अंकित सिंह

आनंद निकेतन स्कूल एक ऐसा स्कूल है जहाँ सभी को सोचने-विचारने और तर्क करने की आज़ादी है। यह आज़ादी कक्षा से लेकर प्लानिंग बोर्ड तक और किचन से लेकर झूले तक दिखाई और सुनाई पड़ती है। ऐसी ही एक गणितीय आज़ादी की लड़ाई का ज़िक्र मैं अपने इस लेख में करने वाला हूँ। इस लेख का नाम ‘दायाँ या बायाँ' क्यों है, वो आप इस लेख को पढ़ते हुए समझ पाएँगे।
कक्षा-4 की गणित की कक्षा में सभी बच्चे तीन अंकों के गुणा के सवाल को हल करने में लगे हैं और सभी बच्चे अपने सवालों को जैसे उन्होंने हल किया है, वैसे ही ब्लैक बोर्ड पर समझाते हैं।
यहाँ पर बच्चों द्वारा किए गए हल देखिए और आपको कौन-सी विधि सही लगती है, सोचिए। और अपने साथी शिक्षकों से इसपर बातचीत भी कीजिए।

गुणा नए तरीके से
अभी तक तो सारी क्लास सही चल रही थी पर हमारे नन्हे मेहमान जावेद (जो गुजरात से आया था और वहाँ के स्टेट बोर्ड स्कूल में कक्षा-5 का छात्र था) ने जब अपने तरीके से बोर्ड पर सवाल हल करके दिखाया तो सवालों की झड़ी लग गई।
इस तरह से मुझे भी बातचीत का एक नया मुद्दा मिला और एक नया आयाम मिला, मैंने खुद से इस विषय पर चिन्तन किया था पर बच्चों के साथ इस तरह की बातचीत कभी नहीं हुई थी।


दाएँ से या बाएँ से?
इस विधि में जावेद ने जब बाईं तरफ से गुणा करना चालू किया तो कक्षा में उपस्थित समस्त बच्चों ने “गलत-गलत” कहना चालू कर दिया। तो जावेद ने कहा, “आप सब लोग देखिए, वही उत्तर मेरा भी है जो आप लोगों का है।” इस पर सभी बच्चों ने कहा, “आपने उत्तर तो सही ला दिया है पर तरीका गलत है।” तो जावेद ने कहा, “हमको हमारे स्कूल में ऐसे ही सिखाया है तो ये गलत कैसे हुआ?” तब भी बच्चों ने नहीं माना।
मैंने बच्चों से पूछा, “आपको क्या लगता है, जावेद का उत्तर गलती से आया है? अगर हाँ, तो क्यों न हम उसे दूसरा सवाल देकर देखें और आप लोग भी उस सवाल को करें? और इस बार सवाल है 123x12.”

सभी बच्चों ने सहमति दी और हम अगले सवाल की तरफ बढ़े।
मैं यहाँ बाकी सब बच्चों के कॉमन जवाब और जावेद के उत्तर को साझा कर रहा हूँ।
इन दोनों ही तरीकों पर फिर बातचीत चालू हुई। जहाँ अन्य बच्चों का तरीका जावेद को समझ नहीं आ रहा था, वहीं जावेद का तरीका बाकी बच्चों को समझ नहीं आ रहा था।
यह बात तो समझ आ रही थी कि जावेद का तरीका भी कारगर था क्योंकि उस तरीके से भी सही उत्तर आ रहे थे। हमने और सवाल भी करके देखे।
इस दाएँ और बाएँ की उलझन में हम इन दोनों तरीकों को खोलने के रास्ते पर आगे बढ़ गए।

हम लोगों ने ‘गुणा क्या है', इस पर बातचीत करना शुरू की। प्रथमेश ने कहा, “जब किसी संख्या को बार-बार जमा करते हैं तो गुणा करते हैं जैसे 2 रुपए 3 बार गुल्लक में डालें तो 2 गुणा 3 हुआ।” ऐसे ही अंश ने कहा, “जैसे एक चीज़ की कीमत दी  गई हो और ज़्यादा चीज़ों की कीमत बताना हो तो भी गुणा करते हैं।” जावेद ने भी सभी के साथ सहमति जताई।
तब मैंने कहा, “क्या कोई मुझे शुचि के तरीके को समझा सकता है कि उसने क्या किया है?”
सभी बच्चों ने एक ही स्वर में कहा कि उसने हर नम्बर को 2 बार जमा किया है।
तब मैंने एक और प्रश्न दिया, “अगर शुचि 100 से शुरू न करके 3 से शुरू करती तो क्या होता?” तो एक बच्चे ने कहा, “क्यों न हम करके देखें?”
बच्चों ने जो किया वह इस तरह से था
कुछ बच्चों ने ऐसे भी किया।

विधि अलग, उत्तर वही
इसी तरह हम कई सारे सवालों से गुज़रे जिनको हमने इस तरह से करके देखा। इन सवालों को करते समय हम लगातार बातचीत कर रहे थे कि इसमें हो क्या रहा है, जैसे 123x2 के सवाल में 100 जो कि सैकड़ा के स्थान पर है, उसे दो गुना करने पर 200 हो जाता है, इसी तरह 20 जो कि दहाई के स्थान पर है, उसे दो गुना करने पर वो 40 हो जाता है। इसी तरह 3 जो कि इकाई के स्थान पर है, उसे दो गुना करने पर वह 6 हो जाता है।
बातचीत करते हुए हमने समझा कि इस बात से उत्तर में कोई अन्तर नहीं आ रहा था कि हम गुणा दाईं तरफ से शुरू करें या बाईं तरफ से। या फिर बीच में कहीं से। हमें दिए गए अंक को एक निश्चित मात्रा में गुणा करना है, फिर किसी भी क्रम में जोड़ने पर उत्तर वही मिलता है।

इसी क्रम में बच्चों ने गुणा के काफी सारे सवालों को अलग-अलग क्रम में करके देखा, कुछ ने और नए तरीके सामने रखे।
जैसे 22x7 के सवाल में एक बच्चे ने 22x10 करके उसमें से 22x3 घटा दिया।
इन्हीं सवालों के क्रम में आगे बढ़ते हुए अंश ने सवाल किया, “बाकी चीज़ों जैसे जोड़, घटाना में भी आगे या पीछे से शुरू करने पर क्या वही उत्तर आएगा?” तो मैंने कहा, “क्यों न इन्हें भी करके देखा जाए।” मैंने व्यक्तिगत तौर पर भी गणितीय क्रियाओं को इस तरह से हल करके  देखा। आप भी इन्हें करके देखिए और अपना अनुभव साझा कीजिए।
इस अनुभव को साझा करने के पीछे का उद्देश्य यह है कि एक शिक्षक के तौर पर हम गणित की परम्परागत विधियों से हटकर सोचने की कोशिश करें और अपने साथी शिक्षकों से बातचीत करें कि उनके बचपन या उनके क्षेत्र में किसी विशेष विषय को कैसे समझाया जाता है। इससे हमें सामान्य गणितीय विधियों और तौर-तरीकों के दायरे से बाहर निकलकर बुनियादी अवधारणाओं और वैकल्पिक विधियों को भी समझने का मौका मिलता है।


अंकित सिंह: 2016 से 2020 तक आनंद निकेतन डेमोक्रेटिक स्कूल, भोपाल से जुड़े रहे हैं। छ: साल से बारह साल के बच्चों के साथ मुख्यत: गणित की अवधारणाओं पर काम करते हैं। साथ ही, आठ से दस साल के बच्चों के साथ विज्ञान की आधारभूत अवधारणाओं के लिए गतिविधियाँ करते रहे हैं। वर्तमान में डी.पी.एस., भोपाल में गणित शिक्षण कर रहे हैं।