सुशील जोशी[Hindi,PDF 142 KB]
यह घोर आश्चर्य और चिन्ता का विषय है कि कई विद्यार्थी बताते हैं कि उन्हें मोल (वे उसे मोल कॉन्सेप्ट कहते हैं) को समझने में बहुत दिक्कत आती है। आश्चर्य का विषय इसलिए है कि मोल वास्तव में बहुत सरल चीज़ है। और चिन्ता का विषय इसलिए है कि रसायन शास्त्रियों ने मोल की धारणा चीज़ों को सरल बनाने के मकसद से की है। इन दोनों के मद्दे-नज़र मैं कोशिश करूँगा कि मोल को अत्यन्त सरलता से प्रस्तुत करूँ। इसके लिए हमें रासायनिक प्रक्रियाओं को रसायन शास्त्रियों की नज़र से समझना होगा। मगर मोल की एक शुरुआती समझ उसके बगैर भी सम्भव है।
साधारण तौर पर देखें तो किसी को भी एक दर्जन या एक जोड़ी या एक पसेरी, एक क्विंटल समझने में कोई परेशानी नहीं होती। जो थोड़ी-बहुत परेशानी होती होगी उसका सम्बन्ध समझ से नहीं बल्कि इस तरह की इकाइयों की विविधता से है। हर इलाके में इकाइयाँ थोड़ी अलग-अलग हो सकती हैं। मगर दर्जन तो वैश्विक इकाई है। एक दर्जन केले हों या एक दर्जन रुमाल, हम सब जानते हैं कि दर्जन मतलब 12 वस्तुएँ। आपको बस इतना बताना होगा कि किस चीज़ का एक दर्जन।
जब दर्जन में कोई परेशानी नहीं है तो मोल में क्या परेशानी? मोल भी चीज़ों की एक निश्चित संख्या है। किसी भी चीज़ की उतनी संख्या लेंगे तो वह उस वस्तु का एक मोल होगा। अब आप चाहें तो एक मोल केले ले लीजिए, एक मोल कद्दू ले लीजिए या एक मोल सायकिलें ले लीजिए। ये चीज़ें तो अलग-अलग हैं मगर इन सबमें एक समानता है कि सब एक मोल हैं। मगर हम कभी एक मोल केलों की बात नहीं करते और कर भी नहीं सकते। आम तौर पर हम 1 मोल परमाणु, 1 मोल अणु या 1 मोल आयनों की बात रसायन शास्त्र में सुनते हैं, तो क्यों हम 1 मोल केलों की बात नहीं कर सकते? अब इसी को समझने की कोशिश करें।
बहुत ही बड़ी संख्या
मोल को दर्जन वगैरह के सिलसिले में समझना इसलिए बहुत मुश्किल होता है कि मोल एक अति-विशाल संख्या का नाम है। इस अति-विशाल संख्या को संक्षेप में लिखें तो यह होती है 6.022 x 1023। इसका मतलब है कि आप 1 के बाद 23 शून्य लगाएँ (100000000000000000000000) तब जाकर यह संख्या प्राप्त होगी। इसे शब्दों में कहना चाहें तो यह संख्या होती है एक लाख अरब अरब। आप कल्पना कर सकते हैं कि इतने केलों का वज़न बहुत ज़्यादा होगा। यदि मज़ा लेना है तो यह देखिए कि पृथ्वी पर इन्सानों की संख्या कितनी है - करीब 6 अरब। यह एक मोल का अंशमात्र भी नहीं है।
मगर रसायन शास्त्रियों के लिए तो यह संख्या रोज़मर्रा की बात है। हमेशा वे पदार्थों के दो-चार मोल के साथ काम करते हैं। बार-बार तो वे बता नहीं सकते ना कि हाइड्रोजन के 200 अरब अरब परमाणु ऑक्सीजन के 100 अरब अरब परमाणुओं से क्रिया करके पानी के 100 अरब अरब परमाणु बनाते हैं। इसी बात को कहने का आसान तरीका है कि 2 मोल हाइड्रोजन परमाणु 1 मोल ऑक्सीजन परमाणु से क्रिया करके 1 मोल पानी के अणु बनाते हैं।
अभी हम इस पचड़े में नहीं पड़ेंगे कि हमें यह संख्या कैसे पता चली है। इस अकल्पनीय बड़ी संख्या का नाम है एवोगैड्रो संख्या (N)। इसका नाम अमीडियो एवोगैड्रो नाम के एक इतालवी वैज्ञानिक के नाम पर रखा गया है, हालाँकि यह संख्या उन्होंने पता नहीं की थी। मगर इस संख्या की ओर बढ़ने का रास्ता उनके काम से प्रशस्त हुआ था।
तो यह समझना मुश्किल कदापि नहीं होना चाहिए कि किसी वस्तु के ढेर में यदि N वस्तुएँ हैं तो वह उस वस्तु का 1 मोल होगा।
मगर रसायन शास्त्रियों को इसी मोल की एक दूसरी परिभाषा ज़्यादा भाती है। वह भाती इसलिए है क्योंकि उसकी मदद से वे रासायनिक क्रियाओं को सरल रूप में व्यक्त कर सकते हैं। इस संख्या के प्रति उनका मोह इतना ज़बर्दस्त है कि उन्होंने एक दिन (शायद एक से ज़्यादा दिनों) को मोल दिवस घोषित किया है। शायद ही कोई अन्य इकाई होगी जिसका ऐसा जश्न मनाया जाता हो।
रसायन शास्त्र और मोल
तो आइए रसायन शास्त्रियों की परिभाषा को देखते हैं। वह भी इतनी ही सरल है। उसका सम्बन्ध परमाणु/अणु भार से है। मोल पदार्थ की एक विशिष्ट मात्रा दर्शाता है, ठीक उसी तरह जैसे मीटर आपको एक विशेष लम्बाई बताता है। सब जानते हैं कि फ्रांस में कहीं एक खास छड़ नियंत्रित परिस्थितियों में रखी है जिसकी लम्बाई 1 मीटर मानी जाती है। जो भी वस्तु उतनी लम्बी होती है उसे हम 1 मीटर लम्बी कहते हैं। यह बात अलग है कि अब लम्बाई का मात्रक वह छड़ नहीं है मगर मात्रक तो है। अलबत्ता उस सब में न पड़ें।
मोल दिवस मोल यानी 6.022 x 1023। तो कुछ रसायन शास्त्रियों ने कहा कि 1023 का मतलब है 23.10 यानी 23 अक्टूबर। तो 23 अक्टूबर को मोल दिवस कहा गया। और 6.022 के आधार पर यह दिवस सुबह 6 बजकर 22 मिनट पर शुरु होता है। कुछ अन्य रसायन शास्त्रियों का ख्याल था कि 6.022 का मतलब होगा 22 जून। तो वे 22 जून के दिन मोल दिवस मनाते हैं। |
रसायन शास्त्रियों का एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है जिसे संक्षेप में IUPAC कहते हैं। उसने अन्तर्राष्ट्रीय माप-तौल संघ के साथ मिलकर मोल की निम्नलिखित परिभाषा दी है:
“किसी भी पदार्थ की वह मात्रा जिसमें उतनी ही मूल इकाइयाँं (अणु/परमाणु/आयन) हों, जितने परमाणु 12 ग्राम कार्बन में होते हैं।”
इस परिभाषा को सरल रखने के उद्देश्य से मैंने एक शर्त को छोड़ दिया था। वह शर्त अब बताता हूँ। उसके लिए आपको यह जानना होगा कि तत्व परमाणुओं से बने होते हैं। पहले माना गया था कि किसी भी तत्व के सारे परमाणुओं का भार एकदम बराबर होता है। मगर रेडियो सक्रियता के अध्ययन और पृथक्करण की विधियाँ परिष्कृत होने के साथ यह पता चला कि एक ही तत्व में कई तरह के परमाणु हो सकते हैं। ये होते एक ही तत्व के परमाणु हैं मगर इनका परमाणु भार थोड़ा-थोड़ा अलग-अलग होता है। इस वजह से जब हम किसी तत्व का परमाणु भार बताते हैं तो पूर्णांक संख्या न होकर एक दशमलव संख्या होती है। ज़्यादा विस्तार में न जाएँ, तो इतना कहना पर्याप्त है कि अधिकांश तत्व एक से अधिक समस्थानिकों से मिलकर बने होते हैं। और अलग-अलग जगह से प्राप्त तत्व या अलग-अलग विधि से प्राप्त तत्वों में इन समस्थानिकों की मात्रा थोड़ी अलग-अलग हो सकती है।
यदि स्थिति यह है कि कुदरती रूप से पाए जाने वाले तत्वों में समस्थानिकों की मात्रा भिन्न-भिन्न होगी तो मात्र किसी तत्व की मात्रा के आधार पर मात्रक तय नहीं किया जा सकता। इसलिए रसायनज्ञों ने तय किया है कि हम कार्बन के उस समस्थानिक को अपना मानक बनाएँगे जिसका परमाणु भार 12 होता है। रसायन की भाषा में इसे C-12 कहते हैं। तो मोल की उपरोक्त परिभाषा को परिष्कृत रूप में निम्नानुसार लिखा जा सकता है:
“किसी भी पदार्थ की वह मात्रा जिसमें उतनी ही मूल इकाइयाँ (अणु/परमाणु/आयन) हों, जितने परमाणु 12 ग्राम कार्बन-12 (c-12) में होते हैं।”
तो यह हुई मोल की दूसरी परिभाषा। तो दिक्कत क्या है समझने में?
कुछ सवाल
अब आपके दिमाग में सवाल कुलबुलाने लगे होंगे। और न कुलबुलाने लगे हों, तो मैं हूँं ना।
सबसे पहला सवाल तो यह उठता है कि हमें यह संख्या (6.022 x 1023) पता कैसे चली। और बात यहीं नहीं रुकती। आप रासायनिक साहित्य देखेंगे तो पता चलेगा कि हम इस संख्या को काफी सटीकता से जानते हैं। आजकल इसका मान 6.02214078 x 1023 ± 0.00000018 x 1023 माना जाता है। यह तो आप देख ही सकते हैं कि वास्तव में इस संख्या को गिनना नामुमकिन की हद तक मुश्किल है।
पहली बात तो यह है कि बात परमाणुओं की हो रही है। ये इतने छोटे होते हैं कि अच्छे-से-अच्छे सूक्ष्मदर्शी से भी नहीं देखे जा सकते।
दूसरी बात, जैसा कि परिभाषा में कहा गया है, कार्बन का वह समस्थानिक लेना होगा जिसका परमाणु भार 12 हो। प्रकृति में कार्बन तीन समस्थानिकों के मिश्रण के रूप में पाया जाता है। तो हमें इनको अलग-अलग करना होगा। फिर इस शुद्ध समस्थानिक में से सटीकता से 12 ग्राम निकालने के लिए पता नहीं कितनी बढ़िया तराज़ू लगेगी। तब जाकर आएगा गिनने का काम। एक गणना के मुताबिक यदि प्रति सेकण्ड दस-दस लाख परमाणु गिनने वाली दस लाख मशीनें इस काम में लगाई जाएँ, तो काम पूरा होने में 19,000 साल लगेंगे।
कमाल की बात तो यह है कि इन मुश्किलों के बावजूद हम इस संख्या का मान काफी अच्छी तरह जानते हैं। ज़ाहिर है इसे प्रायोगिक रूप से ही मापा गया है और एक-दो नहीं कई विधियों से इसका मापन हुआ है। इन विधियों को जानने के लिए संदर्भ के पिछले अंक देखें1। फिलहाल मानकर चलते हैं कि किसी भी पदार्थ के 1 मोल में इतने अणु/परमाणु/आयन या कोई भी अन्य मूल इकाइयाँ होती हैं।
दूसरा सवाल आता है कि कार्बन-12 को ही क्यों मानक चुना गया और उसके 12 ग्राम को ही क्यों मोल का पैमाना निर्धारित करने के लिए लिया गया। इस सवाल के जवाब के लिए थोड़ा-सा इतिहास में जाना होगा।
कार्बन-12 और 12 ग्राम
डाल्टन के परमाणु सिद्धान्त का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि परमाणुओं के भार पता करने की कोशिशें शुरु हुईं। यह समझ तो थी ही कि परमाणु इतने छोटे होते हैं कि एक-एक को तोलना सम्भव नहीं है। तो कोशिश की गई कि अलग-अलग तत्वों के परमाणुओं के भारों की तुलना की जाए। यानी हमें शायद यह पता न चले कि जस्ते के एक परमाणु का वज़न कितना है मगर यह पता रहे कि जस्ते का एक परमाणु ताँबेे के एक परमाणु से कितना गुना भारी है।
तमाम कोशिशों, उतार-चढ़ावों, गलतफहमियों, झगड़ों, विवादों के बाद धीरे-धीरे वैज्ञानिक अन्तत: सारे तत्वों के परमाणुओं के भारों की एक तुलनात्मक तालिका बनाने में सफल रहे। इसमें किसी भी तत्व के परमाणु के भार की तुलना हाइड्रोजन के परमाणु से की जाती है। हाइड्रोजन के परमाणु के भार को 1 मान लिया गया है। इसके आधार पर यह पता लगाया जाता है कि किसी तत्व का परमाणु हाइड्रोजन के परमाणु से कितने गुना भारी है। इसे उस तत्व का परमाणु भार कहते हैं।
यदि ऑक्सीजन का परमाणु भार 16 है तो इसका मतलब होगा कि ऑक्सीजन का प्रत्येक परमाणु हाइड्रोजन के प्रत्येक परमाणु से 16 गुना भारी है। इसी प्रकार से कार्बन का परमाणु भार 12, नाइट्रोजन का परमाणु भार 14 वगैरह निकले।
ये परमाणु भार (यानी विभिन्न तत्वों के परमाणुओं के हाइड्रोजन के परमाणु की तुलना में भार) कैसे पता चले वह एक अलग और लम्बी रोचक कहानी है। उसे भी संदर्भ के पिछले अंकों में पढ़ा जा सकता है2।
खैर, समस्या यह है कि हम जब पदार्थों के साथ काम करते हैं तो ग्राम, किलोग्राम वगैरह की इकाइयों में पदार्थ को तोलते हैं। तो किसी ने सुझाव दिया कि किसी पदार्थ के परमाणु भार के बराबर मात्रा ग्राम में तोलकर लें तो उसे 1 ग्राम परमाणु भार कहा जाए। जैसे सोडियम का परमाणु भार 23 है। यदि हम 23 ग्राम सोडियम ले लें तो हम कहेंगे कि यह सोडियम का एक ग्राम परमाणु भार है। सोडियम का ग्राम परमाणु भार 23 है। इसी प्रकार से लोह का ग्राम परमाणु भार 57, कैल्शियम का 40 वगैरह हैं। हम इस विचार को अणु भार पर भी लागू कर सकते हैं। जैसे पानी का अणु भार 18 है, तो उसका ग्राम अणु भार 18 ग्राम होगा। मीथेन का अणु भार 16 है औग ग्राम अणु भार 16 ग्राम है।
यहाँ से निकलती है मोल की एक और परिभाषा। वास्तव में यह मोल की पहली परिभाषा थी - किसी पदार्थ के परमाणु भार या अणु भार के बराबर पदार्थ ग्राम में तोल लें, तो वह उस पदार्थ का 1 मोल होगा।
इस परिभाषा से फायदा यह होता है कि हम सामान्य तराज़ू से नापे जा सकने वाले वज़न का सम्बन्ध परमाणु/अणु के भारों के अनुपात से जोड़ सकते हैं। यदि हमने 23 ग्राम सोडियम लिया है और 39 ग्राम पोटेशियम लिया है, तो हम कह सकते हैं कि उनमें रासायनिक दृष्टि से कुछ-न-कुछ समानता है। इसलिए मोल को रासायनिक भार भी कहते हैं (जो भौतिक भार से भिन्न है)।
दो परिभाषाओं के बीच सम्बन्ध
तो हमारे सामने मोल की दो परिभाषाएँ हैं जो एक-दूसरे से स्वतंत्र लगती हैं। मगर ऐसा तो हो नहीं सकता कि एक ही चीज़ की दो अलग-अलग परिभाषाओं के अर्थ ही अलग-अलग हों। तो अब हम देखेंगे कि मोल की उपरोक्त दो परिभाषाओं के बीच सम्बन्ध क्या है।
एक बार फिर इतिहास में लौटना होगा।
परमाणु भार से आशय क्या है? डाल्टन ने माना था कि यदि दो तत्व आपस में क्रिया करते हैं तो वे एक-एक परमाणु के अनुपात में करेंगे। तो पदार्थों की क्रिया करवाई जाए। मान लीजिए 1 ग्राम हाइड्रोजन और 8 ग्राम ऑक्सीजन पूरी-पूरी क्रिया करके पानी बना देते हैं। तो डाल्टन कहेंगे कि 1 ग्राम हाइड्रोजन में उतने ही परमाणु होने चाहिए जितने 8 ग्राम ऑक्सीजन में हैं। इसी आधार पर उन्होंने कहा कि हाइड्रोजन को इकाई मानकर ऑक्सीजन का परमाणु भार 8 होगा। यानी ऑक्सीजन का हरेक परमाणु हाइड्रोजन के परमाणु से आठ गुना भारी होगा। यह सन् 1804 की बात है। आप जानते ही हैं कि ऑक्सीजन का परमाणु भार 8 नहीं होता। डाल्टन ने कहीं गलती की थी। मगर उन्होंने एक बात साफ कर दी कि पदार्थों की क्रिया करने वाली मात्राओं के परमाणुओं की संख्या बराबर होगी या उनके बीच सरल अनुपात होगा।
चित्र-2: एवोगैड्रो व गेलूसेक के अनुसार इन तीन गुब्बारों में हाइड्रोजन, नाइट्रोजन व ऑक्सीजन के आयतन समान होने के कारण इनमें गैसों के अणु भी बराबर की संख्या में होंगे।
इस अनुपात (जिसे डाल्टन ने 1:1 माना था) का बेहतर अनुमान वैज्ञानिकों ने थोड़े सालों बाद लगाया था। इसका श्रेय एवोगैड्रो के अलावा गेलूसेक को जाता है। इन दो रसायन शास्त्रियों के प्रयासों से यह स्पष्ट हुआ कि गैसों के बराबर आयतन में अणुओं की संख्या बराबर होती है, बशर्ते कि सारी गैसों को एक ही तापमान और दबाव पर रखा जाए (चित्र-2)। यानी आप 1 वायुमण्डल दाब और 25 डिग्री सेल्सियस पर 1 लीटर हाइड्रोजन, 1 लीटर ऑक्सीजन, 1 लीटर नाइट्रोजन, 1 लीटर कार्बन डाईऑक्साइड या 1 लीटर हीलियम ले लें तो इन सब में अणुओं की संख्या बराबर होती है। अब इस चक्कर में न पड़ें कि यह बात कैसे पता चली कि सारी गैसों के बराबर आयतन में अणुओं की संख्या बराबर होती है।
देखने वाली बात यह है कि 1 लीटर ऑक्सीजन का भार 1 लीटर हाइड्रोजन के भार से 16 गुना होता है। अब यदि दोनों में अणुओं की संख्या बराबर है तो ऑक्सीजन का एक अणु हाइड्रोजन के एक अणु से 16 गुना भारी होगा। हाइड्रोजन के प्रत्येक अणु में दो परमाणु होते हैं। अर्थात् ऑक्सीजन का एक अणु हाइड्रोजन के एक परमाणु से 32 गुना भारी होगा। और ऑक्सीजन के हर अणु में भी दो-दो परमाणु होते हैं। तो ऑक्सीजन का एक परमाणु हाइड्रोजन के एक परमाणु से 16 गुना भारी होगा। ऑक्सीजन का परमाणु भार 16 है।
डाल्टन-एवोगैड्रो लड़ाई लम्बी चली और कैनिज़रो (उस समय के एक इतालवी रसायन शास्त्री) ने इसको सुलझाया भी। अलबत्ता, हम डाल्टन-एवोगैड्रो-कैनिज़रो को अपने हाल पर छोड़कर इस बात को पकड़ लेते हैं कि यदि गैसों के बराबर आयतन लिए जाएँ, तो उनमें अणुओं/परमाणुओं की संख्या बराबर होती है। हम अभी भी यह नहीं जानते कि यह संख्या है कितनी। मगर एक रोचक बात यह है कि किसी भी गैस का 1 ग्राम अणु या 1 ग्राम परमाणु लें तो उन सबका आयतन 22.4 लीटर आता है। यानी सारी गैसों का 1 ग्राम अणु 22.4 लीटर होता है। अर्थात् 1 ग्राम अणु या 1 ग्राम परमाणु में गैसों के अणुओं/परमाणुओं की संख्या बराबर होती है।
इसी प्रकार से रासायनिक क्रियाएँ करते-करते वैज्ञानिकों ने इतना तो पता लगा लिया कि सारे पदार्थों के एक ग्राम अणु या एक ग्राम परमाणु में अणु/परमाणु की संख्या बराबर होती है। यही संख्या एवोगैड्रो संख्या है।
यही सम्बन्ध है उक्त दो परिभाषाओं का। अब सिर्फ एक बात साफ करना बाकी रह गया है - C-12 की बात। उसी पर आते हैं।
यह तो मैंने बताया ही है कि डाल्टन के समय में सारे परमाणु भार हाइड्रोजन के परमाणु को इकाई मानकर निकाले गए थे। उसी समय किसी वैज्ञानिक ने सुझाव दिया कि ऑक्सीजन को इकाई मानने से काम आसान हो जाएगा। कारण यह था कि परमाणु भारों की गणना हम तुलना के आधार पर करते हैं। हाइड्रोजन बहुत सारे तत्वों के साथ क्रिया नहीं करती। तो उनके परमाणु भार अप्रत्यक्ष ढंग से निकालने पड़ते थे। ऑक्सीजन अधिकांश तत्वों से क्रिया करती है। इन क्रियाओं के आधार पर किसी भी तत्व का परमाणु भार सीधे-सीधे निकाला जा सकता है। हाइड्रोजन को इकाई मानें तो ऑक्सीजन का परमाणु भार 16 आता है। यदि ऑक्सीजन को इकाई मानेंगे तो ऑक्सीजन के परमाणु भार का 1/16 हमारी इकाई हो जाएगी।
मगर इस सरल योजना में एक दिक्कत तब आई जब समस्थानिकों का पता चला - समस्थानिक एक ही तत्व के परमाणु होते हैं जिनके परमाणु भार अलग-अलग होते हैं। जैसे हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक पाए जाते हैं - परमाणु भार क्रमश: 1, 2 और 3 (चित्र-3)।
प्रयोग करके हाइड्रोजन का परमाणु भार निकालेंगे तो वह इन तीन समस्थानिकों के परमाणु भारों का औसत ही आएगा (हाँ, औसत निकालते समय हमें यह ध्यान रखना पड़ेगा कि प्रकृति में ये किसी अनुपात में पाए जाते हैं। संक्षेप में हमें इनका आनुपातिक या weightedऔसत निकालना पड़ेगा)। और हर बार हाइड्रोजन का जो नमूना हम लेंगे उसका परमाणु भार अलग-अलग आ सकता है क्योंकि हरेक नमूने में हाइड्रोजन के विभिन्न समस्थानिकों का अनुपात अलग-अलग होगा। तो अन्य तत्वों के परमाणु भार भी बदलते रहेंगे। और उन अन्य तत्वों के भी समस्थानिक होंगे। तब तो समस्या बड़ी विकट हो जाएगी। इसलिए यह तय किया गया कि हाइड्रोजन के उस समस्थानिक को इकाई माना जाए जिसका परमाणु भार 1 है।
मगर किन्हीं वजहों से आगे चलकर रसायन शास्त्रियों ने यह तय किया कि तुलना के लिए कार्बन का उपयोग किया जाएगा। कार्बन के भी तीन समस्थानिक पाए जाते हैं - परमाणु भार 12, 13 और 14। तो यह भी फैसला करना पड़ा कि किस सम-स्थानिक के परमाणु भार से तुलना की जाएगी। प्रकृति में कार्बन का जो समस्थानिक सबसे अधिक अनुपात में पाया जाता है उसका परमाणु भार 12 है। अत: यह तय किया गया कि इसी समस्थानिक को मानक माना जाएगा और कार्बन-12 का परमाणु भार 12 है। तो परमाणु भार की इकाई होगी कार्बन के परमाणु भार का 1/12। और कार्बन का ग्राम परमाणु भार है 12 ग्राम। यह कार्बन-12 का एक मोल है। इसमें कार्बन के 6.022 x1023 परमाणु होते हैं।
तो मोल की परिभाषा मिल गई - 12 ग्राम कार्बन-12 में जितने परमाणु हैं वह एक मोल है।
इसलिए प्रत्येक पदार्थ की 1 मोल मात्रा वह मात्रा है जिसमें 12 ग्राम कार्बन-12 के बराबर परमाणु/अणु हों। और यह मात्रा किसी भी पदार्थ के एक ग्राम परमाणु भार या ग्राम अणु भार के बराबर होती है।
सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।