लेखक: ऐस्ट्रिड लिंडग्रन
अनुवाद - संध्या राव एवं मेटा औट्टोस्सौन
पुस्तक अंश
टामी और अन्निका स्कूल जाते थे। रोज़ सुबह आठ बजे निकलते थे, हाथों में हाथ डाले, किताबें पकड़े हुए। उस समय पिप्पी अपने घोड़े की सफ़ाई कर रही होती या श्री नीलस्सौन को अपने नन्हे-प्यारे कपड़े पहना रही होती। या फिर कसरत कर रही होती, ज़मीन पर सीधा खड़े होकर एक के बाद एक 43 बार हवा में कलाबाज़ी मारती। इसके बाद वह रसोई घर की मेज़ पर बैठकर इत्मीनान से कॉफी पीती और चीज़-सैंडविच खाती।
स्कूल जाते समय टॉमी और अन्निका हमेशा विल्लकुल्ल कुटीर की तरफ बड़ी चाह से देखते। पिप्पी के साथ खेलना उन्हें ज़्यादा पसन्द तो था ही, पिप्पी उनके साथ स्कूल भी जाती तो कितना अच्छा लगता।
“सोच के तो देखो, स्कूल से घर वापस एक साथ आने में कितना मज़ा आता,” टॉमी ने कहा।
“हां, और स्कूल जाते समय भी,” अन्निका ने कहा।
जितना भी वे इसके बारे में सोचते गए, उतना ही उनको लगा कि पिप्पी का स्कूल न जाना खेद की बात है। आखिर उन्होंने तय किया कि इस मामले में पिप्पी पर ज़ोर डालना चाहिए।
एक दिन जब सारा होमवर्क खत्म करके टॉमी और अन्निका विल्लकुल्ल कुटीर गए, तो टॉमी ने कहा, “हमारी टीचर कितनी अच्छी है तुम कल्पना भी नहीं कर सकती।”
“काश तुम को मालूम होता कि स्कूल में कितना मज़ा आता है,” अन्निका ने कहा। “मैं स्कूल नहीं जाती तो पागल हो जाती।”
पिप्पी चौकी के ऊपर बैठकर अपने पैरों को टब में धो रही थी। वह कुछ भी बोली नहीं, बस अपने पैरों की उंगलियों को सिकोड़कर पानी को इधर-उधर बिखराती रही।
“वहां ज़्यादा देर रुकना भी नहीं होता है,” टॉमी ने कहा। “सिर्फ दो बजे तक।”
“हां, और हमें क्रिसमस की छुट्टियां मिलती हैं, और ईस्टर की और गर्मियों की भी,” अन्निका ने कहा।
सोच में डूबी हुई पिप्पी अपने पैर के अंगूठे को चबा रही थी, पर कुछ बोली नहीं। अचानक, हिचकिचाए बिना, उसने सारा पानी फर्श पर उड़ेल दिया जिससे श्री नीलस्सौन - जो वहां बैठा आईने के साथ खेल रहा था - की पतलून पूरी तरह भीग गई।
“यह तो साफ बेइंसाफी है!” पिप्पी सख्ती से बोली। उसे श्री नीलस्सौन की गीलीे पतलून की कोई परवाह नहीं थी। “बड़ा अन्याय! मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी!”
“क्या नहीं बर्दाश्त करोगी?” टॉमी ने पूछा।
“चार महीने के बाद क्रिसमस है और तुमको क्रिसमस की छुट्टियां मिलेंगी। मुझे क्या मिलेगा?” पिप्पी की आवाज़ में निराशा थी। “क्रिसमस की ज़रा-सी छुट्टी भी नहीं,” उसने शिकायत की। “यह सब बदलना पड़ेगा। कल से मैं स्कूल जाऊंगी।”
टॉमी और अन्निका ने खुशी से ताली बजाई।
“शाबाश! तो हम आठ बजे हमारे फाटक के बाहर तुम्हारा इंतज़ार करेंगे।”
“अरे नहीं,” पिप्पी बोली। “मैं इतनी जल्दी नहीं निकल सकती। और वैसे भी मैं सोचती हूं कि घोड़े पर जाऊंगी।” और उसने किया भी ऐसा ही। अगली सुबह ठीक दस बजे पिप्पी ने घोड़े को बरामदे से नीचे उतारा। अगले क्षण शहर के सारे लोग अपनी-अपनी खिड़कियों से ताक कर एक बेलगाम घोड़े को देख रहे थे। यानी कि उन्होंने सोचा कि घोड़ा बेलगाम था पर ऐसी बात नहीं थी। बस, पिप्पी को स्कूल पहुंचने की जल्दी थी। वह सरपट स्कूल के मैदान में आ टपकी। सटासट घोड़े से उतरकर उसने उसे पेड़ से बांधा। फिर कक्षा के दरवाज़े को ऐसे धड़ाम से खोला कि टॉमी, अन्निका और उनके सहपाठी अपनी-अपनी कुर्सियों से उछल पड़े।
“ओय होय!” अपनी टोपी को हिलाती हुई पिप्पी चिल्लाई। “पहाड़े-शहाड़े के लिए वक्त पर पहुंची हूं न?” टॉमी और अन्निका ने पहले से ही टीचर को समझाकर रखा था कि पिप्पी लंबेमोज़े नाम की एक नई छात्रा आएगी। पिप्पी के बारे में टीचर ने शहर के लोगों से भी सुन रखा था। वह एक दयालु और खुशमिज़ाज टीचर थी, इसलिए उसने तय कर लिया कि वह पिप्पी को स्कूल में संतुष्ट रखेगी।
किसी के कुछ कहे बिना पिप्पी एक खाली कुरसी पर जा कर बैठ गई। लेकिन टीचर ने उसकी लापरवाही पर ध्यान नहीं दिया। प्यार से बोली, “पिप्पी बेटे, स्कूल में तुम्हारा स्वागत है। आशा है तुम यहां खुश रहोगी और बहुत कुछ सीखोगी।”
“बिल्कुल! और आशा है कि मुझे क्रिसमस की छुट्टियां मिलेंगी,” पिप्पी बोली। “इसीलिए तो मैं आई हूं। सबसे बढ़कर इन्साफ!”
“पहले तुम अपना पूरा नाम बताओ,” टीचर ने कहा, “और मैं तुमको स्कूल में दाखिल कर दूं।”
“मेरा नाम पिप्पीलोटा सामानीया चिक्कि-लीना पुदीनाहारी इफ्राइमपुत्री लम्बेमोज़े है, बेटी कप्तान इफ्राइम लम्बेमोज़े की, जो समुन्दर के बादशाह थे और अब हैं दक्षिणी समुद्र के राजा। पिप्पी मेरा उपनाम है क्योंकि बाबा को लगा कि पिप्पीलोटा नाम बहुत लम्बा है।”
“अच्छा,” टीचर ने कहा। “चलो, हम भी तुम्हें पिप्पी ही बुलाते हैं। लेकिन अब हम तुम्हारे ज्ञान की परीक्षा लेते हैं। तुम तो काफी बड़ी हो, तुम्हें बहुत कुछ मालूम होगा। गणित से शु डिग्री करते हैं। तो बताओ, 7 और 5 कितने होते हैं?”
पिप्पी ने उनको आश्चर्य और गुस्से से देखा। फिर बोली, “तुम्हें नहीं पता तो मैं थोड़े ही जोड़ने वाली हूं।”
बच्चे घबराकर पिप्पी को देखने लगे। टीचर ने समझाया कि स्कूल में जवाब देने का यह तरीका नहीं है। और टीचर को ‘तुम’ करके नहीं बुलाते, उनको ‘मिस’ कहते हैं।
पिप्पी को खेद हुआ। वह बोली, “सॉरी। मुझे मालूम नहीं था। दुबारा ऐसा नहीं करूंगी।”
“नहीं, और करना भी नहीं चाहिए,” टीचर ने कहा। “ठीक है, तो मैं बताती हूं, 7 और 5 होते हैं 12।”
“देखा,” पिप्पी बोली, “तुम्हें मालूम था तो पूछा क्यों? उफ्! मैं बिल्कुल बुद्धू हूं! फिर से तुम्हें ‘तुम’ बोल दिया, माफ करो।” ऐसा कहकर उसने अपने आप को चिहुंटा।
टीचर ऐसे पेश आई जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं। वह बोली, “अच्छा तो पिप्पी बताओ, तुम्हें क्या लगता है, 8 और 4 कितने होते हैं?”
“लगभग 67,” पिप्पी बोली।
“बिल्कुल नहीं,” टीचर ने कहा, “8 और 4 होते हैं 12।”
“चल, चल, मेरी अम्मा, तुम हद से बाहर जा रही हो,” पिप्पी बोली, “तुम्हीं ने कहा कि 7 और 5 होते हैं 12। स्कूल में भी कुछ तरीका होना चाहिए। इस तरह के बचपने में तुम्हें दिलचस्पी है तो तुम क्यों न कोने में बैठी गिनती करती रहो और हम शांति से छून-छुआई खेलते हैं। ओहो, फिर से ‘तुम’ कह दिया!” पिप्पी भयभीत हो बोली, “इस बार भी माफ कर सकती हो? आगे से याद रखने की कोशिश करूंगी।”
टीचर मान गई। पर उसको लगा कि पिप्पी से और गणित करवाना उचित नहीं होगा। वह बाकी बच्चों से सवाल करने लगी।
“क्या टॉमी मेरे सवाल का जवाब दे सकता है?” वह बोली। “अगर लीज़ा के पास 7 सेब हैं और आक्सल के पास 9, तो कुल मिलाकर उनके पास कितने सेब हैं?”
“हां, बताओ टॉमी,” टीचर के सुर में सुर मिलाती हुई पिप्पी बोली, “और यह भी बताओ, अगर लीज़ा के पेट में दर्द है और आक्सल के पेट में उससे भी अधिक दर्द हो रहा हो तो यह किसका कसूर है और सेबों को उन्होंने चुराया कहां से?”
टीचर ने जैसे सुना ही नहीं और अन्निका की तरफ मुड़कर बोली, “अन्निका, यह प्रश्न तुम्हारे लिए है। गुस्ताव अपने मित्रों के साथ स्कूल की पिकनिक पर जाता है। जाते समय उसके पास 1 क्रोनर है और घर वापस लौटते समय 7 अर। उसने कितने पैसे खर्चे?” (जैसे भारत में रुपए और पैसे हैं वैसे ही स्वीडन में क्रोनर और अर का चलन है।)
“ठीक है,” पिप्पी ने कहा, “और फिर मैं यह जानना चाहूंगी कि उसने फिज़ूल खर्च क्यों किया और क्या उसने गोली-सोड़ा खरीदा और क्या उसने घर से निकलने से पहले अपने कानों के पीछे ढंग से सफाई की थी या नहीं?”
टीचर ने सोचा कि गणित को छोड़ देना ही बेहतर होगा। शायद पिप्पी का मन कुछ पढ़ने में ज़्यादा लगे। उसने एक आकर्षक तस्वीर निकाली जिसमें बने थे रंग-बिरंगे गुब्बारे। गुब्बारों के चित्र के ऊपर लिखा था ‘रं’।
“तो पिप्पी,” टीचर ने जल्दी से कहा, “अब मैं तुमको एक बहुत ही दिलचस्प चीज़ दिखाने वाली हूं। यह तस्वीर है रं... रं... रंग बिरं... रं... रंगे गुब्बारों की। और ऊपर जो लिखा है, वह ‘रं’ है।”
“वाह भई वाह!” पिप्पी बोली, “मुझे तो यह एक छोटी लकीर के ऊपर मक्खी का मल लगता है। बताओ, रंगीन गुब्बारे और मक्खी के मल में क्या सम्बन्ध है?”
टीचर ने अगली तस्वीर निकाली, जो एक सांप की थी। पिप्पी को समझाया कि ऊपर लिखा अक्षर ‘स’ था।
“सांप के बारे में याद आया,” पिप्पी बोली, “कभी नहीं भूलूंगी जब इंडिया में एक बड़े सांप के साथ मैं लड़ी थी। सोच भी नहीं सकते वह कितना भयंकर था। 14 गज लम्बा और भौंरे जैसा गुस्सैल, और हर रोज़ पांच बड़ों और दो बच्चों को खा जाता था। एक दिन उसने मुझे खाना चाहा। खस्सक-से मुझको लपेट लिया पर ‘समुद्री यात्रा में दो-चार चीज़ें मैंने भी सीखीं हैं’ मैंने कहा और उसको सिर पर धाड़ से मारा। उसने स...स...स... करके फुफकारा और मैंने उसको दुबारा एक झापड़ दिया और फिर वह मर गया। तो यह है ‘स’। क्या खूब!”
पिप्पी को रुककर सांस लेनी पड़ी। अब तक तो टीचर को लगने लगा कि पिप्पी काफी शरारती और उपद्रवी है, इसलिए सोचा कि थोड़ी देर के लिए वह बच्चों को चित्र बनाने देगी। कम-से-कम तब पिप्पी चुपचाप बैठकर चित्र तो बनाएगी। उसने कागज़ और पेन्सिल निकालकर बच्चों में बांटा।
“जो जी चाहे बनाओ,” वह बोली, और अपनी कुरसी पर बैठे कॉपियां जांचने लगी। कुछ देर बाद सिर उठाकर टीचर ने देखा कि बच्चे क्या कर रहे हैं। सारे के सारे बैठे पिप्पी को एकटक देख रहे थे। वह फर्श पर लेटे जी भर के तस्वीर बना रही थी।
टीचर क्रुद्ध होकर बोली, “पिप्पी, कागज़ पर तस्वीर क्यों नहीं बनाती?”
“वह तो कब का खत्म हो गया है। उस फालतू कागज़ के टुकड़े पर मेरे घोड़े के लिए जगह कहां है,” पिप्पी बोली। “इस वक्त मैं आगे की टांगों पर काम कर रही हूं, पर पूंछ तक पहुंचते-पहुंचते लगता है बाहर बरामदे में आ जाऊंगी।”
टीचर कुछ देर सोच कर बोली, “मिलकर गाना गाएं?”
सभी बच्चे उठकर अपनी-अपनी कुर्सियों के बगल में खड़े हो गए, सिवाय पिप्पी के जो फर्श पर खामोश पड़ी थी।
“हां, गाओ,” वह बोली। “मैं ज़रा आराम कर लूं। ज़्यादा पढ़ाई तंदरुस्त लोगों को भी तोड़ देती है।”
पर अब टीचर की सहनशक्ति बिल्कुल खत्म हो गई। उसने बच्चों को बाहर मैदान में खेलने भेज दिया क्योंकि वह पिप्पी के साथ कुछ बातें करना चाहती थी। जब टीचर और पिप्पी अकेले थे तो पिप्पी उठकर टीचर के पास आई।
“पता है,” वह बोली, “माने, तुम-मिस को पता है, यहां आकर सब कुछ देखने में बहुत मज़ा आया। पर मैं अब और नहीं आना चाहती, क्रिसमस की छुट्टियां मिलें या न मिलें। यह सेब-सांप-रंग, सब बस कुछ ज़्यादा हो गया। मैं तो हड़बड़ा जाती हूं। तुम-मिस निराश तो नहीं हुई?”
पर टीचर ने कहा कि वह निराश थी, क्योंकि पिप्पी ने ढंग से पेश आने की कोशिश भी नहीं की, और जो लड़की पिप्पी की तरह बर्ताव करती है, उसको स्कूल में आने की अनुमति नहीं मिलती है, चाहे वह आने के लिए कितनी भी व्यग्र क्यों न हो।
आश्चर्य से पिप्पी ने पूछा, “मेरा व्यवहार खराब था?” फिर उदास होकर बोली, “मुझे तो मालूम ही नहीं था।” पिप्पी जैसा उदास तो कोई दिख ही नहीं सकता था। एक मिनट के लिए वह खामोश खड़ी रही, फिर कांपते स्वर में बोली, “तुम मिस समझो कि जब मां फरिश्ता हो और बाबा दक्षिणी समुद्र के एक द्वीप के राजा, और किसी ने जब ज़िन्दगी समुन्दर की लहरों पर ही गुज़ारी हो, तो पता नहीं होता कि सेबों और सांपों के साथ स्कूल में कैसा व्यवहार करना चाहिए।”
टीचर ने कहा कि वह सब कुछ समझ गई और अब वह पिप्पी के बारे में निराश नहीं थी और पिप्पी को शायद बड़ी होकर स्कूल वापस आना चाहिए। मुस्कुराकर पिप्पी बोली, “तुम-मिस बहुत अच्छी हो। और देखो तुम-मिस तुम्हारे लिए मैं क्या लाई हूं।”
अपनी जेब में से पिप्पी ने एक शानदार सोने की घड़ी निकाली और मेज़ पर रखी। टीचर ने कहा कि वह इतना कीमती तोहफा स्वीकार नहीं कर सकती। पिप्पी ने कहा, “करना पड़ेगा। वरना मैं कल दुबारा मौजूद हो जाऊंगी।”
फिर पिप्पी बाहर दौड़कर घोड़े पर चढ़ गई। घोड़े को थपथपाने और पिप्पी से विदा लेने के लिए बच्चों ने उसे घेर लिया।
“किसी भी हालत में मैं अर्जेन्टीना के स्कूल पसन्द करूंगी,” काफी घमंड से पिप्पी ने बच्चों से कहा, “तुम लोगों को वहां जाना चाहिए। वहां तो क्रिसमस की छुट्टियों के ठीक तीन दिन बाद ईस्टर की छुट्टियां शु डिग्री हो जाती हैं और जब ईस्टर की छुट्टियां खत्म होती हैं तो तीन दिन बाद ही गर्मी की छुट्टियां शु डिग्री हो जाती हैं। नवम्बर 1 को गर्मी की छुट्टियां खत्म होती हैं। हां, उसके बाद कुछ मेहनत करनी पड़ती है, नवम्बर 11 तक जब क्रिसमस की छुट्टियां शु डिग्री होती हैं। उतना तो सहना पड़ता है क्योंकि होमवर्क नहीं होता। अर्जेन्टीना में होमवर्क सख्त मना है। कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई अर्जेन्टीनी बच्चा किसी अलमारी में बैठकर चुपके-से होमवर्क करता है, पर उसकी मम्मी को पता चल जाए तो भगवान ही उसे बचाए। वहां के स्कूलों में गणित है ही नहीं, और अगर कोई बच्चा हो जिसको यह पता हो कि 7 और 5 कितने होते हैं, और अगर वह इतना बुद्धू हो कि टीचर को बता भी डाले, तो उसको दिन भर कोने में खड़ा होना पड़ता है। सिर्फ शुक्रवार को किताबें पढ़ी जाती हैं और वह भी तब जब पढ़ने के लिए किताबें हों। असल में किताबें तो कभी होती ही नहीं।”
“हां, मगर स्कूल में करते क्या हैं?” एक छोटे लड़के ने पूछा।
पिप्पी ने सीधा जवाब दिया, “टॉफी खाते हैं। पड़ोस वाली टॉफी की फैक्टरी से एक लम्बा पाइप सीधा कक्षा में आता है। दिन भर उसमें से टॉफियां बहती रहती हैं और बच्चे बस खाने में ही व्यस्त रहते हैं।”
“पर टीचर क्या करती है?” एक छोटी लड़की ने पूछा।
“कम्बख्त, टॉफियों के कागज़ निकालती है!” पिप्पी ने कहा, “यह काम बच्चे खुद थोड़े न करते हैं? धत्! वे स्कूल भी खुद कहां जाते हैं। अपने भाइयों को भेजते हैं।”
पिप्पी ने अपनी टोपी को हवा में घुमाया। “चलो मेरे यारो!” वह खुशी से चिल्लाई। “कुछ समय के लिए मुझे देखोगे नहीं। पर याद रखो आक्सल के पास कितने सेब थे वरना बहुत बुरा होगा। हा! हा! हा!”
ज़ोर से हंसते हुए, पिप्पी घोड़े पर बैठे इतनी तेज़ी से बाहर निकली कि घोड़े के खुर उड़ते-फरुराते कंकड़ों में छिप गए और स्कूल की खिड़कियां खड़खड़ाने लगीं।
ऐस्ट्रिड लिंडग्रन: प्रसिद्ध स्वीडिश लेखिका। बच्चों के लिए बहुत लिखा और उनके लिए लेखन को एक नया आयाम दिया। पिप्पी नामक पात्र को गढ़कर लिखे गए किस्से इस कदर मशहूर हुए कि पिप्पी पर कई देशों में डाक टिकिट जारी किए गए। लिंडग्रन का निधन चार साल पहले 94 साल की उम्र में हुआ।
चित्र: लुइस ग्लांज़मेन एवं इनग्रिड न्यीमन।
स्वीडिश से अनुवाद - संध्या राव एवं मेटा औट्टोस्सौन।
संध्या राव: बच्चों के लिए लिखती हैं। तूलिका प्रकाशन में संपादक हैं। कई किताबों का अंग्रेज़ी से अनुवाद भी किया है।
साभार - मूल किताब - पिप्पी लौंगस्टरुम, स्वीडिश से अनुवाद - पिप्पी लंबेमोज़े। प्रकाशक - तूलिका पब्लिशर्स, चैन्नई।