यह गहरी चिंता का विषय है कि भारत में मुंह का कैंसर तेज़ी से बढ़ रहा है। वैश्विक कैंसर वेधशाला (ग्लोबो-कैन) के अनुसार वर्ष 2012-18 के बीच ही इसके मामलों में 114 प्रतिशत की वृद्धि हुई। भारत व उसके पड़ोसी देश पाकिस्तान व बांग्लादेश अब विश्व स्तर पर मुंह के कैंसर के सबसे बड़े केंद्र माने जाते हैं। भारत में पुरुषों को होने वाले कैंसर में 11 प्रतिशत मामले मुंह के कैंसर के हैं जबकि महिलाओं को होने वाले कैंसर में मुंह के कैंसर 4 प्रतिशत से कुछ अधिक हैं। एक अध्ययन के अनुसार बांग्लादेश में प्रति वर्ष कैंसर के कुल नए मामलों में से 20 प्रतिशत मुंह के कैंसर के होते हैं। पाकिस्तान में भी ऐसी ही स्थिति है। यह गंभीर चिंता का विषय है कि दक्षिण एशिया में यह कैंसर इतना क्यों बढ़ गया है, और बढ़ रहा है।
टाटा मेमोरियल सेंटर के हाल के अध्ययन के अनुसार मुंह के कैंसर के इलाज पर वर्ष 2020 में भारत में 2386 करोड़ रुपए खर्च किए गए। इससे पता चलता है कि यह इलाज कितना महंगा पड़ रहा है। इसके ठीक होने की अधिक संभावना आरंभ में ही होती है, पर प्राय: दक्षिण एशिया में इसका निदान व इलाज बाद के चरणों में होता है। इसका कारण यह है कि अपेक्षाकृत निर्धन लोग इससे अधिक प्रभावित होते हैं।
स्पष्ट है कि बचाव पर ही अधिक ध्यान देना बेहतर है क्योंकि बचाव के उपायों को भलीभांति अपना कर मुंह के कैंसर के खतरे को काफी कम किया जा सकता है। इस रोग के बढ़ने के मुख्य कारणों की पहचान करके कमी लाने का प्रयास करना चाहिए।
इस रोग का सबसे बड़ा कारण विभिन्न रूपों में तंबाकू का उपयोग है, जैसे सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, आदि। मुंह के कैंसर के 80 प्रतिशत मामलों में तंबाकू की कुछ न कुछ भूमिका होती है, हालांकि बहुत से मामलों में साथ में अन्य कारक भी होते हैं। भारत में तंबाकू का उपयोग (या दुरुपयोग) करने वाले 60 प्रतिशत लोग धूम्र रहित तंबाकू (पावडर या किसी सूखे रूप में) का उपयोग करते हैं। गुटखे का उपयोग बहुत तेज़ी से बढ़ा है तथा दक्षिण एशिया में मुंह के कैंसर में गुटखे की मुख्य भूमिका है।
गुटखे में तंबाकू के अलावा कई अन्य पदार्थ होते हैं। इसके स्वास्थ्य सम्बंधी खतरों पर एक अदालत द्वारा केंद्रीय समिति से जांच करवाई गई थी। समिति ने इसके स्वास्थ्य गंभीर संकटों के मद्दे नज़र इस पर प्रतिबंध की संस्तुति की। कुछ राज्य सरकारों ने अपने-अपने ढंग से प्रतिबंध लगाए, पर यह करोड़ों का व्यवसाय बन चुका है। अत: इसमें कठिनाई आई व बिक्री जारी रखने के रास्ते निकाल लिए गए। एक रास्ता यह था कि तंबाकू व अन्य पदार्थों को अलग-अलग पाउचों में बेचा जाए।
गुटखे में तंबाकू, प्रोसेस्ड चूना, कत्था, सुपारी, मिठास-ताज़गी-सुगंध के पदार्थ होते हैं। तीखापन बढ़ाने के लिए अनेक हानिकारक पदार्थों के होने के आरोप लगते रहे हैं। प्रतिदिन करोड़ों की संख्या में इसके पाउच इधर-उधर फेंके जाने, इसे थूकने से गंदगी व स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ती हैं। गुटखे को देर तक मुंह में रखने, चूसते रहने की आदत कई लोगों पर इतनी हावी हो जाती है कि वे दिन की शुरुआत तक इससे करते हैं।
मुंह के कैंसर के अतिरिक्त गुटखे से अनेक दर्दनाक स्थितियां व स्वास्थ्य समस्याएं भी जुड़ी हैं। जैसे ओरल सबम्यूकस फायब्रोसिस। इस स्थिति में मुंह खोलने की क्षमता निरंतर कम होती जाती है व अंत में ऐसी स्थिति आ सकती है कि कुछ पीने के लिए मात्र एक नली ही कठिनाई से मुंह में डाली जा सकती है।
तंबाकू के अतिरिक्त मुंह के कैंसर की एक बड़ी वजह शराब का सेवन है। बहुत लंबे समय तक धूप में रहना भी होंठ के कैंसर का कारण बन सकता है। मुख की स्वच्छता की कमी भी कैंसर का कारण बन सकती है, विशेषकर उन वृद्धों में जो लगभग 15 वर्ष से बत्तीसी उपयोग कर रहे हैं। पांचवा कारण एच.पी.वी.-16 (एक यौन संचारित वायरस) है। अंतिम कारण है सब्ज़ी व फल कम खाना तथा जंक फूड अधिक मात्रा में खाना।
इन सभी कारकों को कम करने के प्रयासों से मुख कैंसर में कमी आएगी। अलबत्ता, सबसे अधिक भूमिका तंबाकू, गुटखे व शराब को कम करने की है। यह ऐसी राह है जिससे अनेक अन्य समस्याएं भी कम होंगी। अत: इस बचाव की राह को जन अभियान का रूप देते हुए मुख कैंसर में कमी लाने की ओर बढ़ना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - September 2021
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