वैज्ञानिकों के अनुसार एक समय ऐसा भी था जब मंगल ग्रह वर्तमान स्थिति से बिलकुल अलग था। घाटियों से निकलती हुई नदियां और झीलें मौजूद थीं और विशेष रूप से चुंबकीय क्षेत्र ने अंतरिक्ष विकिरण से ग्रह को सुरक्षित रखा था। कुछ प्रमुख सिद्धांतों के अनुसार ग्रह के आंतरिक भाग के ठंडे होकर ठोस बनने के कारण चुंबकीय क्षेत्र खत्म हो गया जिससे ग्रह का वातावरण असुरक्षित हो गया और नमी और गर्मी का युग समाप्त हो गया। अलबत्ता, वैज्ञानिकों के बीच इस घटना के समय को लेकर मतभेद हैं।
हाल ही में मंगल ग्रह के सुप्रसिद्ध उल्कापिंड ALH84001, जो यह उल्का पिंड 1984 में अंटार्कटिका के एलन हिल्स नामक स्थान पर मिला था, का नए प्रकार के क्वांटम सूक्ष्मदर्शी से अध्ययन करने पर इस बात के साक्ष्य मिले हैं कि ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र 3.9 अरब वर्ष पूर्व तक मौजूद था। यह समय वर्तमान के सबसे स्वीकार्य समय से करोड़ों वर्ष पहले का है। मंगल ग्रह से पृथ्वी तक पहुंचने वाले इस छोटे से उल्कापिंड की मदद से मंगल पर जीवन के संकेतों का पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा यह अध्ययन पृथ्वी के समान मंगल के चुंबकीय ध्रुवों के पलटने के विचार का भी समर्थन करता है। इसकी मदद से ग्रह के बाहरी कोर में तरल डायनमो की जानकारी मिल सकती है जो एक समय में चुंबकीय क्षेत्र को ऊर्जा प्रदान करता था।
वास्तव में जब लौह-युक्त खनिज पिघली हुई चट्टानों से क्रिस्टलीकृत होते हैं तो उन क्रिस्टल के चुंबकीय क्षेत्र ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र की लाइन में जम जाते हैं। और ये मूल चुंबकीय क्षेत्र की दिशा की छाप के रूप में संरक्षित हो जाते हैं। इसके बाद कोई चट्टान ग्रह के किसी स्थान पर टकराई तो वहां के कुछ हिस्से गर्म होकर पिघलते हैं और एक नया चुंबकीय क्षेत्र बन जाता है।
गौरतलब है कि मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाले ऑर्बाइटर्स ने मंगल की सतह पर चुंबकीय अवशेषों की पहचान की है। लेकिन मंगल पर क्षुद्रग्रहों की टक्कर से बनने वाले सबसे प्राचीन गड्ढों - हेलास, अर्जायर और इसिडिस क्रेटर्स - में चुंबकीय चट्टानें नहीं मिली हैं।
अधिकांश शोधकर्ताओं का मत है कि लगभग 4.1 अरब वर्ष पूर्व इन क्रेटर्स के बनने तक चुंबकीय डायनमो कमज़ोर हो गया होगा जिसके कारण इसका प्रभाव देखने को नहीं मिला है। फिर भी ऑर्बाइटर्स को मंगल ग्रह के कुछ अन्य हिस्सों, जो उक्त क्रेटर्स से कई लाख वर्षों बाद के हैं, के लावा में चुंबकीय निशान प्राप्त हुए। इससे यह स्पष्ट होता है कि चुंबकीय क्षेत्र काफी समय बाद भी मौजूद रहा था।
इसी संदर्भ में हारवर्ड युनिवर्सिटी की सारा स्टील ने उल्कापिंड एलन हिल्स 84001 का अध्ययन करने का विचार किया। 1990 के दशक में इस उल्कापिंड के बारे में दावा किया गया था कि इसमें बैक्टीरिया के जीवाश्म मौजूद हैं। हालांकि इस दावे को खारिज कर दिया गया था और इसके चलते 2 किलोग्राम की यह चट्टान काफी बदनाम हो गई थी। बहरहाल, यह उल्कापिंड 4.1 अरब वर्ष पुराना है इसलिए मंगल के उस समय के इतिहास का अध्ययन करने के लिए यह उपयुक्त नमूना है।
चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करने के लिए स्टील और हारवर्ड प्लेनेटरी वैज्ञानिक रॉजर फू ने क्वांटम डायमंड माइक्रोस्कोप से एलन हिल्स के 0.6 ग्राम के टुकड़े के तीन पतले स्लाइस की इमेजिंग की। यह माइक्रोस्कोप हीरे में उपस्थित परमाणु स्तर की अशुद्धियों पर निर्भर करता है जो चुंबकीय क्षेत्र में मामूली परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील होती हैं। इस उच्च क्षमता वाले माइक्रोस्कोप से नमूने में तीन अलग-अलग स्थानों पर आयरन-सल्फाइड के साक्ष्य प्राप्त हुए। इनमें से दो स्थान अलग-अलग दिशाओं में शक्तिशाली रूप से चुंबकित थे जबकि एक में उल्लेखनीय चुंबकीय चिंह का अभाव था।
स्टील और फू का कहना है कि इन तीन स्थानों का चुंबकत्व तीन अलग-अलग घटनाओं से उत्पन्न हुआ जिनकी समयरेखा 4 अरब, 3.9 अरब और 1.1 अरब वर्ष पहले की पाई गई हैं। फू के अनुसार दो अत्यधिक चुंबकीय स्थान इस ओर संकेत देते हैं कि पूरे ग्रह पर चुंबकीय क्षेत्र 3.9 अरब वर्ष पहले तक उपस्थित रहा होगा। यह चुंबकीय क्षेत्र काफी शक्तिशाली रहा होगा: लगभग 17 माइक्रोटेस्ला जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का लगभग एक-तिहाई है। कुछ अन्य वैज्ञानिकों के अनुसार यह चुंबकीय क्षेत्र हानिकारक कॉस्मिक किरणों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए पर्याप्त था। इसके अलावा यह मंगल के वायुमंडल को सौर हवाओं से भी सुरक्षा प्रदान करता था। हालांकि, कुछ वैज्ञानिक इस निष्कर्ष के विरुद्ध चेता रहे हैं। जैसे युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के प्लेनेटरी वैज्ञानिक रॉब लिलिस के अनुसार हो सकता है कि इस चुंबकीय क्षेत्र ने सौर हवाओं के प्रवाह को ध्रुवों की ओर बढ़ा दिया हो जिससे वायुमंडल को अधिक तेज़ी से नुकसान पहुंचा होगा।
उल्कापिंडों से प्राप्त खनिजों में ग्रह की आंतरिक गतिविधियों के साक्ष्य भी उपस्थित रहते हैं। नमूनों में उपस्थित दो चुंबकीय क्षेत्र लगभग विपरीत दिशा में हैं। शोधकर्ताओं को लगता है कि मंगल पर चुंबकीय उत्तर-दक्षिण ध्रुवों की अदला-बदली हुई थी, जैसा पृथ्वी पर कई लाख वर्षों में होता रहता है। कंप्यूटर सिमुलेशन से पता चलता है कि किसी ग्रह के तरल डायनमो में परिवर्तन बाहरी कोर में संवहन धाराओं की कुछ विशेष परिस्थितियों में ही होता है। इसके आधार पर मंगल ग्रह की आंतरिक स्थिति को समझने और समय-सीमाएं निर्धारित करने में भी मदद मिलेगी। ध्रुवों के पलटने के आधार पर यह भी समझने में मदद मिलेगी कि कई प्राचीन क्रेटर्स में चुंबकीय चिंह अनुपस्थित क्यों है। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - March 2023
- जोशीमठ: सुरंगों से हिमालय में हुई तबाही का नतीजा
- चैट-जीपीटी - अजूबा या धोखेबाज़ी का नया औज़ार?
- सोना निर्माण की प्रक्रिया काफी उग्र रही है
- मंगल ग्रह पर कभी चुंबकीय क्षेत्र था
- मंगल भूकंप संवेदी लैंडर को अलविदा
- लेज़र की मदद से तड़ित पर नियंत्रण
- सौर जल अपघटन से हरित ऊर्जा
- प्राचीन रोमन इमारतों की मज़बूती का राज़
- खीरे, खरबूज़े और लौकी-तुरैया
- सालों तक उपज देने वाली धान की किस्म
- कैरेबियन घोंघों का संरक्षण, मछुआरे चिंतित
- राजहंस कैसे कीचड़ से भोजन छान लेता है
- कुछ कैनरी पक्षी खाने में माहिर होते हैं
- दवा कारखाने के रूप में पालतू बकरी
- चूहों में बुढ़ापे को पलटा गया
- मच्छर के खून से संक्रमण का सुराग
- मनुष्यों का बड़ा दिमाग फालतू डीएनए का नतीजा है
- आपका सूक्ष्मजीव संसार और आसपास के लोग
- क्या खब्बू होना विरासत में मिलता है
- चाइनीज़ मांझा
- माया कैलेंडर शायद 3000 साल से भी पुराना है
- मधुमक्खियों के लिए टीका!
- वन सृजन व हरियाली बढ़ाने के सार्थक प्रयास