किशोर पंवार

प्रकाश-संश्लेषण दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण  जैव  रासायनिक क्रियाविधि है। पौधों के साथ-साथ सभी छोटे-बड़े जीव, बैक्टीरिया से लेकर बकरी और भेड़ से लेकर भालू -- सभी की उदर पूर्ति इस प्रक्रिया से बने कार्बनिक पदार्थों से होती है जिन्हें कन्द, मूल, फल और चारा कहते हैं।
इस प्रक्रिया की जटिलताओं को समझने में कला ने भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। दरअसल कला और विज्ञान का तो चोली-दामन-सा साथ रहा है। मॉर्फोलॉजी, एनाटॉमी जैसी शाखाओं का तो मूल आधार चित्र ही है। शरीर के बाहरी अंग हों या आन्तरिक संरचना, दोनों की समझ विकसित करने में चित्रों का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
प्रकाश-संश्लेषण के ज़रिए निर्मित छाया चित्रों को लेकर पिछले वर्ष एक बहुत ही सुन्दर शोध पत्र पढ़ने में आया। नाम है पिक्टोरियल डैमन्सट्रेशन ऑफ फोटोसिंथेसिस और इसके लेखक हैं रोजर पी. हैंगार्टर और हॉवर्ड जेस्ट। यह रिव्यू आर्टिकल फोटोसिंथेटिक रिसर्च नाम के जरनल में छपा है।
यह एक अद्भुत लेख है। इसमें प्रकाश-संश्लेषण से जुड़े ऐसे दस्तावेज़ों का चित्रमय वर्णन है जिनसे प्रकाश संश्लेषण जैसी जटिल क्रियाविधि को समझने में मदद मिलती है। विभिन्न तरीकों से बनाए गए ये चित्र इस बात के प्रमाण हैं कि कला, ज्ञान और विज्ञान के सम्मिश्रण से ज्ञान की जटिलताओं को आसान और रोचक बनाया जा सकता है।

प्रकाश-संश्लेषण नाम के इस लम्बे धारावाहिक नाटक को पत्तियों के मंच पर खेला जाता है। इसमें चार प्रमुख किरदार हैं। मिस हवा हवाई यानी कार्बन डाईऑक्साइड, मिस्टर वॉटर यानी H2Oजो मिट्टी के माध्यम से, जड़ों से होता हुआ पत्तियों तक पहुँचता है। तीसरा कलाकार परदेसी है, अन्तरिक्ष से आता है, नाम है प्रकाश। सूर्य से आता है और पत्तियों पर नाचता है। चौथी आर्टिस्ट है मिस ग्रीन यानी क्लोरोफिल जो क्लोरोप्लास्ट के साथ रहती है।
हरे पौधों की इस क्रियाविधि और इसके किरदारों की भूमिका की सही-सही समझ बनाने का श्रेय थियोडोर एंगलमैन को ही जाता है। जीवित वस्तुओं की इस क्रियाविधि से प्रकाश-चित्र बनाने का श्रेय भी इन्हें ही जाता है। परन्तु जीवित जीवों की छाप से चित्रों को प्राप्त करने का श्रेय तो एक महिला वनस्पति शास्त्री को जाता है। चलिए सिल-सिलेवार इन छवियों को देखते हैं।

प्रकाश-संश्लेषी जीवों की छवियाँ
लम्बे समय तक टिकने वाली फोटोग्राफी की तकनीक विकसित होने के पूर्व जैविक नमूनों का दस्तावेज़ीकरण चित्रकारों की इस क्षमता पर निर्भर होता था कि वे इनकी विशेषताओं की कितनी बारीकियों को प्रदर्शित कर सकते हैं।
जीवित वनस्पतियों के छाया चित्रों के सर्वप्रथम प्रकाशन का श्रेय एक ब्रिटिश वनस्पतिशास्त्री एना ऐटकिन्स को जाता है। ये चित्र वास्तव में साइनोटाइप इम्प्रेशन थे। स्थिर चित्रों को प्राप्त करने की विधि विकसित करने का श्रेय भी एक वनस्पतिशास्त्री विलियम फॉक्स टैलबट को ही जाता है।  हालाँकि  टैलबट  की  रुचि फोटोग्राफी के रासायनिक सिद्धान्तों को जानने में नहीं थी। वे तो प्रकाश के अब तक ना-मालूम गुणों को जानना चाहते थे।
ऐसा विज्ञान में कई बार हुआ है कि जानना कुछ चाहते थे और पता कुछ और ही चल गया। और जो पता चला वह किसी अन्य महत्वपूर्ण प्रक्रिया को समझने में मददगार सिद्ध हुआ। जैसे रॉर्बट हुक कॉर्क के गुणों को पहचानना चाहते थे और कोशिका की खोज कर बैठे। प्रकाश-संश्लेषण में भी ऐसा ही हुआ।
प्रकाश-संश्लेषी जीवों का पहला रेखीय चित्रण
थियोडोर एंगलमैन (1843-1909) ने जीवित तंत्रों से प्रकाश चित्र बनाने का सबसे पहला प्रयोग किया। इनके द्वारा डिज़ाइन किए गए प्रयोगों से पौधों में भोजन निर्माण में प्रकाश और हरितलवक (क्लोरोप्लास्ट) की भूमिका को स्पष्ट रूप से समझा जा सका। इन प्रयोगों में इस वैज्ञानिक ने तकनीक, कला और पूर्व-जानकारी का बेमिसाल तरीके से इस्तेमाल किया है।

प्रयोग एक
प्रकाश जनित छवियाँ प्राप्त करने का यह पहला प्रयास था। इस प्रयोग हेतु एंगलमैन (1883) ने विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए माइक्रोस्कोप पर एक जीवित नमूने (शैवाल) को रखकर उसे प्रकाशित किया। इस उपकरण में प्रिज़्म की सहायता से नमूने पर एक सूक्ष्म वर्णक्रम (spectrum) डाला गया। नमूना एक हरी शैवाल क्लेडोफोरा थी जिसकी प्रत्येक कोशिका में लगभग पूर्ण रूप से एकसार क्लोरोप्लास्ट भरे हुए थे।
प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन का उत्पादन नापने के लिए क्लेडोफोरा के सूत्र को स्लाइड पर रख उस पर प्रकाश-अनुवर्ती (phototactic) और ऑक्सीजन की तरफ आकर्षित होने वाले बैक्टीरिया का घोल डालकर, कवर स्लिप से ढँक कर सील कर दिया गया।

एना ऐटकिन्स

छाया चित्रण की खोज 18वीं शताब्दी की शुरुआत में हुई। विलियम फॉक्स टैलबट जो कि एक वनस्पतिशास्त्री थे, ने सर्वप्रथम स्थिर चित्रों को प्राप्त करने की विधि खोजी। इसमें सॉल्ट और सिल्वर नाइट्रेट के घोल से पेपर को उपचारित कर चित्र प्राप्त किए जाते थे।
छाया चित्रण की दूसरी विधि जॉन हर्शल ने विकसित की। इसे साइनोटाइप प्रिंटिंग नाम दिया गया। इस विधि में वस्तु की छाया से चित्र प्राप्त करते हैं। इसमें जिस वस्तु का चित्र प्राप्त करना हो उसे फेरिक अमोनियम सिट्रेट और पोटेशियम फेरिक साइनाइड से पुते कागज़ पर रखकर 10-15 मिनट के लिए धूप में रख दिया जाता है। इसके बाद कागज़ को पानी से धोया जाता है। कागज़ का वह हिस्सा जो वस्तु से नहीं ढँका होता था, गहरे नीले रंग का हो जाता था। इसे ब्लू प्रिंटिंग या अमोनिया प्रिंट भी कहते हैं। मकानों, दुकानों और पुलों के बड़े-बड़े नक्शे तैयार करने में आज भी इसी तकनीक का उपयोग किया जाता है।

जीवित वस्तुओं के छाया चित्रों के प्रकाशन का श्रेय सर्वप्रथम एक ब्रिटिश वनस्पति वैज्ञानिक एना ऐटकिन्स को जाता है। पिछले वर्ष गूगल ने उनका डूडल प्रसारित किया था। ये चित्र प्रकाश-संश्लेषी जीवों के थे। जिस किताब में वे छपे थे, उसका नाम है ब्रिटिश एल्गी: साइनोफाइसीएन इम्प्रेशन्स। ऐटकिंस ने अपनी बचपन की दोस्त एनी डिक्सन (1799-1864) के साथ मिलकर दो किताबें और प्रकाशित कीं। इसमें साइनोटाइप ऑफ ब्रिटिश एंड फॉरेन फ्लावरिंग प्लांट्स एंड फर्न (1854) शामिल है।
एना ऐटकिन्स के कार्य को रेखांकित करते हुए उन्हें लंदन की रॉयल बॉटेनिकल सोसायटी का सचिव भी बनाया गया। उल्लेखनीय है कि उस समय यह सम्मान कुछ ही महिलाओं को प्राप्त था।


इस प्रकार तैयार इस स्लाइड को माइक्रोस्कोप पर रखा गया। और सूक्ष्म वर्णक्रम से प्राप्त प्रकाश की मात्रा बढ़ाने पर एंगलमैन ने देखा कि कुछ ही समय में बैक्टीरिया चल कर शैवाल सूत्र के उन हिस्सों के पास जाकर एकत्रित हो गए जो नीले और लाल रंग की किरणों से प्रकाशित हो रहे थे। इस तरह एंगलमैन ने सर्वप्रथम जीवों (शैवाल एवं बैक्टीरिया) का उपयोग कर प्रकाश-संश्लेषण का एक रेखीय चित्र प्राप्त किया। यह किसी भी ऑक्सीजन उत्पादक जीव का सर्वप्रथम प्रकाशित क्रिया-वर्णक्रम (action spectrum) है। इससे यह पता चलता है कि शैवाल पर प्रकाश पड़ने पर ऑक्सीजन निकलती है और दूसरी बात यह कि ऑक्सीजन बनने की मात्रा के आधार पर यह पता चला कि प्रकाश-संश्लेषण लाल प्रकाश और नीले प्रकाश में ही सबसे ज़्यादा होता है (चित्र-1)।

प्रयोग दो
यह जान लेने के बाद कि प्रकाश-संश्लेषण में सबसे ज़्यादा ऑक्सीजन नीले और लाल प्रकाश की उपस्थिति में निकलती है, एंगलमैन ने इन बैक्टीरिया की गतिशीलता का उपयोग यह पता लगाने के लिए किया कि कोशिका का कौन-सा अंग प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के दौरान ऑक्सीजन उत्पादन के लिए प्रकाश को ग्रहण करता है। इसका पक्का पता लगाने के लिए उन्होंने एक अन्य परिवर्तित माइक्रोस्कोप का उपयोग किया जिसे कार्ल ज़ाइस ने डिज़ाइन किया था।
इसमें क्लेडोफोरा की बजाय इस बार उन्होंने हरी शैवाल स्पायरोगायरा के फिलामेंट (सूत्र) का उपयोग किया। इस शैवाल की कोशिकाओं में कुछ ही हिस्सों  में  रिबिननुमा  स्पायरल क्लोरोप्लास्ट भरा होता है, बाकी हिस्से खाली-खाली दिखते हैं पर वहाँ जीवद्रव्य और अन्य वस्तुएँ भरी होती हैं।
विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए माइक्रोस्कोप पर रखकर जब वायुजीवी बैक्टीरिया युक्त स्पायरोगायरा की स्लाइड पर प्रकाश की बारीक किरणें डाली गईं तो उन्होंने पाया कि बैक्टीरिया चलकर क्लोरोप्लास्ट के उन हिस्सों पर जमा हो गए जो प्रकाशित हो रहे थे। जबकि कोशिका के अन्य प्रकाशित हिस्सों पर ऐसा जमाव नहीं मिला।  इससे यह स्पष्ट तौर पर पता चला कि क्लोरोप्लास्ट और उसमें भरे रंजक ही प्रकाश-संश्लेषण के स्थल हैं और प्रकाश ग्रहण करते हैं।

क्लोरोप्लास्ट की गतियों से चित्रण
इससे यह तो हमने जान लिया कि पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के क्रिया-स्थल क्लोरोप्लास्ट हैं। वे ही प्रकाश का अवशोषण करते हैं, और वहीं से ऑक्सीजन निकलती है। क्लोरोप्लास्ट का एक और गुण है - प्रकाश के प्रति उनकी गति। कई शैवाल, मॉस, फर्न और फूलधारी पौधों की पत्तियों में क्लोरोप्लास्ट का प्रकाश-प्रेरित वितरण और जमावट देखी गई है। क्लोरोप्लास्ट के इसी गुण का उपयोग कर वाडा और सुगाई ने फर्न के गेमिटोफाइट को स्टेनसिल (stencil) से ढँककर, तेज़ प्रकाश देकर शब्दों की दृश्य छवियाँ प्राप्त की हैं।
इसी तरह नीले प्रकाश को ग्रहण करने वाले पौधे अरैबिडोप्सिस की पत्तियों पर भी आकृतियाँ बनाई गई हैं। प्रकाश-प्रेरित क्लोरोप्लास्ट के कणों की ये गतियाँ इतनी संवेदी और प्रभावी हैं कि श्वेत-श्याम (B&W) फोटोग्राफ के नेगेटिव से पत्तियों को ढाँककर और फिर उसे प्रकाशित करने पर शानदार चित्र प्राप्त किए जा सकते हैं। नॉर्मन गुड की छवि इसी प्रकार प्राप्त की गई है (चित्र-2)। इस प्रकार प्राप्त तस्वीरों में क्लोरोप्लास्ट के कणों की साइज़ के अलावा जीवित पत्तियों में इनकी गतियों को भी देखा जा सकता है और वो भी बिना किसी रासायनिक पदार्थ को इस्तेमाल किए। मज़ेदार बात यह है कि एक ही पत्ती को बार-बार अलग-अलग छवियाँ प्राप्त करने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। केवल आपको नेगेटिव भर बदलना है। है न यह बिलकुल इकोफ्रेंडली तकनीक। न फोटोग्राफी पेपर, न डेवलपर और न ही सिल्वर-गोल्ड के सॉल्ट।

ब्लू पिंरट : धूप का जादू

बात कोई 43-44 साल पुरानी। उन दिनों मैं उज्जैन में ढाबा रोड पर रहता था। बी.एससी. का छात्र था, माधव विज्ञान महाविद्यालय में। उन दिनों रीगल टॉकीज़ व गोयल मन्दिर विविध प्रकार की गतिविधियों का केन्द्र होता था। जादू दिखाने वाले, मदारी, मंजन व तेल बेचने वाले - सब अपना मजमा वहीं लगाते थे। ऐसे ही एक दिन एक व्यक्ति सड़क पर बैठा इंजेक्शन की शीशी में 50 पैसे में एक जादुई पानी बेच रहा था। ब्लेक-व्हाइट फोटोग्राफ के नेगेटिव से हूबहू वैसा ही फोटो, बिना कैमरे, बिना लेब के बनाने का नुस्खा। बस शीशी से वह तरल निकालो, रूई से सफेद कागज़ पर पोतो। फिर उस पर कोई पुराना नेगेटिव रखकर धूप में रख दो। 8-10 मिनट बाद पानी से धोने पर एक बढ़िया हूबहू वैसा पॉज़िटिव फोटो तैयार। है ना जादू धूप का। एक सुन्दर नीली-सफेद तस्वीर मिनटों में तैयार।

पिछले दिनों जब गूगल पर एना ऐटकिन्स का डूडल देखा और उसके बारे में पढ़ा तो सब माजरा समझ में आ गया। अब मैं जान गया हूँ धूप का जादू। जो मैंने 50 पैसे में खरीदकर फोटो छापा था, वह था साइनो प्रिटिंग इम्प्रेशन।
आप भी बनाइए अपने साइनोप्रिंट। फूल के पत्तों के नेगेटिव से पॉज़िटिव और पॉज़िटिव फिल्म हो तो उसका नेगेटिव।

पोटेशियम फेरीसाएनाइड 8.1% w/v और फेरिक अमोनियम साइट्रेट 20% बराबर मात्रा में मिलाकर कागज़ पर पोतें। अँधेरे में, छाया में सुखाएँ और फिर इस पर नेगेटिव रखकर धूप में रखें। फिर 5-10 मिनिट बाद पानी से धोएँ। नेगेटिव, ट्रांसपेरेंसी या कोई अन्य स्टेनसिल या कोई सुन्दर पत्ती को लेकर वही विधि अपनाइए जो अभी पढ़ी है आपने। तो बनाइए ब्लू पिं्रट और बताइए संदर्भ को और अपने दादा-दादी और नाना-नानी को भी।


क्लोरोफिल प्रतिदीप्ती से प्राप्त छवियाँ  

क्लोरोफिल का यह एक विशेष गुण है। जब इन प्रकाश संवेदी अणुओं को प्रकाशित किया जाता है तो वे प्रतिदीप्ती (फ्लोरोसेंस) भी प्रदर्शित करते हैं। इसी गुण का फायदा उठाकर कुछ कलाकार वैज्ञानिकों ने डिजिटल कैमरे की मदद से शानदार तस्वीरें बनाई हैं।
निग और ऑस्मोड ने जीवित पत्तियों को फोटोग्राफिक नेगेटिव से ढाँककर उन्हें तेज़ प्रकाश से प्रकाशित किया। इस तरह वे क्लोरोफिल अणुओं से निकलने वाली प्रतिदीप्ति से जीवित पत्तियों पर शानदार तस्वीरें बना पाए। ऐसी  तस्वीरें  सिसस  क्वाड्रैंग्युलैरिस (हाड़-जोड़)  की  पत्तियों  पर  बनाई गईं।

प्रकाश चलित जीवों से तस्वीरें
जैसे क्लोरोप्लास्ट प्रकाश के प्रति संवेदी है और उस ओर चल पड़ते हैं जहाँ प्रकाश है या तेज़ प्रकाश से बचने की कोशिश करते हैं। ठीक ऐसे ही पूरे-के-पूरे जीव भी प्रकाश प्रेरित गतियाँ करते हैं। हेडर (1984) ने तस्वीर की आश्चर्यजनक बारीकियाँ उभारने वाला एक चित्र बनाया। चूँकि इसे एक शैवाल से प्राप्त किया गया था, इसे नाम मिला एल्गोग्राफ। उन्होंने फ्रीवर्ग मुन्सटर के एक फोटोग्राफिक नेगेटिव को लेकर कल्चर प्लेट में भरे फोरमीडियम नाम की शैवाल के एक समांगी घोल पर यह नेगेटिव रखकर उसे प्रकाशित किया। ये शैवाल उनकी चलने की गति की दर से, जहाँ-जहाँ प्रकाश उन पर गिर रहा था वहाँ जाकर जमा हो गए। इस तरह उस नेगेटिव का एक सुन्दर पॉज़िटिव (फोटो) कल्चर प्लेट पर बन गया।
ऐसे ही एक प्रयोग में एक ब्लेक एंड व्हाइट ट्रांसपेरेंसी का उपयोग करने पर देखा गया कि ये बैक्टीरिया मात्र 5 मिनट में विभिन्न प्रकाशित स्थानों पर एकत्रित होकर प्लेट पर एक सुन्दर चित्र बना देते हैं।

स्टार्चकणों से प्राप्त तस्वीरें
हम जानते हैं कि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में उत्पाद के रूप में स्टार्च बनता है। यह कणों के रूप में होता है। प्रकाश-संश्लेषण दो चरणों में पूरा होता है। पहला, प्रकाश अभिक्रियाएँ जो प्रकाश और क्लोरोप्लास्ट से सम्बन्धित हैं। इस चरण से बनी छवियाँ हम देख चुके हैं। दूसरा चरण अन्धकार अभिक्रिया होता है जिसमें स्टार्च एवं अन्य शर्कराएँ बनती हैं।
वैज्ञानिकों ने स्टार्च कणों का उपयोग करके भी सुन्दर जीवित छवियाँ प्राप्त की हैं। पौधों द्वारा प्रकाश-संश्लेषण की पूर्णता पर स्टार्च कणों का बनना एवं अँधेरे में इसके उपयोग (खर्च) हो जाने को लेकर जुलियस सेक ने महत्वपूर्ण कार्य किया है। पत्तियों के कुछ हिस्सों को धातु के स्टेनसिल से ढँक कर फिर उसे प्रकाशित कर वे ये बता पाए कि स्टार्च के निर्माण के लिए प्रकाश ज़रूरी है। स्टार्च केवल पत्ती के उन्हीं स्थानों पर बनता है जो धातु की पर्त से ढँके नहीं होते। जो हिस्सा ढँका होता है अर्थात् पत्ती के जिस हिस्से को सूर्य का प्रकाश नहीं मिलता वहाँ स्टार्च नहीं बनता। अर्थात् प्रकाश-संश्लेषण नहीं होता। जूलियस वॉन सेक्स के द्वारा विकसित यह टेस्ट स्टार्च आयोडीन टेस्ट कहलाता है। हरा रंग हटाकर पत्तियों को जब आयोडीन से रंगा जाता है तो पत्तियों के जो हिस्से प्रकाश के प्रति एक्सपोज़्ड रहे थे वहाँ-वहाँ पत्तियों पर नीला-जामुनी रंग उभर आता है। ऐसा स्टार्च पर आयोडीन की क्रिया से होता है। ऐसा ही एक ‘मण्ड परीक्षण’ प्रयोग बाल-वैज्ञानिक कक्षा-7 में विस्तार से दिया गया है। अध्याय है पौधों में पोषण।

एंगलमैन द्वारा प्राप्त किए गए ‘बैक्टीरियो स्पेक्ट्रोग्राम’ जिसमें छवियाँ आरेखण के रूप में दर्ज की गई थीं, के विपरीत स्टार्च द्वारा निर्मित ये छवियाँ ज़्यादा स्थाई और बेहतर सिद्ध हुईं जो वास्तविक चित्रों जैसी दिखती हैं।
जूलियस वॉन सेक्स के कार्य को आगे बढ़ाते हुए मोलिश ने पूरी पत्ती को छाया चित्रों के नेगेटिव से ढँक कर उन्हें धूप से प्रकाशित कर सुन्दर ‘स्टार्च चित्र’ प्राप्त किए हैं। इन चित्रों की बारीकियाँ, शेडिंग और रिज़ोल्यूशन उस समय भी आश्चर्यजनक रूप से उच्च स्तर के थे। इन स्टार्च चित्रों में स्पष्टता (रिज़ोल्यूशन) क्लोरोप्लास्ट द्वारा बनाए गए स्टार्च कणों की संख्या और आकार पर निर्भर थे। एक मायने में यहाँ स्टार्च कण वर्तमान में डिजिटल छाया चित्रों के पिक्सल और परम्परागत फोटोग्राफी में चाँदी के कणों के समरूपी हैं।
मोलिश की यह सरल तकनीक प्रकाश-संश्लेषण में भोजन निर्माण को बड़े सुन्दर और नाटकीय रूप से प्रस्तुत करती है। इसे कई किताबों और प्रयोगशालाओं में अपनाया गया है। वाकर का जेरेनियम की पत्ती का इस विधि से बनाया गया छाया चित्र एक ऐतिहासिक उत्कृष्ट कृति है (चित्र-3)।
यहाँ दिए गए कुछ प्रयोगों को आप भी दोहराएँ और प्रकाश-संश्लेषण की क्रियाविधि की समझ बढ़ाने के साथ अपनी कला को भी निखारें। कला और विज्ञान के समन्वय का यह एक अद्भुत और श्रेष्ठ उदाहरण है।


किशोर पंवार: शासकीय होल्कर विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर में बीज तकनीकी विभाग के विभागाध्यक्ष और वनस्पतिशास्त्र के प्राध्यापक हैं। होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से लम्बा जुड़ाव रहा है जिसके तहत बाल वैज्ञानिक के अध्यायों का लेखन और होविशिका में प्रशिक्षण देने का कार्य किया है। एकलव्य द्वारा जीवों के क्रियाकलापों पर आपकी तीन किताबें प्रकाशित। शौकिया फोटोग्राफर, लोक भाषा में विज्ञान लेखन व विज्ञान शिक्षण में रुचि।
यह लेख आकांक्षा यादव की मदद के साथ लिखा गया है। आकांक्षा यादव उद्यानिकी विभाग, शासकीय होल्कर विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर में अतिथि प्राध्यापिका हैं।