लेखक : मार्क पायन्
अनुवाद: संजय कुमार सक्सेना
क्या आपने कभी महसूस किया है कि किसी सवाल का सही उत्तर मिल जाने के बाद सिर्फ उकताहट के सिवा कुछ बाकी नहीं बचता। इसके बाद सारे रास्ते बंद से लगने लगते हैं। दूसरी ओर एक गलत जवाब उतना ही रोचक होता है जितना कोई रहस्यमय कत्ल! असफल होने के बाद हमारे मन में तरह-तरह के प्रश्न उभरते हैं। हम सोचने लगते हैं कि सवाल हल करते समय क्या कोई अंक-गणितीय या बीज-गणितीय गलती हो गई? क्या वह सवाल को सही ढंग से न समझ पाने की भूल थी? या नोट्स बनाने में कोई कमी रह गई थी? या फिर प्रश्न ही सही ढंग से नहीं बनाया गया था? कहीं पढ़ने में ही कोई कमी तो नहीं रह गई थी?... आदि आदि।
मुझे इस बात पर आश्चर्य होता है कि अपने अट्ठाईस वर्षों के अध्यापन के अनुभव में मैंने गलत उत्तरों से कितना कुछ सीखा है। अपनी खुद की और अपने विद्यार्थियों, दोनों द्वारा की गई गलतियों से। अब जब भी कोई विद्यार्थी किसी प्रश्न का गलत उत्तर देता है तो मैं उससे सबसे पहले यह पूछता हूं कि उसने ऐसा उत्तर क्या सोचकर दिया?
अपने कॉलेज की पढ़ाई के दौरान मैं एक छोटे हवाई-जहाज़ को उड़ाना सीख रहा था। किसी तकनीकी गड़बड़ी की वजह से उड़ने में असफल होने के थोड़ी देर बाद उसका इंजन फिर से अपने आप चलने लगा। उस समय इस घटना से मुझे थोड़ी-सी निराशा और साथ ही आश्चर्य भी हुआ था। बाद में मुझे महसूस हुआ कि एक खतरनाक परिस्थिति से बचने के बाद भी मैं सिर्फ अपने जुनून के कारण ही निराश हो रहा था। पर साथ ही मुझे समझ में आया कि ज़िन्दगी के अन्य पहलुओं की तरह, उड़ना भी सबसे रुचिकर व रोमांचक तभी होता है जब गंभीर व त्वरित समस्याएं सुलझाना पड़ें।
यदि जीवन में सब कुछ ठीक चलता रहे तो उसका रोमांच समाप्त हो जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में भी यही सिद्धांत लागू होता है।
कभी-कभी पढ़ाते समय ऐसा भी होता है कि गलती दरअसल अपनी होती है यानी विद्यार्थी की सोच अपनी जगह पर ठीक होती है। ये थोड़ी-सी हास्यास्पद और अपमानित होने वाली परिस्थिति होती है। विद्यार्थियों के लिए यह जानना कि शिक्षक भी कभी किसी तथ्य को अनदेखा करके भूल कर सकता है, एक बहुत ही बड़ी सीख होती है।
कला संकाय के छात्र अक्सर यह शिकायत करते हैं कि विज्ञान संबंधी परीक्षाएं उतनी रोमांचक नहीं होतीं -- क्योंकि उनके प्रश्नों और उत्तरों का सही-सही अनुमान लगाया जा सकता है। यदि व्यक्ति को किसी प्रश्न को हल करने का तरीका पहले से ही मालूम है तो उसके लिए कोई चुनौती नहीं बचती। यह सही है, भौतिक विज्ञान के शिक्षक बहुत कड़ी मेहनत करते हैं और सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके विद्यार्थी सही उत्तर तक पहुंच पाएं; क्योंकि शिक्षक की आजीविका इसी पर निर्भर रहती है। हमारे हवाई जहाज़ों के इंजन ठीक से काम करें, उसके लिए भी यह ज़रूरी है। हालांकि यह भी अपनी जगह सच है कि भौतिक विज्ञान के शिक्षक के लिए सबसे मज़ेदार स्थिति तब पैदा होती है जब विद्यार्थी एक ऐसा गलत जवाब दे जिसमें गलती होते हुए भी कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देने की क्षमता हो। यही वह स्थिति होती है जब भौतिकी के किसी पहलू पर पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे विद्यार्थी के दिमाग की कशमकश को समझा जा सकता है।
बहुत-से गलत जवाबों की तह में कुछ सही तथ्य और सोचने की शक्ति छुपी होती है। हो सकता है कि उत्तर देने वाला अपना तर्क सही न दे पाया हो, या शिक्षक द्वारा दी गई व्याख्या को सही प्रकार से न समझा गया हो, या फिर ऐसा भी हो सकता है कि जिस रूप में उसके समक्ष तथ्य प्रस्तुत किए गए उन्हीं में कोई कमी रह गई हो। हो सकता है कि भौतिक विज्ञान के सहज नियमों को समझने में ही कोई भूल हुई हो।
जब कोई शिक्षक एक गलत जवाब मिलने के बाद विद्यार्थी से सिर्फ इतना कहकर कि ‘यह सही जवाब नहीं है’ आगे का अध्याय पढ़ाना शु डिग्री कर देता है, या दूसरे विद्यार्थी से उत्तर देने को कहता है तो पहले विद्यार्थी की सोचने की शक्ति वहीं थम जाती है। उसे पता नहीं चल पाता कि उससे कहां गलती हुई थी। गलत उत्तरों की विवेचना करने से किसी विचार के बारे में सोचने के, अपनी स्वयं की विवेचना करने के और दूसरों के साथ मिलकर सोचने के अवसर पैदा होते हैं। अच्छे शिक्षक हमेशा अपने शिष्यों को सोचने के अवसर प्रदान करने में विश्वास रखते हैं।
गलत उत्तरों के बारे में चर्चा करना शिक्षा क्षेत्र में अनुसंधान करने के एक छोटे प्रोजेक्ट जैसा है। यह शिक्षकों के लिए दूसरों को सुनने और उससे सीखने के अवसर के समान है। हो सकता है भौतिक विज्ञान के लिए यह एक अनुसंधान न माना जाए, पर कम-से-कम शिक्षण और शिक्षा ग्रहण करने की दिशा में यह अवश्य एक अमूल्य अवसर प्रदान करता है। गलत जवाबों की तह में जाकर, शिक्षक किसी एक विषय की पाठ्यवस्तु में कमियों को जानकर, उस विषय में और अधिक पारंगत हो सकते हैं। उन्हें पता लग सकता है कि किसी विषय को समझने में विद्याÐथयों के क्या-क्या पूर्वाग्रह हो सकते हैं और किस विषय-वस्तु पर विद्यार्थी अधिक ध्यान देते हैं और कहां-कहां विषय को ठीक से नहीं समझ पाते।
उदाहरण के लिए भौतिक विज्ञान में गति सम्बन्धी विषय को समझते समय बहुत-सी बातें ध्यान में रखनी पड़ती हैं; जैसे..... क्या विद्यार्थियों ने इस पर ध्यान दिया कि सभी गेंदें एक ही समय पर धरातल को छूती हैं या उन्होंने ऐसा समझा कि वे अलग-अलग समय पर ज़मीन को छूती हैं? क्या उन्हें ऐसा लगा कि गाड़ी एक निश्चित गति से बढ़ती जा रही है या उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि कुछ समय बाद धीरे-धीरे चलती हुई वह अपने आप रुक जाती है?
हाल ही में एक विद्यार्थी ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया कि किसी वस्तु द्वारा समान गति से तय की गई दूरी की गणना करना रसायनशास्त्र के मात्रक परिवर्तन करने जैसा ही है। मुझे सबसे पहले तो ऐसा लगा कि यह एक बचकाना-सा वक्तव्य है। यह छात्र बाकी लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के उद्देश्य से ऐसा कर रहा है। अपनी खुद की सलाह खुद को ही देते हुए मैंने सौजन्यतापूर्वक उससे जानना चाहा कि आखिर ऐसा कहने से उसका क्या तात्पर्य है? उसने कहा कि ‘चाल’ या स्पीड सिर्फ सेकेंडों को मीटर में बदल देने जैसा है। उस दिन मुझे कुछ सीखने को मिला जो रोमांचक भी था। मैंने क्लास के विद्यार्थियों को बताया कि सापेक्षता के विशेष सिद्धान्त में प्रकाश की चाल ठीक ऐसा ही करती है। प्रकाश-वर्ष दूरी का मात्रक है। एक अन्य विद्यार्थी ने हाल ही में ज़ोर देकर कहा कि अगर रस्सी से बंधी गेंद को क्षैतिज वृत्ताकार में तेज़ी से घुमाया जाए, तो रस्सी एकदम क्षैतिज हो जाएगी।
“गेंद के भार का क्या होगा? क्या वह लुप्त/गायब हो जाएगा?” मैंने मज़े लेते हुए पूछा।
उसने प्रति-प्रश्न किया, “तो हवा का क्या होता है?”
मैंने कटाक्षपूर्ण जवाब दिया, “क्या हवा वस्तुओं को उठा सकती है?”
और उस क्षण मुझे तुरन्त अहसास हुआ कि पंखदार वस्तुएं (जैसे वायुयान का मॉडल) रस्सी से बांधकर क्षैतिज घुमाई जाएं तो वे सचमुच रस्सी को क्षैतिज बना सकती हैं, यहां तक कि वे रस्सी को क्षैतिज दिशा से भी ज़्यादा ऊपर तक उठा सकती हैं। हम सबने उस दिन कुछ रोचक जानकारियां हासिल कीं। मैंने इस वाक्य की सार्थकता जान ली थी, “तुमने ऐसा क्यों कहा?”
भौतिक विज्ञान उत्तेजक विषय है -- यहां तक कि न्यूटन की गतिकी तक रोमांचक है। छोटे बच्चों, हाईस्कूल जैसी छोटी कक्षाओं के बच्चों तक को भौतिक शास्त्र पढ़ाना रोमांचक व्यवसाय है। गलत उत्तरों से यह और अधिक रोमांचक बनता जाता है। सबसे अधिक जानकार वह होता है जिसने सबसे ज़्यादा गलतियां की हों। मेरी कक्षा में मैं ही हूं वो इंसान।
मार्क एम. पायन्: भौतिकशास्त्र की पढ़ाई के बाद पिछले 30 सालों से सेंट बेनेडिक्ट शाला में भौतिकशास्त्र पढ़ाते हैं।
अंग्रेज़ी से अनुवाद: संजय कुमार सक्सेना। भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई में वैज्ञानिक अधिकारी हैं।
द फिज़िक्स टीचर अंक 42, फरवरी 2004 से साभार।