लेखक:   राजा मोहन्ती  
अनुवाद: शशि सबलोक [Hindi PDF, 167 kB]

(मलाला युसुफज़ई के लिए)

जिज्ञासा क्या और आदर (रेवरेन्स) क्या है? क्या तुम जिज्ञासु हो? और किस चीज़ के लिए तुम्हारे मन में विस्मय व आदर है? मैंने दस साल की अपनी भतीजी से पूछा।
उसने मेरी ओर देखा और बोली, “क्या आप मुझे पापा जैसा फोन दिला सकते हो?” मुझे लगा शायद वह मेरे सवाल सुन नहीं पाई है। सो मैंने अपने सवाल दोहराए। उसने फिर से मेरी ओर देखा। वो समझ गई थी कि मैं उसका जवाब समझ नहीं पाया हूँ। वो अपने पापा के फोन के बारे में जानने के लिए उत्सुक थी और उसे विस्मय से देखती थी। उसने बताया कि फोन उसे एक जादूगर की तरह लगता है। आप उससे बात कर सकते हो, उसे पिज़्ज़ा लाने के लिए कह सकते हो। और आधे घण्टे के भीतर स्मार्ट ड्रेस पहने एक लड़का गरमा-गरम पिज़्ज़ा लिए आपके दरवाज़े पर होगा। कभी-कभी जब वो फोन पर हलके-से फुसफुसाती भर है तो हज़ारों किलोमीटर दूर बैठे उसके दादा जी उसकी बात साफ-साफ सुन पाते हैं। यह अलग बात है कि कभी-कभी कॉल कट जाती है और बात नहीं हो पाती। पर फोन फिर भी चमत्कारी बना रहता है। भले ही घर के बाहर खेलते उसके छोटे भाई को उसकी चीखती आवाज़ सुनाई नहीं दे, पर उसकी एक हलकी-सी लरज़ती फुसफुसाहट भी फोन के ज़रिए दूर अमृतसर तक पहुँचती है। कभी-कभी पापा अपने लंदन वाले दोस्त से बातें करते हैं और इतनी दूर से आने वाली आवाज़ उसे सुनाई दे जाती है।

मैं विज्ञान पढ़ाता हूँ। जब कभी मुझे बाँसुरी बजाने की इच्छा होती है तो मैं बाँसुरी बजाता हूँ। मैं चाहता था कि मेरी भतीजी भी विज्ञान के जादू और संगीत की खूबसूरती को समझे। इसीलिए मैंने उससे ऐसे सवाल किए - जानने की इच्छा के बारे में, किसी के प्रति मन में अपार श्रद्धा आने के बारे में। पर उसके जवाब ने सिखाने की मेरी इच्छा पर पानी फेर दिया - भले ही कुछ देर के लिए।
मैंने सोचा कि इस बार मैं किसी और रास्ते से उस तक पहुँचने की कोशिश करता हूँ। तो मैं उसके पास गया। और पूछा कि क्या उसे सौर सैल और सौर ऊर्जा के बारे में पता है। वह अपने फोन पर उँगलियों से कुछ टाइप कर रही थी। और मेरी ओर देखे बगैर बोली, “हाँ। मुझे लगता है सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करना एक बढ़िया विचार है। हमारे बगीचे के बकुल के पेड़ से हमें सीखना चाहिए। मालूम, बकुल बस अपनी पत्तियाँ धूप में फैला देता है। और उसी से वो अपना नाश्ता, दोपहर और रात का खाना बनाता है। हमारी विज्ञान की टीचर इस प्रक्रिया को प्रकाश-संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) कहती हैं। मैं सोचती हूँ कितना बढ़िया आइडिया है यह - न मॉल में जाना पड़े और न प्लास्टिक की थैलियों में चीज़ें लानी पड़ें...।” मैंने तुरन्त बात पलटी और पूछा कि क्या उसे पता है कि बाँसुरी से इतने सुन्दर सुर कैसे पैदा होते हैं।

बड़ी ही सुन्दर मुस्कुराहट के साथ फोन के स्क्रीन पर उसकी उँगलियाँ घूमीं और फिर थिरकने लगीं। वह जो कुछ देर पहले तक एक फोन था अब बाँसुरी जैसा लगने लगा था - कुछ-कुछ बाँसुरी जैसा। मेरी बाँसुरी जैसे मीठे सुर तो न थे उसके, पर फिर भी बाँसुरी जैसे थे। उसकी उँगलियाँ फिर से फोन पर थिरकीं। एक पल के लिए वह मुझे कृष्ण सरीखी लगी। मैं थोड़ा निराश हुआ। और वापस वह किताब उठा ली जो मैं पढ़ रहा था। किताब बढ़िया थी। उसमें बताया गया था कि कैसे इन्सानी जिज्ञासा ने विज्ञान को जन्म दिया और कैसे विस्मय भरी श्रद्धा ने हमसे कलाएँ जन्मवाईं।

कुछ समय बाद मैं एक अन्य शिक्षक से मिला जिनका सोचना काफी हद तक मेरी तरह ही था। उनका भी मानना था कि आजकल की पीढ़ी किताबें नहीं पढ़ती और इसलिए इस पीढ़ी से कितनी ही चीज़ें छूटी रह जाएँगी - उनमें किसी चीज़ के प्रति जिज्ञासा न होगी, और श्रद्धा तो बिलकुल ही न होगी।

यह बात कुछ साल पहले की है। दस साल तक एक स्कूल का हैडमास्टर रहने के बाद अब मैं रिटायर हो चुका हूँ। आज भी मैं नई पीढ़ी के बारे में शिक्षकों से वैसी ही शिकायतें सुनता रहता हूँ। आदतें मुश्किल से जाती हैं। और मैं उनसे इत्तेफाक भी रखता हूँ। पर फिर मैं अपनी भतीजी के बारे में सोचता हूँ जो अब बड़ी हो चुकी है और बहुत ही सुन्दर बाँसुरी बजाती है।
सोचता हूँ कि जिन बातों पर कभी मेरा इतना पुख्ता यकीन था क्या वो सच थीं - आज मैं पूरे यकीन से नहीं कह सकता।


राजा मोहन्ती: एक इंजीनियर के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करने के बाद विज़ुअल आर्ट की शिक्षा और पेशे से जुड़ गए। वर्तमान में आईडीसी, आईआईटी मुम्बई में अध्यापन करते हैं। लेखन, पिक्चर स्टोरीज़ तैयार करने और सिरैमिक के काम में रुचि
अँग्रेज़ी से अनुवाद: शशि सबलोक: ‘चकमक’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।