विज्ञान में कई बार निष्कर्ष से भी ज़्यादा महत्व निष्कर्ष तक पहुंचने के तरीके का होता है। वैज्ञानिकों ने हाल ही में निष्कर्ष निकाला है कि ग्रीनलैण्ड शार्क (Somniosus microcephalus) 400 साल जीती हैं। इस तरह से इसने रीढ़धारी जंतुओं की आयु के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं। रीढ़विहीन जंतुओं में तो 500 साल तक की आयु के रिकॉर्ड मिले हैं।
यह तो पहले से पता था कि ग्रीनलैण्ड शार्क लंबी उम्र जीती हैं। 1930 के दशक में करीब 400 ऐसी शार्क को छल्ले पहनाए गए थे। लंबे समय तक इनके अवलोकनों से पता चला था कि ये प्रति वर्ष मात्र 1 से.मी. की वृद्धि करती हैं। इनकी अधिकतम लंबाई 5 मीटर देखी गई है और जन्म के समय इनकी लंबाई मात्र 42 से.मी. होती है। इसके आधार पर अनुमान लगाया गया था कि 42 से.मी. से 5 मीटर तक पहुंचने में इन्हें काफी लंबा समय लगता होगा। मगर इसके आधार पर उनकी कुल आयु का अंदाज़ नहीं लग पाया था।
इसके बाद कोपनहेगन विश्वविद्यालय के समुद्र जीव वैज्ञानिक जॉन स्टेफेन्सन ने उत्तरी अटलांटिक सागर में पकड़ी गई एक शार्क की रीढ़ की हड्डी के नमूने का विश्लेषण किया। उनका ख्याल था कि इस हड्डी पर वार्षिक वलय होंगी और उन्हें गिनकर इसकी उम्र का अनुमान लगाया जा सकेगा। ऐसी कोई वलय नहीं मिली। अब स्टेफेन्सन ने कार्बन-डेटिंग विशेषज्ञों से संपर्क किया। किसी नमूने में कार्बन के विभिन्न समस्थानिकों के अनुपात के आधार पर नमूने की उम्र का पता लगाया जा सकता है। इसे कार्बन डेटिंग कहते हैं। विशेषज्ञों का सुझाव था कि हड्डी की बजाय शार्क की आंख के लेंस का अध्ययन ज़्यादा उपयोगी होगा।
इस सुझाव के आधार पर स्टेफेन्सन और उनके स्नातक छात्र जूलियस नील्सन ने वर्षों तक मृत ग्रीनलैण्ड शार्कों की आंखों के लेंस इकट्ठे किए। इस मोड़ पर उन्होंने एक असाधारण तकनीक का उपयोग किया। 1950 के दशक में उस इलाके में बहुत सारे परमाणु परीक्षण किए गए थे। इन परीक्षणों के कारण वहां अतिरिक्त कार्बन इकट्ठा हुआ था। यानी इस दौरान शरीर के जो जड़ हिस्से बने होंगे उनमें कार्बन का भारी समस्थानिक भी ज़्यादा मात्रा में पाया जाएगा। इस तरीके का उपयोग करते हुए उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि उनके द्वारा पकड़ी गई दो शार्क 1960 के दशक में पैदा हुई थीं। दोनों 2.2 मीटर लंबी थीं। एक अन्य शार्क 1963 के आसपास पैदा हुई थी।
इन शार्कों के सुस्पष्ट काल निर्धारण के बाद शोधकर्ता शेष शार्कों की आयु का निर्धारण उनकी लंबाई के आधार पर कर पाए। निष्कर्ष यह निकला कि सबसे बुज़ुर्ग शार्क 392 वर्ष की थी। साइन्स शोध पत्रिका में उन्होंने बताया है कि मादा शार्क पहला अपना बच्चा पूरे 150 वर्ष की उम्र में पहुंचकर ही जनती है।
ग्रीनलैण्ड शार्क की इस लंबी उम्र का राज़ कुछ हद तक तो वहां के ठंडे पानी में छिपा है जो वृद्धि को धीमा करता है और डीएनए में होने वाली क्षति को भी कम करके रखता है। यह भी हो सकता है कि उनमें कुछ जेनेटिक गुण पैदा हुए हों, जो उन्हें लंबे समय तक जीने के योग्य बनाते हैं। (स्रोत फीचर्स)