सवाल: तेज़ाब से शरीर क्यों जल जाता है? ऐसा क्या होता है उसमें?
जवाब: किसी तेज़ एसिड के सम्पर्क में आने पर हमारे शरीर को जो नुकसान पहुँचता है वह हमारी त्वचा और उस एसिड के रासायनिक गुणधर्मों की वजह से होता है। असल में, जिस ढंग से तेज़ाब हमारे ऊतकों (टिश्यू) के साथ अभिक्रिया करता है उसके कारण हमारे शरीर को यह नुकसान होता है। इसलिए इतना कह देना काफी नहीं है कि किसी क्षयकारी (कोरोसिव) तेज़ाब में ऐसा कुछ होता है जिसके कारण त्वचा को इस तरह का नुकसान होता है। इसकी बजाय, बेहतर होगा कि इस बात की पड़ताल की जाए कि हमारी त्वचा के साथ एसिड की क्या अभिक्रिया होती है।
प्रोटॉन डोनर के रूप में एसिड
इस सन्दर्भ के लिए हम एसिड की इस परिभाषा का उपयोग कर सकते हैं (वैसे इसकी अन्य परिभाषाएँ भी हैं) -- एसिड ऐसे अणु या आयन होते हैं जो किसी रासायनिक अभिक्रिया में अपना एक प्रोटॉन या हाइड्रोजन आयन (क्तअ) छोड़ देते हैं। ऐसे एसिड ब्रॉन्सटेड एसिड कहलाते हैं। इनका यह नाम डेनिश रसायनशास्त्री योहानेस निकोलस ब्रॉन्स्टेड के नाम पर पड़ा जिन्होंने 1923 में यह परिभाषा दी थी।
हाइड्रोजन आयन या प्रोटॉन छोड़ने की प्रक्रिया को प्रोटॉलिसिस कहते हैं। अगर हमें किसी प्रोटॉलिसिस अभिक्रिया से गुज़रने वाले अम्ल की सान्द्रता (गाढ़ेपन) का पता हो, और अभिक्रिया के दौरान छोड़े जाने वाले क्तअ की सान्द्रता को माप सकें तो इन दोनों मूल्यों के अनुपात की गणना करके हम पता लगा सकते हैं कि वह अम्ल कितना प्रबल/प्रभावशाली है। ज़्यादा मात्रा में क्तअ आयन छोड़ने वाले अम्ल प्रबल अम्ल कहलाते हैं।
तो एसिड अपनी रासायनिक अभिक्रियाओं के दौरान प्रोटॉन छोड़ते हैं। पर क्या इस तथ्य का मानव शरीर पर उनके नुकसानदायी असर से कोई ताल्लुक है?
हाँ, ताल्लुक है।
हमारे शरीर को बनाने वाले प्रमुख पदार्थों में से एक है प्रोटीन1। तेज़ाब द्वारा छोड़े जाने वाले प्रोटॉन प्रोटीनों की रासायनिक संरचना को नुकसान पहुँचाते हैं और उनके विशेष गुणधर्मों को नष्ट कर देते हैं। वे मुख्य रूप से उन रासायनिक आबन्धों (केमिकल बॉण्ड) को भंग कर देते हैं जिससे किसी प्रोटीन की 3-डी रचना बनती है। इस प्रक्रिया को प्रोटीनों का विकृतीकरण कहते हैं। जब कोई प्रोटीन विकृत हो जाता है तो वह अपना आकार खो देता है जिसके परिणामस्वरूप वह अपना काम भी नहीं कर पाता।
त्वचा जल कैसे जाती है?
जब त्वचा किसी अम्ल के सम्पर्क में आती है तो वहाँ की कोशिकाओं का प्रोटीन विकृत हो जाता है और उसकी कोशिकाएँ मर जाती हैं पर वे एक-दूसरे से एकदम अलग नहीं होतीं। इस वजह से त्वचा पर एक साफ दिखने वाला या सफेद रंग का दाग बन जाता है। त्वचा का यह हिस्सा जीवित नहीं होता पर किसी समय जीवित रहे ऊतक के लिए स्थानधारक (प्लेसहोल्डर) का काम करता है।2
हालाँकि, इस ‘भूत-से’ ऊतक का बनना सुनने में डरावना लग सकता है, लेकिन हकीकत यह है कि इसकी वजह से अम्ल से होने वाले जले के घाव उतने गम्भीर नहीं हो पाते जितना कि क्षारीय रसायनों से हुए घाव। यह मृत ऊतक, जिसे कोऐग्यूलम या थक्का कहते हैं, एसिड को और भीतर के ऊतकों तक पहुँचने से रोकता है जिससे कि जले का घाव काफी हद तक त्वचा की सतह तक ही सीमित रहता है।
ऑक्सीकरण एजेंट के रूप में अम्ल
लेकिन अम्ल ऊतकों को इस एक ढंग के अलावा और भी कई तरीकों से नुकसान पहुँचा सकते हैं।
सल्फ्यूरिक एसिड (H2SO4) और नाइट्रिक एसिड (HNO3) रासायनिक अभिक्रियाओं में ऑक्सीकारकों (ऑक्सीडाइज़िंग एजेंट) का काम करते हैं, यानी वे किसी अभिक्रिया के अन्य अभिकारकों के इलेक्ट्रॉन छीनकर ले लेते हैं। उदाहरण के लिए, सल्फ्यूरिक एसिड द्वारा शक्करों और कई अन्य कार्बनिक यौगिकों के ऑक्सीकरण के परिणामस्वरूप कार्बन, कार्बन डाईऑक्साइड, और/या तारकोल जैसे अन्य ऑक्सीकृत कार्बनिक यौगिकों का निर्माण होता है। इसलिए इन ऑक्सीकारकों के सम्पर्क में आने पर ऊतकों के अंश अन्य पदार्थों में बदल जाते हैं।
सल्फ्यूरिक अम्ल और नाइट्रिक अम्ल से अन्य तरह की अभिक्रियाएँ भी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, कार्बन का सल्फोनेशन या सल्फेशन हो जाता है। नाइट्रिक एसिड भी उसी तरह से विभिन्न प्रकार के नाइट्रेटेड यौगिक बनाता है। ये अक्सर चमकीले पीले या नारंगी रंग के होते हैं।
निर्जलित करने वाले एजेंट के रूप में एसिड
इसके अलावा एक और खतरनाक ढंग से भी एसिड जीवित ऊतक को नुकसान पहुँचा सकते हैं। एसिड उत्प्रेरकों (कैटेलिस्ट) द्वारा छोड़े गए प्रोटॉन निर्जलीकरण की अभिक्रियाएँ करने में सहायक होते हैं। ये ऐसी रासायनिक अभिक्रिया होती है जिसमें अभिक्रिया करने वाले अणु से पानी का अणु अलग हो जाता है। किसी प्रबल एसिड और पानी के बीच होने वाली अभिक्रियाएँ भी अत्यधिक ऊष्माक्षेपी होती हैं, यानी उनसे बहुत अधिक मात्रा में गर्मी निकलती है।3 एसिड खुद भी निर्जलीकरण की अभिक्रियाओं में पानी को खींच लेते हैं, और फिर यह पानी एसिड के साथ अभिक्रिया करता है। इसलिए अगर ऐसे संकेन्द्रित या गाढ़े सल्फ्यूरिक एसिड को ऐसी जीवित त्वचा पर फेंका जाए जिसमें पानी हो तो वह पानी एसिड में घुल जाता है जिससे सम्पर्क में आए ऊतक सूख जाते हैं, और गर्म होकर जल जाते हैं।
एसिड से जलना
जलने से हुआ छाला कितना गम्भीर है, यह कई कारकों पर निर्भर करता है जैसे अम्ल कितना प्रबल था (यानी, प्रोटॉलिसिस की प्रक्रिया के दौरान वह कितनी जल्दी प्रोटॉन छोड़ सकता है), अम्ल की सान्द्रता (गाढ़ापन) कितनी है, कितनी देर तक अम्ल ऊतक के सम्पर्क में रहा, इस्तेमाल हुए अम्ल की मात्रा कितनी थी, इत्यादि।
तेज़ाब से हुए घावों का उपचार
तेज़ाब से हुए घाव तब और तकलीफदेह हो जाते हैं जब उन्हें सादे पानी से धोया जाए क्योंकि जैसा कि हमने अभी देखा, किसी प्रबल तेज़ाब और पानी के बीच होने वाली अभिक्रिया से बहुत सारी गर्मी पैदा होती है। इसका एक अच्छा इलाज यह है कि घाव पर खूब सारे ठण्डे पानी का इस्तेमाल करें ताकि जब शुरुआती अभिक्रिया से गर्मी पैदा होना शुरू हो तो बहुत-सा ठण्डा पानी उस तेज़ाब को जल्दी-से धो डाले और वह गर्मी शरीर को और ज़्यादा नुकसान न पहुँचा सके।
हालाँकि, कुछ लोगों का यह भी मानना है कि अगर घाव बहुत गम्भीर नहीं है तो त्वचा के सम्पर्क में आए सल्फ्यूरिक एसिड को किसी मुलायम साबुन के घोल से भी धोया जा सकता है। लेकिन साबुन में भी क्षार होता है, और क्षार व एसिड की अभिक्रियाओं से भी गर्मी निकलती है व इससे भी हमारी त्वचा को नुकसान पहुँच सकता है।
तो अलग-अलग प्रकार के अम्लों के जले के उपचार के तरीके हमेशा एक-से हों, यह ज़रूरी नहीं। यह बात याद रखना ज़रूरी है क्योंकि जले का गलत इलाज करने से दिक्कतें और बढ़ सकती हैं।
रुद्राशीष चक्रवर्ती: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ काम करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र रूप से शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: भरत त्रिपाठी: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ कार्यरत हैं।