विक्की स्टाईन

सममिति यानी सिमेट्री कई पौधों, जन्तुओं और यहाँ तक कि पानी जैसे कुछ अणुओं का भी गुण होता है। लेकिन घोंघे और उसके कुण्डलित खोल में यह बात नहीं है।
ये कायरल (chiral) होते हैं – यानी ये कुछ इस तरह असममित होते हैं कि इनके दर्पण प्रतिबिम्ब को इनके ऊपर जमाया नहीं जा सकता। हॉकी स्टिक, कैंची और जूतों में भी ऐसा ही होता है। हॉकी स्टिक और कैंचियाँ दाएँ हाथ से काम करने वालों और बाएँ हाथ से काम करने वालों के लिए अलग-अलग बनाई जाती हैं। और यदि आपको बाएँ पैर का जूता दाएँ पैर में पहनकर चलना पड़े तो अपने नसीब को कोसिए।

‘दक्षिणहस्ती’ घोंघे (यानी वे घोंघे जिनकी खोल की कुण्डली नुकीले सिरे से शुरू करके घड़ी की सुइयों की दिशा में घूमती है) का दर्पण प्रतिबिम्ब किसी ‘वामहस्ती’ घोंघे पर ही फिट बैठेगा, जिसकी खोल घड़ी की उल्टी दिशा में घूमती है। किसी घोंघे के चिपचिपे अंग और हिस्से भी खोल के घुमाव का अनुसरण करते हैं। उनमें भी उसी तरह की ऐंठन होती है जैसे खोल में है। यह एक ऐसा अवलोकन था जिसने कुछ शोधकर्ताओं को इस गुणधर्म के उद्गम की खोजबीन करने को प्रेरित किया। और डेवलपमेंट नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक इस बुनियादी कुण्डली के पीछे एक इकलौते जीन का हाथ है।

उक्त अध्ययन की वरिष्ठ शोधकर्ता जापान के चूबू विश्वविद्यालय की रसायन शास्त्री व परिवर्धन वैज्ञानिक राइको कुरोडा हैं। उनका कहना है कि “ऐसे शारीरिक लक्षण बहुत कम होते हैं, जिन्हें आप (किसी एक जीन में) चिन्हित कर सकें।”
सजीवों के अधिकांश गुणधर्म कई सारे जीन्स से निर्धारित होते हैं। जैसे व्यक्ति की आँख का रंग 10 या उससे भी अधिक जीन्स मिलकर तय करते हैं, जबकि कद का निर्धारण तो कई सैकड़ा जीन्स से निर्धारित होता है। घोंघे का मामला इस अर्थ में दुर्लभ है कि यहाँ एक जीन है जो एक प्रोटीन बनवाता है और यह प्रोटीन इस बात को तय करता है कि कोशिकाएँ अपनी संरचनाएँ कैसे विकसित करती हैं और अन्तत: पूरे घोंघे की अन्दर और बाहर की आकृति को प्रभावित करता है। और तो और, उनकी टीम ने यह भी पाया कि घोंघे की असममित प्रकृति उसकी एक-कोशिकीय अवस्था से ही शुरू हो जाती है।

शोधकर्ताओं ने किया क्या?
तालाबों के बड़े घोंघे (Lymnaea stagnalis) लगभग गोल्फ की गेंद के बराबर हो जाते हैं। लगभग सबमें दक्षिणहस्ती खोल और शरीर पाए जाते हैं लेकिन करीब 2 प्रतिशत घोंघे विपरीत दिशा में कुण्डलित होते हैं।
कुरोडा बताती हैं कि यह घुमाव शोधकर्ताओं को विक्टोरिया काल से ही आकर्षित करता आया है। 2016 में उनकी टीम ने सुझाव दिया था कि शायद एक अकेला जीन (Lsdia1) घोंघे की कायरेलिटी के लिए ज़िम्मेदार होगा। लेकिन उनका ख्याल था कि मामला पूरी तरह तय नहीं हुआ है। पहले किए गए अध्ययनों से भी लगा था कि शायद घुमाव की दिशा का वास्तविक जीन सम्भवत: घोंघे के गुणसूत्रों में Lsdia1 के निकट स्थित है।
दिसम्बर 2015 में जीन सम्पादन की तकनीक क्रिस्पर की खोज के साथ ही यह सम्भव हो गया कि डीएनए के किसी अनुक्रम को सही-सही काटकर अलग किया जा सके। कुरोडा और उनकी टीम ने सोचा कि वे Lsdia1 जीन को ठप करके देख सकते हैं कि क्या इसकी अनुपस्थिति में दर्पण-प्रतिबिम्बनुमा घोंघे का विकास हो सकता है।
सूक्ष्मदर्शी के नीचे शोधकर्ताओं ने घोंघे के अण्डों में क्रिस्पर इंजेक्ट किया। यह एक आणविक कैंची की तरह काम करता है – यह घोंघे के जीन्स में से Lsdia1 को तलाश करके मात्र उसी को काटकर हटा देता है। क्रिस्पर तकनीक के साथ हाल के अनुसंधान से पता चला है कि इसके लक्ष्य से इतर प्रभाव भी हो सकते हैं – यह जेनेटिक सामग्री को वहाँ भी काट सकता है जो शोधकर्ताओं के इरादे में नहीं था। अलबत्ता, उपरोक्त प्रयोग में शोधकर्ताओं ने बताया है कि ऐसे लक्ष्य-इतर जीन्स की क्षति के कोई प्रमाण नहीं हैं। इसकी सटीकता के प्रमाण के तौर पर टीम ने एक अन्य उसी तरह के जीन - Lsdia2 - की जाँच की और पाया कि वह साबुत है। यह महत्वपूर्ण अवलोकन था क्योंकि ये दो जीन्स (Lsdia1 और Lsdia2) फॉर्मिन नामक एक ही प्रोटीन के दो अलग-अलग संस्करण के ब्लूप्रिंट हैं।

फॉर्मिन एक अन्य प्रोटीन एक्टिन के महीन रेशों को व्यवस्थित करने में मदद करता है और एक्टिन फिर जीवन की बुनियादी रचना को गढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक्टिन अधिकांश पादप व जन्तु कोशिकाओं में सबसे अधिक पाया जाने वाला प्रोटीन है।
हारवर्ड मेडिकल स्कूल के कोशिका जीव विज्ञानी टिम मिचिसन बताते हैं कि फॉर्मिन प्रत्येक एक्टिन सूत्र के सिरे पर विराजमान होता है और उनकी वृद्धि में मदद करता है। वे इस अध्ययन में शामिल नहीं थे।
मिचिसन का कहना है, “आप इसे एक आणविक नृत्य के रूप में देख सकते हैं।” फॉर्मिन जैसे-जैसे एक्टिन सूत्रों का निर्माण करता है, ये सूत्र कोशिका में फैलते जाते हैं। ये सूत्र कोशिका की दीवारों पर दबाव डालते हैं और इस तरह बने उभार हमारे शरीरों को उसकी त्रि-आयामी रचना देते हैं। हमारी कोशिकाओं की आन्तरिक रचना का निर्माण करने के अलावा एक्टिन मांसपेशीय व गैर-मांसपेशीय ऊतकों के संकुचन में भी मदद करता है।

जब क्रिस्पर की मदद से Lsdia1 को काटकर अलग कर दिया गया, तो विकसित होते घोंघे को एक्टिन तन्तु बनाने के लिए पूरी तरह फॉर्मिन के Lsdia2 द्वारा निर्मित प्रोटीन संस्करण के भरोसे रहना पड़ा। और शोधकर्ताओं ने देखा कि Lsdia1 के अभाव में घोंघों की एक पूरी पीढ़ी में वामहस्ती खोलें बनीं। यह वह गुणधर्म है जो प्रकृति में बहुत कम देखने को मिलता है। शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि Lsdia1 ही वह जीन होना चाहिए जो घोंघों की खोल को दक्षिणहस्ती घुमाव देता है।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने वामहस्ती घोंघों के विकास को थोड़ा और गहराई से परखा। इसके लिए उन्होंने इनकी सन्तानों पर ध्यान दिया। ऐसा इसलिए किया कि घोंघों का घुमाव उनकी माँ से प्राप्त जीन्स से निर्धारित होता है – यानी वे जीन्स जिन्होंने उस अण्डाणु का निर्माण किया था जिससे वे विकसित हुए हैं। अर्थात जब तक एक इकलौती अण्डाणु कोशिका का निषेचन होता है और वह विभाजित होकर दो कोशिकाएँ बनाती है, तब तक घोंघे के घुमाव की दिशा तय हो जाती है।
कुरोडा ने सचमुच देखा कि असममिति की शुरुआत एक कोशिका अवस्था में हो जाती है।

इसका महत्व क्या है?
कायरेलिटी अणुओं के सूक्ष्म संसार में प्रचुरता से पाई जाती है। पृथ्वी पर जीवन की इकाई बनने वाले सारे अमीनो अम्ल वामहस्ती होते हैं लेकिन व्यापक ब्रह्माण्ड में अमीनो अम्ल वाम और दक्षिण, दोनों प्रकार की हस्तिता में पाए जाते हैं। आपके डाएट सोडा में जो कृत्रिम मिठास होती है, वह एस्पार्टेम हमेशा वामहस्ती होता है। इसका दर्पण प्रतिबिम्ब बेस्वाद होता है।
कुरोडा का शोध कार्य एक अकेले जीन का सम्बन्ध पूरी शरीर योजना से स्थापित करता है और दर्शाता है कि कैसे कायरेलिटी आणविक स्तर से शुरू होकर घोंघे के प्रकट रूप में नज़र आ सकती है।
मिचिसन के अनुसार, “यह जीव विज्ञान की एक रोचक समस्या है। इससे शायद कैंसर का इलाज नहीं होगा और न ही यह वर्षा वनों की रक्षा करेगी। यह तो उन समस्याओं में से है जो अपने आप में जिज्ञासा का विषय है। आज पता नहीं, लेकिन हो सकता है चिकित्सा में इसका कोई उपयोग निकल आए।”
स्वयं मिचिसन इस बात का अध्ययन करते हैं कि कोशिकाओं में एक्टिन जैसी एक अन्य रचना – माइक्रोट्यूब्यूल – स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, कुछ किस्म की कीमोथेरेपी माइक्रोट्यूब्यूल्स को स्थिरता देती हैं या अस्थिर करती हैं। गठिया जैसी कुछ शोथकारी (इंफ्लेमेटरी) बीमारियों का सम्बन्ध माइक्रोट्यूब्यूल्स की बहुतायत से देखा गया है। और एएलएस तथा अल्ज़ाइमर जैसे तंत्रिका विघटन रोगों में तंत्रिका कोशिकाओं में माइक्रोट्यूब्यूल्स का अभाव देखा गया है। इसीलिए उन्हें किसी मूलभूत जीव वैज्ञानिक सवाल का जवाब खोजने मात्र के लिए किया गया अनुसंधान लुभाता है। वे कहते हैं, “कुरोडा वास्तव में यह देखने की कोशिश कर रही हैं कि कैसे निर्माण इकाइयों के स्तर पर कायरेलिटी किसी जीव की कायरेलिटी में प्रकट होती है। इन घोंघों के पास हमें सुनाने को एक अद्भुत कहानी है।”

कुरोडा ने अपना शोध कैरियर एक एक्स-रे क्रिस्टेलोग्राफर के रूप में शुरू किया था – यानी एक ऐसे रसायनज्ञ के रूप में जो यह देखते हैं कि प्रोटीन व अन्य अणुओं में परमाणु किस तरह जमे होते हैं। हालाँकि, अब उनका काम एक्स-रे विवर्तन से प्राप्त सुगढ़ तस्वीरों की बजाय चिपचिपे घोंघों पर केन्द्रित है, लेकिन आज भी उन्हें यह सवाल लुभाता है कि कैसे अरबों अणु मिलकर कोई क्रिस्टल, डीएनए, प्रोटीन वगैरह बनाते हैं और अन्तत: एक पूरे जीव को आकार देते हैं।
जापान में जहाँ कुरोडा काम करती हैं, वहाँ वे सेवानिवृत्ति की उम्र पार कर चुकी हैं। लेकिन वे कहती हैं कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है। लिहाज़ा, उन्होंने अपने उपकरण और घोंघा बस्ती को एक नई प्रयोगशाला में पहुँचा दिया है।


विक्की स्टाइन: वैज्ञानिक लेखक एंव चित्रकार।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।
यह लेख PBS NewsHour के विज्ञान खण्ड, 14 मई 2019 से लिया गया है।
सन्दर्भ:
1.    Masanori Abe, Reiko Kuroda - The development of CRISPR for a mollusc establishes the forming Lsdia1 as the long-sought gene for snail dextral/sinistral coiling.
2.    Development 2019 146: dev175976 doi: 10.1242/dev.175976 Published 14 May 2019