किशोर पंवार
"...अजूबा की पत्तियों पर पर्णकलियां बहुतायत में बनती हैं। जब इसकी कोई पत्ती जमीन के संपर्क में आती है या टूटकर नीचे गिर जाती है तो पत्ती के किनारे पर स्थित खांचों से अस्थानिक जड़े निकलने लगती हैं..."
पत्ती तो पत्ती होती है उसमें क्या अजूबा। लेकिन जिस पत्ती से आपकी मुलाकात होने जा रही है वो वाकई अजूबा है। नाम से भी और काम से भी। वैसे तो पत्ती का आम काम है भोजन बनाना। परन्तु यह पत्ती कई और काम भी करती है। इसे ‘थ्री इन वन' कहें तो भी चलेगा।
यह पत्ती है खटूम्बरा या पत्थर चट्टा की। वनस्पति शास्त्र की भाषा में इसे ब्रायोफिल्लम भी कहते हैं। हो सकता है आप में से कई लोगों ने इसे देखा हो। यह बगीचों, क्यारियों और गमलों में उगाया जाने वाला एक आम पौधा है जिसकी सुंदरता इसकी पत्तियों से ही है। चित्र देख कर आप इसे जान ही गए होंगे।
इसकी पत्तियां बड़ी-बड़ी मोटी और मांसल होती हैं। शुष्क वातावरण का पौधा होने के कारण इसकी पत्तियां पानी जमा करने और भोजन एकत्र करने के कारण मोटी और गूदेदार हो जाती हैं। यानी भोजन बनाने के साथ ये उसे इकट्ठा भी करती हैं और मुश्किल समय के लिए पानी भी जमकर रखती हैं। तभी तो फूली-फूली नजर आती हैं।
इसमें सरल और संयुक्त दोनों प्रकार की पत्तियां आप एक साथ देख सकते हैं। शुरुआती पत्तियां - नीचे से पहली से लेकर लगभग पांचवीं तक - सरल अंडाकार होती हैं। फिर छठी, सातवीं, आठवीं संयुक्त तीन पत्र की, और आगे की और पत्तियां पांच पत्री तक हो जाती हैं।
पत्थर चट्टा की पत्तियों में पत्र कलियां और अस्थानिक जड़ें; साथ में एक पूरी एवं कटी पत्तियों में पत्र कलियों के निकलने का स्थान दिखाई गई है।
अब आते हैं इसकी प्रमुख विशेषता पर जिसके लिए यह जानी जाती हैं। और जिस वजह से इसे नाम मिला है। अजूबा। सामान्यतः पत्तियों पर वर्धा कलियां नहीं होतीं। ये तने की पहचान हैं। परन्तु अजूबा की पत्तियों पर पर्णकलियां बहुतायत में बनती हैं। जब इसकी कोई पत्ती जमीन के संपर्क में आती है या टूटकर नीचे गिर जाती है। तो पत्ती के किनारे पर स्थित खांचों से अस्थानिक जड़ें निकलने लगती हैं। जो पत्ती को जमीन में जमाने का काम करती हैं। और फिर देखते ही देखते इस ‘स्प्राउट लीफ' पौधे की पत्ती से छोटे-छोटे पौधे निकल आते हैं। कुछ समय बाद असली पत्ती तो सड़ जाती है परन्तु उससे पूर्व छोड़ जाती है कई सारे शिशु पौधे। यही कारण है। कि अजूबा की पत्ती को ‘जनन पत्ती भी कहते हैं।
इस पौधे ब्रायोफिल्लम पिन्नेटम की पत्ती तो जब ज़मीन के संपर्क में आती है तब बच्चे जनती है परन्तु इसकी अन्य जाति ब्रायोफिल्लम ट्यूबी फोलियम की पुरानी पत्तियां तो पौधे पर लगे लगे ही छोटे छोटे पौधे बनाने लगती हैं। इसी तरह केलान्चू की लगभग सभी पत्तियों के अगले सिरे से ढेर सारी कलियां उत्पन्न होती हैं जो धीरे-धीरे नीचे गिरती रहती हैं। जिसके कारण इसके नीचे कई सारे छोटे-छोटे पौधे उग आते हैं। ये पत्र कलियां इतनी छोटी होती हैं कि हवा से
काफी दूर तक उड़ जाती हैं; और जहां-जहां गिरती हैं वहां नया पौधा तैयार हो जाता है। अब तो आप समझ ही गए होंगे कि इसका हिन्दी नाम ‘हेजा' कितना उचित और सार्थक है।
और अब इस अजूबे की जीवटता को देखने के लिए दो प्रयोगः
1. पत्ती से पौधाः पत्थर चट्टा की एक पुरानी पत्ती लीजिए। उसे चित्र में दिखाए अनुसार काट कर या ऐसे ही एक प्लेट या कटोरी में अखबार या सोख्ता कागज़ का टुकड़ा काटकर उसके ऊपर थोड़ा-सा पानी डालकर पत्ती को रख दें। अब पत्ती को कांच के गिलास या बीकर से ढंक दें। तीन चार दिन बाद आप देखेंगे कि पत्ती के खांचों से छोटे-छोटे पौधे निकल रहे हैं। यह आपको एक सरल-सा कल्चर हो गया। इन पौधों को आप जमीन में लगाकर इसके नए पौधे तैयार कर सकते हैं।
2. पुस्तक में बगीचाः यह और भी आसान एवं मजेदार प्रयोग है। विद्या की पत्ती को तो आप में से कई लोगों ने बचपन में अपनी कापी में दबाकर रखा होगा। इसी तरह पौधों को फैलाकर सुखाकर एवं दबाकर इनके हरबेरियम बनाए जाते हैं।
विद्या की पत्ती की तरह ही अजूबे की एक पत्ती लेकर किसी पुरानी कापी या पत्रिका में रख दीजिए सुखाने के लिए। आठ दस दिन बाद ज़रा खोलकर तो देखिए पत्ती सूखी या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि सूखने की बजाए इसने कापी में अपना एक बगीचा ही तैयार कर लिया हो। है न अजूबा, अजूबा।
किशोर पंवारः शासकीय महाविद्यालय, सेंधवा, जिला खरगोन में वनस्पतिशास्त्र पढ़ाते हैं।