किशोर पंवार

आमतौर पर हम बीज के ऊपरी कड़े खोल या छिलके से वाकिफ होते हैं। इस खोल के भीतर एक और झिल्लीनुमा छिलका होता है जिसकी ओर कम ही लोगों का ध्यान जाता है। कुछ बीजों में छिलके का तीसरा आवरण होता है। इस आवरण को अक्सर हम मज़े से खाते हैं। लीची, विलायती इमली, जावित्री, ....... और भी कई शामिल हैं इनमें।

दरअसल बीज पौधों का वह हिस्सा है जो भविष्य के पौधे की संभावना समेटे हुए यहां-वहां बिखरे होते हैं, प्रकृति के भरोसे। बीज में ढेर सारा भोजन जमा होता है - कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन और वसा के रूप में। उदाहरण के लिए बादाम, काजू व मूंगफली हमारे लिए स्वादिष्ट गिरियां हैं, जिनमें ढेर सारा प्रोटीन व वसा भरा हुआ है। 

बीजों के भीतर एकत्रित भोजन बीज के भीतर के भ्रूण की ज़रूरतों को पूरा करने के लिहाज़ से ज़रूरी है। जब बीज को अनुकूल परिस्थितियां मिलती हैं तो वह अंकुरित होता है। लेकिन जब तक अनुकूल स्थितियां नहीं होतीं तब तक इन पोषकों से भरपूर खज़ाने को सूखे, धूप, फफूंदों और बेक्टिरिया से बचाने के लिए प्रकृति ने इसे मोटा खोल पहना रखा है। इसे वनस्पति विज्ञानी सीडकोट अर्थात बीज का छिलका कहते हैं। इस खोल से बीजों को रंग मिलता है। जैसे मटर-मूंग हरे हैं, तो तूअर-चना भूरे, उड़द और एक तरह के तिल काले। कुछ बीजों के खोल में एक से ज़्यादा रंग शामिल होते हैं जैसे रत्ती (गुंजी) आधी काली और आधी चमकदार लाल होती है। रत्ती की एक अन्य किस्म में बीज आधा सफेद और आधा काला होता है।

वनस्पति विज्ञानी जानते हैं कि इस मोटे रंगीन आवरण के नीचे एक और पतला झिल्लीनुमा छिलका होता है जिसे टेगमन (Tegmen) नाम दिया गया है। ऊपर का मोटा छिलका टेस्टा (Testa) कहलाता है।
बीजों का छिलका दरअसल अन्दर के भ्रूण की सुरक्षा दीवार है जैसे किले की दीवार होती है। जिस प्रकार किले में प्रवेश-निर्गम द्वार होता है वैसे ही प्रत्येक बीज में बाहर की दुनिया में झांकने के लिए एक सूक्ष्म रास्ता होता है जिसे माइक्रोपाइल या बीजद्वार कहते हैं। बीज के अंकुरित होने पर शिशु पौधा अपने पैर यहीं से बाहर पसारता है।

इस तरह अधिकांश बीजों में दो छिलके होते हैं। एक ऊपरी मोटा खोल, दूसरा भीतर का झिल्लीनुमा आवरण। परन्तु वनस्पतियों की दुनिया विचित्रताओं से भरी पड़ी है। यहां कुछ बीज ऐसे हैं जिनमें एक भी छिलका नहीं होता। ऐसे बीजों को एटेगमिक (Ategmic) कहते हैं जैसे प्याज़ी (Asphodelus)। इसे आसानी से खेत में गेहूं या चने के साथ उगा हुआ देखा जा सकता है। कुछ परजीवी पौधों के बीज में एक ही छिलका होता है जैसे अमरबेल। इन्हें यूनिटेगमिक बीज कहते हैं। दो छिलके वाले बीजों को बायटेगमिक कहते हैं। वैसे बायटेगमिक बीजों की बात तो हम ऊपर कर ही चुके हैं। मटर, मूंग, तूअर, सोयाबीन, सूरजमुखी आदि इसके सहज उदाहरण हैं।
मज़ेदार बात यह है कि कुछ बीज इनसे भी बढ़कर होते हैं। इनमें शिव के तीसरे नेत्र की तरह एक तीसरा छिलका भी होता है । यह तीसरा खोल कुछ बीजों को पूरा ढंक लेता है, तो कुछ में यह अधूरा होता है। वैज्ञानिक इसे ऐरिल (Aril) कहते हैं।

बीजों का यह तीसरा छिलका बड़ा महत्वपूर्ण होता है। यह रंगीन, सुगंधित, रसीला व स्वादिष्ट होता है। कहीं-कहीं यह सूखा भी होता है जैसे जावित्री के नाम से बाज़ार से खरीदकर लाते हैं उस जायफल नाम के बीज पर लगा नारंगी रंग का सूखा चर्मिल जालनुमा, तीसरा छिलका ही है। यह एक महत्वपूर्ण मसाला एवं औषधी भी है।
स्वादिष्ट एवं रसीले फल लीची का खाए जाने वाला भाग ऐरिल ही है। इसी तरह जंगल जलेबी जिसे कुछ लोग विलायती इमली भी कहते हैं का स्पंजी, गूदेदार, सफेद-गुलाबी, खाया जाने वाला फीका-मीठा हिस्सा भी इसके काले बीजों पर लगा तीसरा छिलका ही है।

कोकम यानी मेंगोस्टीन के सूखे ऐरिल खाए जाते हैं। इससे जेली और स्क्वेश भी बनाया जाता है। कमल के बीजों में भी ऐरिल होता है जो इसे पानी पर तैरने में मदद करता है। कुल मिलाकर बीजों का यह तीसरा छिलका भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।

छिलकों में है दम

क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि प्रकृति के तमाम इंतज़ामों के बाद भी किसी बीज का छिलका कितने समय तक बीज की रक्षा करता रहेगा ताकि जैसे ही अनुकूल परिस्थितियां मिलें, बीज अंकुरित हो सके?
यह पता करने के लिए तरह-तरह के प्रयोग करके देखे गए हैं। सन् 1879 में एक प्रयोग के दौरान मिशिगन वीड की 20 प्रजातियों के बीजों को 160 साल की अवधि के लिए सुरक्षित रखा गया और कुछ-कुछ साल के अंतराल के बाद इन बीजों को अंकुरित करने की कोशिश की जाती रही। यह प्रयोग अभी भी जारी है। कुछ साल पहले बीज अंकुरण संबंधी जो परीक्षण हुआ उसमें पाया गया कि बीस में से तीन प्रजातियों के बीज अभी भी अंकुरित हो रहे हैं। अगले तीस वर्षों में इन बीजों के साथ अंकुरण संबंधी और परीक्षण किए जाएंगे।
इसी तरह 1967 में आर्कटिक टुंड्रा प्रदेश से लगभग दस हज़ार साल पुराने बीज प्राप्त हुए थे। इन बीजों को उचित माहौल देने पर वे अंकुरित भी हुए। यानी लंबे समय तक बीजों को सुरक्षा प्रदान करने का दम है बीजों के छिलकों में।

चलते-चलते एक और खास बात आपको बता देते हैं। आमतौर पर छिलका फल के खाने योग्य भाग में शुमार नहीं किया जाता लेकिन अनार के मामले में बात कुछ फर्क है। अनार में जो रसीला, लाल-गुलाबी हिस्सा हम खाते हैं वह अनार के बीज का छिलका ही है। लेकिन इसे बीज के तीसरे छिलके के साथ जोड़कर मत देखिए क्योंकि अनार भी दो छिलके वाले बीज की श्रेणी में ही शामिल है।


किशोर पंवार: इंदौर के होल्कर साइंस कॉलेज में वनस्पति विज्ञान पढ़ाते हैं। विज्ञान लेखन में रुचि।