम्प्यूटेड टोमोग्राफी और 3-डी मॉडलिंग करने पर उन्होंने पाया कि उनकी रीढ़ की हड्डी में दर्जनों एक-एक मिलीमीटर मोटी कीलनुमा रचनाएं (ट्रेबिकुले) थीं। इन कीलों की जमावट एक-दूसरे को क्रॉस करते हुए इस तरह थी जिस तरह साइकिल के पहिए के स्पोक होते हैं। और ये रचनाएं रीढ़ की हड्डी में केंद्रीय नलिका को घेरे हुए थीं।
गणितीय मॉडलिंग कर शोधकर्ताओं ने जांचा कि क्या वास्तव में ये स्पोकनुमा रचनाएं हड्डियों को अतिरिक्त सहारा देती होंगी। iScience पत्रिका में शोधकर्ता बताते हैं कि कम से कम 50 ट्रेबिकुले रीढ़ की हड्डी की वज़न सहन करने की क्षमता को दुगना कर देते हैं। शोधकर्ता यह भी बताते हैं कि उक्त टेरोसौर की गर्दन 9 से 11 किलोग्राम तक का वज़न उठा सकती थी।
शिकार को पकड़ने और उठाने में सहायता करने के अलावा ये स्पोकनुमा रचनाएं टेरोसौर की गर्दन को उड़ान के दौरान पड़ने वाले तेज़ हवाओं के थपेड़ों का सामना करने और प्रतिद्वंदी नर साथी के प्रहार झेलने में भी मदद करती थीं।
वैज्ञानिकों का यह अनुमान तो था कि अज़दारचिड टेरोसौर बड़े शिकार पकड़ सकते थे लेकिन हड्डी की आंतरिक संरचना की जानकारी का उपयोग कर इस परिकल्पना की पुष्टि पहली बार की गई है। अन्य शोधकर्ताओं का सुझाव है कि अन्य टेरोसौर की गर्दन की हड्डियों का अध्ययन करके इन नतीजों की पुष्टि की जानी चाहिए।
उक्त शोधकर्ता भी यही करना चाहते हैं लेकिन दिक्कत यह है कि टेरोसौर की हड्डियों के भलीभांति सुरक्षित जीवाश्म दुर्लभ हैं। बहरहाल, शोधकर्ताओं का इरादा है कि महामारी खत्म होने के बाद जीवाश्मों से समृद्ध स्थलों पर ऐसे जीवाश्म तलाश करेंगे। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - June 2021
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