यूके की खाद्य मानक एजेंसी (एफएसए) ने एक अभियान शुरु किया है जिसका मकसद है कि लोगों को आलू तथा अन्य मंडयुक्त चीज़ों को ऊंचे तापमान पर पकाने से जुड़े कैंसर के खतरों के बारे में आगाह किया जाए। सवाल है कि आम लोगों को इसकी कितनी चिंता करनी चाहिए?
दरअसल, कुछ खाद्य पदार्थों में एक्रिलेमाइड नामक एक रसायन पाया जाता है। खास तौर पर खाने को पकाते वक्त शर्करा व कुछ अमीनो अम्लों की क्रिया के फलस्वरूप एक्रिलेमाइड बनता है। हमारे कई व्यंजनों में जो कत्थई रंगत और ज़ायका होता है वह इसी एक्रिलेमाइड की बदौलत होता है। खास तौर से आलू व अन्य ज़्यादा मंड यानी स्टार्च वाले भोज्य पदार्थों को 120 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर पकाया जाए तो काफी मात्रा में एक्रिलेमाइड बन जाता है। ज़ाहिर है बिस्किट, ब्रेड वगैरह में काफी मात्रा में यह रसायन बनता होगा।
समस्या यह है कि हमारे शरीर में एक्रिलेमाइड को तोड़कर एक अन्य रसायन ग्लायसिडेमाइड का निर्माण होता है। यह ग्लायसिडेमाइड कोशिकाओं में डीएनए जुड़ सकता है और उसमें उत्परिवर्तन कर सकता है। जंतुओं पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि एक्रिलेमाइड तमाम किस्म के कैंसरों के लिए ज़िम्मेदार है। मगर कैंसर रिसर्च यूके की एमा शील्ड्स का कहना है कि मनुष्यों में एक्रिलेमाइड और कैंसर के सम्बंध इतने स्पष्ट और एकरूप नहीं पाए गए हैं। उनका मत है कि हमें एक्रिलेमाइड पर इतना हो-हल्ला करने की बजाय कैंसर के अन्य कारणों (जैसे धूम्रपान, अल्कोहल वगैरह) पर ध्यान देना चाहिए।
अलबत्ता, जोखिम को देखते हुए कई वैज्ञानिक सलाह दे रहे हैं कि बेहतर होगा यदि आलू व अन्य मंडयुक्त खाद्य पदार्थों को बहुत अधिक तापमान पर न पकाया जाए - उनके अनुसार इन चीज़ों को पकाकर सुनहरी रंगत देने तक तो ठीक है, उससे अधिक तलना या भूंजना उपयुक्त नहीं है। कैंसर और इन चीज़ों की कड़ी इतनी अपुष्ट है कि कोई ऐसी चीज़ों को खाने से परहेज़ करने की सलाह नहीं दे रहा है। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - March 2017
- पृथ्वी पर मंगल जैसे पर्यावरण की तलाश
- नर के बगैर भी शार्क बच्चे पैदा करती है
- स्लो रिलीज़ यूरिया का दोहरा फायदा
- जड़ और फफूंद की दोस्ती
- समंदर के पेंदे में रोशनी और सूक्ष्मजीव
- संक्रमणों का इतिहास और प्रतिरोध की हकीकत
- प्रतिरोध अपरिहार्य मगर अलंघ्य नहीं
- छोटे शिकार के चक्कर में विशाल शार्क की शामत
- सारे रीढ़धारियों के पूर्वज का जीवाश्म
- कीटनाशक के असर से मधुमेह का खतरा
- बूढ़े खून के हानिकारक असर को रोकने की कोशिश
- विज्ञान पत्रकारिता में रेक्स रोज़ारियो का अमूल्य योगदान
- मानसिक रोगियों और विकारों का गढ़ भारत
- हिंद महासागर में एक जलमग्न महाद्वीप
- बेहतर उपज के लिए प्रकाश संश्लेषण से छेड़छाड़
- राहत के इंतज़ार में सिलिकोसिस के रोगी
- आपका फोन आपकी चुगली कर सकता है
- मौसमी बाल मृत्यु में लीची की भूमिका
- बुढ़ापे और मृत्यु पर विजय के प्रयास
- मक्खियों में भी मोटापा होता है
- लकवाग्रस्त व्यक्ति की दिमागी बातचीत
- कमज़ोर मानसून और भूजल स्तर में गिरावट
- मछलियों में मूत्र के माध्यम से संदेश प्रसारण
- क्या अब आलू कैंसरकारी घोषित होंगे?
- उल्टी चलती चींटियों को दिशा ज्ञान