ऑस्ट्रेलिया के डीकिन विश्वविद्यालय के इकॉलॉजिस्ट मायलीन मेरिएट ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह दावा किया है कि ज़ेब्रा फिंच (Taeniopygia guttata) नामक पक्षी अपने अंडों में पल रहे भ्रूण से बातें करता है और उन्हें आने वाले जीवन के लिए तैयार करता है।
यह प्रयोग करने की बात उनके मन में तब आई थी जब उन्होंने देखा कि ज़ेब्रा फिंच पक्षी अपने अंडों को सेते समय कुछ आवाज़ें पैदा करते हैं और ये आवाज़ें उनकी प्रणय पुकारों से अलग होती हैं। तो मेरिएट और उनकी साथी केथरीन बुकानन ने दड़बों में पल रहे 61 मादा व 61 नर पक्षियों की इन आवाज़ों को रिकॉर्ड किया। उन्होंने पाया कि नर व मादा दोनों ही ऐसी आवाज़ें इनक्यूबेशन काल के अंतिम दिनों में तब पैदा करते हैं जब दिन का अधिकतम तापमान 26 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है। इन्क्यूबेशन यानी ऊष्मायन (अंडे सेना)।
अब वे यह जानना चाहते थे कि क्या ये आवाज़ें उनके चूज़ों को बढ़ते तापमान के लिए तैयार करने में मदद करती हैं। इसके लिए उन्होंने 166 अंडों को कृत्रिम ढंग से मानक तापमान (37.7 डिग्री सेल्सियस) पर विकसित किया। इनक्यूबेशन के अंतिम 5 दिनों में उनमें से कुछ अंडों को सामान्य प्रणय पुकारें सुनाई गई जबकि कुछ को पहले से रिकॉर्ड की गई इनक्यूबेशन पुकारें सुनाई गई।
जब इन अंडों में से चूज़े निकले तो पता चला कि जिन चूज़ों ने भ्रूणावस्था में इनक्यूबेशन पुकारें सुनी थीं, वे ज़्यादा वाचाल थे और उनका औसत वज़न भी कम था। साइन्स के हाल के एक अंक में ये परिणाम रिपोर्ट करते हुए शोधकर्ताओं ने बताया है कि कम वज़न गर्म वातावरण में उपयोगी साबित हो सकता है क्योंकि वज़न कम रहने पर प्राणि कम गर्म होता है। इसके अलावा, उन्हें लगता है कि कम वज़न के पक्षियों में ऑक्सीकरण की वजह से होने वाली क्षति भी कम होती है।
अपने परिणामों को और पुख्ता बनाने के लिए उन्होंने यह भी किया कि इन चूज़ों को प्रजनन करने दिया। देखा गया कि यदि परिस्थितियां गर्म हों, तो इनक्यूबेशन पुकार सुनकर पैदा हुए चूज़े ज़्यादा संतानें पैदा करते हैं। दूसरी ओर सामान्य प्रणय पुकार पर पले चूज़े ठंडे वातावरण में ज़्यादा सफल रहते हैं। यह अंतर पहले प्रजनन काल में भी देखा गया और दूसरे प्रजनन काल में भी जारी रहा। इसके अलावा इनक्यूबेशन पुकार सुनकर विकसित हुए चूज़े अंडे देने के लिए ज़्यादा गर्म स्थान चुनते हैं।
इन अवलोकनों के आधार पर मेरिएट और बुकानन का मत है कि इनक्यूबेशन पुकार वास्तव में चूज़ों को बढ़ते तापमान के प्रति अनुकूलित करने का एक तरीका है। फेयरी रेन (Malurus cyaneus) नामक पक्षी में भी देखा गया है कि वह अंडे में विकसित होते हुए ही आवाज़ों में भेद करना सीख जाता है। फेयरी रेन ऑस्ट्रेलियाई गायक पक्षी है।
वैज्ञानिकों ने इन पक्षियों के 43 अंडे लिए। सामान्य रूप से इनका इनक्यूबेशन काल 13-14 दिन का होता है। जो अंडे लिए गए थे वे 9 से लेकर 13 दिन तक के थे। अब इन्हें विभिन्न आवाज़ें सुनाई गईं - एक तो शोरगुल था, जबकि कुछ को पक्षियों की प्रणय पुकार सुनाई गई थी और कुछ को वह आवाज़ सुनाई गई थी जो वे इनक्यूबेशन के दौरान उत्पन्न करते हैं। देखा गया कि जिन अंडों को इनक्यूबेशन पुकार और प्रणय पुकार सुनाई गई उनमें उपस्थित चूज़ों की हृदय गति मंद पड़ गई जबकि मात्र शोरगुल का कोई असर नहीं हुआ। प्रोसीडिंग्स ऑफ दी रॉयल सोसायटी बी में ये परिणाम प्रकाशित करते हुए शोधकर्ताओं ने बताया है कि पक्षियों के भ्रूण का यह व्यवहार दर्शाता है कि वे भ्रूणावस्था में भी बाह्य परिवेश के उद्दीपनों पर प्रतिक्रिया देते हैं और विभिन्न उद्दीपनों के बीच भेद कर पाते हैं। ये पक्षी भ्रूणावस्था में अपने चूज़ों को एक ‘पासवर्ड’ सिखाते हैं जो उन्हें माता-पिता से अधिक भोजन प्राप्त करने में मददगार होता है।
इन अवलोकनों के आधार पर कई वैज्ञानिक मान रहे हैं कि पक्षियों द्वारा अपने भ्रूण से संवाद को लेकर और शोध की ज़रूरत है। कुछ अन्य शोधकर्ताओं का विचार है कि संभवत: पक्षियों का ऐसा व्यवहार संयोगवश भी हो सकता है। (स्रोत फीचर्स)