जे.बी.एस. हाल्डेन

मैंने पहले कभी आपसे अपने एक मित्र लिकी के यहां के रात्रिभोज का जिक्र किया था। लिकी पेशे से जादूगर हैं और लंदन में रहते हैं। उस रात उनसे विदा लेते हुए मैंने उनके साथ एक पूरा दिन बिताने का वादा किया था। आज मैं उस 'अजूबे' दिन के बारे में बताने जा रहा हूं।
बरसों पहले मैंने क्रिसमस की पूर्व संध्या पर जुराबें लटकानी छोड़ दीं थीं। क्रिसमस के मौके पर ईसाई समुदाय में जुराबें लटकाने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि उस दिन सोते समय अपनी मनोकामनाएं सोचकर जुराबें लटका देनी चाहिए। परम पिता ईश्वर क्रिसमस के मौके पर उनमें उपहार भरकर आपकी मनोकामनाओं की पूर्ति कर देता है। लेकिन जैसे ही मैं क्रिसमस की सुबह उठा, यह देख कर चकित रह गया कि मेरी एक जुराब पलंग के पैताने लटकी हुई थी। और जब वह जुराब खुद-ब-खुद खड़ी होकर मेरी तरफ चलने लगी तो मैं ठगा-सा ही रह गया। इतना ही नहीं वह तो मेरी छाती पर चढ़ गई और उसके झुककर सलाम करते ही भीतर से एक सीलबन्द लिफाफा, एक अण्डा, एक रत्नजड़ित टाई पिन, साथ में एक फल जिसे मैंने बाद में पहचाना कि यह तो सीताफल है और एक छोटी-सी डायरी, बाहर निकल आए। इनको देखते ही मैं समझ गया कि ऐसा उपहार जादूगर लिकी के अलावा और कोई भेज ही नहीं सकता। मैंने लिफाफा खोला तो पाया कि इसमें तो लिकी के साथ दिन बिताने का निमंत्रण था। साथ ही लिफाफे में रखे पत्र में अंडे, डायरी और टाई पिन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां थीं। टाई पिन और डायरी पर इस तरह का जादू किया हुआ था कि वे गुम ही न हो सकें। मेरे लिए यह वरदान ही था क्योंकि मैं अक्सर अपनी डायरी और टाई पिन खो देता हूं।

निमंत्रण में बताए दिन मैं नाश्ता करके लिकी के फ्लैट पर पहुंचा। लिकी के जिन्न अब्दुल मक्कार ने दरवाजा खोला। वह पीतल के बटन वाली वर्दी पहने था। उसने मेरा कोट और हैट थाम लिए ताकि उन्हें कहीं लटकाया जा सके। विचित्र बात यह थी कि यह सब उसने मुझे छुए बिना, दो फुट की दूरी से ही कर दिया। हालांकि यह सब मुझे अटपटा लग रहा था लेकिन मैं जल्दी ही इस घर की विचित्रताओं के प्रति सहज हो गया था।
लिकी ने बड़ी गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया। आग पर आसीन ड्रेगन पॉम्पी के स्वागत में भी वही उत्साह था। मुझे देखते ही उसने अपने पंख हिलाने शुरू कर दिए जिससे पूरे कमरे में धुआं फैलने लगा। लेकिन लिकी के जादुई छड़ी उठाते ही वह अपने दोनों पंजों के बीच सिर रखकर चुपचाप पसर गया।
लिकी ने बताया कि दोपहर का भोजन जावा द्वीप में करने का इरादा है। लेकिन उसके पहले उन्हें एक काम निपटाना था। "क्या आप मेरे साथ आ सकेंगे?'' उन्होंने मुझसे पूछा, “अगर ऐसा संभव नहीं हो तो आप यहीं रुक जाइए और रुखसत से पाइप पीने का मज़ा लीजिए, या मनोरंजन के लिए मैं कुछ और इंतजाम किए देता हूं।'

“अगर आपके काम में कोई बाधा न हो तो मैं आपके साथ चलना पसंद करूंगा'', मैंने लिकी से कहा।
"बिल्कुल नहीं, बल्कि आपके साथ रहने से मुझे प्रसन्नता होगी। परन्तु साथ चलने के लिए आपको अदृश्य होना पड़ सकता है। बेहतर होगा कि आप इसका अभ्यास कर लें क्योंकि पहली बार ऐसा करना कुछ अजीब-सा लगता है। यह काली टोपी अपने सिर पर रखकर इस कमरे के एक-दो चक्कर लगाएं। नीचे देखने पर आपको मितलाहट महसूस हो सकती है। इसलिए जब लगे कि आप संतुलन खो रहे हैं तो बिल्कुल सामने की तरफ देखें।'' लिकी ने मुझे समझाया।

लिकी ने मुझे चोटीवाली, एक काली टोपी दी। यह क्रिसमस के तोहफों के साथ मिलने वाली कागज़ की टोपी जैसी ही थी। ऐसा काला रंग मैंने आज तक नहीं देखा था। यह काले रंग के साधारण कागज़ या कपड़े के रंग जैसी तो बिल्कुल नहीं थी। यह तो कोयले से भी काली - एकदम स्याह सुराख जैसी थी।‘वह किस चीज़ की बनी है' देखकर बता पाना मुश्किल था या यह कि ‘उसकी सतह खुरदुरी है या चिकनी'? और छूने पर नर्म-गर्म रबर जैसी लग रही थी। बहरहाल, टोपी पहनते ही मेरी बांह गायब हो गई। आसपास की चीजें अजीब-सी दिखने लगीं। मैं सोच भी नहीं पाया कि ऐसा क्यों हो रहा है? तभी मैंने उन दो भूतहा नाकों को गायब होते देखा जो बिना प्रयास किए मुझे लगातार दिखती रहती हैं। अदृश्य होने के कारण मेरी आंख की पलकें और नाक पारदर्शी हो चुके थे। इसके बाद मैंने अंदाज लगाने की कोशिश की कि मेरा धड़ और पैर कहां होने चाहिए, लेकिन मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दिया। चक्कर आने की वजह से मैंने घबराहट में अपने अदृश्य हाथों से भेज पकड़ने की कोशिश की; किसी तरह खुद को संतुलित किया और सामने की ओर नाक की सीध में देखने लगा। कुछ प्रयास के बाद मैं कमरे में टहलने की स्थिति में आ गया।

मेरे मेजबान ने कहा, “बाहर चलते समय टोपी को अपनी जेब में रख लें, फिर आप जब भी अदृश्य होना चाहें इसको हैट के नीचे पहन लें। इससे आप हैट समेत अदृश्य हो सकेंगे।''
बाहर निकलते समय हॉल में कोई नहीं था, फिर भी हैट और कोट खूटी से उड़कर मेरे पास आ गए।
टैक्सी में बैठते ही लिकी ने मुझसे कहा, “हम एक कुत्ते की समस्या सुलझाने जा रहे हैं जिसने उधम मचा रखा है। जो कोई दिख जाए, वह उसे काटने दौड़ पड़ता है। यदि मैंने इसके बारे में कुछ नहीं किया तो पुलिस उसे मार डालेगी। दरअसल लंदन में बड़े स्तर पर जादू करना बहुत मुश्किल है। ऐसा करने पर लोगों का ध्यान खिंचेगा और वे उमड़कर मेरे पास आने लगेंगे। मुझे इस तरह की शोहरत बिल्कुल ही पसंद नहीं है। परन्तु फिर भी मैं औरों के लिए उपयोगी होने की कोशिश करता हूं। जैसे अपने इस टैक्सी ड्राइवर को ही देखें। क्या आपको नहीं लगता कि इसके चेहरे के दाग हट जाएं तो यह खूबसूरत दिखने लगेगा?"

सही में, ड्राइवर के चेहरे पर इतने ज्यादा मुंहासे थे कि दवाई कम्पनियां ‘मुंहासा निवारण दवाओं' के विज्ञापन में उसका बखूबी इस्तेमाल कर सकती थीं। इस बीच लिकी ने छाता अपने हाथ में लिया और उसे घुमाना शुरू कर दिया। यह निश्चय ही कोई जादुई छड़ी होगी क्योंकि मैंने देखा कि थोड़ी देर में उसके चेहरे के दो बड़े मुंहासे गायब हो गए। और जब हम अपने गंतव्य पर उतरे, ड्राइवर का चेहरा टमाटर की तरह चिकना और चमकदार हो चुका था। लेकिन उसको इसका अहसास तक नहीं था।
टैक्सी से उतरकर मैंने अपनी टोपी पहनी और गायब हो गया। लिकी ने जादुई छाते का रुख अपनी तरफ किया और छाते सहित अन्तर्ध्यान हो गए। अलबत्ता छाते की नोक जरूर दिख रही थी जो फुदक-फुदक कर चलने वाली चिड़ियों जैसी जान पड़ती थी।
“अब आप मेरे साथ इस बगीचे में आ जाइए। देखिए मैं उस बदमाश कुत्ते से कैसे निपटता हूं। गेट बन्द कर लीजिएगा। अगर हममें से किसी को वह काटे भी तो उसे रोकना नहीं है। वैसे वह काटेगा नहीं।'' लिकी ने मुझे समझाते हुए कहा।
 
जैसे ही मैंने गेट बन्द किया एक बड़ा-सा कुत्ता गुर्राता हुआ हमारी तरफ लपका। उसकी आंखों में गुस्सा तो था लेकिन वह थोड़ा किंकर्तव्यविमूढ़ सा दिखा। वह जल्द ही गुर्राहट छोड़कर सूंघने लगा। अचानक ऐसा लगा कि उसने हमले का मन बना लिया है। मेरा ऐसा मानना है कि ग्रेहाउंड कुत्तों के अलावा अन्य प्रजातियां, जो दिखता है, उससे कहीं अधिक सुंघने पर ध्यान देती हैं। जो भी हो वह कुत्ता तो लिकी की तरफ दौड़ पड़ा। मैं अंदाजा लगा सकता था कि वे कहां हैं क्योंकि छाते की नोक दिखाई दे रही थी। जैसे ही कुत्ता उनकी तरफ दौड़ा, छाते की नोक ऊपर उठी और हल्के बैंगनी रंग का धुंए का छल्ला कुत्ते की तरफ लपका। कुत्ता रुका नहीं बल्कि पहले से कहीं ज्यादा बौखलाया हुआ दिखा। तभी लिकी के बाएं पैर की पिंडलियों वाला हिस्सा दिखा। यह सब अटपटा लग रहा था। आखिरकार, कुत्ते को ऐसा कुछ नज़र आ गया जिसे वह काट सकता था। वह गुर्राते हुए पैर की तरफ झपटा। लिकी का बायां पैर बिल्कुल स्थिर था और इसके पहले कि मैं उसे रोक पाता, कुत्ते ने काट लिया। आपको ख्याल होगा कि कुत्ता जब गुस्से में होता है तो कैसा दिखता है? उसके होंठ ऊपर उठ जाते हैं और सभी दांत बाहर की तरफ निकल आते हैं। मुझे इस कुत्ते के पैने दांत दिख रहे थे, लेकिन वे लिकी की पतलने के अन्दर नहीं घुस सके। लिकी ने मुझे बताया, “उसके दांत तो मुड़ गए थे। दरअसल मैंने उन्हें रबर में बदल दिया था -- सिर्फ चार दाढ़ छोड़कर। उनकी मदद से वह बिस्किट चबा सकता है।''
"अरे, कुत्ते का मालिक आ गया। मुझे अब अपना पांव भी छुपा लेना चाहिए', लिकी बड़बड़ाए। कुत्ते का मालिक चिड़चिड़ा-सा दिख रहा था। उसके आते ही पैर गायब हो गया। दरअसल लिकी ने अपना पैर हवा में उठा लिया। मैंने अपने जीवन में कभी किसी कुत्ते को इतना बुरा फंसा हुआ नहीं देखा था। वह हवा में टंगा हुआ था, उसका मुंह खुला था और दांत एकदम मुड़े हुए थे। तभी वह धम्म से नीचे गिरा और दुम दबाकर भागा।
और वह चिड़चिड़ा मालिक! वह तो फटी आंखों देखता ही रह गया। उसके पैर पसरे रह गए और मुंह खुला। वह बिल्कुल किसी बुत की तरह इस पूरे घटनाक्रम को देखता रहा। उसने देखा कि बगीचे के गेट का हैंडिल घूमा, गेट खुला और फिर हमारे बाहर निकलने पर बंद हो गया। गली के कोने पर पहुंचने पर हम दोनों फिर से प्रकट हो गए। मुझे काफी राहत महसूस हुई क्योंकि अपने अंगों को महसूस कर पाना, जो दिख नहीं रहे हों, काफी विचित्र-सा अहसास था। टैक्सी में बैठते हुए लिकी ने कहा, “अगर उस चिड़चिड़े आदमी के पास थोड़ी-सी भी अक्ल होगी, जो कि उसके पास नहीं है, तो इस रबर के दांत वाले कुत्ते की मदद से वह अपना भाग्य सुधार सकता है। मेलों में वह इस रबर के दांत वाले कुत्ते से कटवाने के लिए हरेक से आठ आने तो मजे से वसूल सकता है।''

"बस! आज इतना ही काम था। हम लंच के लिए जावा जाने वाले थे। अरे नहीं! अब तो काफी देर हो चुकी है। सूरज ढलने को है। वहां तक पहुंचते-पहुंचते अंधेरा हो जाएगा। चलो हिन्दुस्तान में कहीं चलते हैं।' लिकी ने कहा।
"इस मौसम में मांडू जाना अच्छा रहेगा। हम लोग जादुई दरी से चलेंगे। आपको एक पैराशूट की जरूरत होगी, खुदा-ना-खास्ता आप दरी से टपक पड़े। राक्षसों -जिन्नों से बचाव के लिए आपको ताबीज़ भी चाहिए होगी। साथ ही मच्छरों से बचाव के लिए अकरकरा का तेल लेना होगा। कुछ गरम कपड़े भी चाहिए होंगे। इस समय वहां दोपहर के तीन बज रहे हैं। हालांकि लंदन की अपेक्षा आप वहां ज्यादा गर्मी महसूस करेंगे।'' लिकी ने मुझे समझाया।

काम निपटाकर जब हम लिकी के घर लौटे तो वहां बड़ी हलचल थी। तमाम तरह की जादुई चीजें घटित हो रही थीं। अलमारी का दरवाजा खुद खुला और कपड़े, ताबीज़, जादुई छड़ी, तंत्र-मंत्र की किताबें और भी जाने क्या-क्या खुद-ब-खुद एक बड़े पिटारे में जमा होते जा रहे थे। पिटारा भरते से ही खुद-ब-खुद बन्द हो गया। दूसरी टोकरी से एक सांप निकला और दो बार पिटारे के इर्द-गिर्द लिपट गया, मानो किसी पार्सल को भेजने के लिए तैयार कर रहा हो। फिर उसने पूंछ और सिर को आपस में इस तरह लपेट लिया जैसे कि गठान लगाते हैं। लिकी ने कहा, "क्लिमेंशिया सुतली का मेरा खर्च बचा देती है। इस तरह वह मेरे सामान की चोरों से रक्षा करते हुए पूरी दुनिया को भी देख पाती है। चूंकि हम बहुत ऊंचाई पर उड़ेंगे इसलिए मुझे आपके ऊपर कुछ जादू करना पड़ेगा क्योंकि पांच मील की ऊंचाई पर हवा अत्यंत विरल हो जाती है। मैं आपको ऑक्सीजन लेने के लिए एक उपकरण दे सकता हूं जिसका इस्तेमाल अक्सर हवाबाज़ करते हैं। लेकिन, कहीं वह रास्ते में खराब हो गया तो मुझे यह भी पता नहीं कि इसको सुधारा कैसे जाता है। वैसे मैं इन सारी मशीनों की कोई परवाह नहीं करता, ये तो हमारे पुराने जादू का पासंग भर भी नहीं हैं। अगर मैं अभी आपको एक जादुई खुराक दें तो उसका असर होने में भी आधा घंटा लग जाएगा, इसलिए सबसे आसान तरीका होगा कि आपके किसी अंग को खोल लिया जाए ताकि इसे सीधे अंदर डाला जा सके। ऐसा ही करते हैं; यहां बैठ जाइए और अपना बायां पैर इस स्टूल पर रखिए। मैं आपके पैर को निकालना चाहता हूं।''
ऑक्टोपस द्वारा दी गई विशाल किताब के कुछ पन्ने पलटकर लिकी ने एक मंत्र पढ़ा। फिर उन्होंने जूते-मोजे सहित मेरा बायां पांव पकड़ा और खोलकर निकाल लिया। अरे वाह! जरा-सा भी दर्द नहीं हुआ। उन्होंने पैर को टखने के ठीक ऊपर से निकाला। खून की एक बूंद भी नहीं टपकी। मुझे टखने के ऊपर की दो हड्डियां बिल्कुल साफ नज़र आ रही थीं। फिर उन्होंने हवा भरने वाले पंप जैसा कोई सुनहरा उपकरण निकाला और मेरे पैर के ढूंठ पर एक फुहार-सी छोड़ी। मैंने पैरों के जरिए ऊपर तक चढ़ते गुनगुनेपन को महसूस किया। इसके बाद उन्होंने फिर से मेरा पांव लगा दिया। मुझे अभी भी जोड़ दिखाई पड़ रहा था, लेकिन लिकी ने फिर से कोई मंत्र पढ़ा और मेरा पैर बिल्कुल पहले जैसा दिखने लगा।
उड़ने की तैयारी करते हुए मैंने पैराशूट और लाइफबेल्ट पहन लिए। मुझे एक जादुई छड़ी भी दी गई। इसी बीच एक बड़ी-सी लिपटी हुई दरी उठाए हुए जिन्न अब्दुल मक्कार हाज़िर हुआ। जैसे ही उसने दरी को खोला उस पर कुछ अजीब तरह के पैटर्न बने दिखाई दिए। शायद अरबी में कुछ लिखा भी था। हम लोग दरी पर खड़े हो गए। अब्दुल मक्कार ने क्लिमेंशिया के फन्दे को पकड़ कर पिटारे को भी दरी पर रख लिया। साथ में कई कुशन भी थे। उसके बाद अब्दुल मक्कार दूसरे कमरे से धधकती, कोयले की आगवाली अंगीठी उठा लाया। मैंने देखा कि उसने लाल-सुर्ख लोहे को हाथ से पकड़ा हुआ है। लेकिन यह तो सभी जानते हैं कि इस तरह के काम जिन्न आसानी से कर लेते हैं। पॉम्पी भी छलांग लगाकर, कोयले की अंगीठी पर कुंडली मारकर आराम से बैठ गया। हम सब कुशन पर आसीन हो गए।

लिकी ने कहा, “आप सभी अपनी आंखें बन्द कर लीजिए, नहीं तो आपको चक्कर आ सकता है; हम उड़ने ही वाले हैं।'' मैंने वैसा ही किया और यह महसूस किया कि दरी ऊपर उठ रही है। मैं यह नहीं जान सका कि हम छत से बाहर कैसे निकले लेकिन महसूस हुआ हम बहुत तेजी से ऊपर उड़ रहे हैं। और उसके तुरंत बाद हमें महसूस हुआ कि हम नीचे गिर रहे हैं। मैंने अपने जबड़े कस लिए और सबकी खैर मांगने लगा। जब मुझे आंखें खोलने को कहा गया तो चमकदार धूप थी, हालांकि हमने जब लंदन छोड़ा था तब वहां बादल छाए हुए थे। उत्सुकतावश मैंने सरकते हुए, दरी के किनारे पहुंचकर नीचे झांका। हमारे नीचे बादलों के समुद्र के सिवा और कुछ नज़र नहीं आ रहा था। हम लोग तेज़ गति से दक्षिण -पूर्व दिशा में उड़ते जा रहे थे, लेकिन हवा का अहसास भी नहीं हो रहा था।

हमारे मेजबान ने बताया, “दरी के आसपास की हवा भी दरी के साथ उड़ रही है, अगर ऐसा नहीं होता तो हवा के तेज थपेड़ों से हम फिंका जाते। साथ ही मैंने दरी पर ऐसा तिलिस्म लगाया है ताकि दरी पर गर्माहट बनी रहे।'' बादलों के बीच से पल भर के लिए हमने इंग्लिश चैनल की झलक देखी, उसके तुरंत बाद हम फ्रांस के ऊपर से गुजर रहे थे। पेरिस के ऊपर से गुजरते हुए मैं एफिल टॉवर की एक झलक देख सका। उसके बाद घनघोर बादलों के ऊपर से गुजरने के, बाद बाई ओर आल्प्स पर्वत दिखाई दिए। हमने इन्हें आसानी से पार कर लिया क्योंकि हम लोग माउंट ब्लांक के भी दो मील ऊपर से उड़ते हुए उत्तरी इटली से गुजरे। और फिर एड्रियाटिक सागर को पार किया। यात्रा शुरू करने के दसवें मिनट में हम दक्षिणी ग्रीस को पार कर रहे थे। जब हम भू-मध्य सागर के ऊपर से गुजर रहे थे तो लिकी ने मेरी गर्दन में एक ताबीज़ डाल दी और बोले, “वहां नीचे फारसे की खाड़ी है; यहां के जिन्न आपको परेशान कर सकते हैं।' फिर पूछा, “हम लोग मांडू की बजाए उत्तर भारत की किसी अन्य जगह जाएं तो कैसा रहेगा। दिल्ली जाना कैसा रहेगा?"

हम लोग कुछ मिनट के लिए फारस और बलुचिस्तान के दक्षिणी तट के ऊपर उड़ते रहे। मैंने बगदाद और भारत के रास्ते पर कुछ समुद्री जहाज़ और दो हवाई जहाज देखे। वे हमसे काफी नीचे थे और हम इतनी तेज़ रफ्तार से जा रहे थे कि उनका चलना खड़े रहने जैसा लग रहा था। हम लोगों ने सिंधु नदी का मुहाना और कराची शहर पार किया। इसके बाद फिर एक रेगिस्तान में दाखिल हुए। इस रेगिस्तान को पार करते ही मैंने महसूस किया कि दरी धीमी हो रही है। नीचे एक बड़ी नदी दिखी। मैंने अनुमान लगाया यह यमुना नदी होगी। उसके किनारे एक शहर था जिसमें एक बड़ा-सा गुंबद और उसके किनारे चार ऊंची मीनारें दिख रही थीं। शहर में कई बगीचे दिखे जिनमें और भी कई सफेद भवन थे। कुछ दूरी पर एक बहुत ऊंची मीनार और एक नीले रंग का गुंबद दिखाई दिया। फिर अचानक दरी तेज़ी से नीचे की ओर गिरने लगी जिससे मैं काफी डर गया। आप सोच रहे होंगे कि लिफ्ट के जरिए नीचे उतरने जैसा महसूस हुआ होगा। लेकिन आपको यदि किसी खूब गहरी खदान में उतरने का अनुभव नहीं हो तो आप इसे महसूस नहीं कर सकते। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे भीतर का सब कुछ कहीं पीछे छूटा जा रहा हो। जब नीचे उतरने की हमारी रफ्तार थोड़ी कम हो गई तो मैंने किनारे से नीचे की ओर झांका। गलियां लोगों से भरी हुई थीं लेकिन ऊपर की ओर कोई भी नहीं देख रहा था। उनके चेहरे पर ऐसा कोई भाव ही नहीं था कि वे हमें देख रहे हों। “बन्धुवर वे हमें देख नहीं सकते। जादुई दरियां जब उड़ान पर होती हैं तो नीचे से दिखाई नहीं देतीं। नहीं तो रास्ते में जिन्न हम पर नीचे से हमला कर सकते थे। अब हम अपने एक मित्र चंद्रज्योतिष के घर जाएंगे। वे एक बहुत ही अच्छे तांत्रिक हैं।'' लिकी ने फरमाया।

दरी एक सुन्दर से छोटे बाग में उतरी। बाग में बहुत से फव्वारे लगे हुए थे और एक तरफ संतरे के पौधों की कतार थी। बाग के चारों ओर संगमरमर के सफेद स्तंभ चमक रहे थे। हम लोग दरी से नीचे उतरे। अब्दुल मक्कार ने पिटारे और पॉम्पी को नीचे उतारा। दरी ने खुद को समेटा और कोने में खड़ी हो गई। इतने में दो खूबसूरत औरतें घर से बाहर आईं। एक थोड़े भूरे रंग की गोल चेहरेवाली और दूसरी ज़र्द रंग की, ढलवां आंखों वाली थी। उसने नाक में नीलम की जरदोजी की हुई नथ पहनी थी।
लिकी ने बताया, “ये हैं सीताबाई और राधाबाई चंद्रज्योतिष।'' वे उनसे इतनी फर्राटेदार उर्दू में बतिया रहे थे कि मैं इसके सिवा ज्यादा कुछ नहीं समझ पाया कि मिस्टर चंद्रज्योतिष बाहर गए हुए हैं। तभी एक तीसरी श्रीमती चंद्रज्योतिष भी हाजिर हुईं। आपको पता होगा कि हिन्दुस्तानी अगर चाहें तो कितनी भी औरतों से शादी कर सकते हैं। वह कुछ-कुछ गेहुंए, गोरे चेहरेवाली थीं। मैंने उनके लंबेनुकीले कानों से अन्दाज लगाया कि वह तो एक ‘जिन्नी' है। दरअसल मैं पहली बार एक महिला जिन्न को देख रहा था। उसने पॉम्पी को उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया जबकि वह आग में बैठे-बैठे लाल-सुर्ख हो गया था। फिर वह उसे गंधक के डल्ले खिलाने लगी।

चंद्रज्योतिष के घर लौटने तक हम दिल्ली घूमने निकल गए। मैं आपको यहां दिल्ली के बारे में नहीं बताऊंगा क्योंकि वह तो आप भारत पर लिखी किताबों को पढ़कर जान सकते हैं। लेकिन मुझे यहां का पुराना किला और भव्य जामा मस्जिद ज़रूर बहुत पसंद आए। और यहां पर किन्नर बाजार के उत्तरी कोने की एक छोटी-सी दुकान में आप दुनिया की सबसे बेहतरीन और किफायती मिठाइयां पा सकते हैं। मिठाई खरीदते समय हमने देखा कि बगल की नाली में बैंगनी आंखोंवाला नेवला, चूहों का शिकार कर रहा था।

दिल्ली की सैर करके हम लोग दोपहर के खाने के लिए वापस लौट आए। भोजन बहुत ही स्वादिष्ट था। चंद्रज्योतिष महोदय लौट आए थे। वे गोल-मटोल व मजेदार व्यक्ति थे और उनकी पगड़ी में एक रत्न जड़ा हुआ था। वे बढ़िया अंग्रेजी बोल रहे थे, सिवाय 'स्टेशन’ को ‘इस्टेशन' और ‘बॉक्स' को 'बोकस' कहने के। हमने पहले मछली और मसालेदार मुर्गा खाया। पन्ना के कप में छलकती हुई शराब पी। भोज का समापन मिठाइयों और आम के साथ किया। हालांकि यह आमों का मौसम नहीं था, लेकिन चंद्रज्योतिष महोदय के एक नौकर ने हमारी आंख के सामने ही एक डलिया के नीचे आम का बीज बोया। और फिर चार बार डलिया उठाई। पहली बार हमने बीज को अंकुरित होते देखा। दूसरी बार डलिया के नीचे एक छोटा-सा पौधा नजर आया। फिर उसमें फूल दिखाई दिए और अंत में वह फलों से लद गया। मुझे लिकी का तरीका ज्यादा पसंद आया जिसमें हम पेड़ को बड़ा होते हुए देख सकते थे। मुझे कहीं ज्यादा मज़ा आया जब चंद्रज्योतिष के एक नौकर ने एक रस्सी हवा में उछाली और फिर उस पर चढ़कर वो गुम हो गया। बाद में उसने लटकती हुई रस्सी भी खींच ली।
लिकी ने कहा, "मैं ऐसा करने में बिल्कुल ही समर्थ नहीं हूं।''
“आप ठीक तरह से मंत्रों का उच्चारण नहीं कर रहे हैं। इसी में अधिकांश यूरोपीय जादूगर मार खा जाते हैं। चंद्रज्योतिष ने कहा।
लिकी ने उच्चारण का अभ्यास कर अंततः उसे ठीक कर लिया। चंद्रज्योतिष महोदय के प्रति कृतज्ञता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा, “मेरे पिटारे में जादू की बहुत सारी किताबें हैं जिन्हें देखकर आपको अच्छा लगेगा।''
इसके बाद हम लोग बाहर बगीचे में आ गए। पहली बार मैंने लिकी को इस तरह से चिंतित देखा। पिटारा पूरी तरह से खुला हुआ, सब चीजें बिखरी हुईं। क्लिमेंशिया! जिससे डलिया बंधी हुई थी, आधी कुंडली मारे और आधा फन उठाए, हवा में इस कदर लहरा रही थी मानों उसने दारू पी रखी हो। लिकी ने कहा, “ये सब सांप अब वैसे नहीं रहे जैसे मैंने अपनी जवानी के दिनों में देखे थे।"

"मेरे खयाल से मेरे नौकर प्यारे लाल ने जादू चलाने की कोशिश की है।'', चंद्रज्योतिष ने कहा। हमने उसे ढूंढने की कोशिश की परन्तु वह नदारद था। एक किताब जिस पर विचित्र तरह की लिखावट थी, खुली पड़ी थी।
"क्या वह देवनागरी समझता है?" लिकी ने पूछा।
“हां, लेकिन वह जादू में इतना पारंगत नहीं है।', चंद्रज्योतिष ने जवाब दिया। उन्होंने आगे बताया, “अच्छा ही है क्योंकि किताब का वह पन्ना खुला है जिसमें आदमी को टिड्डे में बदलने का मंत्र है। वह हमें टिड्डों में बदल सकता था, और मुझे पूरा विश्वास है कि मैं ठीक से चें-चें नहीं कर पाता। लेकिन वो शायद खुद ही अपने चक्कर में फंस गया है। अगर उसने पेज 17 पर लिखित मंत्रों को पहले नहीं पढ़ा होगा तो वह खुद ही टिड्डा बन गया होगा। चूंकि वह हमारा बहुत ही वफादार नौकर है इसलिए उसे फिर से आदमी बना देना आवश्यक है। सौभाग्य से मैं एक ऐसा मंत्र जानता हूं जिससे एक मील के भीतर जितने भी टिड्डे होंगे वे सब यहां आ जाएंगे। यह बिल्कुल ही काले जादू की तरह है। इसका इस्तेमाल जादूगर अपने पड़ोसियों की फसल बर्बाद करने के लिए करते हैं।'' और उन्होंने अपनी पत्नी से बड़ा नगाड़ा लाने के लिए कहा। फिर लिकी से मुखातिब होकर उन्होंने पूछा, “क्या आप मेरे संतरे के पौधों के इर्द-गिर्द तीन गोले खींचेंगे? मैं नहीं चाहता कि टिड्डे उन्हें खा जाएं। इसके बाद घास को भी बचाना होगा।'

नूर-ए-दुनिया, चंद्रज्योतिष की जिन्न पत्नी, एक विशाल नगाड़ा लेकर बाहर आई। चंद्रज्योतिष उस नगाड़े के चारों ओर नाचने लगे। वे काफी तेजी से नाच रहे थे। मंत्र पढ़ते हुए, नाचते हुए वे एक बैंगनी रंग के छाते से ताल देते जा रहे थे। लिकी ने बताया कि केवल किताब पढ़कर इस मंत्र का प्रयोग नहीं कर सकते, क्योंकि उसके लिए खास तरह के नृत्य की भी जानकारी होनी चाहिए।
इस बीच नूर-ए-दुनिया ठीक हमारे सिर के ऊपर कुछ जादू करती हुई उड़ रही थी। “तितलियों, गुबरैलों और मधुमक्खियों को दूर रखने के लिए नूर-ए-दुनिया कुछ तिलिस्म कर रही है', लिकी ने दो गोले खींचते हुए कहा। तभी हवा में अजीबो-गरीब शोर पैदा हो गया और तरह-तरह के कीड़े मकोड़े वहां पहुंचने लगे। इससे पहले कि मधुमक्खियों और गुबरैलों से बचने का मंत्र-वृत्त पूरा हो, उनका एक पूरा झुंड आ पहुंचा। उसके बाद बगीचे में केवल टिड्डे उतरना शुरू हुए। बाकी सब कीड़े घर के ऊपर मंडराते रहे। कुछ ही मिनट में हमारे ऊपर पक्षियों का झुंड जमा होकर इन्हें निगलने लगा।

"हमें अपने इन मेहमानों का भोज रोकना होगा। संभव है वे हमारे प्यारे लाल को भी खा जाएं। कपया इन्हें भगाओ।'' चंद्रज्योतिष ने नूरे-दुनिया से कहा। नूरे-दुनिया कीड़ों के बादलों के बीच से उड़ते हुए निकली और फौरन ही सारे पक्षी तितर-बितर हो गए। दूसरी ओर पूरी जमीन टिड्डों से पट गई थी।
मधुमक्खियां, गुबरैले और तितलियां इतनी भारी संख्या में आसमान में मौजूद थे कि बाहर अंधेरा हो गया था। नौकरों को लालटेन जलानी पड़ी। साथ ही वे एक बड़ा-सा हीरा भी बाहर ले आए जिसके अंदर से रोशनी निकल रही थी। इस रोशनी में हमने देखा कि ज़मीन और दीवार पूरी तरह से टिड्डों से पटी हुई थी। एक-दूसरे पर लदे-फदे टिड्डे घिसट रहे थे। उनकी आवाज सुनकर ऐसा लगता था मानों सैकड़ों घंटियां एक साथ बज रही हों। हमें बात करने के लिए खूब जोर से चिल्लाना पड़ रहा था। लेकिन तभी लिकी ने एक किताब से कोई मंत्र पढ़ा और टिड्डों की आवाज़ एकदम बंद हो गई।

लिकी ने पूछा, “क्या आप इनमें से प्यारे लाल को पहचान सकते हैं?"
"ना, बिल्कुल नहीं।'' चंद्रज्योतिष ने असमर्थता व्यक्त की।
लिकी ने उन्हें दिलासा दिया, "चिंता न करें, अब्दुल मक्कार पहुंचता ही होगा। वह उन जीवों को तुरंत पहचान लेता है जो आदमी या औरत पर जादू करके बनाए गए हों।''

तभी अब्दुल मक्कार हाजिर हुआ। वह जमीन पर बिछे टिड्डों के बादल को हटाते हुए हम तक पहुंचा। लिकी ने उसे तुरंत प्यारे लाल को ढूंढने के लिए कहा। उसने बड़ी आसानी से एक ही नज़र में प्यारे लाल को ढूंढ लिया। अब चंद्रज्योतिष ने एक मंत्र पढ़ा और वह टिड्डा आदमी की काया में बदलने लगा। यह काया परिवर्तन मजेदार था। पहले तो टिड्डे का बदन फूल गया और फिर चमड़ी फटी, जैसा कि टिड्डों के केंचुल उतारने के समय होता है। इसमें से इल्ली जैसी कोई चीज़ निकली। फिर वह तेजी से गुलाबी सुंडी में बदल गई। फिर उसपर चार जगह गुमट उभर आए। ये गुमट हाथों और पैरों में बदलने लगे। फिर उस कीड़े के सामने का हिस्सा पीछे की तरफ मुड़ा और सिर में बदल गया। इस बीच चारों गुमटों में उंगलियां और अंगूठे निकलने लगे। सभी अंग लगातार बढ़ते जा रहे थे। दो मिनट के भीतर ही एक संपूर्ण आदमी हमारे सामने घास पर लेटा हुआ था। इतना डरा हुआ आदमी मैंने कभी नहीं देखा।

एक चीज़ मुझे अटपटी लग रही थी कि टिड्डे का पिछला हिस्सा प्यारे लाल के आगे के हिस्से में बदला गया था। बाद में यह बात मैंने अपने एक प्राणीशास्त्री मित्र को बताई। उसका कहना था कि इसमें कोई समस्या नहीं। है क्योंकि टिड्डे का दिल पीठ की तरफ होता है, फिर उसकी आंतें और उसके नीचे तंत्रिका तंत्र होता है। या हम इस प्रकार कह सकते हैं कि आदमी का सामने का हिस्सा, टिड्डे का पीछे का हिस्सा बन जाता है अथवा टिड्डे के पीछे का हिस्सा आदमी के आगे का हिस्सा होता है।
प्यारे लाल ज़मीन पर लेटकर मारे भय के चीखने लगा। चंद्रज्योतिष ने एक और मंत्र पढ़ा तो वह उठ कर खड़ा हो गया, लेकिन उसके चेहरे का एक हिस्सा हरा था और दूसरा लाल। उसके बाल बैंगनी रंग के हो गए थे। “यह अगले एक सप्ताह तक ऐसा ही। रहेगा।'' यह कहकर चंद्रज्योतिष ने ‘अब कभी मत आना...' मंत्र जोर-ज़ोर से पढ़ते हुए उलटा नाच शुरू किया। सभी कीड़े-मकोड़े और टिड्डे शोर मचाते हुए वापस जाने लगे। लेकिन वहां अभी भी अंधेरा छाया हुआ था क्योंकि अब तक सूरज डूब चुका था।

इतने में पिटारे ने खुद को समेट लिया था। क्लिमेंशिया भी अब ठीक हो चुकी थी और उसने अपने आप को पिटारे के इर्द-गिर्द लपेट लिया था। पॉम्पी की अंगीठी चारकोल से भर दी गई थी और दरी बिछ चुकी थी।
“मुझे लगता है कि अब हमें पूरी दुनिया का एक चक्कर काटना चाहिए। निश्चित ही पूर्व की ओर जाने पर हमें रात ही मिलेगी। और रात को तो हमारी जादुई दरी और भी बेहतर उड़ सकती है'', लिकी ने कहा। फिर उन्होंने मुझसे पूछा, “आप अमेरिका में किस तरफ जाना चाहेंगे?"
"मुझे दक्षिण या मध्य अमेरिका जाना अच्छा लगेगा।'' मैंने कहा।

हमने चंद्रज्योतिष और उनकी दो पत्नियों से विदा ली। नूरे-दुनिया को अपनी बहन से मिलने वक-वक द्वीप तक जाना था। वह चाहती थी कि सोने के वक्त तक उससे मिल कर लौट आए। उसे थकान का अहसास हो रहा था इसलिए उसने हमारे साथ चलने का आग्रह किया था। यहां से हम लोग दक्षिण पूर्व की ओर बढ़े। सामने दूज का चांद चमक रहा था। लेकिन पांच मील ऊपर उठते ही तारों की चमक भी बढ़ गई। इतनी रौशन रात इससे पहले मैंने कभी नहीं देखी। जैसे-जैसे हम दक्षिण की ओर गए, वे तमाम नक्षत्र दिखने लगे जिनसे पहले मेरा कोई परिचय नहीं था। एक या दो मिनट के बाद हम हिंद महासागर के ऊपर थे जो रात में चांदी की तरह चमक रहा था। हम लोगों ने निकोबार द्वीपसमूह और फिर मलाया प्रायद्वीप पार किया। मैंने देखा कि ध्रुव तारा क्षितिज से ओझल हो गया। नूरे -दुनिया और अब्दुल मक्कार किसी जिन्न-भाषा में बात करने में तल्लीन थे। लिकी ने स्वीकार किया कि वे भी इस भाषा को ठीक से नहीं समझ पाते। मुझे केवल इतना समझ में आया कि अब्दुल की चाची परेशान है क्योंकि उनके खूब सारे अतिरिक्त दांत निकल रहे हैं।

कुछ देर बाद हम जावा द्वीप के ऊपर से गुजर रहे थे। यह जावा का एक ज्वालामुखी है। हम लोग थोड़ा बायीं ओर मुड़े और फिर एकाघ मिनट में मालुका द्वीप के ऊपर थे। मुझे पता था इनको ही वक-वक द्वीप के नाम से जाना जाता था क्योंकि अरेबियन नाइट्स के हसरा-बसरा की कथा में मैंने इसके बारे में पढ़ा था। नूरे-दुनिया ने यहां पहुंचकर लिकी और हम सबको अलविदा कहा।
अब हमें मध्य अमेरिका की तरफ चलना चाहिए', श्री लिकी ने जारी रखा, “अभी हम लोग ब्रिटिश गयाना के ठीक विपरीत हैं। इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस रास्ते से अमेरिका जाते हैं।

"हम लोग यहां से दक्षिण की तरफ चलते हैं। ठीक दक्षिण ध्रुव के ऊपर से। अभी तो वहां दिन होगा न?" मैंने पूछा।
लिकी ने कहा, “बिल्कुल ठीक फरमाया आपने।" और हम दक्षिण की तरफ बढ़ लिए। थोड़ा आगे जाकर हम लोग ऑस्ट्रेलिया के ऊपर से गुजरे। रास्ता हवाई मार्ग वाला ही था, अन्तर केवल हमारी गति में था - हम लोग वायुयान से दो सौ गुना ज्यादा तेजी से उड़ रहे थे। आगे जाकर हम एक विशाल मरुस्थल को पार करते हुए दक्षिण की ओर बढ़े। हमने एक झील देखी जो चांदनी में चमक रही थी। लेकिन किसी भी शहर की कोई रोशनी नहीं दिखी। आसमान में कई ऐसे चमकदार तारे दिखे जिन्हें मैं नहीं जानता था। आसमान में मुझे रोशनी के दो विचित्र धब्बे भी दिखे जो कुछ कुछ आकाश गंगा की तरह दिखाई दे रहे थे। लिकी ने बताया कि इन्हें ‘मेगेलान्स क्लाउड' कहते हैं। उसके बाद दक्षिण पश्चिम की तरफ बढ़ते ही सूर्य को उगते देखकर मुझे आश्चर्य हुआ; हालांकि बाद में मुझे समझ में आया कि ऐसा ही होना चाहिए था। हमारे नीचे बादल थे फिर भी हम उनके बीच में से झांकते समुद्र और आइसबर्ग को बखूबी देख पा रहे थे।

“क्या हम समुद्र तट पर पहुंच कर कुछ देर रुक सकते हैं, क्योंकि मुझे पेंगुइन देखने हैं।'' मैंने लिकी से पूछा। उन्होंने कहा, “निश्चित ही, लेकिन हमें कुछ गर्म कपड़े पहनने होंगे क्योंकि जब अंटार्कटिक पर धूप हो तब भी काफी तेज़ सर्द हवाएं चलती हैं। फिर उन्होंने क्लिमेंशिया को पिटारा खोलने का आदेश दिया। पिटारे से उन्होंने फर के दो कोट, लंबे जूते, मोटे मोजे और कुछ अन्य गर्म कपड़े निकाले। हम लोग नीचे उतरते ही एक निर्जन तट पर आ गए, जहां बर्फ की चोटियां थीं और उनके पीछे ऊंचे-ऊंचे पहाड़। लिकी ने कहा, “यहां पेंगुइनों का एक पूरा शहर बसा हुआ है - पांच लाख के करीब आबादी होगी उनकी।''

यहां से हम पेंगुइनों के झुंड देख सकते थे। वहां हरेक जोड़े ने पत्थर से अपना एक गोलाकार घोंसला बनाया था। जोड़े में से कोई एक हमेशा ही अंडों की देख-रेख के लिए घोंसले में रहता था। जबकि दूसरा समुद्र में झींगे का शिकार करके उनके लिए लाता था। यहां पर वे हजारों की संख्या में बतखों की तरह छप-छप कर रहे थे। दृश्य कुछ ऐसा था मानो हज़ारों मोटे आदमी सांध्य वस्त्र पहन कर टहलने निकले हों! महाकाय पर्वतों और ग्लेशियर से भरे इस पूरे महादेश में पेंगुइनों के अलावा जीवन का कहीं भी कोई संकेत नहीं था। फिर हम दक्षिणी ध्रुव के ऊपर से होते हुए, समुद्र को पार करके दक्षिण अमेरिका पहुंचे। फिर से घास और हरियाली देखकर हमें बहुत अच्छा लगा। अर्जेन्टीना के ऊपर से गुजरते हुए हम काफी नीचे उतर आए ताकि यहां के पशुओं के विशाल झुण्डों को देख सकें। इसके बाद हम ब्राज़ील पहुंच गए। अब गर्मी थोड़ी बढ़ चली थी इसलिए हमने पिटारे में से टोप, सिल्क का कुर्ता और हाफ पैंट निकाल कर पहन लिए। जब मैंने नीचे देखा तो मुझे ठोस हरी चादर-सा कुछ दिखा। बाद में लिकी ने बताया कि यह घास का मैदान नहीं बल्कि पेड़ों के शीर्ष हैं। हम लोग थोड़ी देर के लिए अमेजन नदी के ऊपर रुके। इस नदी की चौड़ाई इंग्लिश चैनल के बराबर थी। इसके तेज बहाव की चपेट में बड़े वृक्ष भी बहे जा रहे थे। कई पर्वतों को पार करके जब हम फिर समुद्र तक पहुंचे तो मेरी घड़ी में साढ़े तीन बज चुके थे।

“चलिए अब ज्वालामुखी का नज़ारा लें", लिकी ने कहा। यहां पर एक सक्रिय ज्वालामुखी था जिसमें से गड़गड़ाहट के साथ लगातार धुएं के बादल निकल रहे थे। हम लोग क्रेटर के एकदम किनारे, एक काली चट्टान पर उतरे थे। हमने आगे बढ़कर क्रेटर के अन्दर झांका। मुझे अंदर का नजारा बिल्कुल ही अच्छा नहीं लगा। ऐसा लग रहा था मानों वो हमारे ऊपर ही निशाना साध रहा हो। हालांकि मैंने ताबीज़ पहन रखा था और यह यकीन था कि मुझे कोई हानि नहीं होगी, फिर भी धमाकों के समय पत्थरों से बचाव के लिए अनायास ही मेरा सिर झुक जाता। एक-दो मिनट में ही इससे मेरा मन भर गया। अब मैं ज्वालामुखी की बाहरी ढलान की तरफ आ गया। इस तरफ सुर्ख लावा की एक धार बह रही थी।

यह एक घिनौनी और निर्जन जगह थी जो किसी सामान्य पहाड़ की बजाए, धातु-मल के ढेर जैसी दिख रही थी। पूरी जमीन भुरभुरी थी और पौधों का नामो-निशान तक नहीं था। मैंने लिकी को आवाज़ लगाई। उन्होंने बताया कि वे सल्फर इकट्ठा कर रहे हैं। दरअसल एक जादूगर को ज्वालामुखी से निकली गंधक की ही ज़रूरत होती है। वे कारखाने में बनी गंधक इस्तेमाल नहीं करते। इसके बाद हमने समुद्र तट पर चाय पी और दरी पर सवार होकर इंग्लैंड यानी अपने घर के लिए रवाना हुए।
जैसे ही हम लिकी के घर में दाखिल हुए, कमरा बिल्कुल पूर्ववत और व्यवस्थित लग रहा था; अलबत्ता बाहर से खरखराहट की आवाज़ आ रही थी। दरवाजा खोलते ही एक अत्यंत दीन-हीन व्यक्ति अन्दर आया। उसकी नाक एक लंबी गुलाबी रस्सी की तरह खिंची हुई थी, जिसकी लम्बाई लगभग तीन फीट थी। इसका एक सिरा दरवाजे के हैण्डल के साथ चिपका हुआ था। अब्दुल मक्कार को देखते ही उसने पीछे खिसकना चाहा तो उसकी नाक रबर की तरह खिंचती चली गई।

"ओ मेरे आका! क्या मैं इस चोर की खाल खींच लें या इसकी आंखों के सामने इसकी आंतें निकाल लें और इसके गुर्दे खौलते तेल में तल दें।' जिन्न ने पूछा।
“ऐसी सज़ा! अरे अब्दुल मक्कार ये सब तो लन्दन में अप्रचलित हो चुका है।'' श्री लिकी ने कहा।
फिर वे चोर से मुखातिब हुए और कहा, “शुक्र करो कि हम, दो-तीन दिन के लिए बाहर नहीं गए थे। क्योंकि मेरे सिवा और कोई तुम्हारी नाक को हैंडल से नहीं छुड़ा सकता था। अभी तो मैं तुम्हारी नाक छोड़ देता हूं लेकिन ध्यान रखना, अगली बार यदि तुमने कहीं सेंधमारी की तो तुम्हारी खैर नहीं। यह कोई ज़रूरी नहीं कि वह घर जादूगर का ही हो - परन्तु अगली बार भी सेंध मारते ही तुम्हारी नाक दरवाजे से चिपक जाएगी और बाद में उसे कुल्हाड़ी से काटकर ही अलग कर पाओगे।''
फिर लिकी मुझसे बोले, “अब अगर आप बुरा न मानें तो मैं शुभरात्रि कहूं? क्या आप इस जादुई दरी पर कहीं और जाना चाहेंगे?"

मैंने उनको शुक्रिया कहा, दरअसल आज के बाद तो मुझे बसयात्रा भी काफी रोमांचक लगेगी। यह सब इतना मजेदार रहा कि क्या बताऊं। लगता है जैसे मैं एक माह की छुट्टी से लौटा हूं। और अब तो मैं सोमवार को काम पर जाने के लिए पूरी तरह तंदरुस्त हूं।"
सोमवार को मैं इस समस्या को सुलझाने में जुट गया कि गुलाब और बिल्लियों की नई नस्लें कैसे बनाई जा सकती हैं; क्योंकि यह मेरे काम का एक हिस्सा है। और मैं समझता हूं कि यह भी लिकी के काम जितना ही विचित्र है।


जे. बी. एस. हाल्डेनः(1892-1964 ) प्रसिद्ध अनुवांशिकी विज्ञानी। विकास (Evolution) के सिद्धांत को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान। विख्यात विज्ञान लेखक हैं।
हिन्दी अनुवादः लाल बहादुर ओझा: दिल्ली में रहते हैं, फ्रीलांस पत्रकारिता करते हैं।
चित्रांकनः क्वेंटिन ब्लेक।
यह कहानी माय फ्रेंड मिस्टर लिकी संकलन से साभार। यहां मूल कहानी को संपादित करके प्रकाशित किया जा रहा है।