गोल-गोल चक्कर खाने के बाद अचानक यक जाओ तो कैसा लगता है – मानों सिर के साथ आसपास का सारा जहां हमारे साथ घूम रहा हो और खेड़े रहने की कोशिश करो तो बस लगता है कि गिर ही पड़ेंगे।
क्यों होता है ऐसा कि हम रूक गए हैं फिर भी लगता है कि अभी भी घूम रहे हैं। वैसे, अगर आप जवाब की तलाश में निकलने वाले हैं तो जान लीजिए कि इस भूल-लुलैया का रास्ता कान के भीतर की ओर जाता है बाहर से दिखने वाल कान के छेद में आगे बढ़ते जाएं तो कान के परदे के बाद एक जगह अर्धवृत के समान मुड़ी हुई तीन नलियां मिलती हैं। इनमें द्रव भरा रहता है जिसमें पतली-पतली तंतु कोशिकाएं डूबी रहती हैं। ये तंतु कोशिकाएं दिमाग की ओर जा रही तंत्रिकाओं से जुड़ी रहती हैं। इस अर्धवृत्ताकार तंत्र का काम है शरीर के अगे-पीछे, दाएं-बाएं मुड़ने आदि की दिशा ओर गति के प्रति संवेदनशील होना। इस सिलसिले में यह सिर की स्थिति पर नज़र रखता है- जैसे ही सिर मुड़ा या घूमा, इसने दिमाग को खबर की।
तो होता यह है कि शरीर की गति के साथ अगर सिर हिलता है – तो इन नलियों में भरा द्रव भी हिलता है; इस हिलते द्रव के कारण इनमें डूबी तंतु कोशिकाएं भी आगे-पीछे हिलने-डुडने लगती हैं; इनके आगे-पीछे होने से इनसे जुड़ी तंत्रिकाएं में हलन-चलन होता है, जिससे मस्तिष्क तक संदेश पंहंचता है; और मस्तिष्क इन संदेशों का विश्लेषण कर शरीर की कोणीय स्थिति पर नज़र रखता है और शारीरिक संतुलन बना रहे, इसके लिए ज़रूरी ओदश दूसरे अंगों को भेजता है। जितनी तेज़ गति होगी, उतने ही तेज़ और तीव्र आवेश मस्तिष्क तक पहंचते हैं।
. . . तो होता है कि जब हम गोल-गोल चक्कर खाते हुए घूमते हैं तो नलियों में भरा द्रव भी घूमने लगता है। अब आप तो अचानक रूक गए लेकिन हिलते द्रव को स्थिर होने में कुछ समय लगता है। ऐसी स्थिति में शरीर के संतुलन की जानकारी दे रहे दूसरे अंग दिमाग को बताते हैं कि शरीर स्थिर हो चुका है, परन्तु इन नलियों में हिलते द्रव के कारण पहुंच रहे संदेश दिमाग को बताते हैं कि शरीर अभी-भी घूम रहा है। कुल मिलाकर दिमाग इन विरोधाभासी संदेशों से बैरा जाता है और शरीर के अंगो को संतुलन बनाए रखने का संदेश देने में गच्चा खा जाता है। इसीलिए हमें रूक जाने के बाद भी दुनिया थोड़ी देर तक घूमती हुई लगती है और महसूस होता है कि बस अब गिरे, अब गिरे।
चलिए ज़रा एक बार फिर से दिमाग को गच्चा देने की कोशिश करके देखिए तो सही। सच, घूमने में बढ़ा मज़ा आता है।
घूमता द्रव और घूमता दिमाग: कान के अंदर घूमते ही पर्दे के थोड़ा आगे मिलती हैं ये अर्धवत्ताकार नलियां। इनमें द्रव भरा होता है और पतली तंतु कोशिकाएं इस द्रव में डूबी रहती हैं। इन कोशिकाओं से जुड़ी होती हैं मस्तिष्क तक पहुंचती तंत्रिकाएं। ये नलियां शरीर की गति ओर दिशा पर नज़र रखती हैं। स काम को यह सिर की स्थिति पर नज़र रखकर अंजाम देती हैं। शरीर के हिलने डुलने के साथ इनमें भरा द्रव भी हिलता डुलता है। इस हलन-चलन के कारण तंतु कोशिकाएं भी आगे पीछे होती हैं; और इन कोशिकाओं के आगे पीदे हिलने से तंत्रिकाओं के जरिए दिमाग को खबर मिल जाती है – शरीर की गति के बारे में।