रुडयार्ड किपलिंग
अनुवाद: स्मिता अग्रवाल 

माउंट स्टीफन हाउस
अक्टूबर 12, 1907
प्रिय बरखुरदार - मेरे काबिल बेटे - ओ जॉन, वगैरह,

हम इस जगह कल रात पहुंचे और स्कूल से आया हुआ तुम्हारा पहला खत इंतज़ार करता हुआ मिला। अब तुम सोच सकते हो कितनी खुशी हुई हमें उसे पाकर और कैसे हमने उसे बार-बार पढ़ा।

मुझे यह जान कर बहुत अच्छा लग रहा है कि तुम्हें स्कूल पसंद आ रहा है - और जैसे-जैसे वक्त गुज़रते तुम वहां जमने लगोगे और तुम्हारे दोस्त बनेंगे, वैसे-वैसे तुम्हे और भी अच्छा लगेगा। मुझे मालूम है कि शुरू-शुरू में घर की कितनी याद आती है। अब याद आता है कि मुझे कैसा लगा था जब मैं पहली बार ‘वेस्टवर्ड’ हो में स्कूल गया था। पर मेरा स्कूल मेरे घर से दौ मील दूर था - मां और बाबा इंडिया में थे और मुझे पता था मैं उनसे सालों-साल नहीं मिल पाऊंगा। स्कूल में 200 बच्चे थे, बाहर से अठारह साल के बीच की हर उम्र के। मैं तकरीबन सब से छोटा था, और खाना तो ऐसा मिलता था कि उफ् . . .।

पर तुम तो घर से 30 मील दूर भी नहीं हो - और ना ही तुम वहां सबसे छोटे हो - और तुम्हारी तो वहां वो देखभाल होती है जैसी कि हमारे ज़माने में किसी ने सपने में भी नहीं सोची थी। तुम वो माशाअल्लाह उसी गांव में रहे हो, वहां तुम पैदा हुए थे, चारों तरफ वे सब लोग जिन्हें तुम ज़िन्दगी भर से जानते हो - जॉर्ज, मौसी तो अगले मोड़ पर ही रहती हैं। और मुझे याद आया - आज के दिन तुम्हें बर्ड और मिस ब्लेकी से मिलना चाहिए।

हम दोनों ने आज सुबह तार भेजा तुम्हें बताने के लिए कि हम दोनों तुम्हारे बारे में सोच रहे थे। जहां तुम हो और जहां हम हैं इन दोनों जगह के बीच में आठ घण्टे का फर्क है, और क्योंकि तुम बहुत पूर्व की तरफ हो इसलिए तुमने जब सूरज को उगते देखा होगा तब हमारी तरफ की दुनिया अंधेरे में ही थी। इसका मतलब है कि हालांकि मैंने तार सुबह आठ बजे भेजा था पर तुम्हें वो शाम को चाय के वक्त तक ही मिल पाएगा।

मुझे एक बात वाकई बहुत खुशी है। तुम जानते हो जब भी तुम कोई ऐसा काम करते हो जो मुझे पसन्द नहीं तो मैं तुम पर बरसने से नहीं चूकता। इसी तरह जब तुम अच्छी तरह पेश आते हो तो अक्सर मैं तुम्हें यह बात भी ज़ाहिर कर देता हूं। जहां तक मुझे पता चला है कि जब तुम्हें घर की बहुत ज़्यादा याद आ रही थी, उस दौरान भी तुमने मुंह लटकाकर टसुए नहीं बहाए बल्कि सब्रा के साथ रहे। बहुत बड़ी बात है बेटे! अगली बार तुम्हें खुद को बस में करने में और भी आसानी होगी, और उससे अगली बार और भी ज़्यादा।

अब आई हमारे कारनामों की बात! मैंने उनके बारे में एक लम्बा चिट्ठा लिख कर बैटमैन को भेजा है। पर मैं सफाई से नहीं लिख सका क्योंकि ट्रेन हिचकोले पर हिचकोले खा रही थी। सच में वो खत इस कदर घसीटे में लिखे गए हैं कि मैं उन्हें खुद नहीं पढ़ पा रहा था। तुम मिस ब्लेकी से कहना कि वो उन्हें तुम्हारे लिए सफाई से लिख दें। कुछ कारनामे तो बड़े मज़ेदार हैं।

एक कहानी मैं तुम्हें खुद सुनाना चाहता हूं। जब हम विक्टोरिया से वैन्कूवर जाते सम जहाज़ में थे - 70 मील की इस यात्रा में चारों तरफ द्वीप और घने जंगल फैले हुए थे - उस दौरान हमने दर्ज़नों व्हेल मछलियां देखी, पानी भर-भर के चारों और फव्वारें छोड़ती हुई। कुछ तो पानी से ऊपर उठ-उठ कर मानों कि अपनी पीठ दिखा रही हो हमें, इस तरह

इनको कूबड़ पीठ (hump backs) कहते हैं। और फिर अचानक दो दैत्याकार मछलियां पानी से एक उछलकर पूरी बाहर आ गई। ये दोनों आपस में लड़ रही थीं।

ऐसा हैरत अंगेज़ नज़ारा था कि मैं देखता ही रह गया। तभी एक आदमी ने मेरे पास आकर पूछा, “मिस्टर किपलिंग क्या आपको व्हेल मछलियों में रुचि है?”  मैंने कहा, “मैं इनके बारे में ज़्यादा-से-ज़्यादा जानना चाहता हूं।”  उसने कहा, “फिर तो आप सही आदमी के पास पहुंच गए हैं। मैं यहां की व्हेलरी का इंचार्ज हूं।”

मैंने व्हेल मछलियों को पकड़ने के बारे में सुना था लेकिन व्हेलरी के बारे में कभी नहीं सुना था। उस आदमी के पास समुद्र तट पर कोई ऐसी जगह थी जहां व्हेल मछलियां को काटा जाता था। उसके दो जहाज़ लगातार पानी में घूमते रहते थे जिनका सिर्फ यह काम था कि व्हेलों का शिकार करें। ये लोग बूदूक-बम का इस्तेमाल करते हैं। तुमने इसके बारे में पढ़ा होगा। एक छोटी-सी तोप से एक हारपून (व्हेल के शिकार का एक भालानुमा हथियार) दागा जाता है, जिसके सिरे में एक बारूद का गोला लगा रहता है। हारपून व्हेल में घुस जाता है है और फिर यह गोला फट पड़ता है और व्हेल बहुत जल्दी मर जाती है। लेकिन उस आदमी ने बताया कि व्हेल मरते वक्त बड़ी भयानक और दर्दनाक आवाज़ें करती है। “मिस्टर किपलिंग आपको अपनी ज़िंदगी में किसी व्हेल को मरते हुए सुनना न पड़े।” उस आदमी ने कहा।

जहाज़ पर एक खास किस्म का हवा भरने का पम्प होता है। जिससे व्हेल के मृत शरीर में इतनी हवा भर दी जाती है कि वो डूबे नहीं। फिर जहाज़ दूसरी व्हेल की तलाश में आगे बढ़ जाते हैं और दिन खत्म होने पर शिकार की गई सारी व्हेलों में ला कर छोड़ देते हैं। पहले व्हेल में बारूद भरो, फिर व्हेल में हवा भरो - बेचारी व्हेल!

ये व्हेलरी बाकायदा एक फैक्ट्री की तरह है जिसमें व्हेल की चरबी उतार कर उबालकर उससे तेल निकाला जाता है। (मुझे उस आदमी ने बताया कि बाज़ार में ‘कॉड लिवर ऑयल’ के नाम से बिकता है वो दरअसल व्हेल मछली का ही तेल होता है।)

ये लोग इसकी हड्डियों से खाद बनाते हैं और मांस को सुखाकर जापानियों को बेचते हैं, जो बड़े शोक से इसे खाते हैं। आंतों की खाल से जूतों के लिए चमड़ा बनता है। अभी तक ये लोक व्हेल की बाहरी खाल का कोई पयोग नहीं कर पाए हैं। लेकिन इन्हें उम्मीद है कि किसी दिन वे इसे फर्श पर बिछाने के कपड़े का रूप दे पाएंगे। बची हुई सारी-की-सारी व्हेल को खाना, तेल या चमड़ा बनाने में इस्तेमाल नहीं हो पाती उसे पीसकर कृत्रिम खाद बना ली जाती है जिसे सीधे रेल के डिब्बे में भर दिया जाता है। यहां मै उस व्हेलरी का चित्र बनाने की कोशिश कर रहा हूं।

एक चौड़ा लकड़ी का ढलवां पटिया व्हेलरी से पानी की ओर जा रहा है। जहाज़ व्हेल को इसके निचले सिरे तक ले आता है, फिर यहां से इसे ऊपर खींचा जाता है, ठीक उसी तरह जैसे नाव को पानी से बाहर खींचा जाता है। उसके बाद कई आदमी इसे छूरों, आरियों वगैरह से काटते हैं। काश तुमने भी उस आदमी की बातें सुनी होतीं। उसके लिए व्हेल की खाद और व्हेल का वो सूखा सड़ियल मीट - जिसके लिए जापानी अच्छे दाम देते हैं - ही दुनिया में सब कुछ था।

कल शाम पांच बजे से हम चार हज़ार फीट की ऊंचाई पर इस पहाड़ी इलाके में हैं। आज हम बग्गी में बैठकर एमेराल्ड झी देखने गए। यह अद्भुत झील खूबसूरत पन्ने जैसे गहरे रंग की है। चारों ओर विशाल पर्वत खड़े हैं और उनकी बर्फ से ढकी चोटिंया भी इस झील के पानी में झिलमिलाती हुई हरी-हरी-सी दिखती हैं - बिल्कुल पन्ने की तरह। वहां का रास्ता बहुत-ही खराब था - एक ओर पहाड़, दूसरी ओर खाई। एक मोड़ पर हमें सामान से लदा एक भूरा और सफेद बिंदियों वाला खच्चर मिला जिसकी आंखे नीली थीं। उसके पीछे सामान ढोते खच्चरों की एक लंबी कतार थी और दो पहाड़ी औरतें भी साथ में थीं। उन्होंने मोतियों की जैकेट पहन रखी थी। वे खच्चरों पर सवार थीं। धूप से उनका रंग काला पड़ गया था। पर जब वे मेरे करीब से निकलीं तो मैंने जाना कि वे अंग्रेज़ महिलाएं थीं; जो तीन महीनों से अपने इन खच्चरों और एक गाइड के साथ खुले में मटरगश्ती कर रही थीं। मैंने अपने मन में सोचा और मम्मी ने भी यही सोचा कि अगर सब कुछ ठीक चलता रहा तो कुछ साल बाद तुम और बर्ड हमारे साथ आकर इस सुंदर प्रदेश में इसी तरह एक महीना गुज़ारोगे।

अब मुझे खत यहीं रोक देना चाहिए। बहुत सारा प्यार और यकीनन बहुत-सी इज्ज़त।

हमेशा तुम्हारा अपना
पापू

यह अंश ‘O Beloved Kids’ लिया गया है। इस किताब में वो चिट्ठियां हैं जो रुडयार्ड किपलिंग ने अपने बच्चों को लिखी थीं। रुडयार्ड किपलिंग के तीन बच्चे थे - जोसेपाइन, एल्सी और जॉन। जोसेपाइन की मौत सात साल की उम्र में ही हो गई। उसे न्यूमोनिया हुआ था। इस किताब के लिए जो चिट्ठियां चुनी गई हैं वे किपलिंग ने एल्सी व जॉन को लिखी थी। बालपन के विरोधाभासों की किपलिंग की गहरी समझ इन खतों से बार-बार झलकती है। इन्हीं में से एक चिट्ठी हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं, जो उन्होंने जॉन को लिखी थी। इस खत के सब चित्र भी उन्होंने बनाए थे।

जॉन की मृत्यु 18 साल की उम्र में युद्ध में हो गई। युद्ध में उसने आइरिश गार्ड्स की तरफ से हिस्सा लिया था।

रविवार की सुबह आने वाले मोगली को तो आप भूले नहीं होंगे। यह किपलिंग की ही खोज है। एक और प्रसिद्ध किरदार किम भी किपलिंग के हाथों जन्मा था।

किपलिंग एक ही साथ बच्चे और बड़े के समान सोच पाते थे। वे मानते थे कि एक अच्छा पिता वह है जो यह न भूले कि वो भी कभी बच्चा था।

किपलिंग का जन्म 1864 में बंबई में हुआ था। उन्हें पढ़ने के लिए ब्रिाटेन भेज दिया गया। लेकिन 17 साल की उम्र में वे भारत लौट आए। उन्होंने कई किताबें लिखीं। बाद में वे वापस ब्रिाटेन लौट गए। 1907 में उन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। 1938 में उनका निधन हो गया।

(स्मिता अग्रवाल - जयपुर में लोक जुम्बिश परिषद के साथ काम करती हैं।)

इस बार का सवाल

सवाल: कभी-कभी हमारे शरी के अंग जैसे हाथ और पैर अचालक कुछ काम नहीं करते और एक प्रकार से सुन्न  हो जाते हैं जिसे हम कहते हैं कि पैर में नींद आ गई, ऐसा क्यों?

बलदेव जुमनानी
साधु वासवाणी विद्या मंदिर