पिछले अंक में सवालीराम ने पूछा था कि समुद्र का पानी खारा क्यों होता है। इस सवाल के दो जवाब पेश कर रहे हैं। पहला जवाब हमारे पाठक प्रशान्त भावसार का है। दूसरा जवाब एकलव्य के साथी रुद्राशीष ने तैयार किया है।

सवाल: समुद्र का पानी खारा क्यों होता है?

—धानोरा आश्रमशाला, अमरावती, महाराष्ट्र

जवाब 1: जब पृथ्वी पर बारिश होती है तो पानी पहाड़ों, मैदानों से होकर नदियों में जाता है। पृथ्वी पर ऐसी हज़ारों नदियाँ बहकर अन्तत समुद्र में जाकर मिलती हैं। बारिश का पानी नदियों के माध्यम से समुद्र में आने तक अपने में कई प्रकार की अशुद्धियों को घोल लेता है। इसमें बहुत बड़ी मात्रा में लवण भी होते हैं। इस प्रकार लगातार ये लवण (जिसमें NaCl भी शामिल है) समुद्र में मिलते रहते हैं। इसके अतिरिक्त पृथ्वी पर होने वाली किन्हीं कारणों से अम्लीय वर्षा भी हो जाती है। ये अम्ल उदासीनीकरण की प्रकिया में भाग लेकर लवण के स्तर में बढ़ोत्तरी करते हैं। इस प्रकार समुद्र में लवण लगातार बढ़ रहा है। हाँलाकि, कई समुद्री जीव इन लवणों का उपयोग अपना खोल बनाने में करते हैं। जल चक्र के अन्तर्गत वाष्पोत्सर्जन में समुद्र से शुद्ध जल वाष्प बनकर उड़ जाता है और लवण समुद्र में ही रह जाता है। इस प्रकार समुद्र में लगातार लवण की सान्द्रता बढ़ जाती है।


प्रशान्त भावसार: वरिष्ठ अध्यापक, खरगोन, म.प्र.।


जवाब 2: समुद्र का पानी नमकीन क्यों है? इस सवाल का सबसे आसान जवाब तो यह है कि समुद्र का पानी नमकीन होता है क्योंकि उसमें नमक होता है।
एक मोटा-मोटा अनुमान है कि समुद्र के पानी का 3.5 प्रतिशत वज़न उसमें घुले लवणों के कारण है। दूसरे शब्दों में, यदि हम एक कढ़ाही में 100 ग्राम समुद्री पानी लें और धूप में रखकर सारे पानी को उड़ जाने दें, तो कढ़ाही में 3.5 ग्राम नमक मिलेगा।
तो अब अगला सवाल यही होगा कि इतना नमक समुद्र में आया कहाँ से।
इस सवाल का जवाब खोजने का एक रोचक तरीका यह होगा कि हम यह विचार करें कि करोड़ों वर्षों पहले हमारे समुद्रों और महासागरों की स्थिति क्या थी क्योंकि शुरुआत में समुद्र नमकीन नहीं थे।

पृथ्वी तकरीबन 4.5 अरब वर्ष या 450 करोड़ वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई थी। इसके लगभग 70 करोड़ वर्ष बाद यानी आज से करीब 3.8 अरब वर्ष (380 करोड़ वर्ष) पहले हमारा ग्रह इतना ठण्डा हो चुका था कि वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प संघनित होकर बादल बनकर धरती पर बरस सके। यह बरसाती पानी बादलों से आया था जो मूलत: संघनित जलवाष्प थी। इसलिए इसमें लवण उपस्थित नहीं थे। (आप जानते ही हैं कि जब पानी वाष्प बनता है तो भाप में सिर्फ पानी होता है, लवण वगैरह पीछे छूट जाते हैं। देखना चाहें, तो पानी में थोड़ा-सा नमक घोलकर उसे गर्म कीजिए। बरतन के ऊपर एक ढक्कन रख दीजिए। ढक्कन के नीचे वाली सतह पर पानी की भाप संघनित हो जाएगी। उसे चखकर देख लीजिए कि वह नमकीन है या नहीं।) तो उन आदिम समुद्रों में नमक नहीं था।

किन्तु जब जल राशियाँ (नदी-नाले) बनने लगीं तो ज़मीन पर तो पहले से चट्टानों के रूप में खनिज पदार्थ मौजूद थे। ये खनिज पदार्थ दरअसल ज्वालामुखी के विस्फोटों के दौरान निकले मैग्मा के साथ सतह पर आए थे। मैग्मा धीरे-धीरे ठण्डा होकर ठोस हो गया। इसमें काफी मात्रा में सोडियम, पोटेशियम और क्लोरीन थे जो सही परिस्थिति मिलने पर सोडियम क्लोराइड (हमारा जाना-माना नमक) और पोटेशियम क्लोराइड जैसे लवणों का निर्माण करते हैं।
अन्तत: वह प्रक्रिया शुरू हो गई जिसने लवणीकरण शुरू कर दिया। यह आज भी चल रही है। समुद्रों को लावण्यमय बनाए रखने में इसी का सबसे बड़ा हाथ है। यह प्रक्रिया है अपरदन यानी erosion।

करोड़ों  वर्ष  पहले  धरती  के वायुमण्डल  में  नाइट्रोजन,  कार्बन डाईऑक्साइड  की  प्रचुरता  थी। नाइट्रोजन आज भी सबसे अधिक मात्रा में (78 प्रतिशत) उपस्थित है, लेकिन कार्बन डाईऑक्साइड आज मात्र 0.04 प्रतिशत ही है। पानी में घुलकर यह कार्बन  डाईऑक्साइड  एक  अम्ल (कार्बोनिक अम्ल) बनाती है जो है तो दुर्बल लेकिन काफी क्षयकारक (संक्षारक) है। तो उस आदिम काल में भी और आज भी, जब बारिश होती है तो पानी में उपस्थित कार्बोनिक अम्ल चट्टानों में उपस्थित लवणों के साथ धीमी-धीमी क्रिया करता है और उन्हें आयनों के रूप में बारिश के पानी में घोल देता है। यह पानी बहते-बहते अन्तत: समुद्रों में पहुँचता है और घुलित लवणों को वहाँ जमा कर देता है। यह सही है कि ऐसी कोई भी इकलौती धारा बहुत कम लवण लेकर आती है, लेकिन ऐसी लाखों धाराओं के साथ, लाखों-करोड़ों वर्षों में भारी मात्रा में लवण समुद्रों में पहुँचा है। और यह प्रक्रिया लगातार चल रही है।

ज़मीन से बहकर आया पानी जो घुलित लवण समुद्र में लाता है, उसमें से कई का उपयोग तो समुद्री जीव-जन्तु कर लेते हैं। अन्य का उपयोग नहीं हो पाता और वे पड़े रहते हैं और उनकी सान्द्रता बढ़ती जाती है। समुद्र में सबसे प्रचुरता से पाए जाने वाले दो आयन हैं सोडियम और क्लोराइड। समुद्र में उपस्थित कुल घुलित आयनों में से 90 प्रतिशत यही हैं।

अलबत्ता, समुद्र में नमक पहुँचाने का यही एकमात्र तरीका नहीं है। करोड़ों सालों  पहले  की  तरह  आज  भी ज्वालामुखीय  गतिविधियाँ  इसमें महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। समुद्र के पेंदे में दरारें या छिद्र होते हैं जिन्हें हायड्रोथर्मल वेंट कहते हैं। इनमें से धरती के अन्दर का गर्म पानी बाहर निकलता है। निकलते हुए यह साथ में लवणों को भी घोलकर लाता है। यह भी समुद्र में लवण पहुँचने का एक स्रोत है। कई सारे टापू इसी ढंग से बने हैं।

ध्यान रखने की बात यह है कि सारे समुद्र एक बराबर खारे नहीं हैं। आम तौर पर जब आप ध्रुवों के पास जाते हैं तो समुद्र कम नमकीन होते जाते हैं क्योंकि वहाँ पिघलता बर्फ लवणों की सान्द्रता को कम कर देता है।
क्या समुद्रों का खारापन बढ़ रहा है? फिलहाल जवाब है, नहीं, शायद नहीं। नमक की आगम को सम्भवत: एक अन्य प्रक्रिया सन्तुलित कर देती है - काफी सारा नमक समुद्र के पेंदे में तलछट के रूप में जमा हो जाता है। तो खारापन बढ़ नहीं रहा है।

और अन्त में एक मज़ेदार बात। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि यदि सारे समुद्रों, सागरों, महासागरों में से नमक निकालकर उसे धरती की सतह पर फैलाया जाए, तो जो परत बनेगी वह 500 फुट मोटी होगी यानी किसी 40-मंज़िली इमारत के बराबर।


रुद्राशीष चक्रवर्ती: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ काम करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र रूप से शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।