ईसीटी यानी इलेक्ट्रो-कंवल्सिव ट्रीटमेंट वस्तुत: सीधे दिमाग में बिजली के झटके देने का ही दूसरा नाम है। एक समय पर यह एक प्रचलित उपचार विधि थी। खास तौर से गंभीर अवसाद से पीड़ित लोगों को बिजली के झटके देकर ठीक करने के दावे किए जाते थे। मगर धीरे-धीरे इसकी उपयोगिता पर सवाल खड़े होने लगे और इसका इस्तेमाल काफी कम हो गया। अब एक बार फिर इसे बहाल करने की कोशिश चल रही है। मगर कई लोगों ने इसकी दिक्कतों की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
देखा जाए तो ईसीटी की प्रक्रिया काफी सरल है। व्यक्ति को मांसपेशियों को शिथिल करने वाली कोई दवा दी जाती है, बेहोश किया जाता है और व्हील चेयर पर बैठाकर दिमाग में बिजली प्रवाहित की जाती है। बस एक मिनट लगता है और थोड़ा आराम करने के बाद व्यक्ति घर जा सकता है। कहते हैं कि इस प्रक्रिया से व्यक्ति अवसाद से मुक्त हो जाता है।
मगर किसी व्यक्ति को बिजली के झटके देने का यह विचार इतना अतिवादी है कि धीरे-धीरे इसका उपयोग बंद हो गया। कई लोगों ने यह आशंका व्यक्त की थी कि शायद यह प्रक्रिया प्रभावी नहीं है। इसके अलावा, इसके कई साइड प्रभाव भी होते हैं। इनमें मांसपेशियों में दर्द, भ्रम और याददाश्त गंवा देना शामिल हैं। ईसीटी के हिमायतियों का कहना है कि ये सारे साइड प्रभाव अस्थायी होते हैं और याददाश्त लौट आती है।
जहां तक इस प्रक्रिया के प्रभावी होने की बात है, तो पिछले कुछ वर्षों में हुए क्लीनिकल परीक्षणों से यह लगने लगा है कि यह शायद सचमुच काम करती है हालांकि जो राहत मिलती है वह थोड़े समय के लिए होती है। ऐसा लगता है कि दवाइयों और परामर्श की अपेक्षा ईसीटी ज़्यादा कारगर है। मगर साइड प्रभावों के बारे में आज भी अनिश्चितता है क्योंकि क्लीनिकल परीक्षणों में इस पहलू की उपेक्षा हुई है।
आज जब इस तकनीक को एक बार फिर चिकित्सा में शामिल करने की बातें चल रही हैं, तो कई लोग व संस्थाएं आग्रह कर रहे हैं कि पहले इसके साइड प्रभावों को लेकर समझ बन जानी चाहिए। (स्रोत फीचर्स)