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मुझे एक बात अक्‍सर महसूस होती है कि अगर विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो हमारे रोज़मर्रा के हर काम या अनुभव का कोई न कोई रोचक पहलू ज़रूर होता है। पर शायद नवीनता और मौलिकता में ही रोचकता तलाशने की हमारी प्रवृत्ति इतनी बलवती होती है कि आम अनुभवों की खास बातों पर हमारी नज़र भूले-भटके ही पड़ती है। उबलते पानी जैसी आम चीज़ को ही लें। रसोई में आप रोजाना दसियों बार पानी उबालते होंगे, पर मुमकिन है कि इससे जुड़ी कई दिलचस्‍प बातों से आप आज तक अंजान हो।

जी हां, उबलता पानी भी कई रोचक और कौतूहल पूर्ण गुणधर्म दर्शाता है। इनमें से कुछ तो हमारे बावर्चीखानों मे ही उजागर हो जाते हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो हमारे कारखानों की मशीनों के लिए अहम् हैं और कुछ जिनकी मदद से बाजीगर कई हैरतअंगेज़ कारनामों को अंजाम दे पाते हैं। रसोई में रोज़ाना होने वाले अनुभवों के आधार पर हम जानते हैा कि उबालेनपे से पानी वाष्‍प(भाप) में परिवर्तित हो जाता है। वाष्‍प बनने की यह प्रक्रिया वाष्‍पीकरण कहलाती है। इसमें पानी द्रव अवस्‍था से गैसीय (वाष्‍प) अवस्‍था में परिवर्तित हो जाता है। पर हमारा अनुभव यह भी बताता है कि वाष्‍पीकरण की प्रक्रिया के लिए पानी का उबलना ज़रूरी नहीं है। सामान्‍य तापमान पर भी पानी की सतह से यह प्रक्रिया लगातार होती रहती है। पानी से भरा बर्तन कुछ दिन के लिए रख छोड़ने पर आप पाते हैं कि उसका सारा पानी धीरे-धीरे वाष्‍प बन कर उड़ जाता है। वाष्‍पीकरण के कारण ही हमारे गीले कप्‍ड़े खुली हवा में टांगने पर सूख जाते हैं। तो फिर ठंडे पानी की सतह से होने वाला वाष्‍पीकरण, उबलते पानी के वाष्‍पीकरण से कैसे भिन्‍न है? इसको जानने के लिए अपनी रसोई में पानी को उबाल कर देखते हैं।

बुलबुलों का संगीत
पानी को जलते सटोव पर रखने पवर आप पाएंगे कि पानी जैसे-जैसे गर्म होता है, बर्तन के पेंदे पर छोटे-छोटे बुलबुले बनने चालू हो जाते हैं। ये बुलबुले वाष्‍प के नहीं बल्कि हवा के होते हैं। दरअसल पानी को गर्म करते ही पानी में घुली हुई हवा बुलबुलों के रूप में इकट्ठी होने लगती है। ये बुलबुले फिर धीरे-धीरे बढ़े होकर ऊपर की ओर उठते हैं, और सतह पर पहुंच कर फूट जाते हैं। इस तरह पानी के गर्म होने पर सबसे पहले उसमें से घुली हुई हवा निकल कर बाहर आ जाती है। चूंकि पानी को बर्तन के तले से गर्मी प्राप्‍त होती है, इसलिए तले से सटी हुई पानी की सबसे निचली परत ही सबसे अधिक तापमान पर होती है। गर्म पानी हल्‍का होने के कारण ऊपर उठता है और ऊपर का ठंडा पानी नीचे उतर आता है। इस तरह गर्म होते पानी में संवहन धाराएं उत्‍पन्‍न हो जाती हैं। इन धाराओं की बदौलत पूरे पानी का तापमान बढ़ने लगता है।

कब उबलेगा पानी: पानी अपने क्‍वथनांक पर तभी पहंुचता है जब बुलबुलों का वाष्‍पीय दबाव, वायुमंडलीय दबाव से ज्‍़यादा या उसके बराबर होता है। ऐसी स्थिति में ही भाप बुलबुलों के रूप में सतह तक पहुंच कर वायुमंडल में पहुंच पाती है।

अभी-भी पानी उबलने की स्थिति में नही पहुंचा है। पर अब जैसे-जैसे बर्तन के तले तापमान बढ़ने लगता है, पानी की सबसे निचली परत इतनी अधिक गर्म हो जाती है कि उसके अणु पेंदे पर जगह-जगह वाष्‍प के बुलबुलों के रूप में इकट्ठे होने लगते हैं। इस अवस्‍था के षुरू होते ही आप पाएंगे कि बर्तन का गर्म होता पानी गुनगुनाने लगता है। धीरे-धीरे यह आवाज़ बढ़ने लगती है। यह आवाज़ हमें बता देती है कि पानी अभी उबला तो नहीं है, पर थोड़ी देर में उबलने वाला है। जैसा कि अब आप भांप गए होंगे यह संगीत बुलबुलों की मेहरबानी से ही बजता है। दरअसल इस अवस्‍था में सबसे निचली परत का पानी भले ही वाष्‍प में परिवर्तित होने लगा हो, पर ऊपर का पानी अभी भी द्रव अवस्‍था में और कुछ कम तापमान पर ही होता है। इसलिए पानी के बुलबुले तले से जैसे ही ऊपर उठते हैं, वे थेड़े ठंडे पानी के संपर्क में आ जाते हैं। अपने से कम तापमान के पानी में पहुंचने पर ये बुलबुले अपनी कुछ गर्मी अपने आस-पास के पानी को दे बैठते हैं। ऐसा होने पर वे किकुड़ते हैं और अंत में फूट जाते हैं। भाप के ढेर सारे बुलबुलों के फूटने से ही पानी के गुनगुनाने की आवाज़ पैदा होती है। तापमान बढ़ने पर जैसे-जैसे और आधिक बुलबुले बनने औरा फूटनेद लगते हैं, वैसे-वैसे यह आवाज़ भी बढ़ने लगती है।

पर आपने गौर किया होगा कि अगर हम पानी को और अधिक गर्म करते रहें तो पानी के गुनगुनाने की आवाज़ धीरे-धीरे कम होने लगती है और अंतत: एक हल्‍की बुदबुदाहट के रूप में हमें सुनाई देती है। दरअसल इतना अधिक गर्म करने पर बर्तन में मौजूद सारा पानी उबलेने के तापमान तक पहुंच जाता है। यानी पूरा पानी इतना अधिक गर्म होता है कि भाप के बुलबुले बिना फूटे ही सतह तक पहुंचने में सफल होने लगते हैं और उनमें मौजूद भाप वायुमंडल में विलीन हो जाती है। पानी से उठते शोर का कम होना और बदल जाना इसी वहज से होता है। और अब हम कह सकते हैं कि पानी पूरी तरह से उबलने लगा है। ठंडे पानी में वाष्‍पीकरण सतह से ही होता है। पर आपने देखा कि उबलते पानी में स्थिति थोड़ी जुदा है। यहां ज्‍़यादातर भाप (बुलबुलों के रूप में) सतह के नीचे ही बनती है।

कब उबलेगा पानी
तले पर बने इन बुलबुलों को पानी की सतह तक की यात्रा काफी जद्दोजहद भरी होती है। जैसा कि आप जानते होंगे, पानी की सतह पर वायुमंडलय दबाव सदैव कायम रहता है। अब जैसे ही भाप का कोई बुलबुला गर्म पानी में बनता है, उस पर यह दबाव लगने लगता है। बुलबुले के ऊपर थोड़ा-सा दबाव उसके ऊपर मौजूद पानी के वज़न का भी होता है। पर दबाव लगने की यह प्रक्रिया एकतरफा नहीं होती। बुलबुलों में मौजूद गैसीय अवस्‍था वाले पानी के अणु भी अपने इर्द-गिर्द के पानी पर अपनी तेज़ गति के कारण वाष्‍पीय दबाव डालते हैं। जब तक बुलबुलों का  अपना वाष्‍पीय दबाव, बाहरी दबाव से कम होता है, वे सतह तक की अपनी यात्रा में अपना अस्तित्‍व बचाए रखने में नाकाम रहते हैं, और बीच में ही फूट जाते हैं। जब तक यह हालात कायम रहते हैं, पानी उबलना शुरू नहीं करता। पर जैसे ही पूरा पानी इतना आधिक गर्म हो जाता है कि सतह तक पहुंचने तक वाष्‍प के बुलबुलों का वाष्‍पीय दबाव वायुमंडलीय दबाव से ज्‍़यादा या उसके बराबर ही रहे हतो पानी अपने पूरे अबाल पर आ जाता है। यही अवस्‍था उस पानी का क्‍वथनांक निर्धरित करती है।

आपने देखा कि पानी का उबलना उसके तापमान के अलावा वायुमंडलीय दबाव पर भी निर्भर करता है। सामान्‍य परिस्थितियों में, यानी जब हम वायुमंडलीय दबाव को एक वायुमंडल मान सकते हैं, एक खुले बर्तन में गर्म किया गया पानी लगभग 100 से. के तापमान पर उबलता है। इस तापमान को पानी का क्‍वथनांक कहा जाता है। अब अगर किसी कारणवश वायुमंडलीय दबाव बढ़ जाए, तो क्‍या होगा? वायुमंडलीय दबाव बढ़ने पर आप पाएंगे कि 100 सेल्सियस तापमान पर भी पानी में बनने वाले वाष्‍प के बुलबुलों का वाष्‍पीय दबाव वायुमंडलीय दबाव से कम ही रहेगा। परिणामस्‍वरूप बुलबुले पानी की सतह तक पहुंचने से पहले ही फूट जाएंगे और पानी नहीं उबलेगा। अब पानी को उबालेने के लिए आपको थोड़ी और ऊष्‍मा देनी पड़ेगी जिससे आप के बुलबुलों में मौजूद अणुओं का विचरण और अधिक तेज़ गतियों से होने लगे।

अणुओं से औसत गति में बढ़त के कारण बुलबुलों वाष्‍पीय दबाव में इतनी बढ़ोत्‍तरी तो होनी ही चाहिए कि वह फिर से बढ़े हुए वायुमंडलीय दबाव बढ़ने पर पानी 100 सेल्सियस से ज्‍़यादा तापमान पर ही उबलता है। मिसाल के तौर पर अगर पानी की सतह पर पढ़ने वाला दबाव 1.4 वायुमंडल है तो क्‍वथनांक 110 से. होता है, और अगर दबाव बढ़ाकर 4.7 वायुमंडल कर दिया जाए तो पानी भी 100 से. के बाजए 150 से. सपर हरी उबलना चालू करता है।

उबलना एक शीतलन क्रिया है।
सभी जानते हैा कि उबलता पानी बेहद गर्म होता है। अगर हमें बेहद गर्म पानी चाहिए तो हम अक्‍सर उबलते पानी की ही मांग करते हैं। पर यह तस्‍वीर सही नहीं है। सच तो यह है कि पानी का उबलना एक तापन क्रिया नहीं बल्कि एक शीतलन(ठंडा करने की) क्रिया है। यह इसलिए कि अगर एक बार पानी का उबलना चालू हो जाए तो फिर चाहे आप उसे कितना ही, और कितनी भी देर गर्म क्‍यों न कर लें उसका तापमान लेशमात्र भी नही बढ़ता। पर हमारा अनुभव तो यही बताता है कि अगर हम किसी पदार्थ को ऊष्‍मा दें तो उसका तापमान बढ़ना चाहिए। यानी चूल्‍हे पर चढ़े उबलते पानी मे ज़रूर कोई शीतलन क्रिया चालू होती है। चूल्‍हा जिस दर से उबलते पानी को गर्म करता है उसकी दर से वह क्रिया उसे ठंडा करती जाती है। अन्‍यथा पानी का तापमान अपने क्‍वथनांक से ऊपर ज़रूर बढ़ता। नही? यह शीतलन क्रिया और कोई नहीं, पानी का उबलना ही है। अगर किसी प्रकार आप गर्म होते हुए पानी को उबलने न दें तो आप पाएंगे कि पानी का तापमान 100 सेल्सियस से हभी ऊपर बढ़ता चला जाता है। प्रेशर कुकर इसी सिद्धांत पर तो काम करता है।    

उबलते पानी के इस गुणधर्म की बदौलत ही प्रेशर कुकर में खाना इतना जल्‍दी पक जाता है।

ठुंसती भाप और . . .
प्रेशर कुकर में भाप के बाहर निकलने के रास्‍ते को आप ढक्‍कन द्वारा रोक कर उसे पानी के ऊपर छोटी सी जगह मे ही इकट्ठी होने पर विवश कर देते हैं। जैसे-जैसे भाप उस खाली स्‍थान में ठुसने लगती है, उस के द्वारा पानी की सतह पर लगाया जाने वाला दबाव भी एक वायुमंडल से अधिक होता जाता है। लिहाज़ा कुकर में गर्म हो रहे पानी का क्‍वथनांक भी बढ़ जाता है। क्‍वथनांक बढ़ने से उबलते पानी का तापमान भी बढ़ जाता है। इसी कारण कुकर में खाना जल्‍दी पक जाता है।

इस चर्चा से अब सवाल यह उठता है कि सतह पर लगने वाले बाहरी दबाव मे बढ़ोत्‍तरी अगर क्‍वथनांक को ऊपर खिसका देती है तो क्‍या वायुमंडलीय दबाव कम करने पर पानी 100 सेल्सियस से कम तापमान पर ही उबलना चालू कर देगा? जी हां, होता कुछ ऐसा ही है। पर्वतों पर ऊंचाई के कारण वायुमंडलीय दबाव एक वायुमंडल से कम होता है, इसलिए आप वहां पाएंगे कि पानी कम तापमान पर ही उबलना शुरू हो जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्र सतह से हर एक किलोमीटर ऊपर जाने पर क्‍वथनांक 3 से. कम हो जाता है।

बाहरी वातावरण पर दबाव डालते हुए बुलबुले के अंदर गतिमान वाष्‍प के अणु।

पानी के इस गुणधर्म को भौतिकशास्‍त्री प्रेयोगशालाओं में अक्‍सर एक बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्‍तुत करते हैं। पानी से भरे बर्तन को एक ऐसे बडढ़े बर्तन में रखते हैं जिसमें अंदर निर्वात पैदा किए जाने की व्‍यवस्‍था होती है। फिर एक चूषक पंप के द्वारा निर्वात बर्तन के अंदर की हवा का दबाव धीरे-धीरे कम किया जाता है। ऐसा करने पर पानी का क्‍वथनांक भी घटने लगता है। कुछ देर बाद निर्वात बर्तन में हवा का दबाव इतना कम हो जाता है कि क्‍वथनांक घट कर पानी के तापमान तक पहुंच जाता है। अब पानी का कमाल देखिए। ठंडा पानी बिना गर्म किए ही उबलना चालू हो जाता है। पर जैसा कि हमने शुरू में जि़क्र किया था वाष्‍पीकरण के लिए पानी को ऊर्जा मकी ज़रूरत पढ़ती है। पर पानी को तो हम किसी भी तरह गर्मी पहुंचा नहीं रहे है। तो फिर ... दरअसल, यह ऊर्जा पानी अपने अणुओं की उष्‍मीय ऊर्जा से ही प्राप्‍त करता है। इससे अणुओं की उष्‍मीय ऊर्जा कम हो जाती है, अब जब तक हवा का दबाव और अधिक कम करते रहेंगे, ठेडे पानी उबलना चालू रहेगा और साथ ही साथ और भी अधिक ठंड होता चला जाएगा।

यह प्रक्रिया चालू रहे तो अंतत: उबलते हुए पानी का तापमान 0 से. तक पहुंच जाता है। अब आगे का नज़ारा इतना अजीबोगरीब होता है कि उसका पूरा लुत्‍फ सिर्फ देखकर ही लिया जा सकता है। जी हां, उबलता हुआ पानी जमने लगता है, और उसकी सतह पर बर्फ की परत बनने लगती है। उबलते हुए पानी के जमे हुए बुलबुलों की कल्‍पना करना शायद देखे बिना संभव न होगा।

अब तक की हमारी चर्चा और अपने खुद के अनुभवों से आपको शायद यह भी प्रतीत हो कि पानी के उबलने का एक ही तरीका होता है। वह है बर्तन के तले पर भाप के अलग-अलग असंख्‍य बुलबुलों का निरंतर बनना और सतह पर पहुंचकर फूट जाना। हम अपवनी रसोईयों मे पानी का इसी तरह उबलना देखते हैं। पर प्रयोगशालाओं में कहानी यहीं खत्‍म नहीं होती।

रसोई में जब हम पानी उबालते हैं तो बर्तन का तापमान उबलते हपानी के तापमान से 4-10 सेल्सियस ही ज्‍़यादा होता है। पर अगर प्रयोगशालाओं में उपलब्‍ध बर्नरों की मदद से हम बर्तन का तापमान लगातार बढ़ाते रहें तो हमें उबलते पानी के और नए रूप देखने को मिलते हैं।

बर्तन का तापमान बढ़ते रहेने पर सबसे पहले हमें बुलबुलों की तादाद में बढ़ोत्‍तरी देखने को मिलती है। धीरे-धीरे ये बुलबुले इतने ज़यादा हो जाते हैं कि अलग-अलग रहते हुए सतह तक पहुंचने की बजाय वे मिल कर वाष्‍प की उन्‍मादित धराओं को जन्म देते हैं। ये धाराएं अपने में ज़बरदस्‍त हिलोरों और भंवरों को समेटे आत्‍ममंथन करती हुई तले से ऊपर उठती हैं, और सतह पर पहुंचकर अपने आप को वायुमंडल को सौंप देती हैं।

भाप पर तैरता पानी
अब अगर बर्तन का तापमान और अधिक बढ़ता रहे तो पानी का उबलना एक नया रूप धारण कर लेता है। यह अवस्‍था थोड़ी विचित्र होती है। यह अवस्‍था में हम पाते हैं कि अगर बर्तन का तापमान बढ़ा दिया जाए तो पानी को बर्तन से गर्मी मिलने की दर बढ़ने की बजाए घट जाती है। है न कुछ गड़बड़?

ददरअसल होता यह है कि उबलते पानी के इस अवस्‍था में पहुंचते ही बर्तन के पेंदे का ज्‍़यादातर हिस्‍सा भाप से ढ़क जाता है। यानी पानी की सबसे निचली परत में पानी कम और भाप ज्‍़यादा हो जाती है।

अब चूंकि भाप की ऊष्‍मा सुचालकता पानी से लगभग दस गुना कम होती है, लिहाजा बर्तन से पानी तक ऊष्‍मा स्‍थानांतरण की दर में भी कटौती आ जाती है। अब बर्तन को आप जितना अधिक गर्म करते जाएंगे, भाप क बीच में आ जाने के कारण पानी का बत्रन के तले से सीधा संपर्क उतना ही कम होता जाएगा। और साथ-साथ पानी को ऊष्‍मा मिलने की उद भ कम होती जाएगी। उन कारखानों में जहां मशीनों को ठंडा रखने के लिए पानी का इस्‍तेमाल किया जाता है, पूरी कोशिश की जाती है कि पानी कभी इस अवस्‍था में न पहुंचे अन्‍यथा मशीनों को नुकसान पहुंचने का डर रहता है।

 अगर अब भी हम अपनी जि़द पर अड़े रहें और बर्तन को और अधिक गर्म करते जाएं, तो देखते हैं कि बर्तन का पूरा तला वाष्‍प की परत से एंक जाता है। यानी पानी का तले से संपर्क बिलकुल खत्‍म हो जाता है और अब पानी भाप पर ‘तैरने’ लगता है। ऐसे में पानी का ेबर्तन से गर्मी मिलना भी काफी कम हो जाता है। उबलते पानी की इस अवस्‍था को फिल्‍म बॉइलिंग (film boiling) कहा जाता है।

आप भी करके देखें
एक सरल से प्रयोग के माध्‍यम से आप भी देख सकते हैं कि बाहरी उदबाव से पानी का उबलना किस प्रकार प्रभावित होता है। एक कोनिकल फ्लास्‍क में पानी लेकर उसे उबालें। जब पानी उबलने लगे तो उसे लौ पर से हटा लें और उसके मुंह को रबर के कार्क से ज़ोर से कस दें- थोड़ा इंतज़ार करें जिससे कि पानी उबलना बंद हो जाए। अब इस कोनिकल फ्लास्‍क पर ठंडा पानी डालें।

प्रेशर कुकर में- होता यह है कि ढक्‍कन के द्वारा हम भाप के निकलने को अवरूद्ध कर देते हैं, और भाप पानी के ऊपर की खानी जगह में इकट्ठी होती रहती है। जैसे-जैसे भाप ठुंसती जाती है, उसके द्वारा पानी की सतह पर लगाया जाने वाला दबाव भी बढ़ता जाता है। लिहाज़ा कुकर में रखे पानी का क्‍वथनांक भी बढ़ता जाता है। और खाना जल्‍दी पक जाता है।

आप देखेंगे कि पानी अपने आप फिर से उबलना चालू हो जाता है- एकदम जादू की तरह। क्‍या आप अंदाज़ा लगा सकते है कि ऐसा क्‍यों हुआ?

रसोई में आप पानी को ‘फिल्‍म बॉयलिंग’ तक की अवथा तक तो उबाल नहीं पाते, लेकिन फिर भी रसोई में ‘फिल्‍म बॉइलिंग’ यदा-कदा देखने को मिल ही जाती है। रोटी बनाने वाला तवा कितना गर्म है यह देखने के लिए कई लोग उस पर पानी की कुछ बूंद छिड़क कर पता लगाते हैं। अगर तवे को चूल्‍हे पर पढ़ते ही बूंदें कुछ ही सैकेंडो में भाप बन कर उड़ जाती है। लेकिन अगर तवा चूल्‍हे पर काफी समय से रखा है तो ज़रूरी नहीं कि ऐसा ही हो। अगर तवा खूब गर्म है- करीब 200 सेल्सियस तक- तो आप देखेंगे कि पानी की बूंदें तवे पर पढ़ते ही गायब नहीं हो जाती।

वे भाप में परिवर्तित होने से पहले करीब एक मिनट तक मोतियों जैसे छोटे-छोटे दानों में बिखरकर पूरे वते पर इधर-उधर नाचती रहती हैं। ऐसा इन बूंदों में हाने वाली ‘फिल्‍म बॉयलिंग’ के कारण ही होता है।

खौलते पानी से पानी खौलाना
एक पतीले में पानी भर कर उसे उबलने के लिए चूल्‍हे पर रख दें। अब एक छोटी सी शीशी में पानी भर कर पतीले के पानी में इस तरह डुबोएं कि न तो शीशी में पतीले का पानी भर पाए और न ही शीशी पतीले के तले से स्‍पर्श करे। कुछ देर बाद जब पतीले का पानी उबलने लगेगा तो शीशी के अंदर के पानी का क्‍या होगा? चाहे कितनी देर से सही, क्‍या अंतत: वह भी खौलने लगेगा? क्‍यों?


अजय शर्मा – एकलव्‍य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध।