रूथ रस्तोगी
अनुवाद: जयजीत
आमतौर पर किसी कक्षा में श्यामपट के अलावा बस कुछ पुराने धूल-धूसरित चार्ट ही देखने को मिलते हैं। लेखिका ने अपने अनुभवों के आधार पर विस्तार से दर्शाने का प्रयास किया है कि एक कक्षा के अंदर कितना कुछ संभव है अगर हम थोड़ा-सा खुलकर सोचें और थोड़ी-सी ज़हमत उठाएं।
शुरुआत अपने घर से ही करते हैं। जिस तरह किसी घर में खाना पकाने के लिए रसोईघर और बातचीत करने, टीवी देखने व अन्य सामाजिक गतिविधियों के लिए बैठकखाना और सोने के लिए शयन कक्ष का अपना महत्व है, उसी तरह सीखने-सिखाने के लिए-एक क्लास रूम कैसा होना चाहिए-इसका भी उतना ही महत्व है। अगर आपके रसोईघर में केवल गैस हो, एक नल हो और कुछ बर्तन तो कितने भी रचनात्मक क्यों न हों, इससे आप क्या पका सकते हैं? शायद कुछ नहीं। अगर साथ में आटा हो, तो चपाती से ज़्यादा कुछ नहीं बन सकता। और अगर आटे के अलावा नमक व तेल भी हो तो शायद ज़्यादा-से-ज़्यादा पराठा, पूरी और नमकीन बनाए जा सकते हैं।
क्या कोई व्यक्ति ऐसा रसोईघर पसंद करेगा जिसमें सिर्फ आटा, नमक और तेल हो, जिन से एक-दो खाद्य-पदार्थ ही बनाए जा सकें? शायद नहीं। हर कोई चाहेगा कि रसोईघर में सब्ज़ियां, जीरा, धनिया, अन्य मसाले और शक्कर भी हो। कहने का मतलब यह है कि रसोईघर में जितनी अधिक सामग्री होगी, उतने ही विविधता पूर्ण पकवान बनाना संभव हो पाएगा।
जो बात रसोईघर पर लागू होती है वो कक्षा पर भी लागू हो सकती है। आप खुद को एक शिक्षक के रूप में रखकर सोचिए -- सिर्फ ब्लैक-बोर्ड, कुछ चॉक के टुकड़े और एक डस्टर वाली कक्षा में आप कितना सिखा पाएंगे और बच्चे कितना सीख पाएंगे?
मेरे ख्याल से कक्षा ऐसी होनी चाहिए जहां सीखने की गुंजाइश हो। एक बच्चा शिक्षक के व्याख्यान की बजाय अपने अनुभव से अधिक सीखता है। उसके आसपास जो घट रहा है, वह उसे किस्सों, कहानियों, गुड्डों-गुडियाओं के खेल, चित्र बनाना, लिखना, किताबें पढ़ना और अन्य खेलों के माध्यम से संप्रेषित करते हुए बहुत कुछ सीखता है। बच्चा तभी सीखेगा, उसमें रचनात्मकता का तभी विकास होगा, जब क्लास रूम में शिक्षक गतिविधियां करवाएगा। अगर कक्षा में जगह नहीं है तो बरामदे का इस्तेमाल किया जा सकता है। या डेस्क एक कोने में लगाकर भी जगह की जुगाड़ बनाई जा सकती है। अगर फिर भी जगह नहीं है तो काफी सारी सामग्री जूतों के डिब्बों या खुले ताक में रखी जा सकती है। बच्चे अपनी ज़रूरत के मुताबिक सामग्री यहां से उठाकर अपनी डेस्क पर ले जा सकते हैं।
क्या यह शिक्षा है?
आप पूछ सकते हैं कि रेत या मिट्टी से खेलकर या सांप-सीढी/लुडो खेलने से बच्चा क्या शिक्षा हासिल करेगा? ज़रा सोचिए, दरअसल इससे बच्चों की शारीरिक, मानसिक व सामाजिक रूप से सक्रिय रहने की आंतरिक ज़रूरत पूरी होती है। अगर गतिविधियों के लिए आप समय नहीं भी देंगे, तब भी बच्चा समय निकाल ही लेगा; भले ही आप पसंद करें या न करें। आपने अक्सर बच्चों को अपने बस्ते या पेंसिल बॉक्स को खोलते व बंद करते, पेंसिल को नुकीला बनाते, टिफिन बॉक्स खंगालते या बाथरूम जाते-आते देखा ही होगा।
अगर आप औपचारिक शिक्षा का समय कम कर देंगे तो बच्चे आपकी बातों की तरफ ज़्यादा ध्यान देंगे क्योंकि उन्हें पता रहेगा कि आप उन्हें जल्द ही पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति दे देंगे। जब बच्चे अपनी योजनाओं और उनके क्रियान्वयन पर चर्चा करते हैं तो वे आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी, और रचनात्मक बनना सीख रहे होते हैं। साथ ही वे यह भी सीखते हैं कि दूसरों के साथ मिलकर काम कैसे किया जाए। वे विभिन्न पदार्थों के गुणधर्मों के बारे में सीखते हैं। वे ज़िम्मेदार बनना और किसी वस्तु को वापस अपने स्थान पर रखना सीखते हैं। उन्हें समझ में आता है कि ये सब चीज़ें इकट्ठी करके उनकी भरपाई करनी होगी। वे व्यवहार देखते हैं और भावनाओं की अनुभूति करते हैं। यही नहीं, वे दूसरे बच्चों से भी सीखते हैं। इसलिए बच्चों को समय देना बहुत ज़रूरी है ताकि उन्हें अपनी गतिविधियों को बार-बार करने का मौका मिल सके और वे अपनी समझ व रचनात्मकता को परिष्कृत कर सकें।
बच्चे स्वस्थ व प्रसन्नचित्त रहें, इसके लिए उनका खेलना ज़रूरी है। एक शिक्षिका होने के नाते आप उनकी खेलने में मदद कर सकती हैं और साथ ही अपने शैक्षणिक मकसद को भी पूरा कर सकती हैं। उदाहरण के लिए कहानियां सुनाना और किताबें पढ़ना अत्यंत संतोषप्रद हो सकता है। जो बच्चे पढ़ना जानते हैं, वे अगर दूसरे बच्चों को पढ़कर सुनाते हैं, तो उनकी पढ़ने की क्षमता बेहतर बनती है। अगर औपचारिक पाठ के बीच में छूट हो कि वे अपनी मर्ज़ी से अपनी पसंद की कहानियां या कविताओं की किताब उठा सकते हैं, तो बच्चों को किताबों में आनंद आने लगता है।
सक्रिय कक्षा का प्रबंधन
एक सक्रिय कक्षा का निर्माण निश्चित रूप से काफी श्रमसाध्य है, लेकिन उसका प्रबंधन तो और भी कठिन है। लेकिन एक बार यह आपकी दिनचर्या का हिस्सा बन जाए, इसके बाद आप एक खुशमिजाज़ शिक्षक होंगे और बच्चे भी प्रसन्न और सृजनशील होंगे। लेकिन ऐसी स्थिति तक पहुंचना थोड़ा मुश्किल और तनावयुक्त हो सकता है।
अगर आपके पास बहुत-सी तरह-तरह की गतिविधियां हों और आप उन्हें रोज़ करवाएं तो आप पाएंगे कि बच्चों को पढ़ाना कितना आसान हो गया है। आप बच्चों को छोटे-छोटे समूहों में बांटकर उनके साथ काम कर सकेंगे।
हर बच्चे को आपके समय व ध्यान की ज़रूरत होती है। कुछ बच्चों को अंकों के संबंध में आपकी मदद की ज़रूरत पड़ती है तो कुछ को भाषा को लेकर आपके विशेष ध्यान की। आप इन सभी बच्चों की तभी मदद कर सकते हैं जब बाकी कक्षा अलग-अलग कामों में व्यस्त रहे।
इसे हम इस तरह समझ सकते हैं। अगर आप क्लास में एक गतिविधि आयोजित करते हैं जो दो हफ्ते बाद दुबारा करवाई जाएगी, तो बच्चों का प्रबंधन काफी मुश्किल हो जाएगा। उदाहरण के लिए अगर आप यह तय करते हैं कि आज सभी बच्चे क्ले एरिया में ही काम करेंगे तो मिट्टी के लिए सभी 30 से 40 बच्चों में धक्का-मुक्की होने लगेगी। या मान लीजिए आप किसी दिन तय करते हैं कि आज बच्चे कहानियों-कविताओं की पुस्तकें पढेंगे। ऐसे में अगर आपकी कक्षा की लाइब्रेरी में केवल 15 पुस्तकें हुईं तो बाकी बच्चे क्या करेंगे? किताबें पाने के चक्कर में कक्षा में इतनी अफरा-तफरी मच जाएगी कि आप ‘लर्निंग क्लास रूम’ के विचार को ही अलविदा कहने का मन बना लें।
इसलिए अगर आपकी क्लास में 40 बच्चे हैं तो आपको चाहिए कि अधिक से अधिक गतिविधियां एक साथ करवाएं ताकि सभी बच्चे कहीं-न-कहीं व्यस्त रहें और किसी भी गतिविधि क्षेत्र में धक्का-मुक्की वाली स्थिति निर्मित न हो। जैसे एक मोटे-मोटे हिसाब से चार बच्चे रेत से खेल सकते हैं, और क्ले एरिया में अगर सात ही बच्चे होंगे तो काफी खुश रहेंगे। पांच से दस बच्चों को चित्रकला में व्यस्त रखा जा सकता है। चार बच्चे घर-घर खेल सकते हैं तो दो बच्चे पुराने फोन व स्टेथोस्कोप से डॉक्टर-मरीज़ के खेल में व्यस्त रह सकते हैं। दो बच्चे काटने-चिपकाने में, चार बच्चे पुस्तकों में, पांच बच्चे बीज या आइसक्रीम की स्टिक्स इत्यादि के साथ पैटर्न या कोई आकृति बनाने में खपाए जा सकते हैं, दो बच्चे अलार्म घड़ी या इस्त्री या टूटे स्विच खोलने-जोड़ने में मशगूल रह सकते हैं, पांच-छह बच्चे पज़ल्स में व्यस्त रखे जा सकते हैं। कहने का मतलब यह है कि विभिन्न गतिविधियों में बच्चों को व्यस्त रखने से कक्षा में अराजकता का माहौल पैदा नहीं होगा।
अगर आपकी क्लास में 30 बच्चे हैं और आप अकेली शिक्षिका हैं तो बच्चों को दो समूह में बांटकर खेल गतिविधियों को दिनभर जारी रखा जा सकता है। जब आप एक समूह को पढ़ाएंगी तो दूसरे समूह को खेलों में व्यस्त रखा जा सकता है। जैसे-जैसे आप बच्चों की कॉपियां जांचती जाएं, उन्हें एक-एक करके गतिविधियों की तरफ जाने दीजिए। यह बच्चों को एक साथ पढ़ाने या उन्हें एक साथ गतिविधियां करवाने से बेहतर रहेगा।
इन तमाम व्यवस्थाओं के साथ बच्चों को सामंजस्य बैठाने में दो से तीन सप्ताह का समय लग सकता है। लेकिन एक बार यह पता लगने के बाद कि उनके लिए हर खेल उपलब्ध है, उनके बीच धक्का-मुक्की कम हो जाएगी। उन्हें मालूम रहेगा कि अगर आज उन्हें मिट्टी से खेलने का मौका नहीं मिल रहा है तो कोई बात नहीं, कल या परसों उनकी भी बारी आएगी।
आपको इस बात पर विशेष ध्यान देना होगा कि सब चीजें़ वापस अपनी जगह पर ही रखी जाएं। सुविधा के लिए डिब्बों पर लेबल या चित्र भी चिपकाए जा सकते हैं, पहले चार-पांच हफ्ते काफी व्यस्त रहेंगे। उसके बाद बच्चों को आदत पड़ जाएगी और वे जिस गतिविधि में मशगूल हैं उसमें ध्यान केंद्रित करना सीख जाएंगे। बच्चे यह अनुभव करके काफी खुश रहते हैं कि वे बहुत कुछ अपने ढंग से कर पा रहे हैं। ध्यान रखिए, नियम बस इतना ही है - लर्निंग सेंटर्स का रोज़ इस्तेमाल होना ही चाहिए।
अब अगला सवाल है कि इस गतिविधि क्षेत्र के तहत क्या-क्या शामिल हो सकता है? इस संबंध में हमने जो एक सूची विकसित की है वह इस प्रकार हैै:
क्लास रूम की डिज़ाइन
अभी तक हमने कक्षा के प्रबंधन पर काफी चर्चा की, लेकिन डिज़ाइन पर कोई बात नहीं की। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आप सक्रिय कक्षा के प्रबंधन के दौरान छुट-पुट तनाव झेलने के लिए तैयार हो जाएं तो फिर ऐसी क्लास बनाने में मेहनत तो लगती है परंतु तनाव नहीं।
अधिकांश कक्षाओं में ब्लैक-बोर्ड, डस्टर, चॉक, डेस्क और बेंच होते हैं। कुछ में अगर चार्ट भी होते हैं, तो वे प्राय: गंदे, धूल भरे और दीवार पर इतनी ऊंचाई पर टंगे होते हैं कि उनका इस्तेमाल ही नहीं हो पाता। अगर किसी शिक्षिका की किस्मत अच्छी है तो उसे अलमारी या खुली शेल्फ मिल जाती है। चिकनी मिट्ठी व रेत के लिए बरामदा काफी उपयोगी साबित हो सकता है। दीवारों का इस्तेमाल पेंटिंग के लिए किया जा सकता है।
श्याम पट के इर्द-गिर्द का इलाका
कक्षा में आपके पास एक श्याम पट तो होता ही है। उसके आसपास की जगह के इस्तेमाल की क्या संभावनाएं हैं? किस तरह की सामग्री आप वहां व्यवस्थित कर सकते हैं जो सदैव आपकी पहुंच में होनी चाहिए? मेरी कोशिश होती है कि यह सब सामग्री श्यामपट के आसपास मौजूद रहे:
- एक कैलेंडर
- मौसम का चार्ट
- हिंदी व अंग्रेज़ी का वर्णमाला चार्ट
- एक से दस तक के अंक वाला चार्ट
- 10, 20, 30 जैसी संख्याओं का चार्ट
- सप्ताह के दिनों वाला चार्ट
- वर्ष के महीनों वाला चार्ट
- भारत का नक्शा
- विश्व का नक्शा
- दरवाज़े पर पेंट किया गया ऊंचाई नापने वाला चार्ट
इन सभी चार्ट्स को ब्लैक-बोर्ड के आस-पास शिक्षक की पहुंच में ही लटकाया जा सके तो काफी अच्छा रहेगा। इससे शिक्षक को जब भी ज़रूरत पड़ेगी, वह इसका तुरंत इस्तेमाल कर सकेगा। आमतौर पर कक्षा में ज़्यादा जगह नहीं होती। ऐसे में यह ज़रूरी है कि श्याम पट के पास कुछ मज़बूत कील लगाकर रखे जाएं जिन पर चार्ट लटकाए जा सकते हैं। अगर इन्हें पूरी कक्षा में इधर-उधर लगाकर रखा जाएगा तो ज़रूरत के वक्त उनका इस्तेमाल करना काफी मुश्किल होगा। डेस्कों के बीच से जाकर चार्ट लाना और फिर उन्हें वापस अपनी जगह पर रखने में ही काफी वक्त बर्बाद हो जाएगा। दुर्भाग्य से ज़्यादातर क्लास रूम में कुछ ही चार्ट होते हैं और वे भी वर्षों से धूल खा रहे होते हैं। अगर कोई शिक्षिका वर्ण माला, नक्शे में स्थान, महीने इत्यादि बताने के लिए इन चार्ट्स का इस्तेमाल करेगी तो बच्चे भी संदर्भ के तौर पर उनका इस्तेमाल करना सीखेंगे।
कुछ कक्षाओं में ब्लैक-बोर्ड काफी ऊंचाई पर होते हैं। अगर बोर्ड के ऊपरी हिस्से तक पहुंचने में कठिनाई आती है तो उस स्थान का इस्तेमाल कुछ अंकों या अक्षरों को लिखने में किया जा सकता है।
अगर आपकी क्लास में बड़ा-सा श्याम पट है तो आप उस पर लाइनें भी पेंट करवा सकती हैं। अंग्रेज़ी शब्दों के लिए लाल व नीले रंग की दो रेखाएं बनवाई जा सकती हैं, वैसी ही जैसी अंग्रेज़ी लिखने की कॉपी में होती हैं। ऐसी ही रेखाएं हिंदी शब्दों के लिए, और अंकों को लिखने के लिए चौकोर वर्ग बनवाए जा सकते हैं। इससे बच्चों को यह समझाना कहीं आसान हो जाएगा कि कोई अक्षर या अंक कहां लिखा जाना चाहिए।
ब्लैक-बोर्ड के नीचे ही ऐसा स्थान भी होना चाहिए जिस पर डस्टर और चॉक रखे जा सकें। चार्ट, पॉइंटर, स्केल और कहानियों की पुस्तकें रखने के लिए भी यह एक अच्छा स्थान हो सकता है। जहां तक संभव हो शिक्षिका को सामग्री लाने के लिए कक्षा से बाहर जाने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए।
ब्लैक-बोर्ड के ऊपरी हिस्से में तीन कील या हुक होने चाहिए जिन पर आप चार्ट लटका सकें। आजकल कई स्कूलों में बोर्ड के ऊपरी हिस्से में एक डोरी या तार बंधी होती है। इसका फायदा यह है कि शिक्षक बच्चों से चर्चा करते समय उस डोरी पर, कपड़े सुखाने में इस्तेमाल होने वाली चिमटी से, कागज़ लटकाकर उस पर लिख सकता है। इस कागज़ को बाद में बच्चों की ऊंचाई को ध्यान में रखते हुए एक अन्य डोर से लटकाकर रखा जा सकता है ताकि फुर्सत के क्षणों में वे उसे पढ़ सकें।
एक अन्य बोर्ड बच्चों के लिए हो सकता है। बच्चे इसका इस्तेमाल कर सकें इसके लिए इसे अपेक्षाकृत कम ऊंचाई पर लगाना पड़ेगा। अगर यह संभव नहीं हो तो कक्षा या बरामदे की ही एक दीवार पर गे डिग्री या पीली मिट्टी पुतवा दीजिए। इसे बच्चे बोर्ड के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
पुस्तकालय का फैलाव
स्कूल पुस्तकालय का इस्तेमाल उसके मकसद के अनुरूप नहीं किया जाता। सप्ताह में एक दिन लाइब्रेरी का पीरियड होता है। इसमें बच्चे पुस्तकालय में जाते ज़रूर हैं, लेकिन वे वहां या तो चुपचाप बैठे रहते हैं या फिर अनमने ढंग से किसी पत्रिका के पन्ने पलटते रहते हैं। कुछ अपने साथियों के साथ गपशप करते रहते हैं। इतनी देर में घंटी बज जाती है और सारे बच्चे लाइब्रेरी से उठकर चले जाते हैं। इन पुस्तकालयों के साथ एक समस्या यह होती है कि यहां छोटे बच्चों के लिए अच्छी कहानियों की पुस्तकों का अक्सर अभाव दिखाई देता है।
अगर आपके स्कूल के पुस्तकालय में लाइब्रेरियन है तो उससे बच्चों को कहानियां सुनाने का आग्रह किया जा सकता है। अगर एक शिक्षिका के रूप में आप खुद बच्चों को पुस्तकालय में ले जाती हैं तो उन्हें कहानियां ज़रूर सुनाएं। ऐसा करके आप बच्चों को किताबों की दुनिया से परिचित करवा सकती हैं।
परंतु साथ ही यह ज़रूरी है कि आप अपनी कक्षा में भी एक छोटा-सा पुस्तकालय बनाकर रखें। इससे जब भी बच्चों के पास वक्त होगा, वे पुस्तक लेकर अपनी जगह पर बैठकर उसे पढ़ सकेंगे। अगर कक्षा में जगह होगी तो वे लाइब्रेरी एरिया में फर्श पर बैठकर किताबों का आनंद उठा सकते हैं।
अगर आप रोज़ किताबें पलटने व चर्चा करने का मौका दें तो बच्चे आपसे विस्तार से बातचीत करने लगेंगे। उनकी बातचीत को टेप भी किया जा सकता है। स्कूलों में विस्तृत चर्चा करने का आमतौर पर वक्त नहीं होता है। ऐसी गतिविधियां कुछ हद तक इस कमी को पूरा कर सकती हैं।
बच्चे चुटकुलों, पहेलियों और कविताओं की छोटी-छोटी पुस्तकें भी खुद तैयार कर सकते हैं। आप भी बच्चों के लिए कई ऐसी पुस्तकें बना सकते हैं। हाथ से तैयार की गई ये पुस्तकें एक दीवार के किनारे या किसी एक शेल्फ पर रखी जा सकती हैं।
मिट्टी और रेत
चिकनी मिट्टी हर जगह उपलब्ध है। इसे एक बाल्टी में भरकर रखा जा सकता है। उस बाल्टी के ऊपर गीला कपडा रखा जाना चाहिए। क्ले एरिया में बच्चों के बैठने के लिए प्लास्टिक या रद्दी अखबार बिछाए जा सकते हैं। हर रोज़ इस मिट्टी के लोंदे बनाकर बीच में रख दें ताकि बच्चे इन्हें उठाकर आकार देने की कोशिश करेंगे। साथ ही कपड़े के गीले टुकड़े भी रख दिए जाएं।
बच्चों को खेलना बड़ा अच्छा लगता है। रेत को गीला करने के लिए एक छोटी-सी बाल्टी में पानी देना पर्याप्त होगा। सूखी रेत को छाना जा सकता है, एक शीशी से दूसरी शीशी में डाला जा सकता है, जबकि गीली रेत से ‘पर्वत’, ‘नदियां’ आदि बना सकते हैं। बच्चों को कई प्रकार के बर्तन, रेत खोदने के साधन, लकड़ी के गुटके/टुकड़े, सींक, प्लास्टिक पाइप इत्यादि दिए जा सकते हैं, ताकि उनकी रचनात्मकता को भरपूर मौका मिले।
कला
कला-शिक्षण सभी विषयों का एक अंतरंग हिस्सा होना चाहिए। लेकिन अक्सर होता यही है कि जब कक्षा में किसी शिक्षक को कोई बाबूगिरी का काम करना होता है तो वो बच्चों से कह देता है, ‘चित्रकला की कॉपी निकालो और जो तुम्हें पसंद हो, वह ड्रॉईंग बना लो।’ बच्चों को चित्रकला में तभी आनंद आएगा जब सामग्री हर समय उपलब्ध रहेगी। इस विधा में भी प्रयोग करने के लिए पर्याप्त वक्त दिया जाना चाहिए। कला खुशी या गुस्से को व्यक्त करने का एक अच्छा माध्यम है। कला के अभ्यास से बच्चे प्रकृति में उपलब्ध बहुत सी सामग्री को ध्यान से देखना और उसका इस्तेमाल करना सीख जाते हैं। इस विधा में मस्तिष्क और कल्पनाशीलता के विकास की गज़ब की क्षमता होती है। साथ ही बच्चे अपने आस-पास के ‘पैटर्न’ के प्रति संवेदनशील होने लगते हैं।
भारत में कई कहानियां केवल बोलकर सुनाई जाती हैं। जब शिक्षिका कहानी सुनाती है तो हर बच्चे के दिमाग में अलग-अलग छवि उभरती है। ऐसे में अगर एक ही कहानी सुने बच्चों से उस कहानी पर चित्र बनाने को कहा जाए तो उसमें विविधता देखने को मिलेगी। यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि अक्सर कक्षा में शिक्षक खुद ब्लैक-बोर्ड पर तस्वीर बना देते हैं और फिर बच्चों को उसकी नकल करने को कह देते हैं। कुछ तो पाठ्य-पुस्तकों से चित्रों की नकल करने के लिए कह देते हैं। इससे बच्चों को जल्दी ही एहसास हो जाता है कि उनके खुद के सृजन स्वीकार्य नहीं हैं।
रंगों के नाम पर अभिभावक अक्सर अपने बच्चों को क्रेयॉन लाकर देते हैं, लेकिन बच्चों को मोम-चॉक के अलावा भी विविध प्रकार के रंगों की ज़रूरत होती है। उनके पास अगर वॉटर-कलर और पेस्टल्स भी हों तो उन्हें और मज़ा आएगा। बच्चों को खुद रंग बनाना भी सिखाया जा सकता है। ये रंग महावर, कुमकुम, गेरू, पत्तियों, फूलों, ईंट के टुकड़ों, चारकोल और यहां तक कि राख व मिट्टी से भी बनाए जा सकते हैं। होली के रंगों का इस्तेमाल न करें क्योंकि इनमें विषैले रसायन मौजूद होते हैं। रंगीन फर्श बनाते वक्त सीमेंट में मिलाए जाने वाले रंगों का सावधानीपूवर्क उपयोग किया जा सकता है। इसे बनाने के लिए इसके पाउडर में थोड़ा-सा गोंद या सरेस और पानी डालकर उसे अच्छी तरह से मिला लीजिए। कभी भी ब्लैक ऑक्साइड मत खरीदिए। इसमें सीसा होता है जो एक विषैला रसायन है।
आप बच्चों के लिए ब्रश कहां से लाएंगे? क्या वे ब्रश बना सकते हैं? कई शालाओं में चित्रकला आदि की सामग्री खरीदने के लिए बजट का प्रावधान नहीं होता। सोचिए, ऐसे में क्या किया जा सकता है?
कलाकृतियां बनाने के लिए सामग्री हर जगह मिल जाएगी। पेड़ों की टहनियां, ऊन, बीज, पुरानी पत्रिकाएं, कपड़ों की कतरन, पत्थर, पक्षियों के पंख, गत्ता इत्यादि। गत्ते पर हर चीज़ चिपकाने की भी ज़रूरत नहीं होती। बच्चों को सिखाया जा सकता है कि कैसे एक सुई-धागे की सहायता से पक्षियों के पंखों को सिला या बांधा जा सकता है। सिलाई भी एक मज़ेदार गतिविधि है। बच्चों को बटन टांकना या कपड़े के किसी फटे हिस्से को सिलना सिखाया जा सकता है।
रसोईघर कहां?
खाना पकाने के लिए आपको कक्षा में अलग जगह की कोई ज़रूरत नहीं है। हर माह यह गतिविधि दो-तीन बार की जा सकती है। उदाहरण के लिए बच्चों से आलू मंगवाए जा सकते हैं जिन्हें चूल्हा बनाकर उबाला जा सकता है। इस गतिविधि की योजना बनाने और उसके क्रियान्वयन दोनों में बच्चों की पूरी भागीदारी होनी चाहिए, ताकि उन्हें पूरी प्रक्रिया का अनुभव मिले।
फंतासी की संभावना
कई बार यह सवाल उठाया जाता है कि क्या गुड्डे-गुड़िया या रसोई-रसोई अथवा दुकानदार-ग्राहक का खेल कक्षा के लिए ठीक है? इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। आप बच्चों से पुराना दुपट्टा, लहंगा, साड़ी, तश्तरियां, फोन, पर्स और अन्य इसी प्रकार का पुराना सामान लाने को कह सकते हैं। सूती कपड़े सफाई के लिए, तो सिंथेटिक कपड़े का इस्तेमाल गुड़िया-कठपुतलियां और अन्य शैक्षणिक सामान बनाने में किया जा सकता है।
बच्चों को इस प्रकार के खेल ज़रूर खेलने चाहिए। इनसे बच्चों की खेल गतिविधियों में एक प्रकार की सजीवता आती है। फैंटेसी खेल एक प्रकार का नाटक होता है जिनमें बच्चे अपनी भाषा, अनुभव व रुचियों का इस्तेमाल करते हैं। एक टीचर होने के नाते यह बेहद ज़रूरी है कि इस ‘नाटक’, में आप बच्चों के संवाद और क्रियान्वयन योजना बनाने को महत्व दें। यह पूरा ‘नाटक’ कितना अच्छा बन पाता है, इससे ज़्यादा ज़रूरी है इसकी पूरी प्रक्रिया में बच्चों की भागीदारी। प्रयोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। वास्तविक हालातों में ही भाषा, कल्पना-शीलता और रचनात्मकता बढ़ती है। आपकी प्रमुख भूमिका सामग्री की आपूर्ति बनाए रखने और इस तरह के खेलों को प्रेरित करने की है।
खिड़कियों का इस्तेमाल व सामग्री का प्रदर्शन
अगर आपकी कक्षा की खिड़कियों में लोहे की सलाखें लगी हैं तो आप इनका इस्तेमाल बच्चों की पेंटिंग्स लटकाने के लिए कर सकते हैं। दो खिड़कियों के बीच डोरी बांधी जा सकती है। इस डोर पर बच्चों की पेंटिग या ड्रॉइंग लटकाई जा सकती हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि इस डोर की ऊंचाई इतनी हो कि बच्चे अपने चित्र आदि बदल सकें। अक्सर शिक्षक बच्चों की कलाकृतियों को इतनी ऊंचाई पर लटका देते हैं कि उन्हें देखना या पढ़ना ही मुश्किल हो जाता है।
कई दफा खिड़कियों में नीचे की ओर खुले ताक बने होते हैं। यदि चौड़ाई पर्याप्त हो तो इन पर बच्चों द्वारा एकत्र वस्तुओं को प्रदर्शित किया जा सकता है, खासतौर पर ऐसी चीज़ें जिन्हें बच्चे छूना पसंद करेंगे। इसकी शुरुआत आपको करनी होगी, लेकिन जल्द ही आप पाएंगे कि बच्चे भी इसमें योगदान देने लगेंगे। एक बार उनको अहसास हो कि आप उनके द्वारा लाई गई चीज़ों में रुचि ले रहे हैं और उनकी खोजों के बारे में जानना चाहते हैं, तो वे जल्द ही सैंकड़ों वस्तुएं लाना शु डिग्री कर देंगे। बच्चे इन्हें बगैर किसी भय के छू व देख सकेंगे, चाहे तो तोड़कर-खोलकर भी। इन वस्तुओं में पत्थर, बीज, कलियां, कई प्रकार के शंख, मोटर पुर्ज़े, नट, बोल्ट इत्यादि शामिल हो सकते हैं। आप विशेष प्रदर्शन भी कर सकते हैं, जैसे विभिन्न प्रकार के पत्थरों, बीजों या कीलों का प्रदर्शन। बालों को सजाने वाली सामग्री का एक प्रोजेक्ट भी बच्चों को बहुत उत्साहित कर सकता है। बच्चे अपने घरों से तरह-तरह के हेयर बैंड्स, विभिन्न प्रकार की क्लिप्स, रबर बैंड्स, रिबन इत्यादि लाकर ढेर लगा देंगे। इसी प्रकार आप बालों में लगाने वाले विभिन्न प्रकार के तेल की खाली बोतलों का भी संग्रह करवा सकते हैं।
संग्रहकर्ता के रूप में शिक्षक
अब तक आपको एहसास हो गया होगा कि एक शिक्षिका को एक अच्छा संग्रहकर्ता भी होना चाहिए। आप अपने दम पर सभी चीज़ें एकत्र नहीं कर सकते। इसके लिए बच्चों और उनके अभिभावकों की मदद लेनी ही होगी। वस्तुओं के संग्रह के लिए आपको बच्चों को बार-बार याद दिलाना होगा। इन एकत्र वस्तुओं का इस्तेमाल भी सही ढंग से करना होगा, अन्यथा बच्चे स्कूल के लिए इन्हें एकत्र करने में कोई रुचि नहीं दिखाएंगे। ‘यह स्कूल मेरी है...’ इस तरह की भावना का कई शिक्षकों, बच्चों और उनके अभिभावकों में अक्सर अभाव देखा जाता है। सरकार कोई आदेश दे देती है और उसे टीचर द्वारा ‘क्रियांवित’ करवा लिया जाता है। ऊपर बताई गई गतिविधियों से सीखने के मकसद और सीखने की प्रक्रिया में लोकतांत्रिक भागीदारी को समझने में मदद मिलती है।
कई शिक्षक गतिविधियों में अभिभावकों को शामिल करने को सिरदर्द समझते हैं। अगर ऐसा ही है तो बेहतर होगा कि आप कोई और व्यवसाय चुन लें। मैंने सदैव पाया है कि अभिभावक अत्यंत सहयोगी और मददगार होते हैं। बच्चे को स्कूल छोड़ते या उसे वापस घर ले जाते समय आप अभिभावकों को कक्षा में ले जाएं और दिखाएं कि संग्रहित वस्तुओं से आप उनके बच्चों को कैसे सिखाते हैं। आप देखेंगे कि आपकी मदद करने में अभिभावकों की दिलचस्पी बढ़ जाएगी और सामग्री की आपूर्ति भी। उन चीज़ों को कबाड़ी वाले को बेचा भी जा सकता है जिनका इस्तेमाल अब संभव नहीं रह गया है। इससे प्राप्त पैसे से नई सामग्री खरीदी जा सकती है।
संग्रह के लिए ज़रूरी चीज़ें
जब आप संग्रह के लिए ज़रूरी चीज़ों को इकट्ठा करना शु डिग्री करते हैं तब चीज़ों की कोई सूची उपलब्ध करवा पाना संभव नहीं है। आपको ज़रूरत के हिसाब से कई किस्म की सामग्री इकट्ठा करते जाना होता है - पता नहीं कब किसकी ज़रूरत हो। फिर भी देखा गया है कि कई प्रकार के डिब्बों-डिब्बियों की ज़रूरत पड़ती है। बटन और मोती रखने के लिए वैसलिन की खाली डिब्बी एवं पेंटिंग का सामान रखने के लिए मिठाइयों के डिब्बों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा पुराने टिफिन बॉक्स, पुरानी तश्तरियां या कटोरे भी सामग्री रखने के काम में लाए जा सकते हैं। इनमें सुई-धागा एवं क्रेयॉन आदि रखे जा सकते हैं।
बच्चे कई प्रकार की डोर या सुतलियां एकत्र कर सकते हैं। इनका इस्तेमाल चीज़ों को मापने, लटकाने, कठपुतलियां बनाने, सजाने आदि में किया जा सकता है। अगर अभिभावक थोड़ा ऊन भी भेज सकें तो उसका इस्तेमाल कोलाज या कठपुतलियों के सिर के बाल बनाने में किया जा सकता है।
फुटकर सामग्री: फुटकर सामग्री कई प्रकार की हो सकती है जो अक्सर हमारे आस-पास ही आसानी से मुहैया होती है। उदाहरण के लिए मिट्टी और रेत तो हर जगह मिल जाएगी, गेरू, कोयला, डोरी, कार्डबोर्ड, अखबार, लेई धागे की खाली रील, दर्ज़ी के पास से कपड़ों की कतरन, पानवाले की दुकान से सिगरेट के खाली पैकेट, माचिस की खाली डिबिया, बीज, सिंदूर, चूड़ियां, पत्तियां, पक्षियों के पंख आदि। आप पाएंगे कि अन्य लोगों के लिए निरर्थक चीज़ें आपके कितने काम की हैं। प्लास्टिक के डिब्बों को बीच में से काटकर उन्हें रेत की खुदाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
जूते के डिब्बे: एकत्र सामग्री रखने के लिए जूते के डिब्बे बहुत उपयोगी होते हैं। आपको कम-से-कम ऐसे 20 डिब्बों की ज़रूरत पड़ेगी जिन्हें दीवार के सहारे जमाकर रखा जा सकता है। बच्चे अखबार की पट्टियां काटकर उन्हें लेई से इन डिब्बों पर चिपका सकते हैं, जिससे ये डिब्बे मज़बूत हो जाएंगे। यह काम गर्मियों में किया जा सकता है, क्योंकि इस मौसम में डिब्बे जल्दी सूख जाएंगे।
इन डिब्बों में कई चीज़ों को व्यवस्थित रूप से रखा जा सकता है, जैसे गणना के लिए काम में आने वाले इमली के चिए, सीताफल या चीकू के बीज आदि। दर्ज़ी के पास से एकत्रित कपड़ों की कतरन और धागे की खाली रील भी इनमें रखी जा सकती हैं। पानवाले से हासिल की गई सिगरेट की डिब्बियां या माचिस बॉक्स भी। एक डिब्बे में तरह-तरह के रबर के छल्ले रखे जा सकते हैं तो दूसरे में आइसक्रीम की स्टिक्स। एक अन्य डिब्बे में फोटोग्राफ वाली रील की डिब्बियां रखी जा सकती हैं। एक अन्य डिब्बा सुई और धागा रखने के लिए भी ज़रूरी है।
आपको अपनी कक्षा में कई गतिविधियों के लिए सभी प्रकार के कागज़ की ज़रूरत पड़ेगी। इसके लिए पुरानी पत्रिकाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है। शादी व ग्रीटिंग कार्ड्स भी इस काम के लिए अत्यंत उपयोगी होते हैं।
औज़ार: सीखने में मशगूल किसी भी कक्षा के लिए कुछ औज़ारों की सदैव ज़रूरत होती है। उम्मीद है कि इन्हें रखने के लिए आपकी क्लास में शेल्फ तो होंगे ही। इन उपकरणों में शामिल हैं - पेपर पंचिंग मशीन, कैंची, स्टेपलर, स्केल, पेपर क्लिप, हथौड़ी, स्क् डिग्री ड्राइवर इत्यादि। कपड़े सुखाने वाली चिमटी भी उपयोगी होती है।
अगर आपके पास सिल-बट्टा भी हो तो बहुत अच्छा रहेगा। वैसे भी यह बहुत ज़्यादा महंगा नहीं होता और खाना बनाते समय बहुत काम आएगा।
गणित और विज्ञान की गतिविधियों के लिए आपको स्केल, टेप व लेंस आदि की ज़रूरत पड़ेगी। साथ ही गिनती करने व पैटर्न बनाने के लिए पत्थर, पत्तियां, शंख आदि भी चाहिए होंगे।
गोंद या कोई चिपकाने वाला पदार्थ कक्षा में इफरात में उपलब्ध रहना चाहिए। हालांकि कई स्कूलों में अपर्याप्त स्रोत या इच्छाशक्ति की कमी की वजह से यह संभव नहीं हो पाता। ऐसे में इसके स्थान पर आटे की लेई बनाई जा सकती है। अगर मौसम ठंडा है तो इसे दो दिन तक रखा जा सकता है। विविधता लाने के लिए इसमें रंग की कुछ बूंदें मिलाकर उससे पेंट भी कर सकते हैं। बच्चे घर से भी लेई बनाकर ला सकते हैं। दरअसल, गोंद बनाना अपने आप में एक मज़ेदार प्रोजेक्ट हो सकता है। एक स्कूल में मैंने देखा कि सब बच्चों से 25-25 ग्राम गोंद लाने के लिए कहा गया। चूंकि यह गोंद बड़े-बड़े ढेलों में होता है इसलिए सबसे पहले इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ना ज़रूरी है। फिर उसे दो दिन तक गुनगुने पानी में भिगोकर रख दिया जाता है। दो दिन बाद उसे अच्छी तरह से फेंटने पर बस आपकी गोंद तैयार है। इसमें से कुछ गोंद शीशियों में भरकर बच्चों को दिया जा सकता है, तो कुछ कक्षा के लिए रखा जा सकता है।
अंत में कहा जा सकता है कि थोड़े से प्रयासों और कल्पनाशीलता से किसी भी कक्षा को जीवंत और सीखने-सिखाने की एक बेहतर जगह बनाया जा सकता है। जब अभिभावकों को एहसास होगा कि उनके बच्चे आपकी कक्षा में बहुत कुछ सीख रहे हैं, तो वे आपको अपना पूरा सहयोग देंगे। खुद बच्चों को भी महसूस होगा कि यह क्लास उनकी अपनी है। इससे वे उसे साफ-स्वच्छ और अनुशासित रखेंगे।
रुथ रस्तोगी: भीमताल के नांतिन बाड़ी स्कूल एवं फैज़ाबाद में जिंगल-बेल अकादमी की स्कूलों में क्लास रूम डिज़ाइन एवं प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाने के तरीकों पर विशेष योगदान दिया है। वर्तमान में एकलव्य द्वारा भोपाल में प्राथमिक शिक्षा को अर्थपूर्ण बनाने के लिए चलाए जा रहे स्कूल ट्रान्स्फर्मेशन कार्यक्रम से जुड़ी हैं।
अंग्रेज़ी से अनुवाद: जयजीत: शौकिया अनुवाद करते हैं। भोपाल में निवास।