आपने अक्सर ऐसे चश्मे पहने होंगे जिनके कांच धूप में निकलते ही काले हो जाते हैं और कमरे में घुसते ही फिर से पहले की तरह रंगहीन। चश्मेवाले जब पूछते हैं ‘चश्मे में फोटोक्रोमिक/ फोटोक्रोमेटिक कांध लगवाएंगे क्या?' तो उनका आशय इसी तरह के कांच से होता है।
आइए, समझने की कोशिश करते हैं। कि यह किस तरह संभव हो पाता है। फोटोक्रोमिक कांच तभी काला होता है। जब उससे एक खास तरंग दैर्घ्य यानी तरंग लंबाई की किरणें टकराएं, जैसे पराबैंगनी प्रकाश। वैसे तो फोटो-क्रोमिक कांच की संरचना, अन्य साधारण कांच की तरह ही होती है, लेकिन उसमें साथ में सिल्वर क्लोराइड या ऐसे ही किसी अन्य पदार्थ के सूक्ष्म क्रिस्टल मौजूद होते हैं। इन क्रिस्टल का व्यास लगभग 50 अंगस्ट्रोम (यानी एक सेमी का बीस लाखवां हिस्सा) होता है। ये रवे पूरे कांच में बिखरे रहते हैं।
सिल्वर क्लोराइड पराबैंगनी प्रकाश के प्रति अत्यन्त संवेदनशील होता है। जैसे ही कांच को धूप में ले जाते हैं तो सूर्य प्रकाश में मौजूद पराबैंगनी किरणें कांच से टकराती हैं। ये किरणें सिल्वर क्लोराइड के अणुओं को दो हिस्सों - सिल्वर और क्लोरीन के परमाणुओं में तोड़ देती हैं। इस तरह से सिल्वर क्लोराइड से टूटकर अलग हुआ सिल्वर ही कांच को काला करता है। जब फोटोक्रोमिक कांच को धूप में से हटा दिया जाए या पराबैंगनी किरणों से दूर कर दिया जाए। तो वही सिल्वर और क्लोरीन एक बार फिर से जुड़कर सिल्वर क्लोराइड का अणु बना लेते हैं; और कांच फिर से रंगहीन हो जाता है।
फोटोक्रोमिक कांच में यह दो तरफा क्रिया इसलिए हो पाती है क्योंकि कांच अक्रियाशील और अपारगम्य पदार्थ होने की वजह से सिल्वर क्लोराइड के टूटने के बाद भी सिल्वर और क्लोरीन वहीं मौजूद रहते हैं, और पराबैंगनी किरणों के बीच में से कांच को हटाते ही दोबारा आपस में मिलकर सिल्वर क्लोराइड बना लेते हैं।
कांच में कौन-सा पदार्थ मिलाया जाएगा यह इस बात से तय होता है कि हमें उसे प्रकाश वर्णक्रम के किस हिस्से के प्रति संवेदनशील बनाना है। पराबैंगनी की जगह अगर दृश्य प्रकाश के प्रति संवेदनशील कांच बनाना है तो उसमें सिल्वर ब्रोमाइड व आयोडाइड आदि मिलाए जाते हैं।
फाटाक्रोमिक काच का इस्तेमाल हवाई जहाज के विंड स्क्रीन और खिड़कियां बनाने में भी होता है। विशेष परिस्थितियों में इससे प्रकाश संवेदी दवाएं रखने वाली बोतलें आदि भी बनाई जाती हैं।