कैलेंडर का निर्माण लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं ने किया है। कारण स्पष्ट है कि दिन और वर्ष का ठीक-ठाक हिसाब-किताब रखना कृषि, पशुपालन, यात्राओं वगैरह की दृष्टि से अति-महत्वपूर्ण रहा है। इसी सिलसिले में वैज्ञानिकों को यह पता चला है कि प्राचीन माया सभ्यता में कैलेंडर का निर्माण कम से कम 3000 साल पहले किया गया था।
वैज्ञानिकों को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि माया लोगों का एक समूह (माया किचे) लगभग 1100 ईसा पूर्व से समय का हिसाब-किताब रखता आया है। कैलेंडर को वे लोग चोल्किज (यानी दिनों का क्रम) कहते थे और उनका वर्ष 260 दिनों का होता था। यह माया सभ्यता के मेक्सिको व मध्य अमेरिकी इलाके में ही मिला है। प्रमाण बताते हैं कि समय की गणना 13 संख्याओं और 20 प्रतीकों के आधार पर की जाती थी और ये एक निश्चित क्रम में आते थे (जैसे इस कालगणना में 6 जनवरी 2023 ‘6 रैबिट' होगा)। अब यह ज्ञात हो चुका है कि कैलेंडर के दिन तारों, इमारतों के स्थापत्य और कुदरती लैंडमार्क्स के संरेखन से मेल खाते थे।
ऐसा माना जा रहा है कि इस तरह की कालगणना से खेती-बाड़ी, धार्मिक अनुष्ठानों, राजनीति वगैरह में मार्गदर्शन मिलता होगा। वैसे माया लोग एक अन्य कैलेंडर (हाब) का उपयोग भी करते थे जिसमें वर्ष 365 दिन का था और यह सौर चक्र से जुड़ा था।
पूर्व में इस कैलेंडर का प्रमाण एक भित्ती चित्र (म्यूरल) के रूप में मिला था। यह म्यूरल ग्वाटेमाला में मिला था और इसका समय करीब 300 ईसा पूर्व निर्धारित हुआ था। लेकिन दिक्कत यह है कि ऐसे लिखित रिकॉर्ड मुश्किल से मिलते हैं क्योंकि माया लोग जिन सामग्रियों का उपयोग करते थे वे विघटनशील हुआ करती थीं।
इसी रिकॉर्ड को पूरा करने की दृष्टि से स्लोवेनिया के इंस्टीट्यूट ऑफ एंथ्रोपोलॉजिकल एंड स्पेशियल स्टडीज़ के इवान स्प्राक ने लिडार नामक एक तकनीक का सहारा लिया जिसकी मदद से घने जंगलों में ओझल प्राचीन संरचनाओं को उजागर किया जा सकता है।
इससे 2 वर्ष पहले एरिज़ोना विश्वविद्यालय के ताकेशी इनोमाटा ने मेक्सिको खाड़ी के तट का लिडार सर्वेक्षण किया था जिसमें लगभग 500 प्राचीन खंडहरों का पता चला था। स्प्राक और इनोमाटा ने मिलकर इनमें से 415 संकुलों का अध्ययन यह जानने के लिए किया कि किस तरह से इनकी सीध सूर्य, चंद्रमा, शुक्र व अन्य आकाशीय पिंडों से बैठती है।
पता चला कि अधिकांश संकुल पूर्व-पश्चिम सीध में थे और 90 प्रतिशत संकुलों में ऐसे स्थापत्य सम्बंधी लक्षण थे जो विशिष्ट तारीखों पर सूर्योदय की सीध में होते थे। अधिकांशत: इस तरह के सूर्योदय वर्तमान कैलेंडर के 11 फरवरी और 29 अक्टूबर के थे। और इनके बीच 265 दिनों का अंतर है। इन संकुलों में सबसे प्राचीन करीब 1100 ईसा पूर्व का है। इससे लगता है कि 265 दिन के वर्ष वाला कैलेंडर कम से कम इतना पुराना तो है।
अन्य स्मारकों में ऐसे सूर्योदयों के बीच अंतर 130 दिनों का है जो आधी कैलेंडर अवधि के बराबर है। कुछ स्मारकों में सूर्योदयों के बीच 13 या 20 दिन के गुणज का अंतर है। इससे पता चलता है कि कैलेंडर प्रणाली में 13 संख्याओं और 20 प्रतीकों का उपयोग होता था और ये दो अयनांतों तथा दो विषुव (समपातों) से मेल खाते थे। कुछ संकुलों का मिलान शुक्र और चंद्र के चक्र से भी देखा गया। वैसे, कई संकुलों में ऐसा कोई तालमेल नज़र नहीं आया।
अलबत्ता, ऐसा माना जा रहा है कि इतने बड़े नमूने के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष काफी सटीक हैं। एक बात यह भी कही गई है कि इस अध्ययन में कैलेंडर का जो सबसे पुराना प्रमाण मिला है वह उस समय का है जब ये लोग शिकारी-संग्रहकर्ता जीवन शैली से निकलकर खेती की शुरुआत कर रहे थे। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - March 2023
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