लेखक : विवियन गोरनिक
अनुवाद: टुलटुल बिश्वास [Hindi PDF, 136 kB]
भौतिकी, खगोलशास्त्र और गणित जैसे विषयों में औरतों की कमी से यह सरोकार उपजता है कि इन महत्वपूर्ण विषयों ने आधी इंसानी आबादी की दिमागी शक्ति का फायदा क्यों नहीं लिया। पत्रकार और साहित्यिक आलोचनाकार विवियन गोरनिक ने 1983 में प्रकाशित अपनी किताब ‘विज्ञान में औरतें’ के लिए भौतिकशास्त्री अल्मा नोरोवस्की का यह वृत्तांत लिखा था।
उनचास साल की उम्र; गहरे नाक नक्श वाला चेहरा, सोच में डूबी आंखें, सिर पर काले सेक्सी बालों का एक गुच्छा जिसे वह चालीस के दशक की किसी फिल्मी खलनायिका की तरह उछालती रहती है, चाल मोहक और इसे जानने वाली, मुंह कुछ उदास और फिर हंसते हुए आश्चर्यजनक रूप से कमसिन जब आंखें अचानक एक चमकदार रोशनी से भर जाती हैं। अल्मा नोरोव्स्की मस्तिष्क पर काम के लिए मशहूर एक विश्व-विद्यालय में सैद्धांतिक भौतिकशास्त्री हैं। अपने सहकर्मियों के बारे में अल्मा रुखाई से कहती हैं : “वे बड़े सैद्धांतिक हैं। लोग मुझसे हमेशा सवाल करते हैं कि यहां औरतों के साथ कैसा बर्ताव किया जाता है। मैं कहती हूं, औरतें? वे यहां एक सैद्धांतिक अवधारणा हैं।”
चार साल से उस भौतिकशास्त्री पति से तलाकशुदा जिससे उसने ग्रेजुएशन के समय शादी की थी, ज़िंदगी में पहली बार अपने बूते पर जीती हुई, अपनी नई आज़ादी को बेहद प्यार करती हुई और अपने काम से खुश, अल्मा फिर भी उसांस भरती है। “ऐसा कैसे हो सकता है कि आप भौतिकी में काम करें या अकादमिक उदारवादी पुरुषों के बीच जिएं और हर दिन, हर पल फूट न पड़ें? मैं कभी-कभार ही खुद को नियंत्रित रख पाती हूं.......। पिछले साल एक सम्मेलन में मैं भौतिकशास्त्रियों के एक झुंड में खड़ी थी, बाकी सब पुरुष थे और मेरा परिचय उस समूह के एक नए सदस्य से कराया गया। उसने कहा, ‘मेरी अब तक की जानकारी में तुम पहली खूबसूरत भौतिकशास्त्री हो।’ मैंने हल्के से मेरे बाजू में खड़े आदमी की ओर इशारा किया और कहा, ‘अरे, यह सच नहीं है। तुम रिचर्ड को तो जानते हो। वह बेहद खूबसूरत है और वह भौतिकशास्त्री भी है।’ वे सब सकते में आ गए, और फिर कुछ ने सराहना में सिर हिला दिया। तब तो मैं अपने लिए गर्व महसूस कर रही थी, पर अमूमन यह अहसास बहुत बुरा होता है। अभी भी। हमेशा। हर खाने की मेज़ पर, दफ्तर में, लगातार सूक्ष्म संकेत कि आपका दरअसल कोई वजूद ही नहीं। आपको उन्हें लगातार यह याद दिलाते रहना पड़ता है कि आप भी उन्हीं की तरह सोचने और काम करने वाले जीव हैं। यह बेहद थकाऊ है।”
वह एक खूबसूरत लड़की थी, साहसी और दिलफेंक, लोगों को आकर्षित करने की उसकी शक्ति को इस्तेमाल करना उसे अच्छा लगता था, वह इसे कभी नहीं गंवाना चाहती थी (“क्यों? किसलिए? इसमें कितना मज़ा आता था”)। इसलिए हाईस्कूल से ही भौतिकी की एक बहुत अच्छी विद्यार्थी होने के बावजूद किसी ने उसे गम्भीरता से नहीं लिया। उसके पिता एक हताश वैज्ञानिक थे। उन्होंने उसे स्नेह और प्रोत्साहन से सींचा तो ज़रूर पर वे गलती कर गए। वह एक छोटे-से महिला कॉलेज में जाने लगी जहां विज्ञान का पाठ्यक्रम तो बुरा था ही, पढ़ाने वाले बदतर थे। पर यौन सफलता ने उसे अपनी खुद की गम्भीरता के बारे में ज़िद्दी और दृढ़निश्चयी बना दिया। उसने आगे आइवी लीग। शिक्षा पाने के लिए अपना रास्ता बना ही लिया।
स्नातकोत्तर की पढ़ाई के दूसरे साल वह लॉरेंस नोरोव्स्की से मिली और दोनों ने शादी कर ली। वह भौतिकी का ही एक बहुत महत्वाकांक्षी साथी विद्यार्थी था। उन दिनों के बारे में वह कहती है : “मुझे भौतिकी में काम करने वाली चन्द औरतों में से एक होना अच्छा लगता था। पर मुझे तब बिल्कुल अच्छा नहीं लगा जब मुझे पता चला कि भौतिकी में काम करने वाली औरतों को बदसूरत, अवांछित और सिरफिरी माना जाता था। मैं सेक्सी, सुन्दर और मोहक होना चाहती थी, और साथ ही एक बढ़िया भौतिकशास्त्री भी।”
जब लॉरेंस ने उत्तरी मैसेचुसेट्स के एक विश्वविद्यालय में नौकरी ले ली तब अल्मा को एक बच्चा हो चुका था और उसकी पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी। वह याद करती है कि जब उसने कहा था कि वह मैसेचुसेट्स में अपनी पढ़ाई पूरी करेगी तब सबने उसका सर थपथपाया था, जैसे वे किसी छोटे बच्चे की ज़िद को पुचकार रहे हों। पर “उन दिनों मैसेचुसेट्स विश्वविद्यालय में विज्ञान में काम करने वाली चार औरतें थीं। उन दिनों के बारे में पलटकर सोचती हूं तो लगता है कि उन औरतों ने मेरे जीवन को किस कदर प्रभावित किया। एक दिन वे चारों घर आ गईं, बैठक में पसर गईं और मुझे ढेर सारे निर्देश देने लगीं कि मुझे अपने जीवन को, समय को कैसे व्यवस्थित करना है, बच्चे की आया, खरीददारी और धुलाई की समस्याओं से कैसे निपटना है, आदि, आदि। उन्हें एक पल के लिए भी यह ख्याल नहीं आया कि मैं शायद पढ़ाई पूरी न कर पाऊं। वे हमसफर की तरह आईं थीं, एक ऐसी परिस्थिति में जिसके बारे में वे जानती थीं कि उनसे बेहतर, कोई नहीं समझता। अपने अनुभव का लाभ मुझे देने आई थीं। और मैंने वैसा ही किया जैसा उन्होंने कहा, और अन्तत: अपनी पढ़ाई पूरी की। पर इसमें अपने पति की मुझे कोई मदद नहीं मिली, यह मैं निश्चित तौर पर कह सकती हूं।”
“जब मैंने अपना डिज़रटेशन (थीसिस) लिखना शुरू ही किया था, बिल्कुल शुरुआती चरण में, तब लॉरेंस ने अचानक तय किया कि वह दो साल के लिए पेरिस के भौतिकी संस्थान जाएगा। उसने मुझ से कहा, “तुम दो साल बाद थीसिस पूरी कर लेना। फर्क क्या पड़ता है?” तब मैंने ठान लिया। मुझे पता नहीं क्यों, पर मैंने अचानक कहा, “नहीं, बिल्कुल नहीं, यह मैं नहीं करूंगी।” उसने अपने तमाम दोस्तों को मुझ से मिलने भेजा, ताकि वे मुझे उसके साथ जाने को राज़ी कर सकें। उन लोगों ने कहा कि ‘मैं उसका केरियर बर्बाद कर रही हूं, मैं इतनी खुदगर्ज़ कैसे हो सकती हूं, मैं अपनी डिग्री एक साल में हासिल करूं या दो में, क्या फर्क पड़ता है?’ मैंने किसी को कोई जवाब नहीं दिया, पर मैं अपने फैसले पर अडिग रही। वह पेरिस चला गया, मैंने बच्चों को अपने मायके भेज दिया, और अपनी डिग्री पूरी करने के लिए ज़ोर-शोर से भिड़ गई। और एक साल में काम पूरा भी कर लिया। फिर मैंने बच्चों को लिया और पेरिस गई। वहां मुझे भौतिकी संस्थान में तुरन्त ही एक ऑफिस, और प्रयोगशाला में काम करने की जगह दी गई और वैसा ही व्यवहार मिला जैसा किसी भी वैज्ञानिक को मिलता। पर मेरे पति ने जो पहली घोषणा की वह यह थी कि दोपहर के भोजन या किसी भी और मामले में मैं उसके दोस्तों के समूह में शामिल न होऊं। तब पहली बार उसने मुझसे कहा कि हम किसी भी हालत में कभी भी साथ काम नहीं करेंगे। उसका कहना था कि भौतिकी बहुत स्पर्धात्मक है, और वह हमारे बीच उभरने वाले किसी स्पर्धात्मक रिश्ते का दुष्प्रभाव अपने विवाह पर नहीं पड़ने देना चाहता। हमारे बीच किसी होड़ से बचने का उसका तरीका यही था कि मैं कभी कुछ बनूं ही नहीं।
“फिर हम घर लौट आए। लॉरेंस ने ब्रुकहैवन में काम करना शु डिग्री किया। मैंने तीन बच्चे पैदा किए। मैं पूरे तौर पर एक भौतिकशास्त्री की तरह काम करना नहीं चाहती थी। मुझे स्टोनीब्रुक में एक पार्ट-टाइम काम मिल गया। उन दिनों मुझे अपने पति के भौतिक-शास्त्री दोस्तों की बराबरी का दर्जा कभी नहीं मिला। पर मैंने इसमें कोई हर्ज़ भी नहीं समझा। आखिरकार वे कई-कई घंटे कड़ी मेहनत करते थे। और मैं कर ही क्या रही थी। वे क्योंकर मुझसे बराबरी का बर्ताव करें?”
“1971 में स्टोनीब्रुक की मेरी नौकरी छूट गई। दूसरा कोई काम नहीं मिल रहा था। अचानक, मैं चकराई-सी भटक रही थी। यह क्या हो गया? मैं तो एक अच्छी भौतिक-शास्त्री थी। मैंने महत्वपूर्ण काम करना चाहा था। मैं क्या थी? कुछ भी नहीं। मैं इस हाल में कैसे आ पहुंची? मेरे केरियर का क्या हुआ?”
“उस साल गर्मियों में मैंने एस्पेन में नीना ब्रेवरमैन से बात की। हमने अपने अनुभव बांटे। यह बात चौंका देने वाली थी कि हमारे जीवन के उतार-चढ़ावों में इतनी समानताएं थीं। पहली बार मुझे यह बात ठनकी कि मेरा जीवन इस तरह विकसित इसलिए हुआ था क्योंकि मैं एक औरत थी। मैंने औरतों के विकल्प चुने थे और मैं वहीं आ पहुंची थी जहां विज्ञान में काम करने वाली औरतें पहुंचती हैं। यह अहसास मुझे ऐसे ठनका जैसे किसी ने एक टन ईंट मेरे सिर पर दे मारी हो। अचानक मुझे सब कुछ साफ-साफ दिखाई देने लगा। उस पल से मैं एक कट्टर नारीवादी बन गई। कट्टर यानी सचमुच कट्टर। इसके कुछ समय बाद ही मेरा विवाह टूट गया।”
“अतीत में झांकते हुए मुझे एक बात याद आती है। स्टोनीब्रुक की नौकरी गंवाने के बाद मैं घर बैठी, दिन भर कोई विज्ञान किए बगैर, पगला रही थी। एक दिन मैं अपने पति से मिलने उसकी प्रयोगशाला गई। वहां एक और वैज्ञानिक, हमारे एक मित्र ने अचानक मुझसे कहा, ‘अल्मा, मेरे ऑफिस में एक अतिरिक्त मेज़ है। तुम वहां आकर एक अतिथि कार्यकर्ता की तरह क्यों नहीं काम करती?’ इस काम का मुझे कोई वेतन नहीं मिलना था, पर मैं प्रयोगशाला में काम कर सकती थी, उसकी सुविधाओं का लाभ ले सकती थी और वैज्ञानिकों से मिल-जुल सकती थी। मैंने उस दोस्त का आभार माना और वहां काम करने जाने लगी। बाद में मैंने सोचा, ऐसा क्यों है कि मेरे लिए यही बात लॉरेंस को नहीं सूझी? ऐसा कैसे हुआ कि एक दोस्त ने मुझे पगलाने से बचा लिया पर मेरे पति ने यह बात कभी सोची भी नहीं।”
“लॉरेंस खुद को असुरक्षित महसूस करता था और असुरक्षा का यह भाव उसे हमेशा ही मेरे प्रति उसके व्यवहार को अन्याय की बजाय, खुद को बचाने के प्रति सचेत बना देता था। और फिर इससे जुड़ी एक और गहरी सच्चाई यह भी थी कि उसने एक भौतिकशास्त्री के तौर पर कभी भी मुझे गम्भीरता से लिया ही नहीं। वह ऐसा करता भी क्यों जबकि ऐसा न करना ही कहीं ज़्यादा सुविधाजनक था? वह लियॉन ब्रेवरमैन जैसा नहीं था और अगर मैं खुद को गम्भीरता से नहीं लेती तो वह मेरे लिए ऐसा करने वाला नहीं था।”
“मुझे मालूम है कि मैं पक्षपाती हो रही हूं। अगर लॉरेंस यहां होता तो वह ठीक इन्हीं घटनाओं की कुछ और ही व्याख्या प्रस्तुत करता। लेकिन हकीकत तो यही है न। मामला सही होने का नहीं है, मामला है कि हम सबने एक-दूसरे के साथ क्या किया। और मैं कितने ही सही नज़रिए से इन घटनाओं को देखने की कोशिश करूं, मुझे अपनी शादी, अपने पति और ज़िंदगी के गुम हुए काम के सालों के प्रति बेहतर तो नहीं महसूस होगा।”
विवियन गोरनिक: न्यूयॉर्क में जन्मी व शिक्षित हुई विवियन गोरनिक ने लिखने का पेशा अपनाया व कई किताबें लिखीं। वे अमरीका के नारीवादी आंदोलन से शुरुआत से जुड़ी रहीं।
अनुवाद: टुलटुल बिश्वास: एकलव्य के प्रकाशन कार्यक्रम से संबद्ध।
चित्र: विप्लव शशि: वडोदरा की एम. एस. यूनिवर्सिटी से फाइन आर्ट्स में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करने के बाद चित्रकारी में मशगूल।