तू डाल डाल तो हम पात पात
जैव विकास की लगातार चलती प्रक्रिया के दौरान शिकारी से बचने के लिए विभिन्न जंतुओं में अलग-अलग तरह की क्षमताएं व तरीके विकसित हुए हैं। इस बार हम जिस तरीके का ज़िक्र कर रहे हैं उसे मिमिक्री या नकल उतारना कहते हैं। ये क्षमता कुछ ही जंतुओं में पाई जाती है।
मिमिक्री का एक बढ़िया उदाहरण 'स्नेक केटरपिलर' है। वैसे तो यह 2 इंच से 6 इंच लंबाई का कुछ विशेष पतंगों का साधारण इल्लीनुमा लार्वा होता है। परन्तु अचानक छूने पर इसका आगे का हिस्सा सांप जैसी शक्ल अख्तियार कर लेता है, जिसके तिकाने सिर पर असली आंखों जैसे बड़े-बड़े धब्बे भी बने होते हैं। यही नहीं, यह सांपनुमा रचना उचककर छूने वाली वस्तु को डंसने की कोशिश भी करती है।
पेड़-पौधों की टहनियों पर मौजूद ‘स्नेक केटरपिलर' को कोई भी साधारण इल्ली ही समझेगा। लेकिन अचानक होनेवाले स्पर्श से खतरा भांपकर जब यह टहनी से लटक जाता है तो उसके शरीर का अगला हिस्सा तिकोने सिर वाले 'मेक्सिकन वाइन स्नेक' की तरह दिखाई देने लगता है। यह स्वांग शायद गिरगिट से बचने में ज्यादा कारगर होता होगा क्योंकि यह सांप गिरगिट को बहुत चाव से खाता है। गिरगिट शायद इस इल्ली को सांप समझकर भाग खड़ा होता होगा क्योंकि वह सांप का भोजन नहीं बनना चाहता। तो 'स्नेक केटरपिलर' को थोड़ी देर के लिए सांप जैसी नकल करने का फायदा यह मिलता है कि शिकारी से बच पाने की उसकी संभावना बढ़ जाती है। इस तरीके की खासियत यह है कि एक जीव ने किसी दूसरे जीव के स्वरूप यानी रंगरूप की नकल उतारी है।
लेकिन इन छुट-पुट प्रयोगों के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना कि ये नकलची जीव, नकल के सहारे, हमेशा शिकार होने से बचे रहते हैं, शायद सही नहीं होगा। आपने शायद सुना होगा कि मोनार्क तितली में ज़हर पाया जाता है जिसकी वजह से कई पक्षी उन्हें खाना पसंद नहीं करते। मोनार्क से मिलती-जुलती कई तितलियां भी इसी बहाने बच जाती थीं। लेकिन मेक्सिको के कुछ पक्षियों ने मोनार्क और उनसे मिलती-जुलती तितलियों में फर्क करना सीख लिया इसलिए वे ऐसी तितलियों को चोंच मारकर 'चख' लेते हैं कि इनमें ज़हर है या नहीं - जहरीली है तो फेंक दिया, नहीं तो खा लिया। ऐसे ही कुछ पक्षी कम ज़हरीली मोनार्क के उन हिस्सों को खा लेते हैं जहां ज़हर की मात्रा कम है। यानी शिकार और शिकारी 'तू डाल डाल तो हम पात पात' वाली कहावत चरितार्थ करते हैं।